Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 158
________________ जीवाजीवाभिगम-१०/१/३७० १५७ सपर्यवसित। इनमें जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य से एकसमय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है । भगवन् ! सवेदक का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित का अन्तर नहीं होता । सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । भगवन् ! अवेदक का अन्तर कितना है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित का अन्तर नहीं होता, सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त । __ अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े अवेदक हैं, उनसे सवेदक अनन्तगुण हैं । इसी प्रकार सकषायिक का भी कथन वैसा करना चाहिए जैसा सवेदक का किया है । अथवा दो प्रकार के सब जीव हैं-सलेश्य और अलेश्य । जैसा असिद्धों और सिद्धों का कथन किया, वैसा इनका भी कथन करना चाहिए यावत् सबसे थोड़े अलेश्य हैं, उनसे सलेश्य अनन्तगुण हैं । [३७१) अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-ज्ञानी और अज्ञानी । भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम तक रह सकते हैं । अज्ञानी का कथन सवेदक समान है । ज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है । आदि के दो अज्ञानी-अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित का अन्तर नहीं है । सादिसपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े ज्ञानी, उनसे अज्ञानी अनन्तगुण हैं । अथवा दो प्रकार के सब जीव हैं-साकार और अनाकार-उपयोग वाले । इनकी संचिट्ठणा और अन्तर जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है । अल्पबहुत्व में अनाकार-उपयोग वाले थोड़े हैं, उनसे साकार-उपयोग वाले संख्येयगुण हैं । [३७२] अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-आहारक और अनाहारक । भगवन् ! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! आहारक दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ-आहारक और केवलि-आहारक । छद्मस्थ-आहारक, आहारक के रूप में ? गौतम! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल का असंख्यातवां भाग रहता है । केवलि-आहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि । भगवन् ! अनाहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ-अनाहारक और केवलि-अनाहारक । छद्मस्थ-अनाहारक उसी रूप में जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट दो समय तक रहता है । केवलि-अनाहारक दो प्रकार के हैंसिद्धकेवलि-अनाहारक और भवस्थकेवलि-अनाहारक । सिद्धकेवलि-अनाहारक गौतम ! सादिअपर्यवसित है । भवस्थकेवलि-अनाहारक दो प्रकार के हैं-सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवलिअनाहारक । भगवन् ! सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? जघन्य उत्कृष्ट रहित तीन समय तक । अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक जघन्य अन्तर्मुहर्त और

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