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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हैं और उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार अप्रथमसमयिकों का अल्पबहुत्व भी जानना । विशेषता यह है कि अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं |
दोनों का अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े प्रथमसमयएकेन्द्रिय, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं । शेष में सबसे थोड़े प्रथमसमयवाले हैं और अप्रथमसमयवाले असंख्येयगुण हैं ।
भगवन् ! इन प्रथमसमयएकेन्द्रिय, यावत् अप्रथमसमयपंचेन्द्रियों में ? गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमय एकेन्द्रिय, अनन्तगुण हैं ।
प्रतिपत्ति-९ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-१) [३६९] भगवन् ! सर्वजीवाभिगम क्या है ? गौतम ! सर्वजीवाभिगम में नौ प्रतिपत्तियां कही हैं । उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत् दस प्रकार के हैं। जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा-सिद्ध और असिद्ध ।
भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित । भगवन् ! असिद्ध, असिद्ध के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम! असिद्ध जीव दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित असिद्ध सदाकाल असिद्ध रहता है और अनादि-सपर्यवसित मुक्ति-प्राप्ति के पहले तक असिद्धरूप में रहता है ।
भगवन् ! सिद्ध का अन्तर कितना है ? गौतम ! सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं होता है । भगवन् ! असिद्ध का अंतर कितना होता है ? गौतम ! अनादि-अपर्यवसित और
अनादि-सपर्यवसित असिद्ध का अंतर नहीं होता । इन सिद्धों और असिद्धों में ? सबसे थोड़े सिद्ध, उनसे असिद्ध अनन्तगुण हैं ।
[३७०] अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा-सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप में काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । अनिन्द्रिय में सादि-अपर्यवसित है। दोनों में अन्तर नहीं है । सेन्द्रिय की वक्तव्यता असिद्ध की तरह और अनिन्द्रिय की वक्तव्यता सिद्ध की तरह कहनी चाहिए । अल्पबहत्व में सबसे थोड़े अनिन्द्रिय हैं और सेन्द्रिय अनन्त-गुण हैं ।
अथवा दो प्रकार के सर्व जीव हैं-सकायिक और अकायिक । इसी तरह सयोगी और अयोगी इनकी संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय की तरह जानना चाहिए । अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-सवेदक और अवेदक । सवेदक तीन प्रकार के हैं, यथा-अनादिअपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल तक रहता है यावत् वह अनन्तकाल क्षेत्र से देशोन अपार्द्धपुद्गलपरावर्त है । अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि