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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अर्धकवीठ के आकार का है । वह सर्वात्मना स्फटिकमय है, इसकी कान्ति सब दिशा-विदिशा में फैलती है, जिससे यह श्वेत, प्रभासित है इत्यादि । इसी प्रकार सूर्य, ग्रह और ताराविमान भी अर्धकवीठ आकार के हैं ।
भगवन् ! चन्द्रविमान का आयाम-विष्कंभ कितना है ? परिधि कितनी है ? और बाहल्य कितना है ? गौतम ! आयाम-विष्कंभ एक योजन के ६१ भागों में से ५६ भाग प्रमाण है । इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि है । एक योजन के ६१ भागों में से २८ भाग प्रमाण उसकी मोटाई है । सूर्यविमान एक योजन के ६१ भागों में से ४८ भाग प्रमाण लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि और एक योजन के ६१ भागों में से २४ भाग प्रमाण उसकी मोटाई है । ग्रहविमान आधा योजन लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और एक कोस की मोटाई वाला है । नक्षत्रविमान ए कोस लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और आधे कोस की मोटाई वाला है । ताराविमान आधे कोस की लम्बाई-चौड़ाई वाला, इससे तिगुनी से कुछ अधिक परिधि वाला और पांच सौ धनुष की मोटाई वाला है ।
[३१५] भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं । वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हए दहीं, गाय का दूध, फेन चांदी के निकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आंखें शहद की गोली के समान पीली हैं, मुख में स्थित सुन्दर प्रकोष्ठों से युक्त गोल, मोटी, परस्पर जुड़ी हुई विशिष्ट और तीखी दाढ़ाएं हैं, तालु और जीभ लाल कमल के पत्ते के समान मृदु एवं सुकोमल हैं, नख प्रशस्त और शुभ वैडूर्यमणि की तरह चमकते हुए और कर्कश हैं, उनके उरु विशाल और मोटे हैं, कंधे पूर्ण और विपुल हैं, गले की की केसर-सटा मृदु विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म, लक्षणयुक्त और विस्तीर्ण है, गति लीलाओं और उछलने से गर्वभरी और साफ-सुथरी होती है, पूछे ऊँची उठी हुई, सुनिर्मित-सुजात और फठकारयुक्त होती हैं । नख वज्र के समान कठोर हैं, दांत वज्र के समान मजबूत हैं, दाढ़ाएं वज्र के समान सुदृढ़ हैं, तपे हुए सोने के समान उनकी जीभ है, तपनीय सोने की तरह उनके तालु हैं । ये इच्छानुसार चलने वाले हैं, इनकी गति प्रीतिपूर्वक होती है, ये मन को रुचिकर लगने वाले हैं, मनोरम हैं, मनोहर हैं, इनकी गति अमित है, बल-वीर्य-पुरुषकारपराक्रम अपरिमित है । ये जोर-जोर से सिंहनाद करते हुए से आकाश और दिशाओं को गुंजाते हुए और सुशोभित करते हुए चलते रहते हैं ।
उस चन्द्रविमान को दक्षिण की तरफ से ४००० देव हाथी का रूप धारण कर उठाते वहन करते हैं । वे हाथी श्वेत हैं, सुन्दर हैं, सुप्रभा वाले हैं । उनकी कांति शंकतल के समान विमल-निर्मलहै, जमे हुए दही की तरह, गाय के दूध, फेन और चाँदी के निकरकी तरह श्वेत है । वज्रमय कुम्भ-युगल के नीचे रही हुई सुन्दर मोटी सूंड में जिन्होंने क्रीडार्थ रक्तपद्मों के प्रकाश को ग्रहण किया हुआ है । मुख ऊंचे उठे हुए हैं, वे तपनीय स्वर्ण के विशाल, चंचल और चपल हिलते हुए विमल कानों से सुशोभित हैं, शहद वर्ण के चमकते हुए स्निग्ध पीले और पक्ष्मयुक्त तथा मणिरत्न की तरह त्रिवर्ण श्वेत कृष्ण पीत वर्ण वाले उनके नेत्र हैं, अतएव वे नेत्र उन्नत मृदुल मल्लिका के कोरक जैसे प्रतीत होते हैं, दांत सफेद, एक सरीखे, मजबूत,