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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
त्रसकाय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं क्या ? गौतम ! हां, कईबार अथवा अनन्तबार उत्पन्न हो चुके हैं ।
| प्रतिपत्ति-३ "इन्द्रियविषयाधिकार" | [३०६] भगवन् ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय | श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम दो प्रकार का है-शुभ शब्दपरिणाम और अशुभ शब्दपरिणाम । इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय आदि के विषयभूत पुद्गलपरिणाम भी दो-दो प्रकार के हैं-यथा सुरूपपरिणाम और कुरूपपरिणाम, सुरभिगंधपरिणाम और दुरभिगंधपरिणाम, सुरसपरिणाम एवं दुरसपरिणाम तथा सुस्पर्शपरिणाम एवं दुःस्पर्शपरिणाम ।
भगवन् ! उत्तम-अधम शब्दपरिणामों में, उत्तम-अधम रूपपरिणामों में, इसी तरह गंधपरिणामों में, रसपरिणामों में और स्पर्शपरिणामों में परिणत होते हुए पुद्गल परिणत होते हैंबदलते हैं-ऐसा कहा जा सकता है क्या ? हां, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है । भगवन् ! क्या उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में बदलते हैं ? अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं क्या ? हा गौतम ! बदलते हैं । भगवन् ! क्या शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं ? हां, गौतम ! बदलते हैं । इसी प्रकार सुरभिगंध के पुद्गल दुरभिगंध के रूप में और दुरभिगंध के पुद्गल सुरभिगंध के रूप में बदलते हैं । इसी प्रकार शुभस्पर्श के पुद्गल अशुभस्पर्श के रूप में तथा शुभरस के पुद्गल अशुभरस के रूप० यावत् परिणत हो सकते हैं ।
| प्रतिपत्ति-३ "देवशक्ति" [३०७] भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है ? हां, गौतम ! है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगतिवाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि उस देव की गति पहले भी शीघ्र होती है और बाद में भी शीघ्र होती है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वह देव उस वस्तु को पकड़ने में समर्थ है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना और किसी बालक को पहले छेद-भेदे बिना उसके शरीर को सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं, गौतम ! ऐसा नहीं है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके परन्तु बालक के शरीर को पहले छेद-भेदे बिना उसे सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं गौतम ! नहीं है । भगवन् ! कोई महद्धिक एवं महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण कर और बालक के शरीर को पहले छेद-भेद कर फिर उसे सांधने में समर्थ है क्या ? हां, गौतम ! है । वह ऐसी कुशलता से उसे सांधता है कि उस संधिग्रन्थि को छद्मस्थ न देख सकता है और न जान सकता है । ऐसी सूक्ष्म ग्रन्थि वह होती है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक देव पहले बालक को छेदे-भेदे बिना बड़ा या छोटा करने में समर्थ है क्या ? गौतम ! ऐसा नहीं हो सकता । इस प्रकार चारों भंग कहना। प्रथम द्वितीय भंगों में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण नहीं है और प्रथम भंग में बाल-शरीर