Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 139
________________ १३८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उस चन्द्रविमान को उत्तर की ओर से ४००० अश्वरूपधारी देव उठाते हैं । वे श्वेत हैं, सुन्दर हैं, सुप्रभावाले हैं, उत्तम जाति के हैं, पूर्ण बल और वेग प्रकट होने की वय वाले हैं, हरिमेलकवृक्ष की कोमल कली के समान धवल आंख वाले हैं, वे अयोधन की तरह दृढीकृत, सुबद्ध, लक्षणोन्नत कुटिल ललित उछलती चंचल और चपल चाल वाले हैं, लांघना, उछलना, दौड़ना, स्वामी को धारण किये रखना त्रिपदी के चलाने के अनुसार चलना, इन सब बातों की शिक्षा के अनुसार ही वे गति करने वाले हैं । हिलते हुए रमणीय आभूषण उनके गले में धारण किये हुए हैं, उनके पार्श्वभाग सम्यक् प्रकार से झुके हुए हैं, संगत-प्रमाणापेत हैं, सुन्दर हैं, यथोचित मात्रा में मोटे और रति पैदा करने वाले हैं, मछली और पक्षी के समान उनकी कुक्षि है, पीन-पीवर और गोल सुन्दर आकार वाली कटि है, दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से लटकते हुए हैं, लक्षण और प्रमाण से युक्त हैं, प्रशस्त हैं, रमणीय हैं । रोमराशि पतली, सूक्ष्म, सुजात और स्निग्ध है । गर्दन के बाल मृदु, विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म और सुलक्षणोपेत हैं और सुलझे हुए हैं । सुन्दर और विलासपूर्ण गति से हिलते हुए दर्पणाकार स्थासक-आभूषणों से उनके ललाट भूषित हैं, मुखमण्डप, अवचूल, चमर आदि आभूषणों से उनकी कटि परिमंडित है, तपनीय स्वर्ण के खुर, जिह्ना और तालु हैं, तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे भलीभांति जुते हुए हैं । वे इच्छापूर्वक गमन करने वाले हैं यावत् वे जोरदार हिनहिनाने की मधुर और मनोहर ध्वनि से आकाश को गुंजाते हुए, दिशाओं को शोभित करते है । १६००० देव पूर्वक्रम के अनुसार सूर्यविमान को वहन करते हैं । ८००० देव ग्रहविमान को वहन करते हैं । २००० देव पूर्व की तरफ से, यावत् २००० देव उत्तर की दिशा से हैं । चार हजार देव नक्षत्रविमान को वहन करते हैं । एक हजार देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा की ओर से वहन करते हैं । इसी तरह चारों दिशाओं से जानना । ताराविमान को दो हजार देव वहन करते हैं । पांच सौ-पांच सौ देव चारों दिशाओं से जानना। . [३१६] भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं में कौन किससे शीघ्रगति वाले हैं और कौन मंदगतिवाले हैं ? गौतम ! चन्द्र से सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्रों से तारा शीघ्रगतिवाले हैं । सबसे मन्दगति चन्द्रों की है और सबसे तीव्रगति ताराओं की है। [३१७] भगवन् ! इन चन्द्र यावत् तारारूप में कौन किससे अल्पऋद्धि वाले हैं और कौन महाऋद्धि वाले हैं ? गौतम ! तारारूप से नक्षत्र, नक्षत्र से ग्रह, ग्रहों से सूर्य और सूर्यों से चन्द्रमा महर्द्धिक हैं । सबसे अल्पऋद्धि वाले तारारूप हैं और सबसे महर्द्धिक चन्द्र हैं । [३१८] भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारा का दूसरे तारे से कितना अंतर कहा गया है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है, यथा-व्याघातिम और नियाघातिम । व्याघातिम अन्तर जघन्य २६६ योजन का और उत्कृष्ट १२२४२ योजन का है । जो निर्व्याघातिम अन्तर है वह जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का जानना चाहिए । [३१९] भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिपियां हैं ? गौतम ! चार, -चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । इनमें से प्रत्येक अग्रहिपी अन्य ४००० देवियों की विकुर्वणा कर सकती है । इस प्रकार कुल मिलाकर १६००० देवियों का परिवार है । यह चन्द्रदेव के अन्तःपुर का कथन हुआ ।

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