Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 138
________________ जीवाजीवाभिगम-३/ज्यो./३१५ १३७ परिणत अवस्था वाले, सुदृढ, सम्पूर्ण एवं स्फटिकमय होने से सुजात हैं और मूसल की उपमा से शोभित हैं, दांतों के अग्रभाग पर स्वर्ण के वलय पहनाये गये हैं । इनके मस्तक पर तपनीय स्वर्ण के विशाल तिलक आदि आभूषण पहनाये हुए हैं, नाना मणियों से निर्मित ऊर्ध्व ग्रैवेयक आदि कंठे के आभरण गले में पहनाये हुए हैं । जिनके गण्डस्थलों के मध्य में वैडूर्यरत्न के विचित्र दण्ड वाले निर्मल वज्रमय तीक्ष्ण एवं सुन्दर अंकुश स्थापित किये हुए हैं । तपनीय स्वर्ण की रस्सी से पीठ का आस्तरण बहुत ही अच्छीतरह सजाकर एवं कसकर बांधा गयाहै अतएव वे दर्प से युक्त और बल से उद्धत बने हुए हैं, जम्बूनद स्वर्ण के बने घनमंडलवाले और वज्रमय लाला से ताडित तथा आसपास नाना मणिरत्नों की छोटी-छोटी घंटिकाओं से युक्त रत्नमयी रज्जु में लटके दो बड़े घंटों के मधुर स्वर से वे मनोहर लगते हैं । उनकी पूंछे चरणों तक लटकती हुई हैं, गोल हैं तथा उनमें सुजात और प्रशस्त लक्षण वाले बाल हैं जिनसे वे हाथी अपने शरीर को पोंछते रहते हैं । मांसल अवयवों के कारण परिपूर्ण कच्छप की तरह उनके पांव होते हुए भी वे शीघ्र गति वाले हैं । अंकरत्न के उनके नख हैं, तपनीय स्वर्ण के जोतों द्वारा वे जोते हुए हैं । वे इच्छानुसार गति करने वाले हैं यावत् अपने बहुत गंभीर एवं मनोहर गुलगुलाने की ध्वनि से आकाश को पूरित करते हैं और दिशाओं को सुभोभित करते हैं । उस चन्द्रविमान को पश्चिमदिशा की ओर से ४००० बैलरूपधारी देव उठाते हैं । वे श्वेत हैं, सुन्दर लगते हैं, उनकी कांति अच्छी है, उनके ककुद कुछ कुछ कुटिल हैं, ललित और पुष्ट हैं तथा दोलायमान हैं, दोनों पार्श्वभाग सम्यग् नीचे की ओर झुके हुए हैं, सुजात हैं, श्रेष्ठ हैं, प्रमाणोपेत हैं, परिमित मात्रा में ही मोटे होने से सुहावने लगने वाले हैं, मछली और पक्षी के समान पतली कुक्षिवाले हैं, नेत्र प्रशस्त, स्निग्ध, शहद की गोली के समान चमकते पीले वर्ण के हैं, जंघाएं विशाल, मोटी और मांसल हैं, स्कंध विपुल और परिपूर्ण हैं, कपोल गोल और विपुल हैं, ओष्ठ घन के समान निचित और जबड़ों से अच्छी तरह संबद्ध हैं, लक्षणोपेत उन्नत एवं अल्प झुके हुए हैं । वे चंक्रमति, ललित, पुलित, और चक्रवाल की तरह चपल गति से गर्वित हैं, मोटी स्थूल वर्तित और सुसंस्थित उनकी कटि है । दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह लटकते हुए हैं, लक्षण और प्रमाणयुक्त, प्रशस्त और रमणीय हैं । खुर और पूंछ एक समान हैं, सींग एक समान पतले और तीक्ष्ण अग्रभाग वाले हैं । रोमराशि पतली सूक्ष्म सुन्दर और स्निग्ध है । स्कंधप्रदेश उपचित परिपुष्ट मांसल और विशाल होने से सुन्दर हैं, इनकी चितवन वैडूर्यमणि जैसे चमकीले कटाक्षों से युक्त अतएव प्रशस्त और रमणीय गर्गर नामक आभूषणों से शोभित हैं, घग्घर नामक आभूषण से उनका कंठ परिमंडित है, अनेक मणियों स्वर्ण और रत्नों से निर्मित छोटी-छोटी घंटियों की मालाएं उनके उर पर तिरछे रूप में पहनायी गई हैं । गले में श्रेष्ठ घंटियों की मालाएं हैं । ये पद्मकमल की परिपूर्ण सुगंधियुक्त मालाओं से सुगन्धित हैं । इनके खुर वज्र जैसे और विविध प्रकार के हैं । दांत स्फटिक रत्नमय हैं, तपनीय स्वर्ण जैसी उनकी जिह्वा और तालु हैं, तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे जुते हुए हैं । वे इच्छानुसार चलने वाले हैं, यावत् वे जोरदार गंभीर गर्जना के मधुर एवं मनोहर स्वर से आकाश को गुंजाते हुए और दिसाओं को शोभित करते हुए गति करते हैं ।

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