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जीवाजीवाभिगम-३/वैमा.-१/३२५
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देव और बाह्य पर्षद में २००० देव हैं । आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम
और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और पांच पल्योपम की है । आनत-प्राणत देव की । आभ्यन्तर पर्षद में अढाई सौ देव हैं, मध्यम पर्षद में पांच सौ देव और बाह्य पर्षद में एक हजार देव हैं, आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और पांच पल्योपम है, मध्यम पर्षद के देवों स्थिति उन्नीस सागरोपम और चार पल्योपम, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और तीन पल्योपम की है ।
भगवन् ! आरण-अच्युत देवों के विमान कहां हैं-इत्यादि यावत् वहां अच्युत नाम का देवेन्द्र देवराज सपरिवार विचरण करता है । देवेन्द्र देवराज अच्युत की आभ्यन्तर पर्षद में १२५ देव, मध्य पर्षद में २५० देव और बाह्य पर्षद में ५०० देव हैं । आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्य पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और पांच पल्योपम की है । भगवन् ! अधस्तन-प्रैवेयक देवों के विमान कहां कहे गये हैं ? भगवन् ! अधस्तन-प्रैवेयक देव कहां रहते हैं ? स्थानपद समान कथन यहां करना । इसी तरह मध्यमग्रैवेयक, उपरितन-ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देवों का कथन करना । यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब अहमिन्द्र हैं-वहां कोई छोटे-बड़े का भेद नहीं है ।
| प्रतिप्रति-३-"वैमानिक" उद्देशक-२ | [३२६] भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प की विमानपृथ्वी किसके आधार पर रही हुई है ? गौतम ! धनोदधि के आधार पर । सनत्कुमार और माहेन्द्र की विमानपृथ्वी धनवात पर प्रतिष्ठित है । ब्रह्मलोक विमान-पृथ्वी घनवात पर प्रतिष्ठित है । लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार विमान पृथ्वी घनोदधि-घनवात पर प्रतिष्ठित है । आनत यावत् अच्युत विमानपृथ्वी, ग्रैवेयकविमान और अनुत्तरविमान आकाश-प्रतिष्ठित हैं ।
[३२७] भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमानपृथ्वी कितनी मोटी है ? गौतम ! २७०० योजन मोटी है । सनत्कुमार और माहेन्द्र में विमानपृथ्वी २६०० योजन । ब्रह्मलोक
और लांतक में २५०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में २४०० योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में २३०० योजन, ग्रैवेयकों में २२०० योजन और अनुत्तर विमानों में विमानपृथ्वी २१०० योजन मोटी है ।
[३२८] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने ऊंचे हैं ? गौतम ! पांचसौ योजन ऊंचे हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्र में छहसौ योजन, ब्रह्मलोक और लान्तक में सातसौ योजन, महाशुक्र और सहस्रार में आटसौ योजन, अण्णत प्राणत आरण और अच्युत में नौसौ योजन, ग्रैवेयकविमान में १००० योजन और अनुत्तरविमान ११०० योजन ऊंचे हैं ।
[३२९] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का आकार कैसा है ? गौतम ! वे विमान दो तरह के हैं-आवलिका-प्रविष्ट और आवलिका बाह्य । आवलिका-प्रविष्ट विमान तीन प्रकार के हैं-गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण । आवलिका-बाह्य हैं वे नाना प्रकार के हैं । इसी तरह का कथन ग्रैवेयकविमानों पर्यन्त कहना । अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं-गोल