Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 140
________________ जीवाजीवाभिगम - ३ / ज्यो. / ३२० १३९ [३२०] भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ है क्या ? गौतम ! नहीं । है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में माणवक चैत्यस्तंभ में वज्रमय गोल मंजूषाओं में बहुत-सी जिनदेव की अस्थियां रखी हुई हैं, जो चन्द्र और अन्य बहुत-से ज्योतिषी देवों और देवियों के लिए अर्चनीय यावत् पर्युपासनीय हैं । उनके कारण ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में यावत् चन्द्रसिंहासन पर यावत् भोगोपभोग भोगने में समर्थ नहीं है । ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर अपने ४०००. सामानिक देवों यावत् १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य बहुत से ज्योतिषी देवों और देवियों के साथ घिरा हुआ होकर जोर-जोर से बजाये गये नृत्य में, गीत में, वादित्रों के, तन्त्री के, तल के, ताल के, त्रुटित के, घन के, मृदंग के बजाये जाने से उत्पन्न शब्दों से दिव्य भोगोपभोगों को भोग सकने में समर्थ है । किन्तु अपने अन्तःपुर के साथ मैथुनबुद्धि से भोग भोगने में वह समर्थ नहीं है । [ ३२१] भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की कितनी अग्रमहिषियां हैं ? गौतम ! चार, सूर्यप्रभा, आतपाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । शेष कथन चन्द्र के समान । विशेषता यह है कि यहां सूर्यावतंसक विमान में सूर्यसिंहासन कहना । उसी तरह ग्रहादि की भी चार अग्रमहिषियां हैं - विजया, वेजयंती, जयंति और अपराजिता । शेष पूर्ववत् । [३२२] भगवन् ! चन्द्रविमान में देवों की कितनी स्थिति है ? प्रज्ञापना में स्थितिपद के अनुसार तारारूप पर्यन्त जानना । [३२३] भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य दोनों तुल्य हैं और सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण नक्षत्र हैं । उनसे संख्यातगुण ग्रह हैं, उनसे संख्यातगुण तारागण हैं । प्रतिपत्ति- ३ वैमानिक उद्देशक- १ [३२४] भगवन् ! वैमानिक देवों के विमान कहां हैं ? भगवन् ! वैमानिक देव कहां रहते हैं ? इत्यादि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के स्थानपद समान कहना । विशेष रूप में यहां अच्युत विमान तक परिषदाओं का कथन भी करना यावत् बहुत से सौधर्मकल्पवासी देव और देवियों का आधिपत्य करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते हैं । [३२५] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं हैं ? गौतम ! तीन, समिता, चण्डा और जाया । आभ्यंतर पर्षदा को समिता, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं । देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद् में १२००० देव, मध्यम परिषद् में १४००० देव और बाह्य परिषद् में १६००० देव हैं । आभ्यन्तर परिषद् में ७०० देवियां मध्य परिषद् में ६०० और बाह्य परिषद् ५०० देवियां हैं । देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति पांच पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति चार पल्योपम की है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है । आभ्यन्तर परिषद्

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