Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 134
________________ जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./३०२ १३३ लाल करनेवाली, शीघ्र नशा-उत्तेजना देने वाली होती हैं, जो आस्वाद्य, पुष्टिकारक एवं मनोज्ञ हैं, शुभ वर्णादि से युक्त हैं, इससे भी इष्टतर वह जल कहा गया है । भगवन् ! क्षीरोदसमुद्र का जल आस्वाद में कैसा है ? गौतम ! जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती के लिए चतुःस्थान-परिणत गोक्षीर जो मंदमंद अग्नि पर पकाया गया हो, आदि और अन्त में मिसरी मिला हुआ हो, जो वर्ण गंध रस और स्पर्श से श्रेष्ठ हो, ऐसे दूध के समान जो जल है । इससे भी अधिक इष्टतर है । घृतोदसमुद्र के जल का आस्वाद शरदऋतु के गाय के घी के मंड के समान है जो सल्लकी और कनेर के फूल जैसा वर्णवाला है, भली-भांति गरम किया हुआ है, तत्काल नितारा हुआ है तथा जो श्रेष्ठ वर्ण-गंध-रस-स्पर्श से युक्त है । इससे भी अधिक इष्ट घृतोदसमुद्र का जल है । भगवन् ! क्षोदोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! जैसे भेरुण्ड देश में उत्पन्न जातिवंत उन्नत पौण्ड्रक जाति का ईख होता है जो पकने पर हरिताल के समान पीला हो जाता है, जिसके पर्व काले हैं, ऊपर और नीचे के भाग को छोड़कर केवल बिचले त्रिभाग को ही बलिष्ठ बैलों द्वारा चलाये गये यंत्र से रस निकाला गया हो, जो वस्त्र से छाना गया हो, जिसमें चतुर्जातक मिलाये जाने से सुगन्धित हो, जो बहुत पथ्य, पाचक और शुभ वर्णादि से युक्त हो-ऐसे इक्षुरस भी अधिक इष्ट क्षोदोदसमुद्र का जल है । इसी प्रकार स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त शेष समुद्रों के जल का आस्वाद जानना चाहिए। विशेषता यह है कि वह जल वैसा ही स्वच्छ, जातिवंत और पथ्य है जैसा कि पुष्करोद का जल है । भगवन् ! कितने समुद्र प्रत्येक रस वाले कहे गये हैं ? गौतम ! चार, लवण, वरुणोद, क्षीरोद और घृतोद | भगवन् ! कितने समुद्र प्रकृति से उदगरस वाले हैं ? गौतम ! तीन, कालोद, पुष्करोद और स्वयंभूरमण समुद्र । आयुष्यमन् श्रमण ! शेष सब समुद्र प्रायः क्षोदरस (इक्षुरस) वाले हैं । [३०३] भगवन् ! कितने समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं ? गौतम ! तीन-लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्र । आयुष्मन् श्रमण ! शेष सब समुद्र अल्प मत्स्य-कच्छपोंवाले कहे गये हैं । भगवन् ! कालोदसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां हैं ? गौतम ! नव लाख | भगवन् ! स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां हैं ? गौतम ! साढे बारह लाख । भगवन् ! लवणसमुद्र में मत्स्यों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यात भाग और उत्कृष्ट पांच सौ योजन । इसी तरह कालोदसमुद्र में उत्कृष्ट सात सौ योजन की, स्वयंभूरमणसमुद्र में उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है । [३०४] भंते ! नामों की अपेक्षा द्वीप और समुद्र कितने नामवाले हैं ? गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम हैं, शुभ वर्ण यावत् शुभ स्पर्श हैं, उतने ही नामों वाले द्वीप और समुद्र हैं । भंते ! उद्धारसमयों की अपेक्षा से द्वीप-समुद्र कितने हैं ? गौतम ! अढाई सागरोपम के जितने उद्धारसमय हैं, उतने द्वीप और सागर हैं । [३०५] भगवन् ! द्वीप-समुद्र पृथ्वी के परिणाम हैं इत्यादि प्रश्न-गौतम ! द्वीप-समुद्र पृथ्वीपरिणाम भी हैं, जलपरिणाम भी हैं, जीवपरिणाम भी हैं और पुद्गलपरिणाम भी हैं । भगवन् ! इन द्वीप-समुद्रों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्व पृथ्वीकाय यावत्

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