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जीवाजीवाभिगम-३ / द्वीप./२९१
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रस, बहुत सी सामग्रियों से युक्त पौष मास में सैकड़ों वैद्यों द्वारा तैयार की गई, निरुपहत और विशिष्ट कालोपचार से निर्मित, उत्कृष्ट मादक शक्ति से युक्त, आठ बार पिष्ट प्रदान से निष्पन्न, जम्बूफल कालिवर प्रसन्न नामक सुरा, आस्वाद वाली गाढ पेशल, ओठ को छूकर आगे बढ़ जानेवाली, नेत्रों को कुछ-कुछ लाल करने वाली, थोड़ी कटुक लगनेवाली, वर्णयुक्त, सुगन्धयुक्त, सुस्पर्शयुक्त, आस्वादनीय, धातुओं को पुष्ट करने वाली, दीपनीय, मदनीय एवं सर्व इन्द्रियों और शरीर में आह्लाद उत्पन्न करने वाली वाली सुरा आदि होती है, क्या वैसा वरुणोदसमुद्र का पानी है ? गौतम ! नहीं ! वरुणोदसमुद्र का पानी इनमें भी अधिक इष्टतर, कान्ततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनस्तुष्टि करनेवाला है । इसलिए वह वरुणोदसमुद्र कहा जाता है । वहां वारुणि और वारुणकांत नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । हे गौतम ! वरुणोदसमुद्र नित्य है ।
भगवन् ! वरुणोदसमुद्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं- इत्यादि प्रश्न । गौतम ! चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, तारा आदि सब संख्यात - संख्यात कहना ।
[२९२] वर्तुल और वलयाकार क्षीरवर द्वीप वरुणवरसमुद्र को सब ओर से घेर कर है । उसका विष्कंभ और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि यावत् क्षीरवर नामक द्वीप में बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां यावत् सरसरपंक्तियां और बिलपंक्तियां हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं । पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महर्द्धिक देव वहां रहते हैं यावत् वह शाश्वत है । उस क्षीरवर नामक द्वीप में सब ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात संख्यात कहनी चाहिए ।
उक्त क्षीरवर नामक द्वीप को क्षीरोद नामका समुद्र सब ओर से घेरे हुए स्थित है । वह वर्तुल और वलयाकार है । वह समचक्रवालसंस्थान से संस्थित है । संख्यात लाख योजन उसका विष्कंभ और परिधि है आदि यावत् गौतम ! क्षीरोदसमुद्र का पानी चक्रवर्ती राजा के लिये तैयार किये गये गोक्षीर जो चतुःस्थान- परिणाम परिणत है, शक्कर, गुड़, मिश्री आदि से अति स्वादिष्ट बताई गई है, जो मंदअग्नि पर पकायी गई है, जो आस्वादनीय, यावत् सर्वइन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाली है, जो वर्ण से सुन्दर है यावत् स्पर्श से मनोज्ञ है । इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति देने वाला है । विमल और विमलप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव वहां निवास करते हैं । इस कारण क्षीरोदसमुद्र क्षीरोदसमुद्र कहलाता है । उस समुद्र में सब ज्योतिष्क चन्द्र से लेकर तारागण तक संख्यात संख्यात हैं ।
[२९३] वर्तुल और वलयाकार संस्थान - संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है । वह समचक्रवालसंस्थान वाला है । उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है । उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहां तक का वर्णन पूर्ववत् । गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां आदि हैं जो घृतोदक से भरी हुई हैं । वहां उत्पात पर्वत यावत् खडहड आदि पर्वत हैं, वे सर्वकंचनमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । वहां कनक और कनकप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । उसके ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात - संख्यात है ।
उक्त घृतवरद्वीप को घृतोद नामक समुद्र चारों ओर से घेरकर स्थित है । वह गोल और वलय की आकृति से संस्थित है । वह समचक्रवालसंस्थान वाला है । पूर्ववत् द्वार, प्रदेशस्पर्शना, जीवोत्पत्ति और नाम का प्रयोजन जानना । यावत् - घृतोदसमुद्र का पानी गोघृत के मंड के