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जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./२२२
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गौतम ! लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कंभ से दो लाख योजन का है, उसकी परिधि १५८११३९ योजन से कुछ कम है, उसकी गहराई १००० योजन है, उसका उत्सेध १६००० योजन का है । उद्वेध और उत्सेध दोनों मिलाकर समग्र रूप से उसका प्रमाण १७००० योजन है ।
[२२३] हे भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कंभ से दो लाख योजन का है, इत्यादि पूर्ववत्, तो वह जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, प्रबलता के साथ उत्पीड़ित और जलमन क्यों नहीं कर देता ? गौतम ! जम्बूद्वीप में भरत-ऐवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक और श्राविकाएं हैं, वहां के मनुष्य प्रकृति से भद्र, प्रकृति से विनीत, उपशान्त, प्रकृति से मन्द क्रोध-मानमाया-लोभ वाले, मृदु, आलीन, भद्र और विनीत हैं, उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को यावत् जलमग्न नहीं करता है ।
गंगा-सिन्धु-रक्ता और रक्तवती नदियों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थितवाली देवियां हैं । क्षुल्लकहिमवंत और शिखरी वर्षधर पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, हेमवत-ऐरण्यवत वर्षों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, रोहितांश, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों में जो महर्द्धिक देवियां हैं, शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, महाहिमवंत
और रुक्मि वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, हविर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, गंधापति और मालवंत नाम के वृत्तवैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, निषध और नीलवंत वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक देव है, इसी तरह सब द्रहों की देवियों का कथन करना, पद्मद्रह तिगिंछद्रह केसरिद्रह आदि द्रहों से महर्द्धिक देव रहते हैं, पूर्वविदेहों और पश्चिमविदेहों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक, श्राविकाएं एवं मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, मेरुपर्वत के महर्द्धिक देवों, जम्बू सुदर्शना में अनाहत इन सब के प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है ।
गौतम ! दूसरी बात यह है कि लोकस्थिति और लोकस्वभाव ही ऐसा है कि लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से यावत् जलमग्न नहीं करता ।
[२२४] धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है, लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए है । भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! वह समचक्रवाल संस्थान-संस्थित है । भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का चक्रवाल-विष्कंभ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला और ४१,१०,९६१ योजन से कुछ कम परिधिवाला है । वह धातकीखण्ड एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से सब ओर से घिरा हुआ है । धातकीखण्डद्वीप के समान ही उनकी परिधि है ।
भगवन् ! धातकीखण्ड के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार, विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित । हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का विजयद्वार कहां पर स्थित है ? गौतम ! धातकीखण्ड के पूर्वी दिशा के अन्त में और कालोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिमदिशा में शीता महानदी के ऊपर है । जम्बूद्वीप के विजयद्वार की तरह ही इसका प्रमाण आदि जानना । इसकी राजधानी अन्य धातकीखण्डद्वीप में है, इत्यादि । इसी प्रकार विजयद्वार सहित चारों द्वारों