Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

Previous | Next

Page 122
________________ जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./२३० १२१ आस्वाद्य है, मांसल, पेशल, काला और उड़द की राशि के वर्ण का है और स्वाभाविक उदकरस वाला है, इसलिए वह कालोद कहलाता है । वहां काल और महाकाल नाम के पल्योपम की स्थिति वाले महर्द्धिक दो देव रहते हैं । कालोदसमुद्र नाम भी शाश्वत है । [२३१] कालोदधि में ४२ चन्द्र और ४२ सूर्य सम्बद्ध लेश्यावाले विचरण करते हैं। [२३२] ११७६ नक्षत्र और ३६९६ महाग्रह और [२३३] २८१२९५० कोडाकोडी तारागण [२३४] शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे । [२३५] गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करवर नाम का द्वीप कालोदसमुद्र को सब ओर घेर कर रहा हुआ है । यावत् यह समचक्रवाल संस्थान वाला है | भगवन् ! पुष्करवरद्वीप का चक्रवालविष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है ? गौतम ! वह सोलह लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला है और (२३६] उसकी परिधि १९२८९८९४ योजन है । [२३७] वह एक पद्मवरखेदिका और एक वनखण्ड से परिवेष्ठित है । पुष्करवरद्वीप के चार द्वार हैं-विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित । गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पूर्वी पर्यन्त में और पुष्करोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्करवरद्वीप का विजयद्वार है, आदि वर्णन जंबूद्वीप के विजयद्वार के समान है । इसी प्रकार चारों द्वारों का वर्णन जानना । लेकिन शीता शीतोदा नदियों का सद्भाव नहीं कहना चाहिये । भगवन् ! पुष्करखरद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना है ? [२३८] गौतम ४८२२४६९ योजन का अन्तर है । [२३९] पुष्करवरद्वीप के प्रदेश पुष्करखरसमुद्र से स्पृष्ट हैं यावत् पुष्करवरद्वीप और पुष्करवरसमुद्र के जीव मरकर कोई कोई उनमें उत्पन्न होते हैं और कोई कोई नहीं होते । भगवन् ! पुष्करवरद्वीप पुष्करवरद्वीप क्यों कहलाता है ? गौतम ! पुष्करवरद्वीप में स्थान-स्थान पर यहां-वहां बहुत से पद्मवृक्ष, पद्मवन और पद्मवनखण्ड नित्य कुसुमित रहते हैं तथा पद्म और महापद्म वृक्षों पर पद्म और पुंडरीक नाम के पल्योपम स्थिति वाले दो महर्द्धिक देव रहते हैं, इसलिए यावत् नित्य है । [२४०] गौतम ! १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य पुष्करवरद्वीप में प्रभासित होते हुए विचरते हैं । २४१] ४०३२ नक्षत्र और १२६७२ महाग्रह हैं । [२४२] ९६४४४०० कोडाकोडी तारागण पुष्करवरद्वीप में (शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ।) [२४३] पुष्करवरद्वीप के बहुमध्यभाग में मानुपोत्तर पर्वत है, जो गोल है और वलयकार संस्थान से संस्थित है । वह पर्वत पुष्करवरद्वीप को दो भागों में विभाजित करता है-आभ्यन्तर पुष्करार्ध और बाह्य पुष्करार्ध | आभ्यन्तर पुष्करार्ध का चक्रवालविष्कंभ आठ लाख योजन है और [२४४] उसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन की है । मनुष्यक्षेत्र की परिधि भी यही है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241