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जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./१९८
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[१९८] गोल और वलय की तरह गोलाकार में संस्थित लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए अवस्थित है । हे भगवन् ! लवणसमुद्र समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! लवणसमुद्र समचक्रवाल-संस्थान से संस्थित है । गौतम ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ दो लाख योजन का है और उसकी परिधि १५८११३९ योजन से कुछ अधिक है । वह लवणसमुद्र एक पद्मववेदिका और एक वनखण्ड से सब ओर से परिवेष्टित है । वह पद्मववेदिका आधा योजन ऊंची और पांच सौ धनुष प्रमाण चौड़ी है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन का है, इत्यादि गौतम ! लवणसमुद्र के चार द्वार हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ।
हे भगवन् ! लवणसमुद्र का विजयद्वार कहां है ? गौतम ! लवणसमुद्र के पूर्वीय पर्यन्त में और पूर्वार्ध धातकीखण्ड के पश्चिम में शीतोदा महानदी के ऊपर है । वह आठ योजन ऊंचा और चार योजन चौड़ा है, इस विजय देव की राजधानी पूर्व में असंख्य द्वीप, समुद्र लांघने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है । गौतम ! लवणसमुद्र के दाक्षिणात्य पर्यन्त में धातकीखण्ड द्वीप के दक्षिणार्ध भाग के उत्तर में वैजयन्त नामक द्वार है । इसी प्रकार जयन्तद्वार जानना । विशेषता यह है कि यह शीता महानदी के ऊपर है । इसी प्रकार अपराजितद्वार जानना । विशेषता यह है कि यह लवणसमुद्र के उत्तरी पर्यन्त में और उत्तरार्ध धातकीखण्ड के दक्षिण में स्थित है । इसकी राजधानी अपराजितद्वार के उत्तर में असंख्य द्वीप समुद्र जाने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है ।
हे भगवन् ! लवणसमुद्र के इन द्वारों का अन्तर कितना है ? [१९९] ३९५२८० योजन और एक कोस अन्तर है ।
[२००] हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश धातकीखण्डद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? हां गौतम ! हैं, धातकीखण्ड के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं, आदि । लवणसमुद्र से मर कर जीव धातकीखण्ड में पैदा होते हैं क्या ? आदि पूर्ववत् । धातकीखण्ड से मरकर लवणसमुद्र में पैदा होने के विषय में भी पूर्ववत् कहना । हे भगवन् ! लवणसमुद्र, लवणसमुद्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! लवणसमुद्र का पानी अस्वच्छ, रजवाला, नमकीन, लिन्द्र, खारा और कडुआ है, द्विपद-चतुष्पद-मृग-पशु-पक्षी-सरीसृपों के लिए वह अपेय है, केवल लवणसमुद्रयोनिक जीवों के लिए ही वह पेय है, लवणसमुद्र का अधिपति सुस्थित नामक देव है जो महर्द्धिक है, पल्योपम की स्थिति वाला है । वह अपने सामानिक देवों आदि अपने परिवार का और लवणसमुद्र की सुस्थिता राजधानी और अन्य बहुत से वहां के निवासी देव-देवियों का आधिपत्य करता हुआ विचरता है । इस कारण और दूसरी बात यह कि “लवणसमुद्र" यह नाम शाश्वत है यावत् नित्य है ।
२०१] हे भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! चार चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे । चार सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे, ११२ नक्षत्र चन्द्र से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे । ३५२ महाग्रह चार चरते थे, चार चरते हैं और चार चरेंगे । २६७९०० कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ।
[२०२] हे भगवन् ! लवणसमुद्र का पानी चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा