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भूमिका
३
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कालिक -
उत्कालिक
उत्तराध्ययन वेश्रमणोपपात दशवकालिक सूर्यप्रज्ञप्ति दशाश्रुतस्कन्ध वेलन्धरोपपात कल्पिकाकल्पिक पौरुषीमंडल कल्प
देवेन्द्रोपपात चुल्लकल्पश्रुत मण्डलप्रवेश व्यवहार उत्थानश्रुत __महाकल्पश्रुत विद्याचरण विनिश्चय निशीथ समुत्थानश्रुत औपपातिक गणिविद्या महानिशीथ नागपरिज्ञापनिका राजप्रश्नीय ध्यानविभक्ति ऋषिभाषित निरयावलिका जीवाभिगम मरणविभक्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कल्पिका प्रज्ञापना आत्मविशोधि द्वीपसागरप्रज्ञप्ति कल्पावतंसिका महाप्रज्ञापना वीतरागश्रुत चन्द्रप्रज्ञप्ति पुष्पिता प्रमादाप्रमाद संलेखणाश्रुत क्षुल्लिकाविमान- पुष्पचूलिका नन्दी विहारकल्प -प्रविभक्ति वृष्णिदशा अनुयोगद्वार
चरणविधि महल्लिकाविमान
देवेन्द्रस्तव आतुरप्रत्याख्यान -प्रविभक्ति
तन्दुलवैचारिक महाप्रत्याख्यान अंगचूलिका
चन्द्रवेध्यक वग्गचूलिका विवाहचूलिका अरुणोपपात वरुणोपपात गरुडोपपात धरणोपपात
इस प्रकार हम देखते हैं कि नन्दीसूत्र में महाप्रत्याख्यान का उल्लेख अंगबाह्य, आवश्यक-व्यतिरिक्त उत्कालिक आगमों में हुआ है। पाक्षिकसूत्र में आगमों के वर्गीकरण की जो शैली अपनायी गयी है उसमें नाम और क्रम में कुछ भिन्नता है। उसमें भी महाप्रत्याख्यान को उत्कालिक आगमों में अट्ठाईसवाँ स्थान मिला है। इसके अतिरिक्त आगमों के वर्गीकरण की एक प्राचीन शैली हमें यापनीय परम्परा के शौरसेनी आगम 'मूलाचार' में भी मिलती है। मूलाचार आगमों को चार भागों में वर्गीकृत करता है'-(१) तीर्थंकर-कथित (२) प्रत्येकबुद्ध१. मूलाचार-भारतीय ज्ञानपीठ-गाथा २७७
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