Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ ३० [6] [4] निंदामि निंदणिज्जं गरहामि य जं च मे गरहणिज्जं । आलोएमि य सव्वं जिणेहिं जं जं च पडिकुठं ॥ [९] महापचक्खाणपणयं खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे । आसवे वोसिरित्ताणं समाहि पडिसंधए । ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ७ ) [20] ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ८ ) ममत्तं परिजाणामि निम्ममत्ते उवट्ठिओ । आलंबणं च मे आया अवसेसं च वोसिरे ॥ Jain Education International ( महाप्रत्याख्यान, गाथा १० ) आया आया मज्झं नाणे आया मे दंसणे चरिते य । पच्चवखाणे आया मे संजमे जोगे ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ११ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115