Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ ५३ - भूमिका कुन्दकुन्द को पर्याप्त रूप से प्राचीन बताने वाला 'मर्करा अभिलेख' इतिहास के विद्वानों द्वारा जाली प्रमाणित किया जा चुका है।' मर्करा अभिलेख को जाली प्रमाणित किये जाने के पश्चात् नवीं शताब्दी से पूर्व का ऐसा कोई अन्य अभिलेख उपलब्ध नहीं है जिसमें कुन्दकुन्द या उनके अन्वय का उल्लेख हुआ हो । पुनः टीका और व्याख्याओं के युग में हुए कुन्दकुन्द के ग्रन्थों पर अमृतचन्द्र (दसवीं शताब्दी) के पूर्व किसी अन्य आचार्य के द्वारा टीका का न लिखा जाना भी यह सिद्ध करता है कि कुन्दकुन्द पर्याप्त रूप से परवर्ती है । कुन्दकुन्द के साहित्य में गुणस्थान और सप्तभंगो की स्पष्ट अवधारणा मिलती है उससे भी यही निष्कर्ष निकलता है कि कुन्दकुन्द पाँचवीं शताब्दी के बाद के आचार्य हैं, क्योंकि गुणस्थान और सप्तभंगी को स्पष्ट अवधारणा चौथी-पाँचवीं शताब्दी में निर्मित हुई है यह उल्लेख हमने भूमिका के पूर्व पृष्ठों में भी किया है। इस प्रकार कुन्दकुन्दको ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में ले जाने का प्रयत्न न तो किसी अभिलेखीय साक्ष्य से सिद्ध होता है और न कोई ऐसा साहित्यिक साक्ष्य ही इस सम्बन्ध उपलब्ध होता है जो कुन्दकुन्द को प्रथम शताब्दी का प्रमाणित कर सके । कुन्दकुन्द के काल निर्धारण में हम प्रो० मधुसुदन ढाकी से सहमत हैं उनके अनुमार कुन्दकुन्द लगभग छठी शताब्दी के बाद के आचार्य हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि महाप्रत्याख्यान की गाथाएँ भगवती आराधना और मूलाचार से कुन्दकुन्द साहित्य में गई हैं। . ___ इस तुलनात्मक अध्ययन में यह प्रश्न भी स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि महाप्रत्याख्यान में उपलब्ध होने वाली समान गाथाएँ आगम एवं नियुक्तियों से इस ग्रन्थ में आई है अथवा इस ग्रन्थ से ये गाथाएँ आगम एवं नियुक्तियों में गई हैं ? जहाँ तक आगम साहित्य का प्रश्न है तो यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि महाप्रत्याख्यान में उपलब्ध होने वाली 1. Prof. M. A, Dhaky Aspects of Jainology, Vol. 3, Dalsukh Bhai Malvania felicitation, Vol. 1, Page 190. २. नाथुराम प्रेमी-पुरुषार्थसिद्धउपाय, भूमिका पृष्ठ ४ । ३. देखें-भूमिका पृष्ठ १६-१७ । 4. Prof. M. A. Dhaky Aspects of Jainology, Vol. 3, Dalsukh Bhai Malvania felicitation, Vol. 1, Page 196. : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115