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संस्थान - परिचय
आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान आचार्य श्री नानालाल जी म० सा० के १९८१ के उदयपुर वर्षावास की स्मृति में जनवरी १९८३ में स्थापित किया गया। संस्थान का मुख्य उद्देश्य जैन विद्या एवं प्राकृत के विद्वान् तैयार करना, अप्रकाशित जैन साहित्य का प्रकाशन करना, जैनविद्या में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों को अध्ययन की सुविधा प्रदान करना, जैन संस्कृति की सुरक्षा के लिए जैन आचार, दर्शन और इतिहास पर वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रन्थ तैयार कर प्रकाशित करवाना एवं जैन विद्या प्रसार की दृष्टि से संगोष्ठियाँ, भाषण, समारोह आदि आयोजित करना है । यह श्री अ० भा० सा० जैन संघ की एक मुख्य प्रवृत्ति है ।
संस्थान राजस्थान सोसायटीज एक्ट १९५८ के अन्तर्गत रजिस्टर्ड है एवं संस्थान को अनुदान रूप में दी गयी धनराशि पर आयकर अधिनियम की धारा ८० (G) और १२ (A) के अन्तर्गत छूट प्राप्त है ।
जैन धर्म और संस्कृति के इस पुनीत कार्य में आप इस प्रकार सहभागी बन सकते हैं
(१) व्यक्ति या संस्था एक लाख रुपया या इससे अधिक देकर परम संरक्षक सदस्य बन सकते हैं । ऐसे सदस्यों का नाम अनुदान तिथि - क्रम से संस्थान के लेटरपैड पर दर्शाया जाता है ।
(२) ५१,००० रुपया देकर संरक्षक सदस्य बन सकते हैं । (३) २५,००० रुपया देकर हितैषी सदस्य बन सकते हैं । (४) ११,००० रुपया देकर सहायक सदस्य बन सकते हैं । (५) १,००० रुपया देकर साधारण सदस्य बन सकते हैं । (६) संघ, ट्रस्ट, बोर्ड, सोसायटी आदि जो संस्था एक साथ २०,००० रुपये का अनुदान प्रदान करती है, वह संस्था संस्थान - परिषद् की सदस्य
होगी ।
(७) अपने बुजुर्गों की स्मृति में भवन निर्माण हेतु व अन्य आवश्यक यंत्रादि हेतु अनुदान देकर आप इसकी सहायता कर सकते हैं ।
(८) अपने घर पर पड़ी प्राचीन पांडुलिपियाँ, आगम-साहित्य व अन्य उपयोगी साहित्य प्रदान कर सकते हैं ।
आपका यह सहयोग ज्ञान-साधना के रथ को प्रगति के पथ पर अग्रसर करेगा ।
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