Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 61
________________ ५२ महापच्चक्खाणपइण्णयं इस तुलनात्मक अध्ययन में हम यह पाते हैं कि महाप्रत्याख्यान की १४२ गाथाओं में से ४ गाथाएँ आगम साहित्य में, ८ गाथाएँ निर्युक्तियों में, ८ गाथाएँ भाष्य साहित्य में तथा मरणविभक्ति के अतिरिक्त ६० गाथाएँ अन्य प्रकीर्णकों में भी उपलब्ध होती हैं । जहाँ तक शौरसेनी यापनीय आगम तुल्य साहित्य का प्रश्न है, महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक की लगभग ४५ गाथाएँ मूलाचार और भगवती आराधना में भी उपलब्ध होती है । यापनीय साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ मूलाचार और भगवती आराधना में हम देखते हैं कि इनमें महाप्रत्याख्यान ही नहीं अपितु अनेकानेक प्रकीर्णकों की गाथाएँ शौरसेणी और अर्द्धमागधी भाषायी रूपान्तरण को छोड़कर यथावत रूप में आत्मसात कर ली गई हैं। मूलाचार में आवश्यकनियुक्ति की अधिकांश गाथाएँ तथा समग्र आतुरप्रत्याख्यान का समाहित कर लिया जाना यही सूचित करता है कि प्रारम्भ में यापनीय परम्परा को प्रकीर्णक साहित्य मान्य था, किन्तु परवर्ती काल में जब प्रकीर्णक साहित्य एवं नियुक्तिसाहित्य की गाथाओं के आधार पर मूलाचार और भगवती आराधना जैसे ग्रन्थों की रचना हो गई तो उस परम्परा में प्रकीर्णकों और निर्युक्तियों के अध्ययन की परम्परा भी विलुप्त हो गई । दिगम्बर साहित्य में ही हमें एक ऐसी भी गाथा उपलब्ध होती है जिसमें कहा गया है कि आचारांग आदि अंग ग्रन्थ एवं पूर्व प्रकीर्णक जिनेन्द्र देवों द्वारा प्ररूपित हैं । ' चाहे प्रत्यक्ष रूप में हो अथवा यापनीय साहित्य मूलाचार और भगवती आराधना के माध्यम से हो, प्रकीर्णक साहित्य की अनेक गाथाएँ कुन्दकुन्द के साहित्य में भी उपलब्ध होती है । अकेले महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक की ९ गाथाएँ कुन्दकुन्द के विभिन्न ग्रन्थों में उलपलब्ध हो जाती हैं । भगवती आराधना और मूलाचार में इन गाथाओं की उपस्थिति से ऐसा प्रतीत होता है कि कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में ये गाथाएँ भगवती आराधना और मूलाचार से ही अनुस्यूत हुई हैं । यहाँ यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या यह सम्भव नहीं कि कुन्दकुन्द साहित्य से ही ये गाथाएँ प्रकीर्णकों में गई हो ? इस प्रश्न का सीधा और स्पष्ट उत्तर यही है कि अनेक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि कुन्दकुन्द छठीं शताब्दी से पूर्व के आचार्य नहीं हैं । 11 १. “ आयारादी अंगा पुव्व पइण्णा जिणेहि पण्णत्ता । जे जे विराहिया खलु मिच्छा मे दुक्कडं हुज्ज ।।' -- सिद्धान्तसारादिसंग्रह — कल्लाणालोयणा, गाथा २८ Jain Education International ( माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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