Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 65
________________ ५६ महापञ्चक्खाणपइण्णर्य जो देखी हिस्ट्री, इस बात पर कामिल यकी आया । उसे जीना नहीं आया, जिसे मरना नहीं आया ॥ वस्तुतः महाप्रत्याख्यान हमारे सामने एक ऐसी अनासक्त जीवन दृष्टि प्रस्तुत करता है जिससे हमारा जन्म और मरण दोनों ही सार्थक बन जाते हैं । महाप्रत्याख्यान की इस जीवन दृष्टि को हम संक्षेप में इस प्रकार रख सकते हैं लाई हयात आ गए, कज़ा ले चली चले चले । न अपनी खुशी आए, न अपनी खुशी गए ॥ इस प्रकार हम देखते हैं कि महाप्रत्याख्यान एक ऐसा ग्रन्थ है जो हमें जीवन जीने की नवीन दृष्टि प्र दान करता है। ऐसे उदात्त जीवन मूल्यों को प्रतिपादित करने वाले प्रकीर्णक साहित्य को आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ने सानुवाद प्रकाशित करने का जो निर्णय किया है उसकी सार्थकता तभी है जब इन प्रकीर्णकों का अध्ययन करके हम इनमें प्रतिपादित जीवन मूल्यों को अपने जीवन में उतार सकें । वाराणसी १२ दिम्सबर, १९९१ Jain Education International सागरमल जैन सुरेश सिसोदिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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