________________
महापपइण्णय
की पूर्व भूमिका है। गर्दा चार प्रकार की हो गई हैं--(१) उपसम्प्रदायरूप गर्दा, (२) विचिकित्सारूप गहीं, (३) मिच्छामिरूप गर्दा और (४) एवमपिप्रज्ञप्ति
रूप गरे। गारव- गारव का अर्थ अहंकार है । गारव (अहंकार) तीन प्रकार
के कहे गये हैं--(१) ऋद्धि-गौरव, (२) रस-गौरव और (३) साता-गौरव।
दिगम्बर साहित्य में भी गारव तीन कहे गये हैं। किन्तु वहाँ रस गारव नहीं होकर शब्द गारव है । पुनः उनके क्रम में भी भिन्नता है-(१) शब्द गारव (२)
ऋद्धि गारव और (३) सात गारव । गुप्ति- गुप्ति शब्द गोपन से बना है, जिसका अर्थ है-खोंच लेना,
दूर कर लेना । गुप्ति शब्द का दूसरा अर्थ ढंकने वाला या रक्षा कवच भी है । प्रथम अर्थ के अनुसार मन, वचन और काया को अशुभ प्रवृत्तियों से हटा लेना गुप्ति है, और दूसरे अर्थ के अनुसार आत्मा की अशुभ से रक्षा करना गुप्ति है। गुप्तियाँ तीन हैं-(१) मनो गुप्ति,
(२) वचन-गुप्ति और (३) काय-गुप्ति। चौरासी लाख योनि-श्वेताम्बर परम्परानुसार सात लाख पृथ्वीकाय,
सात लाख अप्काय, सात लाख तेजस्काय, सात लाख वायुकाय, दस लाख प्रत्येक-वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पति, दो लाख द्वीन्द्रिय, दो लाख त्रीन्द्रिय, दो लाख चतुरेन्द्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और चौदह लाख
१. स्थानांग, ४/२/२६४ । २. (क) स्थानांग ३/४/५०५, (ख) समवायांग ३/१५, (ग) श्री जैन सिद्धान्त
बोल संग्रह, भाग १, पृ० ७० । ३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, पृ० २३९ । ४. (क) समवायांग ३/१५, (ख) उत्तराध्ययन २४/१-२, (ग) श्री जैन सिद्धान्त
बोल संग्रह, भाग १, पृ० १६, (घ) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, पृ० २४८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org