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परिशिष्ट आयु का क्षय होना ही मरण है। मरण कई प्रकार का
कहा गया है। माया- किसी भी बात को छिपाने की चेष्टा करना अथवा
कपटवृत्ति माया है। दूसरे शब्दों में आत्मा का कुटिल भाव माया है। माया पाँच प्रकार की हैं--(१) निकृति (२) उपधि (३) सातिप्रयोग (४) प्रणिधि और (५) प्रतिकुञ्चन।
__ समवायांगसूत्र में माया के सोलह नामों का तथा व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में माया के पन्द्रह नामों का
उल्लेख उपलब्ध होता है। म्लेच्छ- अनार्य जाति के मनुष्यों को म्लेच्छ मनुष्य भी कहा
जाता है। वाचक श्यामाचार्य ने प्रज्ञापना सूत्र नामक चतुर्थ उपांग ग्रन्थ में कई अनार्य जातियों का नामोल्लेख किया है। यथा
शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर, काय, मरूण्ड, उड्ड, भण्डक (भडक), निन्नक (निण्णक), पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस्य (पारसक), आन्ध्र (क्रौंच), उडम्ब (अम्बडक), तमिल (दमिल-द्रविड़), चिल्लल (चिल्लस या चिल्लक), पुलिन्द, हारोस, डोंब (डोम), पोक्काण (वोक्काण), गन्धाहरक (कन्धारक), बहलीक (बाल्हीक), अज्जल (अज्झल), रोम, पास (मास), प्रदुष (प्रकुष), मलय (मलयाली), चंचक (बन्धुक), मयली (चूलिक), कोंकणक, मेद (मेव), पल्हव, मालव, गग्गर (मग्गर), आभाषिक, णक्क (कणवीर), चीना, ल्हासिक (लासा के), खस, खासिक (खासी जातीय), नेडूर
(नेदूर), मंढ (मोंढ), डोम्बिलक, लओस, बकुश, कैकेय, १. (क) स्थानांग ३/४/५१९, (ख) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृष्ठ २९०
२९१ । २. वही, भाग ३ पृष्ठ ३०७ । ३. समवायांग ५२/२८४ । ४. व्याख्याप्राप्ति १२/५ । ५. प्रज्ञापना १/९८ ।
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