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मद
महापच्चक्खाणपइण्णयं
उदय से पैदा हुए आत्मा के परिणाम विशेष को भय कहते हैं । भय सात प्रकार के हैं - ( १ ) इहलोक भय, (२) परलोक भय, (३) आदान भय, (४) अकस्मात् भय, (५) वेदना भय, (६) मरण भय और (७) अश्लोक
भय ।
सात भयों का उल्लेख समवायांगसूत्र में भी उपलब्ध होता है । किन्तु यहाँ पांचवा भय मरण भय न होकर आजीव भय कहा गया है शेष छह भयों के नाम एवं क्रम स्थानांगसूत्र के समान ही है । "
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यद्यपि दिगम्बर साहित्य में भी सात भयों का उल्लेख मिलता है, किन्तु उनके नाम एवं क्रम श्वेताम्बर साहित्य से भिन्न है । दिगम्बर साहित्य में उल्लेखित सात भय इस प्रकार हैं - (१) इहलोक (२) परलोक (३) अरक्षा (४) अगुप्ति (५) मरण (६) वेदना और (७) आकस्मिक भय ।
जाति आदि का अहंकार करना अथवा हर्ष और आवेश में उन्मत्त होना मद है ।
मद आठ प्रकार के कहे गए हैं * - (१) जातिमद (२) कुलमद (३) बलमद (४) रूपमद (५) तपोमद ( ६ ) श्रुतमद (७) लाभमद और (८) ऐश्वर्यमद ।
दिगम्बर साहित्य में भी संख्या की दृष्टि से तो मद आठ ही कहे गए हैं, किन्तु उनके नाम एवं क्रम भिन्न हैं । दिगम्बर साहित्य में उल्लेखित आठ मद इस प्रकार हैं - ( १ ) विज्ञान (२) ऐश्वर्य (३) आज्ञा (४) कुल (५) बल (६) तप (७) रूप और (८) जाति मद ।
१. (क) स्थानांग, ७/२७, (ख) श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग २, पृ० २६८ ॥ २. समवायांग ७ / ३७ ।
३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० २१७ ।
४. (क) स्थानांग ८/२१, (ख) समवायांग ८ / ४४ ।
५. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृष्ठ २७० ।
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