Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 63
________________ ५४. महापच्च क्षाणपइण्णय चारों समान गाथाएँ इसमें आगम साहित्य से ही ली गई हैं, क्योंकि ये चारों गाथाएँ उत्तराध्ययन सूत्र की हैं और वहाँ वे अपने समुचित स्थान एवं क्रम में हैं । साथ ही उत्तराध्ययन महाप्रत्याख्यान की अपेक्षा प्राचीन भी है, अतः यह निश्चित है कि ये चारों गाथाएँ उत्तराध्ययन से ही महाप्रत्याख्यान में गई हैं। पुनः इस ग्रन्थ में द्वादश-विध श्रुतस्कन्ध का उल्लेख हुआ है।' उससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि महाप्रत्याख्यान से पूर्व अंग आगम साहित्य की रचना हो चुकी थी। जहाँ तक नियुक्ति साहित्य का प्रश्न है, उसमें महाप्रत्याख्यान की ८ गाथाएँ पाई जाती है, इन आठ गाथाओं में से भी अधिकांश गाथाएँ मात्र ओघनियुक्ति में पाई जाती हैं। हमें ऐसा लगता है कि ये गाथाएँ महाप्रत्याख्यान से हो ओघनियुक्ति में गई है, क्योंकि ओघनियुक्ति का उल्लेख नन्दीसूत्र में नहीं है, जबकि महाप्रत्याख्यान का उल्लेख नन्दीसूत्र में है। अतः यह मानना होगा कि ओघनियुक्ति की रचना महाप्रत्याख्यान के बाद ही हुई है, इस आधार पर यह कहना अधिक युक्तिसंगत लगता है कि ये गाथाएँ महाप्रत्याख्यान से ही ओघनियुक्ति में गई होगी। चूणि साहित्य के विषय में तो हम यही कहना चाहेंगे कि चूर्णियों की रचना प्रकीर्णक साहित्य के बाद ही हुई है, क्योंकि नन्दीणि में तो महाप्रत्याख्यान का स्पष्ट नामोल्लेख भी उपलब्ध होता है। पुनः चूणियाँ तो मूलतः गद्य में ही लिखी गई हैं अतः उनमें महाप्रत्याख्यान की कोई गाथा उदृत भी हो तो यही मानना होगा कि उनमें ये गाथाएँ महाप्रत्याख्यान से ही गई हैं, क्योंकि कालक्रम की दृष्टि से जहाँ चूर्णियाँ सातवीं शताब्दी की है वहीं महाप्रत्याख्यान पाँचवीं शताब्दी के पूर्व की रचना है । अपनी विषयवस्तु की दष्टि से महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक एक साधना प्रधान ग्रन्थ है। इसमें मुख्य रूप से समाधिमरण तथा उसकी पूर्व प्रक्रिया का निर्देश उपलब्ध होता है। समाधिमरण जैन साधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जा सकता है। जैन परम्परा में साधक चाहे मुनि हो अथवा गृहस्थ, उसे समाधिमरण ग्रहण करने की प्रेरणा दी गई है । महाप्रत्याख्यान की कुछ गाथाएँ ऐसी हैं जो साधक को समाधिमरण ग्रहण करने की प्रेरणा देती हैं, कुछ अन्य गाथाएँ ऐसी भी हैं जो आलोचना आदि का निर्देश करती हैं, वस्तुतः वे समाधिमरण की पूर्व प्रक्रिया के रूप में १. महाप्रत्याख्यान, गाथा १०२ । २. नन्दीचूणि, सूत्र ८१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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