Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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अन्य आगम ग्रन्थ [१] एस करेमि पणाम जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स। सेसाणं च जिणाणं. सगणगणधराणं च सव्वेसि ।।
___(मूलाचार, गाथा १०८)' [२] (i) सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो। सद्दहे जिणपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥
(आतुरप्रत्याख्यान, गाथा १७) (ii) सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहदो णमो। सद्दहे जिणपण्णत्तं पच्चक्खामि य पावगं ।।
(मूलाचार, गाथा ३७) [३] (i) जं किंचि मे दुच्चरितं सव्वं तिविहेण वोसरे । सामाइयं तु तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं ।।
(नियमसार, गाथा १०३) (ii) जं किंचि मे दुच्चरियं सव्वं तिविहण वोसरे। सोमाइयं च तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं ॥
(मूलाचार, गाथा ३९) [४] बज्झन्भंतरमुवहिं सरीराइं च सभोयणं । मणसा वचि कायेण सव्वं तिविहेण वोसरे ॥
(मूलाचार, गाथा ४०) [५] (i) रागं बंधं पओसं च हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं रइं अरइं च वोसिरे ॥
(आतुरप्रत्याख्यान, गाथा २३) (ii) रायबंधं पदोसं च हरिसं वीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं रदिमरदि च वोसरे ।।
(मूलाचार, गाथा ४४) [६] (i) रागेण व दोसेण व जं मे अकपन्नुयापमाएणं । जो मे किंचि वि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ।।
(आतुरप्रत्याख्यान, गाथा ३५) (ii) रागेण य दोसेण य जं मे अकदण्हुयं पमादेण । जो मे किंचिवि भणिओ तमहं सव्वं खमावेमि ॥
(मूलाचार, गाथा ५८) १. यहाँ शब्द रूप में समानता नहीं होते हुए भी भावगत समानता है ।
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