Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 55
________________ ४६ [४८] [४९] महापच्चरखानपाइन लज्जाइ गारवेण य बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं । जे न कहिति गुरूणं न हु ते आराहगा होति ॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा ९४) न वि कारणं तणमओ संथारो, न वि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मणो जस्स ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ९६) जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा १०१) [५०] [५१] नहु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचितेउं धंतं पि समत्थचित्तेणं ।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा १०२) [५२] एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए। तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ ।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा १०३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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