Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 47
________________ १८ A . . महापच्नक्सापहम्णय [२४] जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमढकालम्मि। दुल्लंभबोहियत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा २८) [२५] तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा २९) [२६] कयपावो वि मणूसो आलोइय निदिउ गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरू व्व भारवहो । (महाप्रत्याख्यान, गाथा ३०) [२७] सव्व पाणारंभं पच्चक्खामी य अलियवयणं च । सवमदिन्नादाणं अब्बंभ परिग्गहं चेव ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ३३) २८] रागेण व दोसेण व परिणामण व न दूसियं जंतु। तं खलु पच्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं ॥३६॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ३६ ) [२९] उड्ढमहे तिरियम्मि य मयाइं बहुयाई बालमरणाई। तो ताई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा ४१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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