Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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[३८]
महापञ्चस्लाणपइग्णयं कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेय दोसं च । चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच॥
(महाप्रत्याख्यान, गाथा ६८)
[३९] किण्हा नीला काऊ लेसा झाणाई अट्ट-रोदाई। परिवज्जितो गुत्तो रक्खामि महव्वए पच ॥
(महाप्रत्याख्यान, गाथा ७१)
[४०]
तेऊ पम्हा सुक्का लेसा झाणाई धम्म-सुक्काई। उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महब्वए पंच ॥
( महाप्रत्याख्यान, गाथा ७२)
जइ ताव ते सुपुरिसा गिरिकडग-विसम-दुग्गेसु । धिइधणियबद्धकच्छा साहिती अप्पणो अटुं॥
( महाप्रत्याख्यान, गाथा ८१)
[४२]
किं पुण अणगारसहायगेण अण्णोण्णसंगहबलेणं । परलोएणं सक्का साहेउं अप्पणो अट्ठ? ॥
( महाप्रत्याख्यान, गाथा ८२)
[४३]
जिणवयणमप्पमेयं महुरं कण्णाहुइं सुणंतेणं । सक्का हु साहुमज्झे साहेउं अप्पणो अटुं॥
(महाप्रत्याख्यान, गाथा ८३)
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