Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 49
________________ महापच्चक्खाणपइण्णय [३०] माया-पिइ-बंधूहि संसारत्थेहिं पूरिओ लोगो । बहुजोणिवासिएणं न य ते ताणं च सरणं च ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा ४३) [३१] एक्को करेइ कम्म एक्को अणुहवइ दुक्कयविवागं । एक्को संसरइ जिओ जर-मरण-चउग्गईगुविलं ॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा ४४). [३२] उब्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणाओ वा। एयाइं संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा ४५) [३३] एक्कं पंडियमरणं छिदइ जाईसयाइ बहुयाइ। तं मरणं मरियव्वं जेण मओ सुम्मओ होइ । (महाप्रत्याख्यान, गाथा ४९) [३४] भवसंसारे सव्वे चउव्विहा पोग्गला मए बद्धा। .. परिणामपसंगेणं अट्ठविहे कम्मसंघाए.।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा ५१) [३५] आहारनिमित्तागं मच्छा गच्छंति दारूणे नरए । सच्चित्तो आहारो न खमो मणसा वि पत्थेउं । (महाप्रत्याख्यान, गाथा ५४) [३६] तण-कटेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं ॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा ५५) - [३५] हंतूण मोहजालं छेत्तूण य अट्टकम्मसंकलियं । जम्मण-मरणरहट्ट भेत्तूण भवाओ मुच्चिहिसि ।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा ६६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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