Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 48
________________ अन्य आगम ग्रन्थ २४] जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं 'उत्तमट्रकालम्मि। दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥ (आराधनापताका, गाथा २१६) (आराधनाप्रकरण, गाथा ६) (ओघनियुक्ति, गाथा ८०४) (पंचाशक, गाथा ७३२) [२५] तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ।। (आराधनापताका, गाथा २१७) (आराधनाप्रकरण, गाथा ७) (ओघनियुक्ति, गाथा ८०५) [२६] कदपावो वि मणुस्सो आलोयणणिदओ गुरुसयासे । होदि अचिरेण लहुओ उरूहिय भारोव्व भारवहो ॥ (भगवती आराधना, गाथा ६१५) [२७] (i) सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि त्ति अलियवयणं च । सबमदिन्नादाणं मेहुण्ण परिग्गहं चेव । (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा १३) (आराधनापताका, गाथा ५६३) (मूलाचार, गाथा ४१) (ii) सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाई मि अलियवयणं च । सव्यमदत्तादाणं अब्बंभ परिग्गहं सव्वहा ॥ (आवश्यकनियुक्ति, गाथा १२८४) [२८] रागेण व दोसेण व मणपरिणामेण दूसिदं जं तु । तं पुण पच्चक्खाणं भावविसुदं तु णादव्वं ॥ (मूलाचार, गाथा ६४५) [२९] (i) उड्ढमहे तिरियम्मि वि मयाणि जीवेण बालमरणाणि । दसण-नाणसहगओ पंडियमरणं अणुमरिस्सं ॥ (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा ४७) १. आराधनाप्रकरण तथा पंचाशक में 'उत्तम" के स्थान पर 'उत्तिम । २. ओघनियुक्ति में 'रहिया' के स्थान पर रहिता' । ३. आराधनापताका में दिन्नादाणं मेहुण्ण' के स्थान पर "दित्तादाणं मेहुणय' तथा मूलाचार में 'दत्तादाणं मेहूण' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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