Book Title: Agam 26 Prakirnak 03 Maha Pratyakhyan Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 43
________________ महापच्चक्खागपडण्णय [१६] [१७] संजोगमूला जीवेणं पत्ता दुक्खपरंपरा। तम्हा संजोगसंबंधं सव्वं तिविहेण वोसिरे ।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा १७) अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सव्वओ वि य ममत्तं । जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा १८) जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएमी उवढिओ सव्वभावेणं ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा २०) [१८] [१९] उप्पन्नाऽणुप्पन्ना माया अणुमग्गो निहंतव्वा । आलोयण-निंदण-गरिहणाहिं न पुण त्ति या बीयं ।। (महाप्रत्याख्यान, गाथा २१) जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोइज्जा माया-मयविप्पमुक्को उ॥ ( महाप्रत्याख्यान, गाथा २२) [२०] Jain Education International For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org

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