Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ महायान और हीनयान के अनुयायी थे। वहां पर एक प्राचीन विहार था, जहाँ पर वसुबन्धु नामक एक महांमनीषी भिक्ष था। वह बाहर से आने वाले राजकमारों और भिक्षों को बौद्ध धर्म और द कराता था / अनेक ग्रन्थों की रचना भी उन्होंने की थी। वसुबन्धु महायान को मानने वाले थे और उसी के मण्डन में उनके ग्रन्थ लिखे हुए हैं। तिरासी वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हा था। 4. अयोध्या में अनेक वरिष्ठ रामा हुए हैं। समय-समय पर राज्यों का परिवर्तन भी होता रहा। यह मर्यादा पुरुषोसम राम और राजा सगर को भी राजधानी रही। 50 कनिंघम के अनुसार इस नगर का विस्तार बारह योजन अथवा सौ मील का था, जो लगभग 24 मील तक बगीचों और उपवनों से घिरा था / '51 कनिंघम के अनुसार प्राचीन अवध आधुनिक फैजाबाद से चार मील की दूरी पर स्थित है। 52 विविधतीर्थकल्प के अनुसार अयोध्या बारह योजन लम्बी और नो योजन चौड़ी थी।'५३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार साक्षात् स्वर्ग के सदश थी। वहाँ के निवासियों का जीवन बहुत ही सुखी/समृद्ध था। भरत चक्रवर्ती सम्राट भरत चक्रवर्ती का जन्म विनीता नगरी में ही हुया था। वे भगवान् ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनकी बाह्य आकृति जितनी मनमोहक थी, उतना ही उनका प्रान्तरिक जीवन भी चित्ताकर्षक था। स्वभाव से वे करुणाशील थे, मर्यादानों के पालक थे, प्रजावत्सल थे। राज्य-ऋद्धि का उपभोग करते हुए भी वे पुण्डरीक कमल की तरह निर्लेप थे / वे गन्धहस्ती की तरह थे। विरोधी राजारूपी हाथी एक क्षण भी उनके सामने टिक नहीं पाते थे। जो व्यक्ति मर्यादाओं का अतिक्रमण करता उसके लिये वे काल के सदश थे। उनके राज्य में दुभिक्ष और महामारी का अभाव था। एक दिन सम्राट् अपने राजदरवार में बैठा हुमा था। उस समय आयुधशाला के अधिकारी ने आकर सूचना दी कि प्रायुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुआ है। आवश्यकनियुक्ति,१५४ आवश्यकचूणि, 145 त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित 156 और चउप्पन्नमहापुरिसचरियं 57 के अनुसार राजसभा में यमक और शमक बहुत ही शीघ्रता से प्रवेश करते हैं। यमक सुभट ने नमस्कार कर निवेदन किया कि भगवान् ऋषभदेव को एक हजार वर्ष की साधना के बाद केवलज्ञान की उपलब्धि हुई है। वे पुरिमताल नगर के बाहर शकटानन्द उद्यान में विराजित हैं। उसी समय शमक नामक सुभट ने कहा-स्वामी ! प्रायुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुमा है, वह आपकी दिग्विजय का सूचक है। माप चलकर उसकी अर्चना करें। दिगम्बरपरम्परा के माचार्य जिनसेन ने उपर्युक्त दो सूचनाओं के अतिरिक्त तृतीय, पुत्र की सूचना का भी उल्लेख किया है / 58 ये सभी सूचनाएं एक 149. वाटर्स, नान युवान च्वाङ, I, 354-9 150. हिस्टारिकिल ज्योग्राफी ऑफ ऐंसियण्ट इंडिया, पृ. 76 151. कनिंघम, ऍसियट ज्योग्राफी आफ इंडिया, पृ. 459-460 152. " " " " " . पृ. 341 153. विविधतीर्थकल्प, अध्याय 34 154. आवश्यकनियुक्ति, 342 155. आवश्यकचूर्णि, 181 156. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित 1131511-513 157. चउपन्नमहापुरिसचरियं, शीलाङ्क 158. महापुराण 24121573 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org