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(प्रकाशकीय
श्री आचाराङ्ग सूत्र का पद्यमय भावानुवाद को प्रकाशित करते हुए हम गौरवान्वित हैं।
प्रस्तुत महननीय ग्रन्थ, स्वर्गीय शासन सम्राट् सूरिचक्र चक्रवर्तीतपोगच्छाधिपति-भारतीय भव्य विभूति-अखण्ड ब्रह्मतेजो मूर्ति-महाप्रभावक प्रतिभाशाली जंगम युग प्रधान, कल्प वचन सिद्ध महापुरुष परमपूज्य परम गुरुदेव आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वर जी महाराज के दिव्य पट्टालकार-साहित्य सम्राट् व्याकरण वाचस्पति-शास्त्र विशारद-कविरत्न-परमपूज्य-प्रगुरुदेव आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय लावण्य सूरीश्वर जी महाराज के प्रधान पट्टधर संयम सम्राट-शास्त्र विशारदकवि दिवाकर व्याकरणरत्न-परमपूज्य गुरुदेव आचार्यवर्य श्रीमद् विजय दक्ष सूरीश्वर जी महाराज के सुप्रसिद्ध पट्टधर प्रतिष्ठा शिरोमणि, गच्छाधिपति-शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न कविभूषण पूज्य पादगुरु देव आचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी म. सा. ने सरल सरस हिन्दी पद्य में लिखा है।
आचारांग सूत्र जैन दर्शन का आधारभूत शास्त्र है तथा ग्यारह अंगों में प्रथम अंग है। आचारांग सूत्र के इस पद्यमय भावानुवाद का पठन-पाठन कर श्रमण-श्रमणी व श्रावकगण अपने जीवन में अहिंसा और संयम का पालन कर संवर भावना से भावित होंगे, प्रभु वाणी को हृदयांगम कर अपना जीवन सफल करेंगे।
इस कृति में रंगीन भावपूर्ण सुन्दर चित्रों के माध्यम से गम्भीर विषयों को सरल तरीके से समझाने का प्रयास किया गया है।