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क्रियाएँ २५७, कर्मों का मूलोच्छेदन २५८, स्वचालित यह लोक २५६, ज्ञान का प्रकाश दुर्लभ होता है २५६, धर्म की परमहितकारी भावना २६०, भावशुद्धि, आत्म शुद्धि, समदर्शिता २६०, समदर्शिता से ज्योतिर्मयता २६१, पांचवां सूत्र और मेरा संकल्प २६२ अध्याय सात : छठा सूत्र ज्ञेय, हेय एवं उपादेय २६७, आत्म-स्वभाव-विभाव चर्चा २७७, स्व-भाव ही धर्म होता है २८०, धर्म और नीति समीक्षा २८१, मानव निर्माण की भूमिका २८३, आन्तरिक रूपान्तरण का पुरुषार्थ २८५, जागतिक वातावरण का प्रभाव २८७, शुभ परिवर्तन का पराक्रम २८६, धर्म प्राप्ति के पथ पर २६०, स्वाभाविक गुणों का विकास २६५, धर्मनीति का व्यापक स्वरूप २६८, मानवता की संरचना ३००, सर्वत्र समभाव का जागरण ३०३, पुरुषार्थ का परम प्रयोग ३०५, छठा सूत्र और मेरा संकल्प ३०८
३०६ ३११
८. अध्याय आठ:
सातवां सूत्र आत्म शक्ति को उद्बोधन ३१३, प्रताप और शक्ति की दिशा ३१४, तप और उसकी ऊर्जा शक्ति ३१६, देह-शुद्धि से आत्म शुद्धि तक ३१७, आहार-त्याग रूप अनशन ३२२, अल्पता बोधक तपस्या ३२४, भिक्षा चर्या वृत्ति-संकोच ३२५, मात्र जीने के लिए खाना ३२८, देह-मोह से दूर ३३०, तप जितेन्द्रियता का ३३१, प्रायश्चित से पाप शुद्धि ३३३, विनय : धर्म का मूल ३३६, सेवा की तन्मयता ३३६, आत्म चिन्तन का अध्याय ३४१, उच्चता ध्यान साधना की ३४५. समत्व के शिखर पर ३५०, तपस्या का अ आ. इ ई ३५१, तपोपूत आत्म-शक्ति
३५२, सातवां सूत्र और मेरा संकल्प ३५४ __ अध्याय नौ:
आठवां सूत्र मोक्ष का राजमार्ग ३५६, रत्न-त्रय की साधना ३६२, संसार से मोक्ष कितनी दूर? ३६६, आत्मा के गुण विकास की अवस्थाएं ३७१, गुणस्थानों का द्वारों से विचार ३७१, समत्व योग की अवाप्ति ३७७, संसार के समस्त जीवों का परिवार ३८१, भीतर प्रकाश, बाहर प्रकाश ३८३, अमिट शान्ति और अक्षयसुख ३८३, आठवां सूत्र और मेरा संकल्प ३८४
३५५ ३५७
३६७
३८६
१०. अध्याय दस :
नवम सूत्र मैं आत्म स्वरूपी हूँ ३६०, मैं रत्नत्रयाराधक मुनि हूं! ३६७, मैं ज्ञान साधक उपाध्याय हूं ४०५, मैं अनुशासक आचार्य हूँ ४०७, मैं वीतरागी अरिहन्त
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