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परसे यह निर्णय हो जाता है कि या तो ये पहली शताब्दिके विद्वान् हैं या उसके पीछेके परंतु कुछ एक विद्वानोंने विक्रमकी १२५ वीं शताब्दिमें आपका होना निश्चित किया है इस परसे भी आपका पहली या दूसरी शताब्दिसे बाह्य समय नहीं जाता किंतु यही समय आजाता है । विशेष निर्णय अवकाश मिलने पर हम फिर कभी करेंगे-अन्य विद्वान् भी करें तो जैनीयइतिहासमें विशेष सुभीता हो।
पं. जयचंद्रजी छावडा । विक्रम १९०० की शताब्दिमें मान्यवर पं. टोडर मलजीके समान खंडेलवाल कुलभूषण पंडित जयचंद्रजी छावड़ा एक उत्तम प्रतिभाशाली विद्वान् हो गये है। उन्होंने अष्टसहस्त्री वगैरःके आधारसे इस आप्तमीमांसाकी जो देशभाषा की है वह बहुतही मानोज्ञ है वह न्यायचञ्चु प्रवेशी देशभाषा जानकारोंको भी बहुत उपयोगी है। इसी तरह आपने न्याय आध्यात्मस्वरूप अन्यग्रंथोंपर भी विशेष रूपसे टीकायें लिखी है जिसका कि व्योरे वार विवरण हम प्रमेयरत्नमालाकी भूमिकामें लिख चुकें हैं जो कि इस ग्रंथके साथही साथ इस ग्रंथमालासे प्रकाशित हो चुकी है। उक्त पंडितजी साहबने जो सर्वार्थसिद्धि-प्रमेयरत्नमाला वगैरःकी जो टीकायें तथा फुटकर वीनतियों वगैरःकी रचनायेंकी हैं उससे साफ जाहिर होता है कि पंडितजीका पांडित्य बहुतही देश समयानुकूल था। तथा वर्तमान भविष्यमें भी उसी प्रकार उपयोगिता रूपसे परिणत रहेगा । इन ग्रंथोंके देखनेसे पता लगता है कि पंडिजीने अनेक ग्रंथोंका स्वाध्याय व मनन किया था इसीसे आपमें विशेष ज्ञान विकाशकी विशेष छटा थी। पंडितजीने किन २ ग्रंथोंका विशेष रूपसे अध्ययन किया है इसका व्यौरा उन्होंने खुद अपने सर्वार्थसिद्धि देशवचनिका ग्रंथमें किया है। उससे पाठकगण खुद निर्णय कर सकते हैं तथा उपयोगिता होनेसे साव.. काश मिलनेपर हम फिर कभी लिखेंगे । ___पंडितजी ढुंढाहर देश जयपुर नगरके रहनेवाले थे। आपने इस ग्रंथकी टीका समाप्ति विक्रमसम्बत १८६६ चैत्र कृष्ण १४ के दिन की है।
आपके विषयका विशेष विवरण प्रेमेयरत्नमालाकी भूमिकामें हम लिख चुके हैं तथा सुभीता मिलनेपर सामिग्रीके मुआफिक अगारी अष्ट पाहुड वगैरःकी भूमिकामें भी लिखेंगे ॥