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से क्या परिणाम और उपलब्धि चाहते हैं? धैर्य से सोचिए। अपने दिमाग में अपना लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। जितना स्पष्ट लक्ष्य होगा, उतना ही प्रखर और प्रबल पुरुषार्थ हो सकेगा।
हमारी शिक्षा भी अब जीवन की सफलता और सार्थकता से जुड़ी हुई नहीं रही। हर व्यक्ति इसलिए पढ़ रहा है ताकि वह रोजगार पा सके। शिक्षा भी आज पेट भरने का साधन मात्र रह गई है। मैं, शिक्षा का उद्देश्य यह मानता हूँ कि शिक्षा वह है जो व्यक्ति को जीवन जीने का उद्देश्य अथवा सन्मार्ग प्रदान करे। जिस आदमी का कोई मकसद नहीं होता, उसका जीना भी अर्थहीन है।
___ क्या आप ऐसे फुटबॉल के मैदान में खेलना पसंद करेंगे जहाँ मैदान भी है, फुटबॉल भी है, खिलाड़ी भी हैं पर गोल पोस्ट नहीं है? खेलने का तब कोई उद्देश्य ही न होगा, तब खेलना मात्र मैदान में दौड़ना-भागना ही तो होगा। कौन हारा-कौन जीता, यह तो निर्णय हो ही नहीं पाएगा।
__ लक्ष्य निर्धारित करें। आप मान लीजिए किसी चौराहे पर पहुँच जाते हैं और वहाँ खड़े किसी व्यक्ति से पूछते हैं कि 'यह रास्ता किधर जाता है?' वह जवाब देता है, यह जवाहर नगर की तरफ जाता है।' आप पूछते हैं कि 'दूसरा रास्ता किस तरफ जाता है?' वह कहता है- 'मोती डूंगरी रोड़ की तरफ।' आप पूछते हैं 'यह तीसरा रास्ता किस तरफ जाता है?' वह जवाब देता है- 'त्रिमूर्ति की तरफ जाता है।' जवाब देने वाले ने कहा कि 'तुम कभी तो मुझसे इस रास्ते के बारे में पूछते हो, कभी दूसरे रास्ते के बारे में, कभी तीसरे के बारे में पूछते हो। आखिर तुम्हें जाना कहाँ है?' प्रश्न पूछने वाले ने कहा-'यह तो मुझे स्वयं को ही मालूम नहीं है कि मुझे जाना कहाँ है?' तब जवाब देने वाले ने कहा-'फिर कहाँ दिक्कत है? तुम इस्ट जाओ या वेस्ट। आखिर तुम कहीं न कहीं तो पहुँच ही जाओगे। जब जाने का कोई मकसद ही नहीं है तो चौराहे पर खड़े होकर व्यर्थ के जवाब-तलब करने का अर्थ ही क्या है?'
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आपकी सफलता आपके हाथ
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