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चुके हैं। हाकूइन ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- 'जाओ, अब मैं देखता हूँ कि तुम्हें कौन हरा सकता है?' हाकूइन ने उसे कुछ भी नहीं दिया पर अपने शब्दों और वाणी से उसके खोए हुए आत्मविश्वास को लौटा दिया। कहते हैं कि तब उस सूमो पहलवान को परास्त करने वाला दूसरा कोई जन्म न ले पाया।
अगर आप अपने भीतर आत्मविश्वास को जाग्रत करना चाहते हैं, अपने मनोबल को दृढ़ करना चाहते हैं तो पहले अपने मन को पहचानें । देखें कि कहीं उसमें कोई हीनता की ग्रंथि तो नहीं पनप रही है। सम्भव है कि आप अपने मन में यह सोचते हों कि मैं गरीब हूँ, मैं भला क्या कर सकता हूँ, या मैं तो विकलांग हूँ, मैं क्या कर सकता हूँ, या मैं बदसूरत हूँ मुझे कौन चाहेगा? पता नहीं, यह हीनता की भावना कब किसमें और किस रूप में घर कर जाए? गरीब होना कोई पाप नहीं है, बल्कि अपने मन में गरीबी के कारण हीनता रखना पाप है। अगर आप त्याग कर सकते हैं तो हीनता की उस भावना का त्याग कीजिए। कभी यह न सोचें कि मै छोटा हूँ, मैं तुच्छ हूँ और मेरा कोई वजूद नहीं है। बड़ा सोचिए, व्यापक सोचिए, बड़े बनिए।
बच्चों में हीनभावना बचपन से ही घर कर जाती है। माता-पिता बात-बात पर बच्चे को डांटते हैं, फटकारते हैं और 'गधा', 'नालायक', 'मूर्ख' जैसे न जाने कौन-कौनसे विशेषण उसे नहीं देते? भले ही ऐसी बातें गुस्से में कही जाएँ या मजाक- मजाक में किन्तु बच्चों पर उनका बहुत बुरा असर होता है। वह सोचता है कि मेरे पापा मुझे 'भौंदू' कहते हैं तो क्या सचमुच मैं भौंदू हूँ? मैं क्या कर सकता हूँ? उसके मन में हीनता की ग्रंथि पनपने लगती है। आपके द्वारा कहे गये ये छोटे से शब्द, उसके भविष्य को चौपट कर देते हैं और उसका मानसिक विकास अवरुद्ध हो सकता है।
कोई लड़का यदि काला है तो सारे घर वाले उसे 'कालू-कालू' कहेंगे। अगर बच्चा काला है तो उसमें उसका दोष नहीं है । वह तो आपकी ही कृति है। फिर क्यों उसको 'कालू-कालू' कहकर उपेक्षित किया जाए? क्यों उसके मन में हीनता की भावना को जन्म दिया जाय? आखिर कोई भी
___ आपकी सफलता आपके हाथ
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