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सेवाकेन्द्र में जाकर अपने जीवित ईश्वर की इबादत करे।
भगवान कहाँ रहते हैं, यदि आपको इसका पता जानना हो, तो मेरी बात को धैर्य से समझ लें। निश्चय ही, मंदिर भगवान का पूजा स्थल है, पर उनका निवास अनाश्रित, बेसहारा लोगों और प्राणियों के पास है। मंदिर तो भगवान् का रजिस्टर्ड एड्रेस है पर अनाथालय, गौशाला, और इसी तरह के ठिकाने भगवान् के प्रायवेट एड्रेस हैं। मंदिरों में तो भगवान् कभी-कभी साकार होते हैं, पर अंधों-बहरों-गूगों, अनाश्रितों और गौशालाओं में तो उन्हें खड़ा ही रहना पड़ता है, ताकि उन बेसहारों को सहारा दिया जा सके। बेसहारों का सहारा बनना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।
हम किसी मंदिर में जाकर दो-पांच लाख का चंदा बोल पाएँ कि न बोल पाएँ, कोई चढ़ावा बोल पाएँ कि न बोल पाएँ पर अगर रास्ते से गुजर रहे हैं और कोई घायल पंछी मिल गया तो, उस घायल पंछी को, उस घायल कबूतर को दो बूंद पानी भी दे दिया, तो ऐसा करना किसी अस्पताल बनाने का पुण्य अर्जित करने के समान होगा। उस घायल पंछी को हमारे लाखोंकरोड़ों के दान की आवश्यकता नहीं है।
जब मदर टेरेसा को हिन्दुस्तान से निकाले जाने का उपक्रम चल रहा था तब कलकत्ता शहर में भयंकर हैज़ा फैला हुआ था। दूसरी ओर मदर टेरेसा के विरुद्ध यह आवाज उठ रही थी कि वह लोगों को ईसाई बना देगी। काली माँ के बड़े मंदिर के पुजारी द्वारा यह आन्दोलन चलाया जा रहा था। वक्त ऐसा आया कि वह पुजारी हैज़े से ग्रस्त हो गया। संक्रामक रोग सर्वत्र फैल गया। मंदिर के लोगों ने उस महंत को निकाल कर चौराहे पर पटक दिया। उसके मुँह से वमन हो रहा था और उसे दस्तें भी लग रही थीं। कोई उसे संभालने वाला नहीं था। तभी वहाँ से मदर टेरेसा की नर्स गुजर रही थी। उसने उसे एम्बुलेंस में रखा और मदर टेरेसा के सामने लाकर उसे लेटा दिया गया। मदर टेरेसा ने उसके घावों को धोया, उसकी उल्टियों को पोंछा और ईश्वर के सामने घुटने टेक कर उसको स्वास्थ्य-लाभ देने की प्रार्थना की। वह जानती थी कि निःस्वार्थ भाव से मानवता के नाम पर की गई प्रार्थना में १०४
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