Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 109
________________ वह व्यक्ति ईमान और भगवान को क्या प्यार कर पाएगा जो आदमी इंसान होकर इंसान को प्यार न कर पाया। हमारे अपने समाज में कोई व्यक्ति अगर अपाहिज है, कोई व्यक्ति अगर अपने आप कमा कर नहीं खा सकता तो समाज उसको सहयोग दे और उसे अपने पाँवों पर खड़ा करे। हम उसे सिलाई की मशीन दिलवा दें, सब्जी का ठेला या जूस की दुकान खुलवा दें अथवा यदि वह पापड़-बड़ी बना सके तो उसे वैसी व्यवस्था दे दें। और कुछ भी नहीं तो वह मसाला पीस कर भी जीवनयापन कर ले। कम-से-कम यह सेवा-व्यवस्था तो हम दे ही सकते हैं। यह मत समझो कि कोई व्यक्ति तुमसे माँगने के लिए आएगा। समाज के अध्यक्ष का काम यह होता है कि वह अपने समाज के हर व्यक्ति का ध्यान रखे। किसी भी समाज के अध्यक्ष, मंत्री का दायित्व शायद समाज की सम्पत्ति की रक्षा-व्यवस्था करना भर रहता होगा पर मैं यह भी कहना चाहूँगा कि समाज के हर गरीब-गुरबे को ऊँचा उठाना समाज के प्रमुख व्यक्ति का दायित्व होता है। कौन निभाता है आजकल यह दायित्व? बहुत दुकानदारी हो गई है। लीडरशिप बहुत फैल चुकी है। लोग पुण्यपथ को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। आप यह न समझें कि ऐसा करके आप मुझ पर एहसान कर रहे हैं। मैं चाहूँगा कि महिलाएँ अगर खाना बनाती हैं तो खाना बनाने से पहले इतना विवेक जरूर रखें कि अगर आप बीस रोटियाँ बना रही हैं तो चार रोटियाँ आप मेरे लिए बनाएंगे। आप चाहते हैं कि आपके द्वार पर आपके जीवन का कोई शिक्षक, कोई गुरु, कोई संत आए तो आप वे रोटियाँ बना कर अतिरिक्त रख दें। जब आप खाना खा चुके हों तब खाना खाने के बाद आप उन चार रोटियों को लेकर घर के बाहर आएं और कोई भी जीवजन्त, गाय, कुत्ता, सांड, बैल, कोई भी मिल जाए तो आप उसको यह समझकर खिला दें कि मैंने अपने गुरु को अर्घ्य प्रदान किया है। आप रोजाना वे चार रोटियाँ मेरे लिए निकालें। चार रोटियों को निकाले बिना आप भोजन स्वीकार न करें। भले ही कितनी ही जल्दी क्यों न हो, कितनी ही भूख क्यों न हो पर जब तक वे चार रोटी एक्स्ट्रा न सिक जाएँ, आप अपने पति को, अपने बच्चों को और १०८ आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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