Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 112
________________ देखो तो सही कि पाँच मिनट हो गये और मैं लगातार उसकी प्रतीक्षा किए जा रहा हूँ। और उसने अभी तक गेट नहीं खोला है।' वह अपने मन में उत्तेजित भी हो उठा, उसे कुछ गुस्सा भी आया लेकिन जब दरवाजा खुला, तो पोस्टमैन यह देखकर अवाक रह गया कि उस गुड़िया के दोनों पैर नहीं थे। उसे स्वयं पर गुस्सा आ गया कि मैं इस अपाहिज बच्ची पर गुस्सा क्यों हो रहा था? अब जब भी डाक आती तो पोस्टमैन घर के बाहर खड़ा रहता। गुड़िया को आवाज देता और उसे कहता कि 'बिटिया, तुम भले ही दस मिनट में आओ। मुझे पता है कि तुम्हें वक्त लगेगा लेकिन मैं तुम्हें तुम्हारे हाथ में खत दिए बिना नहीं जाऊँगा।' सप्ताह दर सप्ताह गुड़िया के पास चिट्ठी आ जाया करती थी। डाकिया उसे देता। गुड़िया को देखकर मुस्कराता और अपने हाथों से गुड़िया का माथा सहलाता और चला जाता। गर्मी का मौसम आया। गुड़िया ने देखा कि उस पोस्टमैन के पाँव पूरी तरह से नग्न हैं। उसके पाँव जल रहे होंगे। क्या कोई ऐसा प्रबन्ध हो सकता है जिससे मैं इस पोस्टमैन को जूते पहना सकूँ। गुड़िया ने सोचा कि अगर मैं पोस्टमैन से पूछू कि मैं तुम्हें जूते दूँ तो तुम उन्हें लोगे या न लोगे। शायद वह इन्कार भी कर दे। लेकिन मुझे इतना जरूर करना चाहिये जिससे इस पोस्टमैन के नंगे पाँव को जूते मिल जाएँ। एक दिन उसने संकल्प लिया कि वह इस पोस्टमैन को जरूर जूते पहनाएगी। पोस्टमैन जब आया, तो उसने डाक दी और चला गया। उसके जाने के बाद गुड़िया धीरे से सीढ़ियों से उतरते हुए जमीन पर आई। स्केल से उसने मिट्टी पर बने हुए पोस्टमैन के पाँव की आकृति को नापा और एक कागज पर वह नाप उकेर लिया। उसने अपनी एक सहेली को बुलाकर कहा कि मुझे इस नाप के जूते चाहिए। सहेली ने उस नाप के जूते लाकर उसे दे दिए। कुछ दिनों के बाद दीवाली का त्यौहार आया। पोस्टमैन घर-घर में अपना इनाम लेने के लिए पहुँचा। जब वह उस गुड़िया के द्वार पर आया तो उसके पाँव ठिठक गए। 'अरे, मैं किस आधार पर इस गुड़िया से इनाम माँD। पर कोई बात नहीं, गुड़िया से मिलता तो जाऊँ।' उसने यह सोचते हुए गुड़िया का दरवाजा सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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