Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 113
________________ खटखटाया। गुड़िया उसके इंतजार में बैठी थी। गुड़िया ने कहा, 'पोस्टमैन साहब, मैंने भी आपके लिए एक उपहार तैयार किया है। आप उसे लेने से मना तो नहीं करेंगे?' यह सुन पोस्टमैन की आँखें भीग आईं। पोस्टमैन ने कहा, 'गुड़िया, तुम मुझे प्यार से जो भी दोगी, मैं उसे बड़े आदर से स्वीकार करूँगा।' गुड़िया घर के भीतर गई और जूतों का पैकिट अपने हाथों में लेकर आई। उसने वह पैकिट पोस्टमैन को दे दिया। पोस्टमैन ने कहा, 'बेटी इतना बड़ा उपहार!' 'पोस्टमैन साहब, आप मुझे इन्कार मत कीजिएगा। मैं बड़ी भावना से इसको लाई हूँ। आप अपने घर जाकर इसको खोलिएगा। यहाँ मत खोलिएगा।' पोस्टमैन उसे लेकर सीधा घर चला आया। घर आकर जैसे ही डिब्बा खोला तो उसका दिल आँसुओं से भर उठा। उसने मन ही मन कहा कि गुड़िया, तुम कितनी महान् हो । एक अपाहिज कन्या ने मेरे नंगे पांवों को जूते दिए। वह वहाँ से सीधा पोस्ट ऑफिस पहुँचा। पोस्टऑफिस जाकर उसने अपना इस्तीफा (त्याग-पत्र) दे दिया। उसने सोचा कि आज के बाद वह कभी भी उस गली में डाक बाँटने नहीं जा पाएगा। पोस्टमास्टर ने पूछा, 'क्यों भाई, क्या हुआ?' उसने सारी कहानी सुनाते हुए कहा, 'अरे, उस अपाहिज गुड़िया ने तो मेरे नंगे पाँवों को जूते दे दिए, पर मैं उस अपाहिज कन्या को पाँव कैसे दे पाऊँगा?' आज के बाद न तो मैं ये जूते पहन पाऊँगा और न उस गुड़िया के पाँव देख पाऊँगा।' मनुष्य भले ही कमजोर क्यों न हो, उसके पास कमियाँ क्यों न हो, वह अपाहिज ही क्यों न हो, लेकिन फिर भी हम दूसरों को अपनी सहानुभूति तो दे ही सकते हैं, दूसरों के लिए मददगार बन सकते हैं। हम अपनी करुणा, आत्मीयता और प्रेम से किसी के जीवन को धन्य कर सकते हैं। हमारी सहसानुभूति की जरूरत महान् लोगों को नहीं बल्कि तुच्छ लोगों को है। हमारी सहानुभूति की ज्यादा आवश्यकता शायद साधुओं को नहीं, असाधुओं को है। पुण्यात्माओं को सहानुभूति की आवश्यकता नहीं होती, जबकि पापियों को असली सहानुभूति की आवश्यकता होती है जिनसे कि हम नफरत करते हैं। अगर भरे पेट को लड्डू खिलाया तो क्या खिलाया? लेकिन कोढ़ीखाने में ११२ आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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