Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 114
________________ जाकर हमने किसी के घाव धो दिए तो सचमुच धर्म का महापूजन और अनुष्ठान होगा। आप अपने जन्मदिन के अवसर पर किसी गरीब की झुग्गीझोंपड़ी में चले गए और वहाँ रहने वाले किसी गरीब बच्चे को जिसको कोई नहलाने वाला नहीं, जिसके कोई बाल संवारने वाला नहीं, जिसके फटे चिथड़ों की जगह नए कपड़े पहनाने वाला नहीं, हम वहाँ अपने साथ एक बाल्टी पानी साथ ले जाएँ और उस बालक को अपने हाथों से नहलाएँ । उसको नये कपड़े पहनायें और किसी स्कूल में ले जाकर उसे दाखिला दिला दें। ऐसा करना किसी महारुद्राभिषेक का पुण्य अर्जित करना होगा, महामस्तकाभिषेक को सम्पन्न करना होगा। मनुष्य मनुष्य के काम आये, इसी में मनुष्य की महानता है । जिसके पास भी मानवता की आत्मा है, वह दीन-दुःखी, रोगी रुग्ण और गरीब का सहयोग जरूर करे। हमने दो रोटी न खाई, पर किसी भूखे को खिला दी तो सचमुच बहुत बड़ा पुण्य होगा। हमारा उपवास भी हो जाएगा और हम स्वस्थ भी रहेंगे। महाभारत की घटना बताती है कि एक गरीब ब्राह्मण तीन दिन से भूखा था। जैसे-तैसे उसने अपने लिए चार रोटी का प्रबन्ध किया और उसके परिजन खाना खाने बैठे । ब्राह्मण और ब्राह्मणी तथा उनके दो बच्चों की थाली में एक-एक रोटी रख दी गई। जैसे ही खाना शुरू होने लगा कि एक अन्य गरीब ब्राह्मण उसके द्वार पर पहुँचा। वह कहने लगा, मैं बहुत दूर से आया हूँ । मुझे बहुत जोर की भूख लगी है । रास्ते में मैं कुछ भी न पा सका। क्या आपके यहाँ मेरे लिए भोजन की व्यवस्था हो सकती है? तभी ब्राह्मण ने अपनी थाली को अतिथि ब्राह्मण के आगे रखते हुए कहा, 'महानुभाव, आप पधारें और भोजन ग्रहण करें।' जैसे ही उसने एक रोटी खाई, वह कहने लगा, 'अभी भी मेरी भूख मिटी नहीं है । मुझे एक रोटी और चाहिए ।' ब्राह्मणी की थाली में जो रोटी थी वह रोटी भी अतिथि ब्राह्मण की थाली में रख दी गई। उसने कहा, 'मेरी भूख अभी भी नहीं मिटी है ।' तीसरी रोटी भी उसकी थाली में डाल दी गई, पर उसकी भूख मिट ही नहीं रही थी । उसका पेट खाली ही सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी ११३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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