Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी सफलता आपके हाथ श्री चन्द्रप्रभ Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य-संविभाग श्री शांतिलाल-सुनीता, राकेश-कविता, ललित-मोना, प्रणय, धारवी, प्रभव, दर्श, माही नाबरिया ब्यावर. For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी सफलता आपके हाथ आँखों में बसाइये बेहतर लक्ष्य, दिल में जगाइये आत्मविश्वास, दिमाग में रखिये कार्य-योजना और हाथों से कीजिए कठिन परिश्रम । फिर देखिये कैसे आती है आपके क़दमों में सफलता की मंज़िल । युवापीढ़ी का मार्गदर्शन करती बेहतरीन पुस्तक श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी सफलता, आपके हाथ श्री चन्द्रप्रभ सम्पादन श्रीमती लता भंडारी 'मीरा' सुश्री योगिता यादव प्रकाशन वर्ष : अक्टूबर, 2006 (तृतीय संस्करण) प्रकाशक : श्री जितयशा फाउंडेशन, बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई.रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : भारत प्रेस, जोधपुर मूल्य : 20/ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्व स्वर सफलता हर किसी व्यक्ति का सपना है। व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, उसकी यह कामना अवश्य होती है कि वह अपने जीवन में सफलताओं के शिखर का स्पर्श करे। सफलताएं न तो आकाश से टपक कर आती हैं, न ही जमीन को फाड़कर। प्रत्येक सफल व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसे उसूल और कार्य होते हैं जो उसके तकदीर के बंद दरवाजों को खोलने में सफल हो जाते हैं। सफलता के श्रेष्ठ परिणामों तक पहुंचना कठिन भले ही लगे, पर जो उन्नत लक्ष्य, निरन्तर प्रयास, सही कार्य-योजना और दृढ़ इच्छाशक्ति को अपने साथ लेकर चलते हैं, किस्मत उनकी हथेली में सफलता के हस्ताक्षर स्वयमेव कर देती है। प्रस्तुत पुस्तक 'आपकी सफलता आपके हाथ' उन लोगों के लिए तो प्रकाश-दीप है ही, जो शान्ति, समृद्धि और सफलता के लिए प्रयासरत रहे हैं, उनके लिए भी बेहद उपयोगी है जो किसी क्षेत्र में असफल होकर निराशा और अवसाद के दलदल में घिर चुके हैं। आप जिस भी स्थिति में हैं इस पुस्तक को पूरे मन से और धैर्य के साथ पढ़ें। आपके दिलोदिमाग में एक नई ऊर्जा और उम्मीद की लौ सुलग उठेगी। प्रस्तुत पुस्तक वास्तव में सफलता की प्रभावी कुंजी है। __ स्वास्थ्य, शान्ति और सफलता के द्वार खोलने वाले महान चिन्तक श्री चन्द्रप्रभ जी ने अपने ऊर्जाभरे प्रवचनों के द्वारा न केवल इस पुस्तक के माध्यम से, वरन् अपने सभी प्रवचनों और पुस्तकों के द्वारा मानव-समाज को जीवन जीने की बेहतर सोच, बेहतर लक्ष्य, बेहतर नजरिया और बेहतर कर्मयोग प्रदान किया है। उन्होंने जितना आध्यात्मिक चेतना के विकास पर प्रकाश डाला है, कैरियर-निर्माण और व्यक्तित्व-विकास पर उतना ही साफ-सुथरा पैगाम दिया है। वे हर किसी युवक की चेतना को जागृत करते हुए संदेश देते हैं कि निष्क्रियता और निठल्लापन हमारे भाग्य के डिब्बे पर लगे हुए ढक्कन हैं। आखिर सफलता कोई ऐसी सीढ़ी नहीं है जिस पर हम अपने हाथ जेब में डाल कर सीधे चढ़ जाएं। इसके लिए श्री चन्द्रप्रभ जी का एक ही समाधान है : लक्ष्योन्मुख सक्रियता/कर्मयोग। इस अनमोल पुस्तक के माध्यम से श्री चन्द्रप्रभ ने हमें यह स्वस्थ समझ दी है कि कामयाबी का रहस्य हमारे श्रम, संघर्ष और कर्मयोग में ही छिपा है। जो For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मयोग से जी नहीं चुराते, कामयाबी स्वयं उनके चरण चूमती है। श्री चन्द्रप्रभ सफलता के लिए उत्साह और आत्मविश्वास को सबसे ज्यादा जरूरी मानते हैं। उनके अनुसार आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति हैं जिससे अनगिनत बाधाओं के पहाड़ को भी लांघा जा सकता है। उनके वक्तव्य हतोत्साहित व्यक्ति के जीवन में भी आशा और उत्साह का नया सवेरा ला सकते हैं। वे हमारे जीवन में वही काम करते हैं जो काम चौराहे पर मील का पत्थर किया करता है। आत्मविश्वास के साथ सफलता का दूसरा गुरुमंत्र सकारात्मक सोच है । श्री चन्द्रप्रभ जी ने अपने जीवन में जिस मंत्र का हजारों बार उपयोग किया - करवाया है वह वास्तव में सकारात्मक सोच ही है। ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, अवसाद जैसी तमाम नकारात्मकताओं को हटाकर इस किताब में हमें वे बिन्दु दिए गए हैं जो हर असफल घड़ी में हमारे लिए सही रास्ते पर चलने के लिए दिशासूचक का काम करते हैं। तनाव हटाकर जीवन में प्रसन्नता और निश्चिन्तता का नजरिया देने के लिए श्री चन्द्रप्रभ जी ने तनाव को जीवन का वह घुन बताया है जो हमारे दिमाग को कमजोर करता है, मन को अशान्त करता है और भीतर-ही - भीतर हमें ऐसे चाट जाता है जैसे गेहूं को घुन और लकड़ी को दीमक । यह पुस्तक उस हर किसी व्यक्ति के लिए बेहद उपयोगी है जो तनाव से तलाक तो लेना चाहता है पर ऐसा कर नहीं पा रहा है। पुस्तक का पन्ना - दर - पन्ना जैसे-जैसे हम पढ़ते जाएंगे वैसे-वैसे यह हमारे लिए सफलता का द्वार खोलती चली जाएगी। सफलता का सम्बन्ध केवल व्यवसाय और कार्यक्षेत्र से नहीं है, जीवन के सुख, शान्ति, समृद्धि और आनंद भी सफलता के ही मायने हैं। श्री चन्द्रप्रभ जी के इस उदार दृष्टिकोण के लिए अखिल मानवता शुक्रगुजार रहेगी कि उन्होंने हर सफल व्यक्ति के हाथ में प्रेम और सहानुभूति का दीप भी थमाया है। हर कोई व्यक्ति सफल तो हो, पर अपनी सफलता को निहित स्वार्थ से जोड़ने की बजाए अगर उसका आनंद औरों में भी बांटें तो सफलता व्यक्ति विशेष तक ही सीमित नहीं रहेगी, वह अनगिनत बुझे दियों को भी रोशनी देने का सुख साध लेगी। महोपाध्याय ललितप्रभ सागर For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्दर के पृष्ठों में --- १. क्या करें कामयाबी के लिए? ... ९-३६ २. सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ३७-५२ ३. बेहतर सोचिए बेहतर जीवन के लिए ५३-६७ ४. मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ६८-८५ ५. जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ... ८६-९७ ६. सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी .... ९८-११५ For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता किसी एक दिन का चमत्कार नहीं है। हमारे द्वारा निरन्तर किये जाने वाले श्रम, संघर्ष और कर्मयोग का परिणाम है। अगर आप सदाबहार सुख और शांति का, आनन्द और आज़ादी का अनुभव कर रहे हैं, तो निश्चय ही आप सफल हैं। सफलता की ओर बाँहें फैलाने वालों को असफलताओं का सामना करना भी आना चाहिए। आपके द्वारा अब तक जो कुछ हुआ, गलत या सही, इतना तय है कि प्रयास तो अवश्य हुआ। निकम्मा बैठे रहने की बजाय ठोकर खाकर गिरना ज्यादा श्रेष्ठ है। जीवन में लगने वाली ठोकर, ठोकर नहीं होती। हर ठोकर सम्हलकर चलने का गुरुमंत्र होती है। -श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए? अपनी बात की शुरुआत एक छोटे से घटना प्रसंग के साथ करूँगा। शैलेष नाम का एक युवक नौकरी की तलाश में था। नौकरी के लिए उसने बहुतेरे प्रयास किये, किन्तु वह अपने लिए नौकरी पाने में असमर्थ रहा। जीवन से निराश और हताश होकर उसने आत्महत्या का मानस बना लिया। वह एक झील के पास पहुँचा और ज्यों ही वह छलांग लगाने के लिए तत्पर हुआ, उसकी निगाहें झील के किनारे बने हुए घाट पर टिक गईं। ___ उसने देखा कि एक पंगु और अपाहिज व्यक्ति घाट की सीढ़ियों पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था। शैलेष को लगा कि एक ऐसा व्यक्ति जिसके दोनों ही पाँव नहीं है, वह भला क्या सीढ़ियों पर चढ़ सकेगा? लेकिन वह अपाहिज व्यक्ति सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए निरन्तर प्रयास व संघर्ष कर रहा था। बड़ी मुश्किल से वह एक-एक सीढ़ी हाथ और बैठक की सहायता से चढ़ रहा था। सीढ़ियाँ पार करने में वक्त अवश्य लगा, लेकिन वह यह सब देख कर शैलेष भी अपने जीवन के लिए प्रेरित हो उठा। उसने सोचा जब अपाहिज व्यक्ति भी केवल घाट की सीढ़ियों को पार कर उस मन्दिर तक पहुँच गया तो फिर क्या वह स्वयं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता? For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शैलेष के अन्तर्मन को प्रेरणा मिल गई। उसे लगा कि जब एक पंगु व्यक्ति निरन्तर प्रयास और निरन्तर संघर्ष से अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकता है तो फिर मैं सफल क्यों नहीं हो सकता? वह पुनः नौकरी की तलाश में जुट गया, अपने रोजगार की व्यवस्था के लिए जुट गया। पतन की खाई में गिरने वाला व्यक्ति अपने आस-पास होने वाली छोटी-मोटी घटना से भी प्रेरणा प्राप्त कर लेता है तो वह व्यक्ति जो दृढनिश्चयी हो, वह अपने जीवन में एक अनोखे, अद्भुत आत्मविश्वास की ऊर्जा को प्राप्त क्यों नहीं कर सकता? दुनिया में हर किसी इन्सान की ख्वाहिश होती है कि वह ऊँचाइयों के शिखरों को स्पर्श करे। गरीबी और नाकामयाबी तो जीवन के लिए अभिशाप हैं। हर व्यक्ति का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह ऊँचाइयों के आकाश का स्पर्श करे। कामयाबियाँ महज किसी किस्मत का खेल नहीं है। सफलता मात्र किसी संयोग का परिणाम नहीं है। मनुष्य अपने द्वारा अपनाए जाने वाले बुनियादी उसूलों के द्वारा ही सफलता की श्रेष्ठता अर्जित किया करता है। जो लोग कोशिश ही नहीं किया करते, वे कभी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। सच तो यह है कि कोशिशों में ही कामयाबी छिपी रहती है। जो व्यक्ति चल ही नहीं रहा है, वह निश्चित ही कभी नहीं गिरेगा। पर जो गिरने से कोताही बरतता है, वह कभी किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकेगा। जो व्यक्ति इस भय के कारण मधु-मक्खी के छत्ते के पास नहीं जाता कि मधुमक्खी कहीं मुझे काट न खाए, वह कभी भी शहद प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता। जो चलेगा, वह गिरेगा भी। जो बोलेगा, वह तुतलाया भी होगा। जो करेगा उससे गलती भी होगी। जो गलती से डरेगा, जो आलोचना से बचना चाहेगा, वह व्यक्ति जहाँ है, वहीं रहेगा। वह किसी मन्दिर की सीढ़ी अवश्य बन सकता है, पर उस मन्दिर के भीतर रहने वाली आदरणीय मूर्ति कतई नहीं बन सकता। आपकी सफलता आपके हाथ १० For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं के संघर्षों और कोशिशों में ही कामयाबियाँ छिपी रहा करती हैं। महावीर से लेकर मैक्समूलर तक, बुद्ध से लेकर बिड़ला तक और क्राइस्ट से लेकर किरण बेदी तक, यही फार्मूला काम करता आया है। दुनिया में ऐसा कौन-सा व्यक्ति है जिसने श्रम नहीं किया हो, संघर्षों का सामना नहीं किया हो। हर किसी व्यक्ति को मुसीबतों की खाइयों को पाटना ही पड़ता है। बाधाओं की चट्टानों को पार करना ही पड़ता है। सफलताएँ न तो किसी अवतार की तरह आकाश से प्रकट हुआ करती हैं और न ही किसी आलादीन के चिराग की तरह भूमि को फोड़कर निकला करती हैं । कामयाबियाँ तो व्यक्ति के अपने नजरिए का परिणाम हुआ करती हैं। चाहे आप व्यवसाय से जुड़े हुए हों, या राजनीति से, चाहे आप ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े हों या फिर धर्म या अध्यात्म के क्षेत्र से, हर व्यक्ति को अपने आप में बेहतर नजरिये का मालिक होना ही होगा। . प्रत्येक व्यक्ति को जोखिम उठानी होगी, खतरों का सामना करना होगा। जो व्यक्ति जिंदगी के जंगल को पार करना चाहता है, उसे इस जंगल की राह में आने वाले हर अवरोध का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।आखिर ऐसा कौन कामयाब व्यक्ति है जिसने अपने जीवन में नाकामयाबी का सामना न किया हो। हर कामयाबी के पीछे नाकामयाबी का शिलालेख लिखा हुआ रहता है। हर सफलता के पीछे असफलता की कहानी छिपी रहती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कदम बढ़ाते ही सफलता मिल गई हो। वे लोग अपनी ओर से कामयाबी हासिल नहीं कर पाते जिनके हृदय में नाकामयाबी का भय छिपा रहता है। जिन लोगों का मनोबल कमजोर होता है, जो लोग सफलता का शॉर्टकट खोजा करते हैं या फिर जो लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति तुरन्त करना चाहते हैं, जिनके जीवन का कोई 'एम' अथवा लक्ष्य या उद्देश्य नहीं है, वे हर स्थिति में असफल रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए जीने का कोई खास औचित्य नहीं है। असफल होना कोई पाप या अपराध नहीं है, पर असफल होने के भय से सफलता के लिए प्रयास ही न करना अपने आप में पाप अवश्य है। क्या करें कामयाबी के लिए? مم For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिस व्यक्ति ने कभी चेष्टा ही नहीं की हो, वह सफल भी हो तो कैसे? हर सफलता के पीछे सौ-सौ असफलताएँ छिपी रहती हैं । मैं एक ऐसे व्यक्ति का नाम आदरसहित लेना चाहूँगा, जिसने अपने जीवन में एक-दसपचास या हजार बार नहीं, अपितु दस हजार दफा असफलता का सामना किया है। मात्र अपनी चालीस वर्ष की उम्र में जिसने दस हजार बार असफलता झेली थी, जो असफल पर असफल होता रहा, जिसके मित्र भी साथ छोड़कर चले गए, यहाँ तक कि पन्द्रहवें वर्ष में पत्नी भी साथ छोड़कर चली गई, मगर जिस आविष्कार के लिए वह प्रयत्नरत था, सोलहवें वर्ष के प्रयास में, चालीस वर्ष की उम्र में उसने वह सफलता अर्जित की जिससे यह सम्पूर्ण दुनिया दूधिया रोशनी से नहा उठी। क्या आप जानते हैं उस व्यक्ति का नाम जिसने इन बल्बों का आविष्कार किया, जिसकी रोशनी से यह दुनिया उसके प्रति कृतकृत्य और चमत्कृत हो उठी? उस व्यक्ति का नाम था-थॉमस अल्वा एडीसन। हम एडीसन से प्रेरणा लें। उससे अपने लिए उत्साह की ऊर्जा प्राप्त करें। आखिर ऐसा कौनसा व्यक्ति है जिसे अपने जीवन में असफलता न मिली हो? हर असफलता व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देती है। हर नाकामयाबी व्यक्ति को आगे नया सीखने के लिए उत्सुक बनाती है। जो लग चुकी ठोकर से संभल जाता है, वह आगे चल कर ठोकर नहीं खाता और जो उस ठोकर को भूल जाता है, वह जिंदगी भर ठोकरें ही खाता रहता है। मैं कहना चाहूँगा, ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसने इक्कीसवें वर्ष में वार्ड मेम्बरशिप का चुनाव लड़ा किन्तु वह हार गया। बाइसवें वर्ष में शादी की, पर असफल रहा। चौबीसवें वर्ष में व्यवसाय करना चाहा, फिर नाकामयाब रहा। सत्ताईसवें वर्ष में पत्नी ने तलाक दे दिया। बत्तीसवें वर्ष में सांसद के पद के लिए खड़ा हुआ, पर मात खा गया। सैंतीसवें वर्ष में कांग्रेस की सीनेट के लिए खड़ा हुआ किन्तु पुनः हार गया। बयालीसवें वर्ष में पुनः सांसद-पद के लिए खड़ा हुआ और हार गया। सैंतालीसवें वर्ष में उप-राष्ट्रपति पद के लिए खड़ा हुआ पर परास्त हो गया। लेकिन वही व्यक्ति इक्यावन-वर्ष की उम्र में आपकी सफलता आपके हाथ १२ For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमेरिका का राष्ट्रपति बना। नाम था अब्राहिम लिंकन। वह व्यक्ति जिसने अपने जीवन में नाकामयाबी ही नाकामयाबी देखी हो, पर इसके बावजूद भी जो व्यक्ति अपने जीवन में बेहतर बुनियादी उसूलों को अपनाए रखता है उस व्यक्ति के वे ऊँचे उसूल अवश्य ही जीवन में सफलता देते हैं। मैं तो दावे के साथ कहूँगा कि वह कौन व्यक्ति है जो जीवन में सफलता के लिए प्रयास करे और असफल रह जाए। जिंदगी पूरी सौ साल की हुआ करती है, ज़िंदगी में चाहे हजार ठोकरें भी क्यों न लग जाएँ, पर ज़िन्दगी हर ठोकर से बड़ी हुआ करती है। कौन कहता है कि जिंदगी का अंजाम मौत होना चाहिए। जिंदगी का पैग़ाम केवल ज़िन्दगी ही होना चाहिए। जीवन का परिणाम जीवन ही होना चाहिए। पुरुषार्थ का परिणाम सफलता ही होनी चाहिए। असफलता पाना कोई बुरी बात नहीं है। अगर व्यक्ति निरन्तर प्रयत्नशील रहे तो सुई से भी मकान को खोदा जा सकता है, रस्सी से भी पत्थर को घिसा जा सकता है। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता। एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो! चलिए, मैं अपने बारे में ही बताता हूँ। जिस व्यक्ति को आप इतने प्यार से सुन रहे हैं, मैं उसी के बारे में आप से कहूँ कि जिस दिन मैं अपनी ज़िन्दगी में पहली बार बोलने के लिए मंच पर खड़ा हुआ तो मेरे सामने से माइक हटा दिया गया। यह कहते हुए, इस टिप्पणी के साथ कि 'कल इस बच्चे ने संन्यास लिया है, भला यह क्या बोलेगा?' जो व्यक्ति अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं से प्रेरणा ले लिया करते हैं, वे इतिहास बदल दिया करते हैं। इस तरह की घटनाओं को आप अपने लिए चुनौती मानें और दुनिया के सामने ऐसा कुछ कर दिखाएँ कि वह चुनौती ही आपके लिए उत्साहवर्धक बन जाए। जो लोग पुरुषार्थ करने से डरते हैं, वे ही लोग असफल होने पर अपने हाथ की रेखाएँ दूसरों को दिखाते फिरते हैं। पुरुषार्थशील लोग, अपने क्या करें कामयाबी के लिए? For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन और संकल्प को मजबूत रखने वाले लोग, महेज अपने अतीत की भाग्यरेखाओं पर विश्वास नहीं करते अपितु अपनी नई भाग्यरेखाओं का निर्माण करना भी जानते हैं । वे अतीत के पुनरावर्तन नहीं वरन् भविष्य का निर्माण करने वाले वर्तमान होते हैं । जिस व्यक्ति के जीवन के अतीत में ऐसा हुआ हो कि उसके मुँह के आगे से माइक हटा लिया गया हो, किन्तु उसने उसी क्षण यह संकल्प कर लिया हो कि वह भविष्य में ऐसा दिन लाएगा, जिस दिन दुनिया उसके सामने माइक रखेगी और लोग उसे सुनने के लिए तत्पर रहेंगे तो वह सफल क्यों नहीं होगा? तब लोग कहेंगे कि 'आप बोलिए; आपके शब्द से दुनिया को रास्ता मिलेगा। आप लिखिए; आपकी हर कलम से दुनिया को नई राह मिलेगी। आपका हर शब्द अपने आप में दुनियाँ की फिज़ा को रोशन करने वाली ऊर्जा होगी।' असफलता किसको नहीं मिला करती? मूल्य इस बात का नहीं है कि आपको सफलता कब, किस उम्र में और किस क्षेत्र में मिली? मूल्य इस बात का है कि वह आपको सफलता कितने अधिक संघर्ष और मेहनत के बाद उपलब्ध हुई? . हर व्यक्ति अपने जीवन को ही ' खण्डप्रस्थ' मान ले और उसे ही 'इन्द्रप्रस्थ' बनाने के लिए संघर्षरत, प्रयत्नशील हो जाए। तुम यह मानकर चलो कि तुम्हें जीवन के नाम पर, परिवार के नाम पर, समाज, जाति या कौम के नाम पर खण्डप्रस्थ ही मिला है। तुम अपने जीवन में पुरुषार्थ के बल पर मील के ऐसे पत्थर स्थापित करो कि स्वयं तुम्हारा जीवन ही 'इन्द्रप्रस्थ' बन जाए और तुम्हारा जीवन सफलतम, उच्चतम और श्रेष्ठतम साबित हो सके। मैं ईश्वर में विश्वास रखता हूँ, मैं भाग्य में भी विश्वास रखता हूँ, लेकिन मैं ऐसे भाग्य पर विश्वास नहीं करता जहाँ व्यक्ति अपनी ओर से पुरुषार्थ ही न करे। मैं पुरुषार्थशील प्रारब्ध में विश्वास रखता हूँ। मैं कर्मयोग करता हूँ। कर्मठता मेरी साधना का ही एक चरण है। याद रखो कि किस्मत उसी का साथ दिया करती है, जो किस्मत का फल पाने के लिए पुरुषार्थ आपकी सफलता आपके हाथ १४ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया करते हैं। हाथ में केवलं हीरे-पन्ने की पुड़िया लेकर घूमने से कोई व्यक्ति अमीर नहीं हुआ करता । व्यक्ति को केवल हीरों को ही नहीं चमकाना पड़ता, वरन् उसे अपनी जीवनशैली, सोच, दृष्टि और व्यवहार में भी चमक लानी पड़ती है। केवल हीरों की चमक ही चमक नहीं होती, वरन् असली चमक तो व्यक्ति की स्वयं की होती है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन में निराशा और अवसाद की स्थिति आ गई है तो मैं कहूँगा कि तुम निराशाओं के बोझ को उतारो और आशाओं के दीप जलाओ। आप पाएँगे कि आपके भीतर एक अद्भुत ऊर्जा है, आपमें अदम्य चेतना है। किसी मरियल व्यक्ति के भीतर भी एक ज़िंदी ऊर्जा है। आखिर अल्पास की पहाड़ियों को पार करने वाला नेपोलियन कोई समो पहलवान नहीं था। वह भी मेरे जैसा ही दुबला-पतला व्यक्ति था। महात्मा गाँधी जिनकी लगाम से देश ने आजादी का रथ हांका था, चार हड्डी का ही व्यक्ति था। एक ऐसा व्यक्ति जिसके नाम से दुनिया हिलती और काँपती थी, वह हिटलर एक नाटे कद का ही व्यक्ति था। यदि कोई ठिगना या नाटे साइज का व्यक्ति दुनिया को हिलाने का मानस बना ले तो वह दुनिया को हिला सकता है, वहीं कोई व्यक्ति दुनिया को सुखशांतिपूर्ण बनाने का संकल्प कर ले, तो आने वाला कल स्वर्णिम हो सकता है। आखिर अम्बानी कोई आसमान से टपका हुआ इन्सान नहीं है। मात्र पाँच सौ रुपयों से व्यवसाय प्रारम्भ करने वाला व्यक्ति आज पूरे देश के अधिपतियों का अधिपति बन बैठा है। इसका क्या कारण है, गम्भीरतापूर्वक विचार कीजिए। ___टाटा, बिड़ला कोई आसमान से टपके हुए व्यक्ति नहीं हैं वरन् वे भी हमारी तरह ही चार हड्डियों के ही इंसान हैं। वे भी वही रोटी खाते हैं जो हम खाते हैं। उनके पास भी वही दिमाग है जो हमारे पास है। बस थोड़ा सा टैक्निक का फर्क है। जो व्यक्ति सफल होते हैं और जो असफल होते हैं, उनमें बहुत बड़ा फर्क नहीं हुआ करता । केवल एक प्रतिशत जितना ही फर्क हुआ करता है। कुछ उसूलों का, कुछ नजरियों का, कुछ सोच का, कुछ क्या करें कामयाबी के लिए? For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्साह और हौसले का ही फर्क होता है । यह जो मैं आप लोगों से मुखातिब हो रहा हूँ, वह केवल उस टैक्निक की तरफ ध्यान केन्द्रित करने के लिए ही है। मैं सफलता नहीं देता। मैं केवल सफल होने का रास्ता मात्र दिखा रहा हूँ। एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो, इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है। मैं तो केवल चिनगारी दे रहा हूँ। मैं दिया नहीं दे रहा। मैं केवल चिनगारी दे रहा हूँ। एक ऐसी चिनगारी जो आपकी बाती को प्रज्वलित कर दे और जो उसे रोशनी की आत्मा दे दे। सफलता और असफलता के बीच जो एक प्रतिशत का फर्क रहता है, मैं केवल उस एक प्रतिशत की ही बात कर रहा हूँ। मैं उस एक प्रतिशत वाली कमजोरी हटा देना चाहता हूँ। सौ और निन्यानवे में मात्र एक का ही फर्क हुआ करता है। यदि सौ के पहले से एक हट जाए तो उसके आगे कितने ही शून्य लगा दो, उनका कोई मूल्य नहीं रहता। तुम अगर 'एक' का अंक लगा दो और उसके आगे जितने शून्य बढ़ाते जाओगे, तुम्हारे एक के अंक का वजूद और भी अधिक बढ़ता जाएगा। ___मैं जो बातें कहूँगा, वे जिन्दगी की कामयाबी के लिए छोटी-छोटी सी हैं। अगर व्यक्ति कामयाब होना चाहे तो सूई के छेद से भी स्वर्ग के रास्तों को देखा जा सकता है। छोटी-छोटी गलियों से भी कामयाबी के ऊँचे शिखरों तक पहुँचा जा सकता है। ध्यान रखो, खाली बोरी कभी नहीं खड़ी हो सकती। वह बोरी ही खड़ी रहती है जो भरी हो। वे ही लोग अपने जीवन में कामयाब हो सकते हैं जो अपने जीवन की खाली बोरी में कुछ-न-कुछ भरने के लिए तत्पर हों। यदि खाली बोरी पड़ी रहेगी तो लोग उसे अपना पायदान बनाकर कुचलेंगे। लेकिन उसे खड़ा करने के लिए उसमें कुछ-न-कुछ तो भरना ही पड़ेगा। सोच लो अगर तुम्हें जीवन में खड़े रहना है तो अपनी बोरी में कुछ ऐसी चीजें भरो जिनसे बोरी खड़ी रह सके। अगर गुब्बारे में हीलियम गैस भर आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डालो तो वह आकाश की ऊँचाइयों को छू सकता है। अगर गुब्बारे में तुम हवा या गैस न भरो तो वह गुब्बारा कभी ऊँचा नहीं उठ सकता। चाहे उसे चाइना पैदा करे या हिंदुस्तान; चाहे उसे बिल क्लिंटन उत्पादित करे या अब्दुल कलाम। उसे गर्वाच्योव पैदा करे या जॉर्ज बुश, उस गुब्बारे को सद्दाम हुसैन पैदा करे या फिर ओसाम बिन लादेन । गुब्बारे आदमी के कारण नहीं बल्कि भीतर जो कुछ भरा जाता है, उसी का परिणाम है। वे ही गुब्बारे ऊँचे उठा करते हैं, जिनके अन्दर हम कोई हीलियम गैस भरने का प्रयास करें। ऐसे ही सफल होने वाली जिन्दगी के गुब्बारे में भी हमें कुछ ऐसे ही गुण भरने होंगे जिनसे ज़िन्दगी का गुब्बारा आसमान की ऊँचाइयों को छु सके। मेरी बातें उनके लिए भी उपयोगी हैं, जो लोग व्यवसाय-क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। जो शिक्षा-जगत से जुड़े हैं, उनके लिए भी वे उपयोगी हैं। जो धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र से जुड़े हैं, उनके लिए भी वे कारगर हैं। हर किसी को पूर्णता चाहिए, सफलता चाहिए, चाहे आप जिस किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए क्यों न हों? दुनिया उनको मानती है जो ऊँचाई पर हों। मैंने कहा, 'चाहे महावीर हो या मैक्समूलर'। महावीर अपने आप में अध्यात्मक्षेत्र के प्रतीक थे और मैक्समूलर ज्ञान और साहित्य-जगत के प्रतीक। बुद्ध अपने आप में करुणा और ध्यान के प्रतीक थे तो बिड़ला और अम्बानी व्यवसाय जगत के प्रतीक । क्राइस्ट अपने आप में क्षमा, प्रेम और सहानुभूति के प्रतीक थे, तो किरण बेदी शासन-प्रशासन/संचालन-तंत्र की प्रतीक। क्षेत्र चाहे कोई भी क्यों न हो, जीवन को सफलता और ऊँचाई देना आपके हाथ में है। कल मैं एक गीत गुनगुना रहा था। वह गीत उन लोगों के लिए बड़े काम का है, जिनके हृदय में निराशा घर कर गई है, जो हीनता या असफलता की भावना से भरे हुए हैं। छिप-छिप अश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ लुटाने वालो, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है। क्या करें कामयाबी के लिए? १७ For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी, पर टूटना है उसका जो जागे कच्ची नींद जवानी। कच्ची उम्र बिताने वालो, डूबे बिना नहाने वालो, कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है। जीवन नहीं मरा करता है। माला बिखर गई तो क्या है? खुद ही हल हो गई समस्या आँसू गर नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई समस्या। रूठे दिवस मनानेवालो, फटी कमीज सिलाने वालो, कुछ दीयों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है। जीवन नहीं मरा करता है। खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर, केवल जिल्द बदलती पोथी, जैसे रात उतार चाँदनी, पहने सुबह धूप की धोती। वस्त्र बदलकर आने वालो, चाल बदल कर जाने वालो, चन्द खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है। जीवन नहीं मरा करता है। कितनी बार गगरियाँ फूटी, शिकन न आई पनघट पर, कितनी बार किश्तियाँ डूबी, चहलपहल वैसी ही तट पर। तम की उम्र बढ़ाने वालो, लौ की उम्र घटाने वालो, लाख करे पतझड़ कोशिश, पर उपवन नहीं मरा करता है। जीवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गन्ध फूल की। तूफानों तक ने छेड़ा, पर खिड़की बन्द न हुई धूल की। नफरत गले लगाने वालो, सब पर धूल उड़ाने वालो, कुछ मुखड़ों की नाराजी से, दर्पण नहीं मरा करता है। जीवन नहीं मरा करता है। १८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर पतझड़ आ जाए तो यह मत समझो कि हरियाली खत्म हो गई। दीपक बुझ जाने से यह मत समझो कि आँगन खत्म हो गया। कुछ खिलौनों के खो जाने से यह न समझें कि बचपन मर गया। अब भी आशा के दीप इतने अधिक बाकी हैं कि लाख-लाख पतझड़ आने पर भी जीवन में सावन को आमंत्रित किया जा सकता है। आखिर कोई भी ऋतु, कोई भी परमाणु बम का विस्फोट देश में अकाल जैसी स्थिति नहीं ला सकता, यदि आदमी के सार्थक प्रयास होते रहें। __ धरती पर एक अनुपम और अनुकरणीय उदाहरण है। जिस देश पर परमाणु बम गिराए गए वे थे नागाशाकी और हिरोशिमा। वहाँ की माटी, माटी न रही। उस विषैली माटी की कोई गंध पा ले, तो इतने मात्र से अपाहिजता उसके गले लग जाए। लेकिन वहाँ भी लोगों ने इतना प्रयास और पुरुषार्थ किया कि आज वहाँ इतनी हरियाली हो चुकी है कि किसी अन्य देश में क्या होगी? वहाँ गीता का फिर से जन्म हुआ है। वहाँ कृष्ण का संदेश मानवता के द्वारा पुनरुज्जीवित हुआ है। ___ इन्द्रप्रस्थ बनाना आपके हाथ में है। आपके जीवन को ऊँचाई देना, आपके हाथ में है और मेरे जीवन को ऊँचाई देना मेरे हाथ में है। मैं आपके जीवन के गुब्बारे में थोड़ी-सी हिलियम गैस भर रहा हूँ ताकि आप ऊँचाइयों को छूने का सम्बल प्राप्त कर सकें। थोड़ा मेरे पास आइए। मैं आपके जीवन में कुछ ऐसा भरना चाहता हूँ कि आप अपने पाँवों पर खड़े हो सकें तथा समाज के बीच आप अपनी नाक इज्जत के साथ ऊँची रख सकें। _ जिंदगी में यदि कामयाबी हासिल करनी है, तो हममें से हर व्यक्ति सबसे पहले अपनी ओर से यह प्रयास करे कि वह अपनी इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति और मनोबल को मजबूत बनाए। जिस व्यक्ति की इच्छाशक्ति कमजोर हो गई है वह हार ही जाता है। सीधी सी कहावत है 'मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।' आदमी ने अगर यह सोच लिया कि मैं यह काम नहीं कर सकता तो क्या करें कामयाबी के लिए? १९ For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह उसे नहीं कर पाएगा। उसने यदि यह सोच लिया कि मैं यह काम कर लूँगा, तो वह उस काम को जरूर कर लेगा। यह तो हममें से प्रत्येक व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है। हम सभी सुबह सोकर उठते हैं। अगर मुर्दे की तरह उठते हैं तो पूरे दिन भर हमें मुर्दानगी का ही अनुभव होगा। वहीं अगर हर सुबह की शुरुआत मर्दानगी से होती है, तो पूरा दिन ऊर्जा से भरा रहता है। अगर हम सुबह उठते ही लड़ते-झगड़ते हैं, ओछी बातें सोचते हैं तो पूरे ही दिन भर वे ओछी बातें हमारे दिमाग में घूमेंगी। उनसे प्रमाद रहेगा, आलस्य रहेगा और निराशा बढ़ेगी। आपको लगेगा कि यह काम मैं कैसे कर सकता हूँ? और तुम वह काम कर भी नहीं पाओगे; भले ही तुमने सुबह उठकर सौ बार दण्ड-बैठक क्यों न की हो? क्योंकि दण्ड-बैठक तो शरीर से की होगी, पर मन से तो तुम मुर्दा बने बैठे हो। नतीजा यह निकलेगा कि तुम कुछ भी न कर पाओगे। __ अपने मन को मजबूत कीजिए। अपने को हारा हुआ मत समझिए। हारना कोई बुरी बात नहीं है। प्रतिस्पर्धा में चार दौड़ते हैं जिनमें तीन हारते हैं और एक जीतता है। तीन अगर फिर प्रयास करें तो तीन में से दो हारेंगे और एक जीतेगा और दो फिर से प्रयास करें तो एक जीतता है, दूसरा हारता है। और फिर भी हारा हुआ व्यक्ति प्रयास करता है तो दुनिया हारेगी और वह जीतेगा। यह तो हमारे मनोबल पर निर्भर करता है, हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि हम कामयाब होंगे या नाकामयाब। खेल-जगत से जुड़े हुए लोग जानते होंगे और आज तो सभी लोग इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखते हैं। खेल-जगत से जुड़ी हुई एक ऐसी लड़की, जिसे चार वर्ष की उम्र में निमोनिया हो गया था, बीमार पड़ गई। निमोनिया इतना अधिक बिगड़ गया कि उसे पोलिया हो गया। उसके दोनों पाँव जाम हो गए। पर उस लड़की के मन में, जब भी खेल देखने जाती तो यह इच्छा होती कि मैं भी विश्व चैम्पियन बनूँ। पोलियो हो जाने से वह अपाहिज हो गई, तेरह वर्ष की उम्र में उसने बैसाखी थाम ली तो भी उस लड़की के मन में हर समय यही ख्वाहिश, २० आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यही इच्छा, यही सपना बना रहा कि मैं विश्व-चैम्पियन बनूँ। जब भी वह डॉक्टर से मिलती, यही बात कहती। डॉक्टर हँसते और कहते- 'बेटा! अब तुम यह भूल ही जाओ, क्योंकि चैम्पियन बनना तो दूर, तुम बैसाखी के बिना चल भी नहीं सकती।' लेकिन उस लड़की ने तेरह वर्ष की उम्र में यह संकल्प ले लिया तथा अपने मनोबल और अपनी इच्छाशक्ति को इतना अधिक मजबूत बना लिया कि यदि अब मैं चलूँगी तो मात्र अपने पाँवों से ही चलूँगी, बैसाखी से नहीं। उसने बैसाखी फैंक दी और वह पाँवों से चलने की कोशिश करने लगी। वह बार-बार गिरती, बार-बार सँभलती। मगर धीरे-धीरे उसके पाँवों में मजबूती आने लगी। वह अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर धीरे-धीरे चलने लगी। वह एक कोच के पास गई और उसने उसे अपने विश्व-चैम्पियन बनने की मानसिकता बताई। कोच ने कहा- यह बात तो तय है कि तुम विश्व-चैम्पियन नहीं बन सकती। अभी तो तुम ढंग से दौड़ भी नहीं सकती, लेकिन तुम बचपन से जिस इच्छा-शक्ति को पाले आ रही हो, वह तुम्हें अवश्य चैम्पियन बनाएगी।' आप आश्चर्य करेंगे यह जानकर कि उन्नीस वर्ष की उम्र में उस लड़की ने उन्नीस सौ साठ में हुए ओलम्पिक में सौ मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीता, दो सौ मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता और चार सौ मीटर की दौड़ में भी स्वर्ण पदक जीता। पोलियो से ग्रस्त एक अपाहिज लड़की अगर अपने मनोबल को मजबूत कर ले तो वही लड़की अर्थात् 'विल्मा रूडोल्फ' उन्नीस सौ साठ के ओलम्पिंक में विश्व चैम्पियन बन कर लोगों के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत करती है कि अगर आदमी चाहे तो उसके लिए सब कुछ संभव है। रवीन्द्र जैन जो कि एक अन्धे व्यक्ति हैं, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर दुनिया भर की श्रेष्ठतम फिल्मों में संगीत दे चुके हैं और संगीत के श्रेष्ठतम एल्बम बना चुके हैं। बीथोवन, जो कान से बहरे थे, उन्होंने भी संगीत क्या करें कामयाबी के लिए? For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के जो एल्बम दिए हैं उन्हें संगीत से प्रेम करने वाले सभी व्यक्ति जानते हैं कि उनके संगीत में कितना अधिक दम है? जब मैं चार वर्ष पूर्व इसी नगर में आया था तो मुझे बहुत ही अच्छी घटना सुनने को मिली। भारत की एक प्रसिद्ध नर्तकी सुधा चन्द्रन जयपुर पहुँची जिसके एक पाँव कट चुका था। उसने 'महावीर विकलांग सेवा समिति' से सम्पर्क कर अपनी यह भावना व्यक्त की कि मुझे ऐसे पाँव उपलब्ध कराए जाएँ जिनसे मैं पुनः नाच सकूँ। जयपुर के डॉक्टरों ने कहा, 'डुप्लीकेट पाँव तो बनाए जा सकते हैं, पर नृत्य करना संभव नहीं है।' पर उसने हार न मानी। उसने नकली पाँव लगाए और वह जी भरकर मेहनत करने लगी। कहते हैं कि जयपुर के ही रवीन्द्र रंगमंच पर उसने फिर से नृत्य कर दिखाया। वस्तुतः प्रत्येक कार्य की सफलता के पीछे हमारी अपनी इच्छा-शक्ति मजबूत होनी चाहिए। मैं उदाहरण देना चाहूँगा, इन्दौर की एक छोटी-सी तेरह वर्ष की कन्या का, जिसका नाम है पलक मुच्छाल। मैं उस बच्ची को सप्रेम साधुवाद देना चाहूँगा। उस बच्ची ने मात्र आठ-नौ वर्ष की उम्र में गाना शुरू किया। वह गीत गाती और गाने के बाद एक अंगोछा लेकर खड़ी हो जाती और कहती कि 'मैंने गीत सुनाया और गीत सुनकर यदि आप प्रसन्न हुए हैं, तो इस झोली में कुछ डालिए।' आप सुनकर आश्चर्य करेंगे कि उस तेरह वर्ष की लड़की ने अब तक सौ से भी ज्यादा बच्चों के हार्ट सर्जरी के ऑप्रेशन आप लोगों के जनसहयोग से करवा दिए। हम इच्छा-शक्ति को जगाएँ, अपने मन को कमजोर और कायर न होने दें, उसे नपुंसक न बनने दें। विश्वास करना है तो अपने आप पर विश्वास करना सीखें। जिंदगी में चाहे जितनी नाकामयाबी मिले तब भी, निन्यानवें द्वार बंद हो जाने पर भी एक द्वार अवश्य खुला रहता है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि व्यक्ति का जन्म बाद में होता है जबकि प्रकृति की ओर से जीवन की व्यवस्था पहले से ही होनी शुरू हो जाती है। बच्चे का जन्म बाद में होता है किन्तु माँ का आँचल बच्चे के जन्म के पूर्व ही दूध से भर जाया करता है। २२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब तक तुम असमर्थ होते हो, तब तक तुम्हारी व्यवस्था कुदरत करती है किन्तु जिस दिन तुम अपने पाँवों पर खड़े हो जाते हो, उस दिन से तुम अपनी व्यवस्था स्वयं करते हो । उस समय तुम स्वयं व्यवस्थापक बन जाते हो अपने आप के । आप अपनी इच्छाशक्ति को जागृत करें । हम चाहे जिस क्षेत्र में कामयाबी पाना चाहते हों, अपना लक्ष्य निर्धारित करें। जितना ऊँचा लक्ष्य होगा, उतना ही व्यक्ति में ज्यादा उत्साह होगा । जिसका जितना सुदृढ़ और महानतम लक्ष्य हुआ करता है, उस व्यक्ति में उतनी ही सघन ऊर्जा हुआ करती है। जानवर अपना लक्ष्य नहीं बना सकते। लक्ष्य तो मात्र इन्सान ही बना सकते हैं। जानवरों का काम तो जन्म लेना है, आहार करना है, बच्चे पैदा करना है और मर जाना है । काम तो हम लोग भी यही करते होंगे, पर हम आदमी की औलाद हैं । कुदरत ने हमें कुछ विशिष्ट क्षमताएँ और शक्तियाँ दी हैं, जिनका हम सब लोगों को उपयोग करना चाहिए। ज़रा सोचो कि हमारे जीने का मकसद क्या है ? क्या हम इसीलिए जी रहे हैं कि अभी तक मरे नहीं हैं? अगर आप इसलिए जी रहे हैं कि आप मरे नहीं हैं तो आप अब भी मरे हुए हैं। अगर आप जीवन में कुछ उपलब्ध करना चाहते हैं, चाहे हममें से कोई अपाहिज ही क्यों न हो, तो भी प्रयास करो। तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। किसी-नकिसी मंजिल तक अवश्य पहुँचोगे । लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। मेरे बोलने की सार्थकता इसलिए है कि व्यक्ति को अब तक अपना लक्ष्य निर्धारित करने का न तो वक्त मिला, न उसका मानस बना और न ही उसे कोई प्रेरणा मिली। मैं पूछना चाहूँगा आप सब लोगों से, चाहे आप जिस किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए क्यों न हों, आपके जीने का लक्ष्य क्या है? मैं पूछना चाहूँगा उस बीस वर्ष के युवक से कि उसके जीवन का मकसद क्या है? मैं पूछना चाहूँगा अस्सी वर्ष के उन बुजुर्गों से जो कुर्सी पर बैठे हैं। आप अपने शेष रहे जीवन से क्या चाहते हैं? आप जीवन क्या करें कामयाबी के लिए? For Personal & Private Use Only २३ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से क्या परिणाम और उपलब्धि चाहते हैं? धैर्य से सोचिए। अपने दिमाग में अपना लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। जितना स्पष्ट लक्ष्य होगा, उतना ही प्रखर और प्रबल पुरुषार्थ हो सकेगा। हमारी शिक्षा भी अब जीवन की सफलता और सार्थकता से जुड़ी हुई नहीं रही। हर व्यक्ति इसलिए पढ़ रहा है ताकि वह रोजगार पा सके। शिक्षा भी आज पेट भरने का साधन मात्र रह गई है। मैं, शिक्षा का उद्देश्य यह मानता हूँ कि शिक्षा वह है जो व्यक्ति को जीवन जीने का उद्देश्य अथवा सन्मार्ग प्रदान करे। जिस आदमी का कोई मकसद नहीं होता, उसका जीना भी अर्थहीन है। ___ क्या आप ऐसे फुटबॉल के मैदान में खेलना पसंद करेंगे जहाँ मैदान भी है, फुटबॉल भी है, खिलाड़ी भी हैं पर गोल पोस्ट नहीं है? खेलने का तब कोई उद्देश्य ही न होगा, तब खेलना मात्र मैदान में दौड़ना-भागना ही तो होगा। कौन हारा-कौन जीता, यह तो निर्णय हो ही नहीं पाएगा। __ लक्ष्य निर्धारित करें। आप मान लीजिए किसी चौराहे पर पहुँच जाते हैं और वहाँ खड़े किसी व्यक्ति से पूछते हैं कि 'यह रास्ता किधर जाता है?' वह जवाब देता है, यह जवाहर नगर की तरफ जाता है।' आप पूछते हैं कि 'दूसरा रास्ता किस तरफ जाता है?' वह कहता है- 'मोती डूंगरी रोड़ की तरफ।' आप पूछते हैं 'यह तीसरा रास्ता किस तरफ जाता है?' वह जवाब देता है- 'त्रिमूर्ति की तरफ जाता है।' जवाब देने वाले ने कहा कि 'तुम कभी तो मुझसे इस रास्ते के बारे में पूछते हो, कभी दूसरे रास्ते के बारे में, कभी तीसरे के बारे में पूछते हो। आखिर तुम्हें जाना कहाँ है?' प्रश्न पूछने वाले ने कहा-'यह तो मुझे स्वयं को ही मालूम नहीं है कि मुझे जाना कहाँ है?' तब जवाब देने वाले ने कहा-'फिर कहाँ दिक्कत है? तुम इस्ट जाओ या वेस्ट। आखिर तुम कहीं न कहीं तो पहुँच ही जाओगे। जब जाने का कोई मकसद ही नहीं है तो चौराहे पर खड़े होकर व्यर्थ के जवाब-तलब करने का अर्थ ही क्या है?' २४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मकसद अर्थात् लक्ष्य जरूरी है । गोली चलाओ तो भी लक्ष्य होना चाहिए, तीर संधान के लिए भी लक्ष्य हो । आप जानते होंगे कि मैग्नीफाई ग्लास से बच्चे खेला करते हैं । हम भी जब बच्चे थे तब उससे खेला करते थे । मैग्नीफाईंग भी छोड़ दिया जाए। एक साधारण ग्लास लेकर धूप में खड़े हो जाओ, इस प्रकार कि सूरज की रोशनी काँच पर पड़े। सूरज की रोशनी आप पर पड़ती है तो भी उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन उस मैग्नीफाईंग ग्लास में पड़ी सूर्य की रोशनी का झलका किसी आदमी पर गिरा दिया जाए तो पन्द्रह सैकण्ड के अन्दर ही वह आदमी कम्पित हो उठेगा, उसके सिर में दर्द होने लगेगा और उसका सिर जलने लगेगा । ताकत है, लक्ष्य में। अगर रोशनी को एक स्थान पर केन्द्रित कर लिया जाए तो वह आदमी को कम्पित कर देती है । अपन लोग भी बचपन में खेला करते होंगे कि हाथ में मैग्नीफाईंग ग्लास लेकर धूप में खड़े हो जाते और कागज के टुकड़े पर धूप के झलके को, सूर्य के प्रतिबिम्ब को फेंका करते और वह कागज जल उठता। मैं उसी मैग्नीफाईंग ग्लास का उपयोग करते हुए जीवन की एक शैली, एक समझ, जीवन की एक फिलोसॉफी देना चाहूँगा कि हर आदमी के जीने का मकसद, लक्ष्य अथवा एक केन्द्र-बिन्दु अवश्य होना चाहिए। आप पाएँगे जिस व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित है, वह चाहे जिधर जाए उसका लक्ष्य सदैव उसकी आँखों में समाया रहता है । वह हर कार्य करता हुआ भी अपने लक्ष्य अथवा अपनी कामयाबी के निकट पहुँचता जाता है । लक्ष्य निर्धारित कीजिए। आपने भी बचपन में एक कहानी सुनी है। खरगोश और कछुए में रेस लगती है। खरगोश तेज गति से भागता है और कछुआ धीमी गति से । मैं उस कहानी से जीवन में कुछ सीखने जैसी बात कहूँगा । अगर आप खरगोश की गति पर ध्यान दें तो आप कहेंगे कछुए में कोई दम नहीं है अतः खरगोश तो जीतेगा ही जीतेगा। लेकिन सब जानते हैं कि खरगोश हार गया और कछुआ जीत गया। आप बता सकते हैं इसके पीछे क्या कारण था? कारण था कछुए की लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता, जो उसे क्या करें कामयाबी के लिए? २५ For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजय दिलाती है। खरगोश, तो सोचता है कि 'मुझे कौन हरा सकता है? मैं तो यूँ ही चुटकी भर में पहुँच सकता हूँ। मेरी चाल कितनी तेज है!' ऐसे ही लोग जीवन में मात खाया करते हैं। जो लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं, निरन्तर लगे रहते हैं वे ही सफल होते हैं। और यह निरन्तरता वाली बात ही व्यक्ति को कामयाबी दिलाती है। तुम जब अपना लक्ष्य बना लो तो केवल लक्ष्य बनाकर मत बैठ जाओ। उस लक्ष्य को पूरा करने की प्लानिंग भी तैयार करो कि मैं इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त करूँ? लोग मेहमान को तो पहले बुला लेते हैं और बाद में यह सोचते हैं कि उसके आतिथ्य-सत्कार के लिए क्या-क्या बनाऊँ? अरें, ये सब बातें तो पहले सोचने की होती हैं। पहले तो इन बातों के बारे में निर्णय किया नहीं और अब सोचने बैठे हो । कार्य करने की तकनीक सीखो। अपने मन से यह गरूर निकाल दो कि तुम्हें सब कार्य करना आते हैं। _____ हर व्यक्ति को किसी भी रास्ते पर कदम बढ़ाने से पहले 'होमवर्क' अवश्य कर लेना चाहिए। टेबल का वर्क, डेस्क का वर्क हर व्यक्ति को कर लेना चाहिए। ऐसा कोई मकान बताओ, जिसे बनाने से पहले उसके लिए नक्शा न बनाया गया हो तो बनते-बनते वह घर, घर न बनकर शायद कोई घरौंदा बन जाए। किसी भी मकान को बनाने से पूर्व आर्कीटेक्चर सर्वप्रथम नक्शा बनाता है। यह नक्शा बनाना कार्य-योजना को तैयार करना हुआ। एक सेनापति जब किसी पर आक्रमण करना चाहता है तो सबसे पहले वह व्यूहरचना तैयार करता है। एक वक्ता अगर बोलता है तो उसे बोलने से पहले अपनी मानसिकता तैयार कर लेनी चाहिए। एक लेखक अगर लिखता है तो उसे लिखने से पहले, अपने मानस में, अपने अन्तर्मन में एक स्केच तैयार कर लेना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा समझता है कि मुझे इन सब की कोई जरूरत नहीं है तो मैं कहना चाहूँगा कि वह व्यक्ति सफल और सिस्टेमेटिक नहीं हो सकता। अगर वह सफल हो भी गया तो वह भी वांछित ऊँचाइयों का स्पर्श न कर पाएगा। दुनिया का सबसे मशहूर व्यक्ति, विश्व का सर्वोच्च धनपति उसका नाम था एन्ड्रयू कार्नोगी। जो लोग थोड़ी भी आपकी सफलता आपके हाथ २६ For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जानकारी रखते हैं, उन्हें ध्यान होगा कि आज से करीब बीस वर्ष पूर्व धनपतियों की लिस्ट में उसका नम्बर वन था। कहते हैं कि एक बार मीडिया से जुड़े हुए कुछ लोग उसके पास पहुँचे और उससे प्रश्न पूछा कि आपने ऊँचाइयों के जिस आकाश को छुआ है, क्या उसका राज बताएँगे? आपके प्रतिद्वन्द्वी आप से इतने पीछे छूट गये, उसका कारण क्या है?' उस अधिपति ने रहस्य को उद्घाटित करते हुए कहा-'जो व्यक्ति अपने लक्ष्य के लिए अपनी पच्चीस प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है, वह नाकामयाब रहता है। किन्तु जो व्यक्ति अपनी पचास प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है, वह सफल व्यक्ति बनता है। और जो सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है, वह व्यक्ति एन्ड्रयू कार्नोगी बनता है।' वह व्यक्ति ही ऊँचाइयों का स्पर्श कर पाता है जो सौ की सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर लेता है। तेनजिंग और हिलरी एवरेस्ट पर ऐसे ही नहीं पहुँचे थे। छोटे-मोटे प्रयासों से सफलताएँ नहीं मिला करतीं। एक सिस्टम चाहिए, एक कोशिश और एक व्यवस्था चाहिए। ध्यान रखें, कार्य-योजना बना कर ही न बैठ जाएँ। जो व्यक्ति अपने जीवन में एक सिस्टम, एक प्लानिंग लेकर चलता है, वह व्यक्ति तीस दिन के कार्यों को मात्र सात दिन में ही पूर्ण कर लेता है। बिना सिस्टम के जो चलता है, वह सही रूप में न तो दाढ़ी बना पाता है, न उसे खाने की फुर्सत रहती है, न वह अपने बच्चों के बीच बैठ पाता है। वह तो बस जी रहा है। उसके जीने का न तो कोई मकसद, परिणाम, न लक्ष्य और न कोई व्यवस्था है। तुम्हारे घर है, परिवार है, समाज है, धर्मस्थान हैं, देश है, उनके लिए भी वक्त निकालो। जिसके पास जीने का सिस्टम है, तरीका है, कार्यपद्धति है, वह स्वयं को उनके अनुरूप व्यवस्थित कर लेता है। वह हर कार्य को निपटाने के लिए वक्त निकालता है। लोग मुझसे पूछते हैं कि 'आप कब लिखते हैं? आपको चिन्तन-मनन के लिए इतना समय कैसे मिलता है?' देखिए! मुझे भी आहारचर्या करनी होती है। मैं अपना खाना स्वयं लाता हूँ। खाने के बाद मुझे अपने पात्र स्वयं धोने होते हैं। स्वाध्याय, ध्यान, योग, क्या करें कामयाबी के लिए? २७ २ व्यवस्था है। For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिक्रमण, जनसेवा आदि सभी कार्य प्रतिदिन करने होते हैं । इतने कार्य होने के बावजूद भी मेरे सभी कार्य सफलता से पूरे हो जाते हैं, क्योंकि हर कार्य के लिए मेरा समय लगभग निर्धारित है, और उस निर्धारित समय में ही वह सब कुछ हो ही जाया करता है । मेरा हर कार्य सिस्टेमेटिक होता चला जाता है । जीवन के साथ सिस्टम चाहिए, एक व्यवस्था चाहिये । आप सुबह उठकर यह व्यवस्था कर लीजिये कि आप दिन भर में इन-इन कार्यों को सम्पादित करेंगे। किसी महिला से पूछो कि क्या तुम गेहूँ को घर में पीसती हो ? वह आपके प्रश्न पर आश्चर्य करेगी और साथ ही यह भी कहेगी कि 'साहब, इतनी फुर्सत कहाँ है?' एक बार मैंने एक महिला से पूछा - ' बहिन ! तुम मंदिर क्यो नहीं जाती ?' उसने कहा- 'टाइम ही नहीं मिलता।' मैंने कहा- 'मै आपके घर प्रवास कर चुका हूँ। वहाँ तो काफी कर्मचारी थे। वैसे झाडू-पौंछा कौन करता है?' उसने कहा - 'नौकर करते हैं।' मैंने पूछा - 'खाना कौन बनाता है?' उसका जवाब था, 'उसके लिए बाई रखी हुई है।' मैंने कहा'बर्तन कौन साफ करता है?' उसने कहा- 'वह भी नौकर ही साफ करता है।' उसके सारे काम नौकर ही करते हैं, फिर भी उसके पास समय नहीं है । बड़े घर वालों की स्थिति ज्यादा नाजुक है । वे मेहनत नहीं करते और केवल शृंगार, पार्टी और मौजमस्ती में ही अपना समय पूरा कर लेते हैं । मेरा अनुरोध है कि एक बार जीने का तरीका फिर से सीखा जाए। केवल पैसा कमा लेना या खाने में रोज बादाम की कतली खाने का सौभाग्य प्राप्त करना ही जीवन नहीं है । जीवन जीने का कोई मकसद तो अवश्य हो । जीने की कोई परिणति भी हो । माना कि पैसा बहुत कुछ होता है पर वह सब कुछ नहीं होता। पैसे के अलावा भी जिंदगी में करने के लिए बहुत कुछ है । यह बात अपने दिमाग में घोट-घोट कर उतार लो कि दुनिया में मुफ्त में किसी को कुछ नहीं मिलता है। जब तक आदमी मेहनत नहीं करेगा, तब तक उसे कुछ नहीं मिलेगा। आप जिस चीज को पाना चाहते हैं, उसे पाने के लिये कड़ी मेहनत कीजिए । २८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर आप विद्यार्थी हैं तो विद्या-अर्जन के लिये कड़ी मेहनत करें। व्यवसायी हैं तो व्यापार के लिए कड़ी मेहनत करें। कहीं सर्विस करते हैं, तो वहाँ कड़ी मेहनत करके अपना स्थान तय कीजिए। आप देखते हैं चींटी मात्र एक कण के लिए कितनी मेहनत करती है। एक चिड़िया अपना घौंसला बनाने के लिए किनती कड़ी मेहनत करती है। गिलहरी को अण्डा देने के साल भर पहले उतनी मेहनत करनी पड़ती है, जितनी कि एक मकान बनाने में लगती है। हाथी को 'मण' के लिए और चींटी को 'कण' के लिए मेहनत करनी पड़ती है। 'श्रममेव जयते' अर्थात् विजय श्रम की ही होती है। कल एक सज्जन ने मुझसे पूछा, 'आजकल इतने रोग क्यों हैं और उनका निदान क्यों नहीं होता?' मैंने कहा कि 'रोगों का कारण व्यक्ति की अपनी ही शैली हैं । व्यक्ति परिश्रम से जितना दूर भागेगा, रोग उतने ही उसके नजदीक आते जाएँगे।' पहले लोग श्रम किया करते थे। आप पहले के पुरुषों को देख लीजिए और आज के पुरुषों को भी; पहले की महिलाओं को देख लीजिए और आज की महिलाओं को भी। पहले की महिलाएँ सत्तर वर्ष की होकर भी चुस्त और मेहनती हैं। आज की आराम तलब महिलाएँ चालीस वर्ष की होकर भी कोई मोटी है, तो कोई हड्डी-हड्डी। किसी की कमर दुखती है तो किसी के घुटने। सवाल उम्र का नहीं है। सवाल है सक्रियता और निष्क्रियता का। हमारे पास निन्यानवे वर्ष के एक बुजुर्ग व्यक्ति आते हैं। उनका नाम है प्रसन्नचन्द्र धाड़ीवाल। आप ताज्जुब करेंगे इतने वृद्ध व्यक्ति को देखकर! धीरे-धीरे कछुए की चाल चल कर वे हमारे पास आते हैं। वे प्रतिदिन मंदिर जाते है, पूजा करते हैं और यहाँ तक कि अपने कपड़े भी स्वयं धोते हैं। इसलिए कि उस व्यक्ति ने स्वालम्बन में ही विश्वास रखा है। याद रखो कि अगर तुमने अभी से ही कर्मठता की आदत नहीं डाली तो बुढ़ापे में तुम्हें एक गिलास पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं मिलेगा। यह शरीर, यह मशीनरी भी उतना ही साथ देगी जितना तुम इसका सुव्यवस्थित उपयोग करोगे। आज रोग इसलिए हैं, क्योंकि व्यक्ति या तो मेहनत करना ही नहीं जानता, या फिर क्या करें कामयाबी के लिए? २९ For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'ओवर लोडिंग' मेहनत कर लेता है। आज डिलीवरी होती है, सिजेरियन ऑप्रेशन होते हैं। क्यों? मेरी माँ बताया करती थी कि पहले महिलाएँ फुलका बनाती थी और प्रसवपीड़ा होने पर बच्चे को जन्म दे देती थीं, क्योंकि पहले महिलाओं में श्रम की आदत थी। उन्हें बच्चा होने से तीन चार माह पूर्व गेहूँ पीसने के लिए घट्टी (चक्की) पर बैठाया जाता था। उन्हें प्रतिदिन गेंहूँ पीसने को दिये जाते थे ताकि उनके तन-मन दोनों को बल मिले। शरीर में लचीलापन रहे। आज सौ साल के लोगों से भी ज्यादा चालीस साल के लोगों की कमर में दर्द रहता है। सब कुर्सी पर बाबू साहब बनकर बैठे हैं। कोई गणेश जी बन रहा है, तो किसी की आँखें भीतर स रही हैं। गाल ऐसे चिपके हैं जैसे पानी पताशा फस्स हो गया हो। ध्यान रखिए, जमीन पर बैठकर भोजन करने से आपकी बैठक व किडनी से जुड़े हुए तत्त्व सक्रिय रहते हैं। आप देख लीजिए कि जापान में आपको कोई मोटा व्यक्ति नहीं मिलेगा। वहाँ सब लोग दुबले-पतले हैं या फिर कुछ सूमो पहलवान हैं। उसका कारण यह है कि जेपेनिज वज्रासन में बैठते हैं। यदि वहाँ किसी को आठ घण्टे तक कुर्सी पर बैठना होता है तो सुबह वह चार घण्टे तक शरीर से इतना पसीना बहा देता है कि उसका शरीर आठ घण्टे कुर्सी पर बैठ सके। आज लोग आठ नौ बजे तो सुबह सोकर उठते हैं। अभी तीन-चार रोज पूर्व मैं किसी के घर पर गया था। मैंने घर में रही महिला से पूछा'आपका पोता कहाँ है?' उसने जवाब दिया कि 'वह तो सो रहा है।' अब सोचिए कि जिस घर में बच्चे ग्यारह बजे तक सोते हैं, उनका भविष्य और भाग्य क्या होगा? रात भर सोना. ही सोना। जिंदगी सोने के लिए थोड़े ही है, जिंदगी तो कुछ कर गुजरने के लिए है। सोना तो शरीर को आराम देने के लिए है। बाकी तो कर्मठता ही जीवन की जीवन्तता है। आप सुबह उठकर व्यायाम कीजिए। घर के साजो-सामान सजाइये। घर में झाडू लगाएँ तो भी कोई दिक्कत नहीं। शरीर तो मशीन है। इसकी जितनी फूडिंग और ओइलिंग जरूरी है उतनी ही एक्सरसाइज भी आवश्यक है। फिटनेस के लिए यह ३० आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक भी है। चिड़िया को भी मेहनत करनी पड़ती है, शेर को भी मेहनत करनी पड़ती है। बिना मेहनत के कुछ भी नहीं होगा, यहाँ तक कि भीख माँगने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है। देखिए, मैं एक संत हूँ। मुझे मेहनत की क्या जरूरत? मैं कुछ भी न करूँ तो भी मेरे लिए वांछित सभी व्यवस्थाएँ विद्यमान हैं। पर मैं कर्मयोग करता हूँ। संत होने का मतलब निठल्ला होना नहीं है। दुनिया में गीता से किसी ने कुछ सीखा हो या न सीखा हो, पर मैंने गीता के कर्मयोग-सिद्धान्त से सदैव कर्म करते रहने की बात सीखी है। संत होने का अर्थ यह नहीं है कि मेहनत न की जाए। करोड़पति होने का अर्थ यह नहीं है कि मेहनत न की जाए। हर आदमी मेहनत करे, स्वस्थ रहने के लिए, व्यस्त रहने के लिए, सफलता प्राप्त करने के लिए। कंधे कंधे मिले हुए हैं, कदम कदम के साथ हैं। पेट करोड़ों भरने हैं, पर उनसे दुगुने हाथ हैं। जीवन में करने को बहुत कुछ है । व्यवस्थाओं को पूरा करने के लिए ही प्रकृति ने दूनी व्यवस्था की है। कमाने के लिए ही नहीं बल्कि भीख मांगने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है। एक बार एक व्यक्ति ने भिखारी से कहा-'तुझे शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए। मेहनत कर।' उसने कहा-'कोई काम हो तो बताओ।' उसने कहा, 'ठीक है, कल से तू मेरी दुकान के बाहर आकर बैठ जाना।' भिखारी बोला-'फिर तो तू ही मेरे धंधे में आ जा। मैं तुझे पूरे दिन के अस्सी रुपये दूंगा। विनोद के लिए यह बात ठीक है पर जीवन में कुछ कर-गुजरने के लिए व्यक्ति को तत्पर होना होगा। जो व्यक्ति मेहनत से डरता है, वह कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। आपने बारहखड़ी सीखी है न्- क, ख, ग, घ । इसमें पहले क्या आता है? 'क' और फिर 'ख' इसलिए पहले कीजिए क्या करें कामयाबी के लिए? ३१ For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और फिर खाइए, कर्मयोग से जी मत चुराइए । काम करो आराम नहीं । लोग जीमण में जाते हैं, बड़े बाबू साहब बनकर । खाने के वक्त पहुँचेंगे, खाना परोसा - परोसाया मिलना चाहिये । उसमें भी आधा खाना खाया और आधा खाना छोड़ा और झूठे बर्तन भी वहीं पर छोड़ दिये । अरे भई, पहले औरों को खिलाओ, फिर खाओ । अपना खाया हुआ तो गोबर बन जाता है जबकि औरो को खिलाकर खाना, प्रभु का प्रसाद होता है। आप चाय के लिप्टन टी ब्रांड के नाम से परिचित होंगे। क्या आप लिप्टन के अतीत की कहानी जानते हैं? लिप्टन एक गरीब व्यक्ति था । वह किसी होटल में पहुँचा और उसने उसके मालिक से कहा, 'साहब, मुझे कुछ भी काम दे दीजिए, ताकि मैं अपने भोजन की व्यवस्था कर सकूँ ।' होटल के मालिक ने कहा- 'मुझे खेद है कि मेरे पास तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है । मेरे पास इतने ग्राहक भी नहीं आते हैं कि मैं एक अतिरिक्त नौकर रख सकूँ। इसलिए तुम अन्यत्र नौकरी की तलाश करो।' लिप्टन ने कहा, 'यदि मैं आपको प्रतिदिन चालीस नए ग्राहक लाकर दूँ तब तो मुझे रखना आपके लिए उपयोगी साबित होगा।' होटल के मालिक ने ध्यान से उसकी तरफ देखा और कहा- 'ठीक है, आओ । तुम पहले खाना खाकर आराम कर लो और फिर काम पर लग जाना।' लिप्टन ने कहा, 'नहीं, पहले काम फिर आराम।' लिप्टन होटल से निकल कर सीधा समुद्र के तट पर पहुँचा । वहाँ स्टीमर से यात्री उतर रहे थे । वह उनके पास गया और बोला, 'साहब आप हमारे होटल चलें, होटल पुराना अवश्य है, पर वहाँ की सुविधाएँ बेजोड़ हैं। वहाँ के कर्मचारियों का आतिथ्य सत्कार, खाना, साफ-सफाई सभी बहुत सुंदर हैं। आप को तो सेवाओं से ही प्रयोजन है ना।' इस प्रकार अपने मधुर व्यवहार से उसने यात्रियों को वहाँ से ले जाने को राजी कर लिया। वह चालीस यात्रियों को होटल पर लेकर पहुँचा । उसने उन यात्रियों की बड़े मनोयोग के साथ सेवा की। यात्री प्रसन्न हो गये और इस तरह सिलसिला चलता रहा। जाते समय यात्री उसे इनाम दे जाते और होटल के मालिक का मुनाफा भी बढ़ गया। धीरे-धीरे लिप्टन ने उसी गाँव के चाय के बागानों को आपकी सफलता आपके हाथ ३२ For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरीद लिया और आज उसी के नाम से पूरे विश्व में 'लिप्टन टी' बिक रही है। अर्थात् कड़ी मेहनत ही आदमी को अच्छे परिणाम देती है। आपने 'निरमा वाशिंग पाउडर' का नाम सुना होगा? बात उस समय की है जब हम अहमदाबाद में थे। उस समय निरमा पाउडर का मालिक केलिको मिल का वॉशिंग लिक्विड माटी के घड़े में भरकर, हाथ ठेलागाड़ी में आता और एक रुपए की एक बोतल के हिसाब से उसे बेचता। मेरी समझ से इस बात को पच्चीस-तीस बरस हुए होंगे। वह मुझसे भी पांच-छ: बार मुखातिब हुआ था। जो व्यक्ति केलिको मिल का कपड़े धोने के बाद बचा हुआ लिक्विड बेचा करता था, आज पूरे भारत में उसका 'निरमा पाउडर' बिक रहा है। यह उस व्यक्ति की कड़ी मेहनत, प्रबल इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है। जीवन में यदि कामयाबियाँ हासिल करनी हैं तो कुछ बुनियादी उसूलों को हर पल जीना होगा। उन्हीं उसलों में एक है सकारात्मक नजरिया। हम अपनी सोच और नजरिये को सदा सकारात्मक रखें। नजरिया जितना बेहतर और रचनात्मक होगा, आप अपने लक्ष्य के उतने ही करीब पहुँच सकेंगे। ___ सफलताएँ नजरिए का ही परिणाम होती हैं। जितना ऊँचा लक्ष्य, उतनी अधिक सफलता। देखिए नजरिए-नजरिए के फर्क को । एक व्यक्ति मकान बना रहा था। सामने से दूसरा व्यक्ति गुजरा। उसने पूछा- क्यों भाई जान! क्या कर रहे हो?' उसने जवाब दिया-'रोटी-रोजी की व्यवस्था कर रहा हूँ।' प्रश्नकर्ता ने यही प्रश्न दूसरे व्यक्ति से पूछा। उसने उत्तर दिया'साहब, मकान बना रहा हूँ।' प्रश्नकर्ता ने यही सवाल तीसरे व्यक्ति से किया तो उसने उत्तर दिया- 'एक सुन्दर इमारत बना रहा हूँ।' कार्य तो एक ही है किन्तु जवाब अलग-अलग है। यह भिन्नता नजरिए के फर्क के कारण ही है। जो व्यक्ति यह सोचता है कि रोजी-रोटी की व्यवस्था कर रहा हूँ, वह व्यक्ति शाम को सौ या डेढ़ सौ रुपये से ज्यादा लेकर नहीं पहुँचेगा। जो यह सोचकर काम कर रहा है कि मकान बना रहा हूँ, वह दो या तीन सौ रुपये कमा लेगा। लेकिन जो यह सोचता है कि एक सुंदर इमारत बना रहा हूँ, वह निश्चित ही क्या करें कामयाबी के लिए? ३३ For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई आर्कीटेक्ट व्यक्ति है । उसकी यह ऊँची सोच ही उसे ऊँचे शिखरों तक ले जाएगी। अपनी सोच को विशाल रखो और अपना नजरिये को बेहतर बनाओ । अपना आदर्श किसी अच्छे व्यक्ति को बनाओ । व्यक्ति की एक सहज प्रवृत्ति होती है ईर्ष्या की । वह और किसी से नहीं तो अपने पड़ौसी से ही ईर्ष्या करेगा कि मेरा मकान एक मंजिल का है जबकि पड़ौसी का मकान तिमंज़िला है । पर सोचो कि इस ईर्ष्या से तुम्हें क्या हासिल होगा? ज्यादा से ज्यादा यह कि तुम अपने घर को उसके घर जैसा बना लोगे । यदि ईर्ष्या करनी ही है तो किसी टाटा, बिरला से करो ताकि तुम ऊँचे उठो तो दुनिया को पता तो लगे । ईर्ष्या करनी है तो मुझसे नहीं, किसी महावीर, राम या कृष्ण से करो ताकि यदि राम न बन पाए तो कम कम तुलसी तो बन ही जाएँगे, कृष्ण तक न पहुँच पाए तो क्या, कबीर तक तो पहुँच ही जाएँगे। आदर्श ऊँचे रखें। सफलताएँ, असफलताओं से ही जन्म लेती हैं। गुलाब उगने से पहले दस-दस कांटे उग आते हैं। याद रखिए, बिना चट्टानों को पार किए झरनों तक नहीं पहुँचा जा सकता । बिना बाधाओं के सफलता नहीं मिलती। लोग आलोचना करेंगे, टिप्पणी करेंगे, चुनौती देंगे और चलते हुए को लंगड़ी देकर भी गिराएँगे । तुम सोच लो कि तुम्हें क्या करना है ? सुननी सबकी है पर करनी अपने मन की है । अपना खुद का फैसला आप खुद करें। एक बार एक व्यक्ति मरणासन्न था । उसके निकट खड़े, पुत्र ने पूछा- 'पिताजी, आप यह तो बताते जाइए कि अपनी इस बिटिया का विवाह कहाँ किससे करना है?' पिता ने कहा- 'बेटा । अभी तो यह बहुत छोटी है। मैं इसके लिए जो वर बताऊँ, वह तब तक तुम्हारा हमदर्द रहे या न रहे। तुम ऐसा करना कि विवाह का समय आए तब हरिजन काका से सलाह कर लेना ।' पिता मर गया, समय आने पर लड़की बड़ी हुई। बेटे को पिता की बात याद थी। उसने हरिजन काका को, जो कि सफाईकर्मी था, बुलाकर आपकी सफलता आपके हाथ ३४ For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूछा- 'बिटिया अब बड़ी हो गई है, इसके लिए कोई योग्य वर बताओ।' वह हरिजन आश्चर्यचकित था। उसने सोचा कि इतना बड़ा व्यक्ति मुझसे क्यों सलाह ले रहा है? फिर भी उसने कहा, 'बताऊँगा'। दस दिन बीत गये। पुत्र ने फिर हरिजन से पूछा- 'क्यों काका, कोई रिश्ता देखा?' उसने जवाब दिया-'नहीं साहब, कोई खास रिश्ता तो ध्यान में नहीं आ रहा है। वैसे एक रिश्ता मेरी नजर में है। मेरे दामाद का भाई है। अच्छा कमाता खाता है। यह सुनते ही वह व्यक्ति गुस्से से भर उठा और बोला-'तेरी यह हिम्मत कि तृ मुझे ऐसे रिश्ते दिखाता है। मेरे पिताजी ने तुझसे सलाह के लिए पता नहीं क्यों कहा?' काका बोले, 'शायद इसलिए कहा कि आप यह समझ सकें कि व्यक्ति को अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए और दूसरों की सलाह पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।' सही है। तुम जिनसे सलाह लोगे, वे अपने आस-पास के लोगों के बारे में ही तो बताएँगे। तुम कहोगे, 'साहब मेरी बेटी का ब्याह करना है तो वे लोग अपने ही काका, मामा या पड़ौसी के बारे में बताएँगे। अपने नजरिये को इतना बेहतर रखो कि अपने निर्णय तुम स्वयं ले सको और तुम्हें अन्य पर निर्भर नहीं रहना पड़े। मेरी समझ से, सफलता महज किसी संयोग या किस्मत का परिणाम नहीं होती। व्यक्ति का लक्ष्य, उसकी कार्ययोजना, दृढ मनोबल, इच्छाशक्ति, और बेहतर नजरिया ही वे बुनियादी उसूल हैं जो व्यक्ति का कदम-दर-कदम रास्ता साफ करते जाते हैं। सफलता न भी मिले तो कोई चिंता नहीं। फिर प्रयास करेंगे और प्रयास तब तक जारी रहेंगे जब तक कि सफल न हो जाएँ। हम फिर से आज आत्मविश्लेषण करें कि हमें अपनी कामयाबी कि लिए क्या करना है? तुम विद्यार्थी हो तो फीस जमा कराते वक्त ही यह निश्चय कर लो कि मुझे प्रथम स्थान पर ही आना है। प्रथम श्रेणी प्राप्त करना, कोई बड़ी बात नहीं है। जो व्यक्ति अपनी पचास प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है, वह प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है और जो अपनी सौ की सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर लेता है, वही टॉपर रहता है। क्या करें कामयाबी के लिए? ३५ For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जितना ऊँचा लक्ष्य, उतनी ऊँची सफलता । उतनी ही कड़ी मेहनत और वैसी ही कार्यपद्धति । अगर तुम शुरू से ही रैंक का मानस लेकर चलते हो तो अवश्य ही रैंक प्राप्त करोगे । फिर भी अगर प्रथम रैंक न पा सके, तो प्रथम श्रेणी से तो आपको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। आपको किस मुकाम पर पहुँचना है, इसका निर्णय आप स्वयं करें । व्यक्ति स्वयं का निर्णायक स्वयं बने | हाथ की लकीरों को देखने - दिखाने की बजाय अपने पुरुषार्थ और श्रम से अपने हाथ की रेखाएँ खुद खींचो । व्यक्ति स्वयं ही अपना भाग्य-निर्माता होता है। तुम ऐसा पुरुषार्थ करो कि भाग्य तुम्हारी हथेली पर 'इद्रप्रस्थ' का परिणाम लिख दे । I ३६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास हर इन्सान के भीतर इस बात की समझ और बोध होना चाहिए कि वह इस संसार की आवश्यकता है। प्रकृति अपनी तरफ से किसी भी ऐसी वस्तु का सृजन नहीं करती, जिसकी उपयोगिता और आवश्यकता न हो। गुलाब के फूल को प्यार करते समय हम काँटों को नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं जबकि वे काँटे तो गुलाब के लिए सुरक्षा-कवच का काम करते हैं। संसार में गुलाब के साथ-साथ कांटों की भी उपयोगिता है। कांटे हर आदमी की कसौटी है। __कोई व्यक्ति यह न समझे कि उसका जीवन व्यर्थ और निरर्थक है। जिस दिन से व्यक्ति पृथ्वी ग्रह के लिए अपनी आवश्यकता और उपयोगिता समझ लेगा, उसी दिन से वह मूल्यवान हो जाएगा। अपने जीवन को मूल्य प्रदान करना स्वयं व्यक्ति के हाथ में है। मैं इस पृथ्वी के लिए आवश्यक हूँ' जैसे ही यह भाव व्यक्ति के भीतर गहरे तक प्रविष्ट होगा, वैसे ही हम अपने व्यक्तित्व को बेहतर बनाने के लिए कमर कस ही लेंगे। आखिर एक मजबूत विचार और दृढ़ मानसिकता ही सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण करती है। For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन में व्यक्तित्व-निर्माण करना, किसी श्रेष्ठतम उपलब्धि से कम नहीं है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी शक्ति को, अपने शारीरिक व मानसिक बल को पहचाने । जीवन के प्रति सकारात्मक और बेहतर नजरिया अपना कर ही कोई व्यक्ति अपनी शक्तियों का उपयोग जीवन के विकास और व्यक्तित्व-निर्माण के लिए कर सकता है। ___ एक पुरानी कहावत है-'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' वह व्यक्ति हार ही गया जिसके मन में यह संदेह है कि वह हार सकता है। व्यक्ति का यह कुंठित विचार ही उसकी पराजय का पहला कारण बनता है। वहीं यदि कोई व्यक्ति यह विचार कर ले कि वह हर हालत में जीतेगा ही तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। जब कोई मैदान में उतरता है तो वहाँ एक नहीं, असंख्य प्रतिस्पर्धी होते हैं, पर जीतता एक ही है। क्या आपने उस विजेता की छाती को देखा है, उसके पुट्ठों को देखा है? मैं कहूँगा कि जीतने वाला शरीर की दृष्टि से उतना ही बलवान होता है जितना कि हारने वाला। शरीर से कोई व्यक्ति निर्बल है तो चल जाएगा पर मन से कमजोर रहने वाला व्यक्ति कभी भी अपनी जिन्दगी में कामयाबियों को हासिल नहीं कर सकता है। मजबूत शरीर और मजबूत मन ही श्रेष्ठ है। कमजोर शरीर और मजबूत मन फिर भी स्वीकार्य है पर मजबूत शरीर और कमजोर मन का साथ कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आज व्यक्ति के भीतर दुर्बलता घर कर चुकी है जिसने मन को जर्जर कर दिया है और जिसके फलस्वरूप निराशा, हताशा, अवसाद, निरुत्साह के राक्षसों से व्यक्ति घिर चुका है। अगर कोई व्यक्ति शरीर से बूढ़ा हो, पर उसके भीतर उत्साह, ऊर्जा, उमंग और आशा है तो वह अभी भी युवा है। उसके विपरीत यदि कोई युवक अपने अंदर हीनता की ग्रंथि को पाल चुका है, और उसके मन में निराशा और उत्साहहीनता है तो वह अल्पायु में ही बुढ़ापे के समान जी रहा है। अगर तुम किसी चीज को हारना या खोना नहीं चाहते हो तो अपने ३८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनोबल को किसी भी कीमत पर कम न होने दो। अगर व्यक्ति अपने उत्साह, ऊर्जा और विश्वास को बरकरार रखता है तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि उसे कभी शिकस्त नहीं मिलती। यदि उसे असफलता मिल भी जाए तो वह उसे पराजित नहीं कर पाती है। हर असफलता उसको सफलता की ओर बढ़ाने के लिए पीठ पर दी जाने वाली प्रेरणा की थपकी हो जाती है। कहते हैं, एक बार किसी 'दुग्ध-एकत्रण केंद्र' से डेयरी संयंत्र के लिए दूध के केन रवाना होने वाले थे। एक चंचल बच्चे ने दूध के उन केनों में मेंढ़क डाल दिए और ढक्कन बंद कर दिया। उन केनों में बंद मेंढकों में से एक ने सोचा कि यदि मैं प्रयत्न कर ढक्कन को खोल दूं तो मैं आजाद हो सकता हूँ। उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढक्कन भारी था अतः नहीं खुला। उसने केन के चारों सिरों पर दस-बीस चक्कर भी लगाए, पर वह बाहर निकलने का मार्ग नहीं पा सका। उसे लगा कि वह अब बाहर नहीं निकल पाएगा। उसका मनोबल टूट गया। उसके प्राण सिकुड़ते चले गये और वह दूध में डूबकर मर गया। दूसरे केन के मेंढक ने भी सोचा कि यदि मैं केन के ढक्कन को खोल लेता हूँ तो मैं मुक्त हो सकता हूँ। उसने केन के ढक्कन को खोलने का बहुत प्रयत्न किया, पर वह भी उसे खोल नहीं पाया। उसने भी केन के किनारे पर दस-पाँच चक्कर काटे पर उसे कोई मार्ग नहीं मिला। चूंकि केन दूध से भरा था इसलिए मेंढक को जीवन मुश्किल लग रहा था। यदि केन पानी की होती तो शायद उसे जिंदा रहने के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। कुछ क्षण बाद उस दूसरे मेंढक ने सोचा कि मुझे यहाँ से मुक्त होने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा है पर मैं अपने जीवन के अंतिम क्षण तक जीवन की आशा नहीं छोडूंगा और अपने पुरुषार्थ में कोई कमी नहीं आने दूंगा। उत्साह के दीप को जलाए रखते हुए, वह दूध में दो घण्टे तैरता रहा। उसका तैरना व्यर्थ न गया। उसके लगातार दूध में तैरते रहने से मंथन हुआ और मक्खन ऊपर आ गया जिससे वह मेंढक मक्खन पर बैठ गया। जब दूध की गाड़ी डेयरी संयंत्र पर पहुँची और केन का ढक्कन खोला गया तो मक्खन पर सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बैठा हुआ मेंढक फुदक कर मुक्त हवा में बाहर निकल आया। जो व्यक्ति हिम्मत हार चुका तो आप यह मानकर चलें कि वह गया नीचे तल में और डूबकर मर गया। और जिसने अपने मनोबल को मजबूत रखा, वह चाहे जिस दुविधा और संकट से घिर जाए, अपने को पार लगा ही लेगा। कष्ट किसे नहीं आते? बाधाएँ किसका रास्ता नहीं रोकती? पर कष्ट और बाधाओं को वे ही पार कर पाते हैं, जिनका मनोबल मजबूत होता है। शरीर कमजोर है तो चिंता न करें पर मन को कमजोर न होने दें। अगर आप में से कोई व्यक्ति विकलांग है, तो भी कोई चिंता की बात नहीं है, पर आप मन को विकलांग न होने दें। क्यों भूल जाते हैं हम ऐसे लोगों की प्रेरणाओं को जो शरीर की दृष्टि से कमजोर होने पर भी, अपने दृढ़ मनोबल के द्वारा दुनिया की श्रेष्ठतम उपलब्धियों को अर्जित कर चुके हैं। हम अपने देश के एक महान् संगीतकार की मिसाल लें, जिन्होंने नेत्रहीन होने के बावजूद संगीत के क्षेत्र में मील के पत्थर स्थापित किये हैं। उस व्यक्तित्व का नाम है- रवीन्द्र जैन। क्या आप जानते हैं कि जिस व्यक्ति ने विश्व को संगीत के उच्च कोटि के एल्बम दिए हैं, वह व्यक्ति बहरा था। उसका नाम था-बीथोवन । जिस व्यक्ति ने संसार की बेहतरीन कविताएँ रची थीं, वह अंधा था और उसका नाम था मार्टिन । मैं हिंदी के ही एक साहित्यकार का नाम लेना चाहता हूँ जो कि दोनों हाथों से अपंग थे, पर उन्होंने अपने पैरों के अंगूठों का प्रयोग करते हुए, सैंतीस किताबें रच डाली थीं। उनका नाम है डॉ० रघुवंश सहाय। मैं उस महिला को याद करना चाहूँगा जिसे मैं स्वयं पढ़ता हूँ। वह महिला अंधी, बहरी और मूक थी, पर उसने जो चिंतन-अमृत दिया है, उसे पाकर हम जैसे लोग भी सुकून पाते हैं। उस महिला का नाम था हेलन केलर । कैसे भुलाए जा सकते हैं वे जन्मांध सूरदास जिनके गीत और भजन पूरे भारत भर में बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ गाए जाते हैं। प्रकृति की तरफ से मिलने वाले अभाव चाहे अभाव ही क्यों न कहलाएँ पर यदि व्यक्ति अपने मनोबल को ढढ़ रखे तो उन अभावों पर भी विजय पाई जा सकती है। आपकी सफलता आपके हाथ ४० For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मविश्वास जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। आत्मविश्वास से बढ़कर व्यक्ति की कोई सम्पत्ति नहीं है, और न आत्मविश्वास से बढ़कर कोई मित्र होता है। इस मित्र को आप हर पल अपने साथ रखिए। यह आपको हर कदम पर सम्बल देगा। चाहे आप अध्ययन के क्षेत्र से जुड़े हों, चाहे व्यवसाय के क्षेत्र से जुड़े हों, हर क्षेत्र में आत्मविश्वास नाम का यह मित्र आपको सहायता प्रदान करेगा। आप पाएँगे कि आपका संकटमोचक हनुमान आपके साथ है। संकट के समय ही आदमी के धैर्य और संयम की परीक्षा होती है। उसी समय पता चलता है कि व्यक्ति अपनी ताकत के बल पर अपनी बाधाओं को कितना पार कर सकता है और उसमें कितना आत्मविश्वास है? आत्मविश्वास के बल पर ही कभी नेपोलियन जैसे लोगों ने कहा था कि, 'असम्भव जैसा शब्द मूर्ख लोगों के शब्दकोषों में मिलता है।' इसीलिए जब अल्पास की पहाड़ियों को पार करते हुए नेपोलियन एक बुढ़िया की झोपड़ी तक पहुँचता है तो उसे देखकर बुढ़िया कहती है- 'नेपोलियन ! अल्पास की इन पहाड़ियों को आज तक कोई पार नहीं कर सका है। सैकड़ों विश्वविजेताओं ने इन्हें पार करने का प्रयत्न किया है, पर सब पहाड़ियों में ही दब कर मर गये।' तब नेपोलियन ने आत्मविश्वास को जगाने का यह शंखनाद कर डाला था- 'बूढ़ी अम्मा, दुनिया में ऐसी कौन-सी पहाड़ियाँ हैं, जिन्हें नेपोलियन पार करना चाहे और पार न कर सके? बुढ़िया ने नेपोलियन को ध्यान से देखा, उसके आत्मविश्वास को देखा, उसकी छाती को देखा और उसके उत्साह पर निगाह डाली और कहा- 'नेपोलियन, भले ही दुनिया का बड़े से बड़ा विश्वविजेता अल्पास की इन पहाड़ियों को पार न कर सका हो , पर तेरा आत्मविश्वास और दृढ़ मनोबल तुझे अल्पास की इन पहाड़ियों को तो क्या, इनसे भी कहीं अधिक दुर्गम पहाड़ियों को पार कराएगा।' यह आत्मविश्वास ही था जिसने तेनजिंग और हिलेरी को हिमालय के शिखर का स्पर्श कराया। हाँ, यह आत्मविश्वास की ही ताकत है कि कभी कोलम्बस सात समंदर पार कर भारत की खोज में निकल गया था और पियरे सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ४१ For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने उत्तरी ध्रुव की खोज की थी। यह आत्मविश्वास का ही बल था कि गैलिलियो ने कभी झूलते हुए लैम्पों का आविष्कार किया था और शिवाजी ने मात्र सोलह वर्ष की उम्र में अपनी ज़िन्दगी का पहला किला फ़तह किया था। जिस शख्स के नाम पर अमेरिका की राजधानी का नाम वाशिंगटन रखा गया, क्या आप उसके बारे में जानते हैं? यह वह व्यक्ति था जिसने मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में सेनापति का पद संभाल लिया था और केवल इक्कीस वर्ष की अल्प आयु में ही वह दुनिया से चल बसा। जब वह मरा था तब उसने आधी दुनिया को जीत लिया था। आदमी जो चाहे और उसे कर न पाये, ऐसा कैसे सम्भव है? अगर कमजोरी है तो वह तुम्हारे मन में है। मन को मजबूत करो और जो चाहो सो पाओ। यदि व्यक्ति पूरे साल पढ़ाई करे और असफल रहे तो मैं कहूँगा कि उसका कारण व्यक्ति के मन का संदेह है। वह लगातार यही सोचता रहता है कि मैं कहीं फेल न हो जाऊँ। जो व्यक्ति रोता हुआ जाता है, वह मौत का समाचार ही लेकर आता है। अगर किसी को कहा जाता है कि एक ताजी ब्रेड लाना और वह जवाब में कहता है- 'कि ताजी नहीं मिली तो क्या करूँ?' तो उसका ब्रेड लाना संदेहास्पद है। ताजी और बासी की बात तो दुकान पहुँचने के बाद समझने की थी। जिस व्यक्ति ने कार्य के शुरू में ही सवालिया निशान लगा दिया है, वह कभी कार्य को सफलता से नहीं कर सकता। उसे तो बासी ब्रेड ही नसीब होगी। अगर उसे ताजी ब्रेड मिल भी जाए तो भी उसके मन का संदेह तो बना ही रहेगा कि कहीं यह बासी तो नहीं है?' घर आकर जब पापा पूछेगे कि 'बेटा, ब्रेड ताजी तो है न;' तब उसके मन का संदेह उसे जवाब भी नहीं देने देगा। वह कहेगा कि 'उसने तो ताजी ही कहा है' पर...। उसकी वाणी कमजोर हो जाएगी, जुबान बोल न सकेगी, क्योंकि उसका मन कमजोर हो गया है। जिसका अपने आप पर यकीन नहीं, उसकी जिंदगी हसीन नहीं। जो अपने आप पर विश्वास नहीं रखता है, वह कभी आस्तिक नहीं हो सकता। वह व्यक्ति नास्तिक है। मैं कहना चाहूँगा कि विश्वास करो अपने आप पर। ४२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है ! हर व्यक्ति को अति सम्पन्न बना कर भेजा है । यहाँ कोई व्यक्ति गरीब नहीं है । यदि तुम्हारे मन में हीनता की यह ग्रंथि पनप गई है कि मैं गरीब हूँ तो मैं कहता हूँ, 'तुम अपनी एक टाँग मुझे दे दो । तुम्हें एक लाख रुपए मिल जाएँगे। तुम अपना एक गुर्दा दे दो, तुम्हें दो लाख रुपये मिल जाएँगे। तुम अपना दिल बेच दो, तुम्हें पाँच लाख रुपये मिल जाएँगे। तुम अपनी एक आँख दे दो दुनिया तुम्हें दस लाख रुपये दे सकती है।' तुम्हें प्रकृति ने मालदार बनाया है फिर तुम्हारे मन में हीनता की ग्रंथि क्यों है? " एक बहुत प्रसिद्ध पहलवान हुए, जिनका नाम था ओनामी । वह जापान के नामी सूमो पहलवान थे। उनके जीवन का एक प्रसंग है । कहते हैं, जब ओनामी घर के अखाड़े में उतरता था तो सबको धूल चटा देता था । लेकिन जब वही अनामी जनता के सामने अखाड़े में उतरता तो वह अपने चेले-चपाटों से भी हार जाता था । आखिरकार ओनामी ने एक झेन टीचर की तलाश की, जिसका नाम था हाकूइन । उसने हाकूइन को अपनी समस्या बताई । हाकून ने कहा- 'अरे, तुम ऐसा सोचते हो ! तुम तो सागर की एक महान् तरंग हो । चलो, मैं तुम्हें तुम्हारी शक्ति देता हूँ।' ऐसा कहते हुए वह उस पहलवान को अपने ध्यानकक्ष में ले गया और उससे कहा- ‘तुम यहाँ बैठो और अपनी पलकें झुकाकर लगातार इस तत्त्व को अपने भीतर देखो और पहचानो कि तुम सागर की महातरंग हो । ' ओनामी बैठ गया, पर उसे लगा कि उसे कुछ भी नहीं मिल रहा है और उसके दिमाग में फालतू विचार ही आ रहे हैं । पर जैसे ही वह उठने की सोचता, उतने में हाकूइन आ जाते और कहते- 'यू आर ए ग्रेट वेव, तुम तो सागर की महातरंग हो । ' ऐसा करते-करते एक घण्टा बीत गया। दो घण्टे बीते और पूरे चार पहर बीत गये। अब हाकूइन ओनामी को फिर ध्यानकक्ष में देखने आये । उन्होंने पाया कि अब उसके चेहरे पर एक दिव्य आभा उभर आई है। हाकूइन ने अपने ध्यान में देखा कि वह हकीकत में सागर की महातरंग बन चुका है, जिसकी चपेट में यह सराय, यह मठ, गांव, देश और दुनिया सब कुछ आ सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ४३ For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुके हैं। हाकूइन ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- 'जाओ, अब मैं देखता हूँ कि तुम्हें कौन हरा सकता है?' हाकूइन ने उसे कुछ भी नहीं दिया पर अपने शब्दों और वाणी से उसके खोए हुए आत्मविश्वास को लौटा दिया। कहते हैं कि तब उस सूमो पहलवान को परास्त करने वाला दूसरा कोई जन्म न ले पाया। अगर आप अपने भीतर आत्मविश्वास को जाग्रत करना चाहते हैं, अपने मनोबल को दृढ़ करना चाहते हैं तो पहले अपने मन को पहचानें । देखें कि कहीं उसमें कोई हीनता की ग्रंथि तो नहीं पनप रही है। सम्भव है कि आप अपने मन में यह सोचते हों कि मैं गरीब हूँ, मैं भला क्या कर सकता हूँ, या मैं तो विकलांग हूँ, मैं क्या कर सकता हूँ, या मैं बदसूरत हूँ मुझे कौन चाहेगा? पता नहीं, यह हीनता की भावना कब किसमें और किस रूप में घर कर जाए? गरीब होना कोई पाप नहीं है, बल्कि अपने मन में गरीबी के कारण हीनता रखना पाप है। अगर आप त्याग कर सकते हैं तो हीनता की उस भावना का त्याग कीजिए। कभी यह न सोचें कि मै छोटा हूँ, मैं तुच्छ हूँ और मेरा कोई वजूद नहीं है। बड़ा सोचिए, व्यापक सोचिए, बड़े बनिए। बच्चों में हीनभावना बचपन से ही घर कर जाती है। माता-पिता बात-बात पर बच्चे को डांटते हैं, फटकारते हैं और 'गधा', 'नालायक', 'मूर्ख' जैसे न जाने कौन-कौनसे विशेषण उसे नहीं देते? भले ही ऐसी बातें गुस्से में कही जाएँ या मजाक- मजाक में किन्तु बच्चों पर उनका बहुत बुरा असर होता है। वह सोचता है कि मेरे पापा मुझे 'भौंदू' कहते हैं तो क्या सचमुच मैं भौंदू हूँ? मैं क्या कर सकता हूँ? उसके मन में हीनता की ग्रंथि पनपने लगती है। आपके द्वारा कहे गये ये छोटे से शब्द, उसके भविष्य को चौपट कर देते हैं और उसका मानसिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। कोई लड़का यदि काला है तो सारे घर वाले उसे 'कालू-कालू' कहेंगे। अगर बच्चा काला है तो उसमें उसका दोष नहीं है । वह तो आपकी ही कृति है। फिर क्यों उसको 'कालू-कालू' कहकर उपेक्षित किया जाए? क्यों उसके मन में हीनता की भावना को जन्म दिया जाय? आखिर कोई भी ___ आपकी सफलता आपके हाथ ४४ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति जाति, रंग और रूप के आधार पर महान् नहीं होता। व्यक्ति तो अपने कर्मों के कारण ही महान बनता है। व्यक्ति सुंदर कार्य करने से ही सुंदर बनता है। क्या कभी ध्यान दिया है कि राजा रणजीतसिंह भी एक आंख से काने थे। प्रसिद्ध साहित्यकार मलिक मोहम्मद जायसी काले-कलूटे और कुरूप थे। कुरूप होना कोई पाप नहीं है। यह तो प्रकृति-प्रदत्त है। यह तो उस व्यक्ति के लिए एक बहुत अच्छी चुनौती है कि वह अपने कार्यों को उतनी श्रेष्ठता दे कि प्रकृति द्वारा किये गये खिलवाड़ को वह नाकाम साबित कर दे और दुनिया में उसकी अपने कार्यों के बल पर अलग पहचान कायम हो। हमारे एक बहुत अज़ीज़ डॉक्टर हैं, लेकिन उनके जीवन में सबसे मुख्य बात यह है कि वे काले-कलूटे हैं। उनके चेहरे पर चेचक के दाग हैं और नाक भी भौंदी है। वहीं उनकी बीवी इतनी सुंदर है कि यदि कोई दोनों पति-पत्नी को एक साथ देखे तो भ्रम में पड़ जाएगा कि ये दोनों वाकई में पति-पत्नी हैं? चूंकि वे हमारे करीबी परिचित थे, इसलिए एक दिन मैंने उस महिला से पूछा- 'बहन, क्या शादी के पहले आपने एक-दूसरे को देखा था?' महिला ने जवाब दिया-'अवश्य देखा था।' मैंने पूछा- क्या आपने दूसरी शादी की है?' उसने जवाब दिया-'जी नहीं, यह मेरी पहली शादी है।' मैंने फिर पूछा- 'तो क्या आप किसी गरीब परिवार से सम्बन्ध रखती हैं?' उसने कहा- 'नहीं, मेरा पीहर पक्ष भी सम्पन्न है।' मैंने पूछा- 'फिर क्या कारण रहा कि जिसके चलते आपने ऐसे व्यक्ति से शादी की?' उस महिला ने जो जवाब दिया, मै चाहता हूँ कि दुनिया का हर व्यक्ति उस जवाब से रूब-रू हो। उस महिला ने कहा, प्रभु, मैंने इस आदमी की सूरत से नहीं बल्कि सीरत से शादी की है। इस व्यक्ति की प्रकृति और स्वभाव इतना निर्मल है कि मैं आज भी स्वयं को धन्य समझती हूँ कि मैंने इनको पाया। इतना नेक, सरल, सौम्य व्यक्ति मिलना मुश्किल है।' सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ४५ For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने अपनी जिज्ञासा डॉक्टर साहब के समक्ष भी रखी और पूछा'क्या आपको अपने काले रंग और भौंदी नाक को लेकर मलाल नहीं हुआ ?' उस व्यक्ति ने कहा- ‘साहब, बचपन में मुझे सब 'कालू' और 'भौंदू' कहकर ही पुकारते थे। उनके वे शब्द सुनकर मुझे दुःख तो बहुत होता था पर मैंने उस समय ही दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मैं अपने व्यक्तित्व को इतना महान् बनाऊँगा कि मेरी कुरूपता गौण हो जाए। मेरी उस सुदृढ़ मानसिकता ने ही मुझे आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनाया। सुन्दर वह नहीं होता जिसके नैन-नक्श सुंदर होते हैं । सुन्दर वह होता है जिसके कार्य सुन्दर होते हैं । अपनी योग्यता पर अविश्वास करना, अपने बारे में गलत धारणाएँ बना लेना, अपनी शक्ति का कम आकलन करना, यही हीनता की भावना है। अगर आपके मन में यह भावना घर कर गई है, तो उसे निकाल फेंकिए। यह मत सोचिए कि मैं गरीब हूँ । भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, गरीब घर में जन्मे थे। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन एक गरीब परिवार से सम्बन्ध रखते थे। हमारे देश के मौजूदा राष्ट्रपति डॉ० अब्दुल कलाम तो इस बात को तहेदिल से स्वीकार करते हैं कि उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता। वे बच्चों के द्वारा खाई हुई इमली के बीज बटोर कर परचूनी की दूकान पर बेचते और उन पैसों से अपनी पाठ्य पुस्तकें खरीदते । यह व्यक्ति इतनी दयनीय स्थिति से गुजरा है, लेकिन उस व्यक्ति ने अपने मनोबल को, अपने आत्मविश्वास को, अपने सपनों को सदैव ऊंचा रखा । क्या यह कम महत्त्वपूर्ण बात है कि किसी दलगत राजनीति से सम्बन्ध न रखने के बावजूद भी पूरा देश उनके पक्ष में है और वे देश के सर्वोच्च पद से सम्मानित हैं । अपने पर भरोसा रखो और अपने काम पर यकीन रखो, तुम अपनी शक्ति को, संकल्पशक्ति को मजबूत बनाओ। आपको मैं फिर याद दिलाता हूँ कि कमजोर मन नहीं चलेगा। अपने मन को मजबूत बनाओ। खेल जगत में रुचि रखने वाले रूडोल्फ के नाम से आप सभी अच्छी तरह परिचित हैं । आप आपकी सफलता आपके हाथ ४६ For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जानते हैं कि किस प्रकार इस महिला ने शारीरिक अक्षमता को अपने दृढ़ मनोबल से दरकिनार करते हुए विश्व ओलम्पिक में तीन-तीन पदक जीते थे। अगर सचिन तेंदुलकर जीतकर आता है तो मात्र अपने बल्ले की ताकत से नहीं, वरन् अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के कारण जीतकर आता है। व्यक्ति की जीत के पीछे एक रूहानी ताकत काम करती है। यह मत समझना कि यह ताकत किसी आसमान से टपकेगी या किसी पाताल को तोड़कर आयेगी। यह ताकत तुम्हारे आत्मविश्वास और दृढ़ मनोबल से जन्म लेगी। पर इसके लिए तुम्हें अपनी ऊर्जा को सार्थकता देनी होगी। अगर व्यक्ति असफल रहता है तो उसका कारण यह है कि उसने अपनी ऊर्जा का केवल पच्चीस प्रतिशत ही उपयोग किया है। लेकिन जो व्यक्ति सफलता की ऊँचाइयों को अर्जित करते हैं, वे अपनी सौ की सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग अपने लक्ष्य के प्रति करते हैं। ऐसे ही लोग बिल गेट्स और बिड़ला की कतार में खड़े होते हैं। शेर को पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। अगर वह गुफा में अपने मुँह को खोलकर इस आशा में बैठ जाए कि हिरण स्वयं आकर उसके मुँह में प्रविष्ट होगा तो यह उसकी खामख्याली है। बिना पुरुषार्थ के एक हिरण तो क्या, एक मक्खी भी स्वयं उसके मुँह में प्रवेश नहीं करेगी। कुछ पाना है तो पुरुषार्थ और कठिन परिश्रम करना ही होगा। तुम तो अपनी ओर से लगातार प्रयास में लगे रहो, देर-सवेर तुम्हारी मेहनत जरूर रंग लाएगी। महाभारत की एक घटना है। एक बार भीम को आधी रात में भूख लग गई। वे उसी समय खाने की तलाश में रसोईघर में पहुँच गए। दूसरी तरफ उन्हें शयनकक्ष में न पाकर अर्जुन दुखी हो उठा और वह उन्हें खोजने लगा। खोजते-खोजते वह रसोईघर में पहुँचा । वहाँ घनघोर अन्धकार था, पर अर्जुन को कुछ चबाने की आवाज सुनाई दी। वह समझ गया कि वह भीम ही होगा। अर्जुन ने पुकारा-'भीम'। भीम ने कहा-'हाँ भैया।' अर्जुन ने पूछा- 'इतने अन्धकार में तुम क्या कर रहे हो?' भीम ने जवाब दियासफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ४७. For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‘भोजन कर रहा हूँ।' अर्जुन चकित होकर कहने लगा- 'इतने अन्धकार में जहाँ हाथ को हाथ नहीं दिख रहा है, क्या तुम भोजन कर रहे हो? क्या तुम्हारा कौर मुख की बजाय नाक में नहीं जा रहा है?' भीम ने कहा-'नहीं भैय्या, मेरा कौर सीधा मुख में ही जा रहा है।' इसका कारण भीम को खाने का लगातार अभ्यास ही रहा होगा। अर्जुन को सफलता का सूत्र हाथ लग गया था। वह आधी रात को ही तीर लेकर निशाना साधने निकल पड़ा। घोर अन्धकार होने पर भी उसके लगातार प्रयास के कारण तीर निशाने पर लगने लगे । गुरु द्रोणाचार्य उसकी दक्षता को देख कर पूछने लगे- 'इतने अंधकार में भी लक्ष्य- संधान! तुम्हारे इस कौशल का रहस्य क्या है?' अर्जुन ने कहा- 'गुरुवर, लगातार अभ्यास ही मेरी कुशलता का रहस्य है।' इस रहस्य को मंत्र मानकर आप भी इसे आत्मसात् कीजिए। अगर आप कुछ स्वीकार कर सकते हैं तो मैं कहूँगा कि आप मेरे शब्दों को चुनौती मानकर स्वीकार कर लें। आप अपने अंदर एक ऐसा विश्वास, संकल्प और मनोबल पैदा कर लें कि मेरे शब्द आपको चुनौती लग सकें । चुनौती को स्वीकार करना तो आना ही चाहिए। आज सुबह ही वीरेन्द्र नाम के एक सज्जन मुझे बता रहे थे कि बचपन में उन्हें किसी ने कहा था कि यह तो बनिये का बेटा है, भला यह बॉक्सिंग करना क्या जाने? उस व्यक्ति ने उन शब्दों को चुनौती मानकर स्वीकार कर लिया और आज वह व्यक्ति राज्यस्तरीय बॉक्सिंग चैम्पियन है। चैंपियन बनना है तो चुनौती को स्वीकार करना सीखो। अपने भीतर जज्बा पैदा करो। एक प्रेरक घटना कालिदास से जुड़ी है। कालिदास संस्कृत साहित्य के आधारस्तंभों में से एक हैं, लेकिन शुरू से ही वे प्रतिभावान न थे। तब वे एक साधारण गड़रिये थे। कालिदास के श्वसुर ने यह मन में निश्चय कर रखा था कि मैं अपनी बेटी की शादी किसी महामूर्ख से करूँगा ताकि मेरी बेटी को अपने ज्ञान पर जो घमण्ड है, वह टूट सके। ४८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन कालिदास के श्वसुर जंगल के रास्ते से जा रहे थे कि उनकी नजर पेड़ पर बैठे हुए कालिदास पर पड़ी। कालिदास उस समय जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे । उन्हें लगा कि इससे अधिक मूर्ख तो कहीं नहीं मिलेगा। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कालिदास के साथ कर दिया। कालिदास के पिता ने उसे समझा दिया था कि तुम्हारी पत्नी बहुत ज्ञानी और विदुषी है। उससे कभी बहस मत करना । कालिदास की पत्नी ने कालिदास को संस्कृत पढ़ाने की बहुत कोशिश की पर पढ़ना तो दूर, वह तो सही उच्चारण भी नहीं सीख पाया । अन्त में वह समझ गई कि उसका पति निरक्षर और महामूर्ख है । एक दिन पत्नी ने कालिदास को गुस्से में कहा- 'जाओ, इस घर से निकल जाओ। मुझे अपनी सूरत तभी दिखाना, जब तुम मेरे समान ज्ञानी हो जाओ ।' पत्नी के इन शब्दों ने कालिदास की आत्मा को भीतर तक झकझोर दिया। उसने घर से प्रस्थान करते हुए यह निश्चय कर लिया कि 'अब मैं हर हालत में ज्ञान अर्जित करके ही रहूँगा ।' बत्तीस वर्ष की उम्र में कालिदास ने ज्ञान-अर्जन करना आरम्भ कर दिया । माँ सरस्वती के वरदान से उन्होंने कालजयी महाकाव्यों की रचना कर इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। कालिदास ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उन्होंने चुनौती को स्वीकार किया था। आप भी चुनौतियों को स्वीकार करना सीखें। हर क्षण अपने भीतर उत्साह बनाए रखो । जब भी तुम्हें लगे कि तुम्हें अपनी याद हो आई है तो तुम अपने भीतर एक उत्साह, एक उमंग जगा लो । ऐसा लगे कि जैसे तुम्हें अभी-अभी कोई खुशी मिली है। जब व्यक्ति घर से बाहर निकलता है तो यह सोचता है कि बाँया पैर पहले रखूँ या दाँया, 'सूर्य स्वर' चल रहा है या ‘चन्द्र स्वर' | कैसे शकुन मिले हैं, अच्छे या बुरे? पर मैं कहना चाहूँगा कि व्यक्ति बाहर निकलते समय सबसे पहले यह देखे कि मेरे भीतर उत्साह, उमंग और उल्लास है या नहीं। अगर मन में खुशियाँ भरकर घर से निकले तो हर अपशकुन भी तुम्हारे लिए शकुन में बदलता चला सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास For Personal & Private Use Only ४९ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाएगा। तुम अपनी जेब में हमेशा ऐसे सिक्के रखो जिनके दोनों तरफ खुशी हो । ऊपर उछाला, चित्त आ गया तो भी खुशी और पट आ गया तो भी खुशी । तुम आईने के पास जाते हो और तुम्हें तुम्हारा चेहरा सुहाना नहीं लगता है। मैं कहता हूँ कि आइने को मत बदलो । आईने को बदलने से चेहरे नहीं बदलते हैं । यदि तुम अपना चेहरा बदलना चाहते हो तो अपनी मनोदशा बदलकर चेहरा देखो। तुम्हें आईना अपने आप बदला हुआ दिखाई देगा । तुम्हारी अपनी मानसिकता में जो दुःख, रुदन, क्रोघ, और भय भरा है, उसे दूर हटाकर आईने को देखो। खिलखिलाते हुए, प्रसन्न और उमंग से भर कर यदि तुम आईने को देखोगे तो आईना भी मुस्कुरा उठेगा, दमक उठेगा। 1 यहाँ पास में ही एक स्कूल है जहाँ पर माता-पिता अपने बच्चे को रोज छोड़ने आया करते हैं । वे अलग होते समय एक-दूसरे को गिफ्ट भी दिया करते हैं। वह गिफ्ट यह होता है कि पहले वे अपने बच्चे के हाथ चूमते है और बच्चा भी अपने माँ बाप के हाथ चूमता है। माँ-बाप द्वारा हाथ चूमने के बाद बच्चा अपनी मुट्ठी को बंद करता है और उसे अपनी जेब में ऐसे डाल देता है कि जैसे उसमें कुछ भर रहा हो। माँ बाप चले जाते हैं और बच्चा पढ़ने लग जाता है, पर पढ़ते-पढ़ते उस छोटे से बच्चे को जैसे ही अपने माँ बाप की याद आती है, वह तुरन्त अपना हाथ जेब में डालकर बाहर निकालता है, हाथों का एक चुम्बन लेता है और फिर पढ़ने में मस्त हो जाता है । उस बच्चे की एक शिक्षिका उसे रोज ऐसा करते हुए देखती थी। एक दिन उस शिक्षिका ने उस बच्चे से पूछ ही लिया - 'बेटा, तुम यह रोज-रोज क्या करते हो? अपना हाथ जेब में डालते हो, उस हाथ को चूमते हो और फिर पढ़ने लग जाते हो ।' बच्चे ने कहा, 'मेडम, मेरी यह जेब पूरी भरी हुई है, टोफियों से नहीं बल्कि मेरे मम्मी-पापा के चुम्बनों से। जब मुझे उनकी याद सताती है तो मैं अपना हाथ डालकर उनका चुम्बन निकालता हूँ और बड़े प्यार से अपने हाथों को चूमता हूँ । तब मुझे वही सुकून मिलता है जो मम्मी-पापा द्वारा मेरे हाथ चूमने पर मिलता है।' कितना खूबसूरत भाव है आपकी सफलता आपके हाथ ५० For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह ! एक क्षण में ही व्यक्ति के भीतर आनंद का संचार हो जाता है। मैं फिर कहता हूँ कि तुम कोई भी तरीका अपनाओ पर तुम हर क्षण उत्साह और उमंग से भरे रहो। किताब को खोलने से पहले अपने विश्वास को जगा लो। उसके बाद किताब खोलो। मंदिर जाने से पहले अपनी श्रद्धा और विश्वास को दृढ़ बनाओ, फिर मंदिर जाओ। दूकान खोलने से पहले, विश्वास की चाबी अपने पास रखो। आत्मविश्वास से बढ़कर सफलता का कोई मंत्र नहीं होता है और न ही आत्मविश्वास से बढ़कर सफलता की कोई अन्य सीढ़ी होती है। __ आत्मविश्वास ही संकटमोचक हनुमान है। आत्मविश्वास ही हर परिस्थिति में सम्बल देने वाला मंत्र है। सकारात्मक सोच, बेहतर नजरिया और आत्मविश्वास ही व्यक्ति को सफलता की पराकाष्ठाओं तक ले जाते हैं। हम हर क्षण आत्मविश्वास को जगाए रखें। यह अपने आप में जीवन की अनुपम शक्ति है। हर सफलता की बुनियाद, हर निराशा की आशा, बाहर के अंधेरे में भी भीतर जगमगाने वाला चिराग और सितारा आत्मविश्वास ही होता है। 'यू आर ए ग्रेट वेव!' तुम सागर की महातरंग हो । खुद को पहचानो, सोया विश्वास जगाओ। हनुमान का सोया विश्वास जगा दिया गया, तो वह अथाह सागर को पार कर लंका पहुँचने में सफल रहे। नेपोलियन ने अपने शब्दों से सेना में वह विश्वास भर दिया था कि अल्पास की दुर्गम पहाड़ियाँ भी पार हो गईं। आप अपने बारे में सोचिए और देखिए कि आप क्या कर सकते हैं! हर रोज उगता सूरज हमें यही प्रेरणा देता है कि फिर से प्रयत्न करो। जीवन में कुछ करना है, तो मन को मारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो॥ सफलता के लिए जगाएँ आत्मविश्वास ५१ For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ चलने वाला मंज़िल पाता, बैठा, पीछे रहता है। ठहरा पानी सड़ने लगता, बहता निर्मल होता है । पाँव दिये चलने की खातिर, पाँव पसारे मत बैठो ॥ तेज दौड़ने वाला खरहा दुपहर चलकर हार गया । धीरे-धीरे चलकर कछुआ, देखो बाजी मार गया। चलो कदम से कदम मिलाकर दूर किनारे मत बैठो | बैठे कि तालाब बने, चलने लगे कि नदिया हुए। रुके कि बाजी हारे, चलते रहे तो जीत जाओगे । भला, जब धरती, तारे, चाँद, सूरज सभी गतिमान हैं, फिर हम ही क्यों मायूस बैठे हैं। आत्मविश्वास की शक्ति जगाओ । गतिशील और क्रियाशील बनो, लक्ष्य को फिर से आँखों में बसाओ । प्रयत्न हो एक बार फिर से ; ईश्वर तुम्हारे साथ है। धरती चलती, तारे चलते, चाँद रातभर चलता है । किरणों का उपहार बाँटने, सूरज रोज निकलता है। हवा चले तो महक बिखेरे, तुम भी प्यारे मत बैठो ॥ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए धरती के हर इन्सान की यह एक महती ख्वाहिश रहती है कि वह अपने जीवन में जीवन की पराकाष्ठाओं का स्पर्श करे। जीवन की ऊंचाइयाँ महज किस्मत का खेल नहीं हुआ करतीं, वरन जीवन में अपनाये जाने वाले मूलभूत सिद्धान्तों का परिणाम हुआ करती हैं। माना कि हर किसी के वश में यह नहीं होता कि वह चांद सितारों को छू सके, पर धरती में खिले हुए फूलों के सौन्दर्य का आनन्द तो हर कोई उठा ही सकता है। पंखों के अभाव में आसमान की ऊंचाई का स्पर्श तो हर कोई नहीं पा सकता, पर अपने पाँवों से चलकर वह शिखरों तक तो पहुँच ही सकता है। __ केवल मन में सोच लेने भर से परिणाम उपलब्ध नहीं हो जाया करते। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता की ऊँचाइयों का स्पर्श करने के लिए यदि व्यक्ति अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करता है तो न करे किन्तु एक बात तय है कि दूसरा कोई आकर उसे वे परिणाम नहीं दे सकता। जीवन में ऊँचाइयों का स्पर्श, शांति व समृद्धि की उपलब्धि वे ही कर सकते हैं जो अपने को बेहतर परिणाम देने के लिए अपनी ओर से तत्पर रहते हैं। सकारात्मक For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोच और बेहतर नजरिया, आदमी के द्वारा अपनाए जाने वाले वे बुनियादी उसूल हैं कि धरती पर रहने वाले जिस व्यक्ति ने इन्हें अपनाया होगा, वह हममें से कोई महावीर या मैक्समूलर, नोबल या नेल्सन, गोर्वाच्योव या गाँधी बना होगा। टाटा, बिड़ला, बिल गेट्स या अम्बानी होना किसी व्यक्ति-विशेष का अधिकार नहीं है, वरन वह हर व्यक्ति ऐसी ही ऊंचाइयों को पा सकता है जो अपने जीवन में सकारात्मक सोच और बेहतर नजरिया रखता है। नजरिया, सोच का परिणाम होता है और सोच नजरिये को प्रभावित करती है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में सोच और नजरिए को सार्थक दिशा देने में सफलता प्राप्त कर ली, उसने अपने जीवन की नब्बे फीसदी समस्याओं के समाधान के लिए मानो संजीवनी शक्ति स्वयं प्राप्त कर ली। व्यक्ति विविध कलाओं में सम्पन्न होता है, उसे कई कलाओं का ज्ञान भी होता है, लेकिन उसकी ये सारी कलाएँ गौण और फीकी हैं, अगर उसे एक कला नहीं आई। वह है सोचने की कला। कुदरत ने व्यक्ति को मस्तिष्क दिया है, अन्तर्मन दिया है और सोचने की शक्ति देकर उसने व्यक्ति को इस धरती का सिरमौर बनने का गौरव भी प्रदान किया है। चूंकि मनुष्य सोच सकता है इसीलिए तो वह मनुष्य है। यदि मनुष्य से सोचने की शक्ति छीन ली जाए तो वह स्वयं सोचे कि उसकी हथेली पर क्या बचेगा? जो लोग ध्यान और योग के द्वारा मन की शांति की बात करते हैं, वे इस बात को भली-भाँति जानते हैं कि मन की शांति का उपक्रम करने के बावजूद उसमें चलनेवाली विचारधाराओं से मुक्त होना हर साधक के वश में नहीं होता। माला लेकर बैठ जाने से मन स्थिर नहीं हुआ करता, ध्यान की बैठक लगा लेने मात्र से चित्त में एकाग्रता नहीं आती और सामायिक में स्थिर हो जाने से, चित्त में समता घटित नहीं होती। अपनी जिन्दगी में किसी चीज की यदि सबसे अधिक आवश्यकता है तो वह व्यक्ति की 'समझ' है। व्यक्ति को सही समझ चाहिए। ऐसी समझ चाहिए कि व्यक्ति सही सोचे। सोचना आदमी की फितरत है। वह अपनी सोच को कितना सकारात्मक और रचनात्मक ५४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बना सकता है, यही मनुष्य की अपने आप पर विजय है । मनुष्य शरीर की दृष्टि से कोई ख़ास अहमियत नहीं रखता। वह न तो किसी गौरय्या की तरह आसमान में उड़ सकता है और न ही किसी मगरमच्छ की तरह जल में तैर सकता है। वह न तो तितली की तरह फूलों पर मंडरा सकता है और न ही वह किसी बन्दर की तरह पेड़ों पर उछल-कूद कर सकता है। मनुष्य के नाखून किसी हिंसक जानवर जैसे तीखे नहीं हैं और न ही उसके पास बाज़ जैसी दृष्टि और चीते जैसा फुर्तीलापन ही है। उसके पास किसी मोर के समान सौन्दर्य भी नहीं है । शरीर की दृष्टि से तो वह इतना कमजोर है कि एक मच्छर या छोटा-सा बिच्छू भी उसे विचलित कर सकता है। शारीरिक दुर्बलता तथा कमियों के बावजूद उसके पास एक ऐसी अद्वितीय शक्ति है, जिसके बल पर उसने उन सबको अपने मातहत कर रखा है । यह शक्ति है मन की शक्ति, सोचने-समझने की शक्ति । मन ही मनुष्य का शिव है और यही मनुष्य की शक्ति । यह मनुष्य की मानसिक सोच का ही परिणाम है कि वह किसी 'सुपरसॉनिक' जेट विमान में उड़ सकता है तो किसी पनडुब्बी द्वारा जल की अतल गहराइयों को भी माप सकता है। वह चाहे तो कृत्रिम रोशनी से रात को भी दिन में तब्दील कर सकता है। आज दुनिया बहुत सिमट चुकी है। दुनिया को एक दूसरे के इतने करीब लाने का श्रेय मनुष्य की सोच को ही है। संसार के हर इन्सान के लिए चाहे वह सोया हो, जागृत हो, स्वप्न में हो, स्मृति, विकल्प या फिर किसी कल्पना में हो- उसकी परछाईं उसका साथ छोड़ सकती है, पर उसकी सोच उसका साथ नहीं छोड़ेगी । सम्भव है कि तुम अपने माँ-बाप को छोड़ कर अलग घर बसा लो, अपने पति या पत्नी से तलाक ले लो या तुम्हारा परिवार तुम्हें छोड़ दे, पर तुम्हारी सोच तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगी। जो सोच व्यक्ति के साथ हर लम्हा रहती है, आखिर व्यक्ति उस पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा है? मैं धर्म की वह बात नहीं कहूँगा जो आपको मात्र किसी मन्दिर तक पहुँचा दे, बल्कि मैं धर्म की वह बात कहूँगा जो आप की सोच और विचारधारा बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ५५ For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को बेहतर, निर्मल और पवित्र कर दे। महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि आप यहाँ आएँ या नहीं आएँ, वरन महत्त्वपूर्ण यह है कि आपने यहाँ आ कर अपने मन और विचारधारा को यहाँ स्थिर और सुदृढ़ किया या नहीं। संभव है कि कोई व्यक्ति यहाँ बैठा हुआ अपनी दुकान के बारे में सोच रहा है और यह भी सम्भव है कि दुकान में बैठा हुआ कोई व्यक्ति किसी 'चन्द्रप्रभ' की वाणी को सुनने के लिए चिन्तन कर रहा हो। यह मन का दल-बदलुपन है। आप ऐसा न समझें कि कोई व्यक्ति मरने के बाद स्वर्ग या नरक में जाता होगा। मनुष्य नहीं जानता कि उसके विचार उसे कितनी बार स्वर्ग की और कितनी बार नरक की सैर करा देते हैं। आप यदि अपनी ओर से दस बार प्रेम करने के लिए तत्पर होते हैं तो आपने एक ही दिन में दस दफा स्वर्ग की सैर कर ली और यदि आप तीन दफा चिन्ता करते हैं, दो दफा तनाव करते हैं, चार दफा गुस्सा करते हैं तो कम से कम आप नौ-दस दफा नरक के दुःख और नरक की यातनाएँ भोग चुके हैं। ___ पता नहीं, विचारों में आप किसके साथ हैं और आपकी पत्नी किसके साथ? साफ-सुथरा तथा सुंदर दिखने वाला इन्सान, अपने विचारों में कब कितना नीचे गिर जाए और कब-कितना ऊँचा उठ जाए, इसकी भविष्यवाणी तो दुनिया का कोई भी ज्योतिषी नहीं कर सकता। किसके मन में क्या है, इसकी भविष्यवाणी अतीत या भविष्य का कोई सर्वज्ञ भी नहीं कर सकता। भविष्यवाणी तो उसकी की जाती है जो चीज तय हो। लेकिन व्यक्ति की सोच तो गिरगिट की तरह पल-पल में रंग बदलती है इसलिए इसकी भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है? _ 'सोचना' एक बहुत बड़ी कला है। जिन्दगी में अगर किसी व्यक्ति को कुछ सीखना है तो मैं कहूँगा कि वह सोचने की शैली को विकसित करे। पूरे दिन में न जाने हमारे मन में कितनी बार सार्थक विचार आते हैं और कितनी बार निरर्थक विचार आते हैं। न जाने व्यक्ति कितनी बार अपने विचारों से राम बन जाता है और कितनी बार रावण? वह कितनी बार कृष्ण बनता है तो कितनी बार कंस! मेरे मन की मैं जानता हूँ और आपके मन की ५६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप। आपके मन की बात आपकी पत्नी भी नहीं जान सकती । मन आपकी प्राईवेट प्रोपर्टी है। लोग कहते हैं कि आज व्यक्ति की 'कथनी और करनी में एकरूपता नहीं है।' इसका कारण यह है कि व्यक्ति को सोचने का सही तरीका नहीं आता। वह सोचता कुछ है और करता कुछ है । इस बात का मूल्यांकन प्रत्येक व्यक्ति स्वयं करे कि उसके मन में उठने वाले ऐसे कौन-से विचार हैं जो निरर्थक और त्याज्य हैं तथा ऐसे कौन-से विचार हैं जो अर्थपूर्ण और अमल में लाने योग्य हैं 1 व्यक्ति त्याग के नाम पर व्रत-उपवास करता है, पर इन त्यागों से काम नहीं चलेगा । त्याग करना ही है तो व्यक्ति स्वयं के भीतर पलने वाले निरर्थक और नकारात्मक विचारों का त्याग करे। ऐसे विचारों का कोई आधार और भविष्य नहीं होता। वे कोई शुभ परिणाम नहीं देते । व्यर्थ के विचारों को दिमाग में पालना जंगली घास को बगिया में उगाने की तरह है । सुन्दर बगिया के लिए जरूरी है कि व्यक्ति निरर्थक घास को काटे और सार्थक बीजों को बोए । व्यर्थ के विचार, व्यर्थ की सोच व्यर्थ के ही कार्य करवाएगी। अपने आप में देखिये कि कहीं आप भी तो व्यर्थ के विचारों के शिकार नहीं हैं । चिंता, तनाव, दंगा-फसाद, आतंक, चोरी, व्यभिचार आखिर सबके पीछे आदमी के व्यर्थ के विचार ही प्रेरक का काम करते हैं। किसी कारागार में जाकर वहाँ बंद पड़े कैदियों से मुलाकात कीजिए और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके अपराध का मूल कारण क्या रहा है। जवाब होगा : घटिया सोच, व्यर्थ के विचार, गलत सोहबत, मानसिक उग्रता । घटिया सोच और व्यर्थ के विचार ही ऊलजलूल कार्य करवाते हैं। (एक घटना है, मोतीलाल पटेल के जीवन की। अपने सार्थक कृत्यों और विचारों के लिए विख्यात वल्लभ भाई पटेल के बारे में तो सभी जानते हैं, पर मोतीलाल पटेल के बारे में कोई नहीं जानता, क्योंकि वे थे ही ऐसे ही । मोतीलाल पटेल गुजरात के किसी गाँव में रहते थे । वे प्रतिदिन सुबह उठते और अंगड़ाइयाँ लेते हुए चले आते । बाहर चबूतरे पर बैठकर नीम का दांतुन किया करते। एक साँड भी प्रतिदिन वहाँ आता । वह मोती भाई को दांतुन बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ५७ For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करते देख उन पर रीझ गया और प्रतिदिन उनके पास चबूतरे पर खड़ा हो जाता। धीरे-धीरे मोती भाई और साँड में लगाव हो गया। मोती भाई जब तक उसके बदन को सहला न ले, साँड को चैन नहीं और साँड जब तक मोती भाई के हाथ और पाँव पर अपनी जीभ न लगा दे तब तक मोती भाई को चैन नहीं। यह क्रम रोजाना चलता। धीरे-धीरे मोती भाई के दिमाग में एक फितूर उठने लगा। उनके दिमाग में यह निरर्थक विचार आने लगा कि, 'इस साँड के सींग कितने सुन्दर हैं ! कभी इनके बीच में अपना सिर डालकर देखू तो सही! ये सींग तो बिल्कुल मेरे सिर के आकार के हैं।' मन में उठा यह फितूर और सोचते-सोचते वह इतना इतना सघन हो गया कि मोती भाई ने अपने सिर को सांड के सींगों के बीच घुसाने की ठान ही ली। मनुष्य के दिमाग में उठने वाले विचार किसी बीज की तरह हुआ करते हैं। छोटे से विचार को छोटा समझकर दरकिनार न करें क्योंकि वह छोटा-सा विचार ही आने वाले कल में भविष्य का निर्माता हो सकता है। अणुबम छोटा होता है, पर जब वह विस्फोटित हो जाए तो वह किसी भी हिरोशिमा और नागासाकी को ध्वस्त कर सकता है। एक छोटे से बीज में, वृक्ष का भविष्य छिपा रहता है। एक छोटे से बीज में, एक विशाल बरगद समाया रहता है। इसलिए अपने किसी भी विचार को छोटा समझकर निगलेक्ट' न करें, क्योंकि वही विचार आने वाले कल में आपके जीवन की परिभाषा बनेगा। आज का विचार आपके आने वाले कल का बीज है। विचारों को । सुधारिए, व्यक्तित्व स्वतः सुधर जाएगा। मोती भाई को ही लीजिए। उसने अपने मन में उठे फितूर के चलते, एक दिन अपना सिर साँड के सींगों के बीच घुसा ही दिया। साँड सकपकाया। सिर भी सींगों के आकार का था, इसलिए उनमें फँस गया। उधर साँड डर के मारे अपना सिर इधर-उधर पटकने लगा। उसने ऐसी पटकनी मारी कि मोती भाई पटेल की हड्डी-पसली एक हो गई। लोगों ने बीच-बचाव करके मोती भाई का सिर सींगों के बीच से निकाला। लोग बोले-'अरे बेवकूफ! अपना सिर सींगों के बीच डालने से पहले कुछ तो सोचा होता?' मोती भाई बोला५८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'और कितना सोचता, तीन महीने तक सोचते-सोचते ही तो अपना सिर सींगों में डाला था।' हमने तीन महीने तक अपना सिर सींगों के बीच डालने के लिए तो सोचा; पर अपने सिर में उग आए व्यर्थ के विचारों को सींगों से हटाने के लिए कभी नहीं सोचा। ध्यान रखें, जीवन में सार्थक सोच भी उठती है और निरर्थक सोच भी। त्याग करना है तो हम अपने निरर्थक विचारों का त्याग करें। हम लोग एक ऐसा व्रत लें, ऐसा तप-अनुष्ठान करें कि उसमें हम अपने फालतू विचारों का त्याग कर सकें। दुनिया में दो तरह के विचार होते हैं- एक है पालतू और दूसरे हैं फालतू। पालतू विचार काम के हैं, पर फालतू विचार नकामे होते हैं। यदि आपके दिमाग़ में ऐसा कोई फालतू विचार आ चुका है तो तत्काल सावधान हो जाइए और ठान लीजिए कि-'नहीं, मुझे ऐसा नहीं सोचना है। ऐसा सोचना मेरे लिए पाप है।' आप सोच की दिशा को बदल दीजिए। यदि आपको किसी पर क्रोध आ भी जाए, और नालायक का 'ना' निकले तो उसके पहले ही उसे निगल जाएँ। सावधान हो जाएँ कि नहीं, मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए। शुरूआत में तो आपको निगलना पड़ेगा लेकिन कुछ दिनों बाद आप देखेंगे कि आपके दिमाग में कोई गाली ही नहीं उठती। बिल्कुल शांति है। दुनिया का कोई भी सन्त, कोई भी पंथ और कोई भी ग्रंथ किसी को नहीं बदल सकता। मनुष्य जब भी बदला है, अपनी सोच और समझ के चलते ही बदला है। यदि मनुष्य स्वयं को बदलने के लिए संकल्पशील नहीं है तो दुनिया की कोई ताक़त उसे नहीं बदल सकती। संत और ग्रंथ तो रास्ता देते हैं, उसे अपनी सोच में उतारने का रास्ता देना आपके हाथ में हैं। व्यक्ति मरघट पर जाकर सैकड़ों लोगों की अंत्येष्टि कर आता है, पर मरघटिया वैराग्य को जीकर क्या कोई व्यक्ति जरा भी बदला है? अपने दादा, नाना, मित्रों और पड़ोसियों की मृत्यु देखने पर भी स्वयं की मृत्यु का बोध किसी को भी नहीं होता। मरघटिया वैराग्य तो विचारों को क्षणिक उद्वेलित करता है और फिर वही दुनियादारी शुरू हो जाती है। विचार नहीं बदलते, बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ५९ For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबकि व्यक्ति की सोच और विचार ही मूल्यवान हैं। मैंने अपने संन्यास जीवन के शुरूआती दौर में ही यह बोध अर्जित कर लिया था कि व्यक्ति के स्वर्ग या नरक के द्वार का निर्धारण मात्र उसकी क्रिया से नहीं होता, वरन उसके सोच, विचारों और उसकी भाव-दशाओं के द्वारा होता है। किसी संत के बारे में स्वयं महावीर से प्रश्न किया गया-'इन क्षणों में इस संत की मृत्यु हो जाए तो वह कौन-सी गति प्राप्त करेगा?' उत्तर मिला—'सातवीं नरक'। फिर प्रश्न पूछा गया-'अगले क्षण इसकी मृत्यु हो जाए तो?' उत्तर मिला—'सातवाँ स्वर्ग।' एक ऐसा संत जो एक पाँव पर खड़ा होकर अपना हाथ आकाश की तरफ उठाए, एक महीने के उपवास के लिए कृतसंकल्प था; उसकी ऐसी विषम दशा! मन की विचारधारा अगर दूषित है तो व्यक्ति दूषित है, विचारधारा अगर पतित है तो व्यक्ति पतित है। व्यक्ति की सोच अगर दूषित है तो वह सोच हर क्षण उसकी आत्महत्या करवाती रहेगी। उसका हर क्षण चिंता, तनाव, अवसाद और डिप्रेशन को जन्म देगा। इसलिए जिन्दगी में किसी चीज को मूल्य देना है तो अपनी सोच और विचारों को मूल्य दीजिए। आज जो सोच बनी है, कल वही जुबान पर आएगी। तुमने अगर आज मुझे गाली दी है तो मैं यह नहीं कहूँगा कि निमित्त ही ऐसे खड़े हुए, वरन् तुम मेरे प्रति गलत नजरिया पहले ही अपना चुके थे जिसके चलते तुमने मुझे आज गाली दी। सोच पहले बनती है, वाणी बाद में निकलती हैं। जो सोच में होगा, वही वाणी में अभिव्यक्त होगा। अगर आप अपनी वाणी को मधुर और सौम्य बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को विनीत और सौम्य बनाइए। जो सोच में होगा, वही वाणी में आएगा और जो वाणी में है, वही व्यवहार बन जाएगा। इसलिए अगर आप अपने व्यवहार को अच्छा बनाना चाहते हैं तो अपनी सोच को अच्छा बनाइए। जो व्यक्ति के व्यवहार में होगा, वही उसकी आदत बन जाएगी। अगर आप अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपनी बुरी सोच से पहले छुटकारा पाइए। ६० आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति की आदतें ही उसके चरित्र का निर्माण करती हैं। अगर आप चरित्रशील समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपनी सोच को चरित्र-संपन्न बनाइये। वे ही चीजें तो अभिव्यक्त होंगी जो भीतर में जड़ों और बीजों की तरह समाई हुई हैं। अगर भीतर कुछ होगा ही नहीं, तो बाहर क्या आएगा? अगर आप घर, परिवार, समाज व संसार को सुधारना चाहते हैं तो पहले स्वयं को सुधारिये, खुद की सोच में सुधार लाइये । बिना सोच को सुधारे, व्यक्ति द्वारा किया गया हर संकल्प, प्रत्येक व्रत, प्रतिज्ञा और नियम राख पर की गई लीपापोती भर होगी। अपने दिमाग को निरर्थक विचारों के बोझ से मुक्त करो, खाली करो। अपने ऑफिस की टेबल पर तीन बन्दरों के प्रतीकों के साथ चौथा बन्दर और रखो, जो अपनी अंगुली सिर से लगाए हमें प्रेरणा देता हो कि बुरा मत सोचो। ओ मन के मधुमास ! तुम्हारी चिंता है । शेष बचे विश्वास ! तुम्हारी चिंता है । कभी निराशा इतना नहीं डिगा पाई, बुझे बुझे उल्लास ! तुम्हारी चिंता है । आँसू पी - पीकर भी क्वाँरी रह जाती, ओ अनब्याही प्यास! तुम्हारी चिंता है । जिसे ग्रहण कर कड़वाहट ने जन्म लिया, हास और परिहास ! तुम्हारी चिंता है । जीवन-कविता गुँथी शृंखला साँसों की, अर्थहीन अनुप्रास ! तुम्हारी चिंता है । वक़्त मुट्ठियों की बालू है, भूल गए, भटक गए एहसास! तुम्हारी चिंता है । पानी पीकर अपनी भूख मिटा लेता, बच्चों के उपवास ! तुम्हारी चिंता है । बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए For Personal & Private Use Only ६१ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन के मधुमास को बचाओ। बुरे विचारों के पीले पत्तों का पतझड़ हो जाने दो। पुराने आग्रहों को, आक्रोशों को त्यागेंगे, तभी तो नई कोपलें फूटेंगी। ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, वैर-वैमनस्य जैसी तमाम नकारात्मकताओं को हटा दो। एक बार बच्चे ही बन जाओ। बच्चे भी लड़-झगड़ बैठते हैं, पीटते भी हैं और पिटते भी हैं, पर बोलचाल बंद नहीं करते। हम ही लोग हैं जो गाँठें बाँध लेते हैं। मन की धारा को, मानसिकता को बदलें, अपनी सोच, अपने नजरिये और अपनी प्रस्तुति को पोजेटिव बनाएँ। जीवन से बुरी सोच को हटाएँ। बुरी सोच नकारात्मकता है। नकारात्मकता तो वह है जहाँ व्यक्ति दूसरों को इन्कार करना प्रारम्भ कर दे और सकारात्मकता वह है जहाँ व्यक्ति दूसरों को भी मूल्य देना प्रारम्भ कर दे। 'मेरा सो सच्चा' यह नकारात्मकता है और 'सच्चा सो मेरा' यह सकारात्मकता है। नकारात्मक विचार अपने आप आते हैं, जबकि सकारात्मक विचार व्यक्ति के स्वयं के प्रयास होते हैं। नकारात्मक विचार अनायास ही चले आते हैं। बेटा कार लेकर गया है, आधा घण्टे तक लौटा नहीं', इस परिस्थिति में तत्काल ही नकारात्मक विचार आ जाएगा कि क्या कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई? वस्तुतः सकारात्मक विचारों को लाना व्यक्ति के जीवन में एक बहुत बड़ी चुनौती है। विचारों को व्यवस्थित करना जीवन की बहुत बड़ी साधना है। नकारात्मक विचारों से बढ़कर जीवन में कोई रोग नहीं होता और सकारात्मक विचारों से बढ़कर जीवन में कोई आरोग्य नहीं होता। नकारात्मक विचारों से बढ़कर जीवन में कोई समस्या नहीं होती और सकारात्मक विचारों से बढ़कर जीवन में कोई समाधान नहीं हुआ करता। नकारात्मक विचारधारा वाला व्यक्ति अपने जीवन में निश्चित रूप से असफल रहता है और सकारात्मक सोच का धनी असफल होकर भी जिन्दगी में सफलताएँ अर्जित कर लिया करता है। नकारात्मक विचार पाप है तो सकारात्मकता अपने आप में पुण्य । नकारात्मकता से बढ़कर कोई विधर्म नहीं हुआ करता और सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। ज्यों ही नकारात्मक विचार हावी हुए, व्यक्ति संदेह करने लग जाएगा कि कहीं यह ६२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति मुझको नुकसान तो नहीं पहुँचाएगा? उसकी हर बात में तुम्हें संदेह होने लगेगा। परिणाम यह निकलेगा कि तुम्हारा नजरिया ही गलत हो जाएगा। और गलत नजरिया महान् से महान् व्यक्ति को भी उपेक्षित बना देता है। लोगों के गलत नजरिए के चलते ही तो किसी महावीर जैसे महापुरुष के कानों में कीलें ठोकी गईं थी। नकारात्मक विचारों का ही परिणाम है कि जीसस को सलीब पर चढ़ाया गया। ये नकारात्मक विचार ही थे जिनके कारण सुकरात को जहर का प्याला पिलाया गया। धरती को अगर सकारात्मक सोच का दृष्टिकोण उपलब्ध हो जाता तो महावीर के कानों मे कीलें नहीं ठोकी जातीं, बल्कि उनके चरणों में पुष्प चढ़ाए जाते। तब जीसस को सलीब पर नहीं चढ़ाया जाता, बल्कि उन्हें सिरमाथे पर बिठाया जाता। तब सुकरात को जहर पीने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। लोग उनके अमृत का खुद आचमन करते। हाँ, हम लोग जिसे नहीं अपना पाए, वह है सकारात्मक सोच । उसका नतीजा यह निकला कि व्यक्ति संदेह से घिर गया और संदेह ने व्यक्ति के नजरिए को भी विकृत कर दिया। वह दुराग्रहों से भर गया। नकारात्मक विचारों के कारण ही व्यक्ति डिब्बाबंद जिंदगी जीने के लिए विवश है। ज्ञान और विज्ञान के नित्य नए द्वार व्यक्ति के स्वागत के लिए खड़े हैं, पर डिब्बा बंद सोच व्यक्ति को आगे ही नहीं बढ़ने दे रहा है; चाहे वह डिब्बाबंद सोच पंथ के रूप में हो, परम्परा के रूप में हो, स्वार्थ या रूढ़िवादिता के रूप में हो। उसने व्यापक और महान् दृष्टिकोण को कुंठित ही किया है। अपने संकुचित दायरोंसे बाहर निकल कर सोचो तो तुम्हें सत्य का पता चलेगा। कुएँ का मेंढ़क जब कुएँ से बाहर निकलेगा, तब ही तो उसे पता चलेगा कि सागर बहुत बड़ा है। खुली सांस लेने के लिए खुली धरती है, मुक्त गगन है। फिर घुटघुटकर तंग दायरों में क्यों जीना! नकारात्मक सोच व्यक्ति को घुटन, तनाव व अवसाद से भर रही है। अगर कोई व्यक्ति गुस्सैल प्रकृति का है तो हम यही मानकर चलें कि उसके भीतर नकारात्मक विचारों ने अपना डेरा जमा लिया है और वह दूसरों के बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्तित्व को इन्कार करने लगा है। उसे ऐसा लगता है कि जो कुछ है, वह केवल वही है और सब कुछ उसी के इशारों पर होना चाहिए। ध्यान रखें, नकारात्मक विचारों को छोड़े बिना, तुम अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पाओगे। इसके लिए तुम चाहे जितने व्रत, त्याग, तप और मौन कर लो। अगर छोड़ना ही है तो नकारात्मक विचारों को छोड़ो और अगर अपनाना ही है तो सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाओ। सकारात्मक सोच जीवन का सबसे बड़ा तप, व्रत और अनुष्ठान है। त्यागना है तो अपनी चिंताओं का त्याग कीजिए। चिंताओं के त्याग से आपका जीवन भी सुखी बनेगा और परिवार में भी सुख, समृद्धि और शांति बढ़ेगी। व्यक्ति को हर समय चिंता लगी रहती है, कि कहीं ऐसा हो गया तो क्या होगा? कहीं मैंने उसे ऐसा बोला और वह बुरा मान गया तो क्या नतीजा निकलेगा? अरे, चिंता करने से क्या हासिल होगा? जब जैसा जो होगा, तब उसका वैसा ही सामना कर लेंगे। बात के बीत जाने पर क्या सोचना? जीवन के साथ सहजता को जोडिए। जब जैसा होना होगा, तब वैसा ही होगा। फिर व्यर्थ की चिंताओं का बोझ पालने से क्या फायदा? देखिए, मैं आपके सामने बोलने के लिए मुखातिब हूँ। मैं भी चिंता पाल सकता हूँ कि 'मैं जो बोलूंगा, लोग उसे क्या समझेंगे?' लोग अच्छा समझें तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है किन्तु अगर लोग बुरा भी समझें तो इसमें क्या चिन्ता? बहुत से लोग ऐसे भी तो हैं जो अच्छा नहीं बोल पाते। आज अगर ठीक से नहीं बोल पाए तो कोई बात नहीं, कल को और बेहतर बनाएँगे। याद रखिये कि सहजता से बढ़कर जीवन में कोई औषधि नहीं होती। जब व्यक्ति बीमार होता है, तब उसे दो तरह की चिन्ताएँ सताती हैं। 'मैं ठीक होऊँगा या नहीं।' ठीक हो गए तो अच्छी बात है और ठीक नहीं हुए तो इसमें भी क्या चिन्ता? डॉक्टर के पास चले जाओ। व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है तब भी उसे दो तरह की चिन्ताएँ सताती हैं, 'मैं मर जाऊँगा या जीवित रहूँगा।' जीवित रहने के लिए ही तो दवा ले रहे हो तो फिर इसमें चिन्ता की क्या बात? और यदि मर भी गए तो क्या घट जाएगा? आखिर सब आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकदिन तो मरना ही है । व्यक्ति मरता है, तब भी दो तरह की चिन्ताएँ बनी रहती हैं, ‘मरकर स्वर्ग में जाऊँगा या फिर नरक में ।' स्वर्ग में गए तो कोई चिंता ही नहीं, क्योंकि वहीं तो तुम जाना चाहते थे और नरक में गए तब भी कोई चिन्ता नहीं, क्योंकि पहले से ही बहुत से लोग वहाँ बैठे हैं, जिनसे बतिया कर तुम अपना समय बिता लेना । तुम उस नरक को याद करके आज अपने जीवन को नरक क्यों बना रहे हो? छोड़ो, इन व्यर्थ की चिंताओं और नकारात्मकताओं को। अपने दिलो-दिमाग में अमन-चैन को तरजीह दो । दिमाग में अनावश्यक बोझा मत लादो। सुबह उठते ही तुम अपने मन में संकल्प ले लो कि आज मैं हर परिस्थिति में प्रसन्न रहूँगा, शांत और सहज रहूँगा । फिर देखिए दिन भर का तनाव कैसे उड़न-छू हो जाता है। याद रखिए यह मंत्र 'शांति चाहिए तो शांत रहिए और खुशियाँ चाहिए तो मन को खुश रखिये' । मैं चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के साथ एक प्रयोग जोड़े और वह प्रयोग यह है कि जैसे ही सुबह आपकी आँख खुले, आप सबसे पहले एक मिनट जी भर कर मुस्कुराइए। भगवान को याद करने की जल्दी मत कीजिएगा। अभी तो पूरा दिन बाकी है, भगवान को याद करने के लिए। माता-पिता को दुआ - सलाम भी बाद में कर लेंगे। सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले व्यक्ति अपने मन की दशा को ठीक कर ले, मुस्कान के साथ । एक मिनट की यह भेंट आप मुझे भी दे दीजिए। एक ऐसी मुस्कान कि जो रोम-रोम को पुलकित कर दे, इस शरीर के कोने-कोने में प्रसन्नता बिखेर दे। मुस्कुराइये, प्रेम से मुस्कुराइये, तबीयत से मुस्कुराइये। मुस्कान जीवन की पहली और आखिरी संजीवनी है । अगर कोई व्यक्ति यह प्रयोग तीस दिन तक कर लेता है तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह व्यक्ति अपने जीवन की बहुत-सी समस्याओं से मुक्त हो जाता है। यह प्रयोग आपके जीवन में खुशियाँ लाएगा। जैसे ही आप सुबह उठें, स्वयं से प्रश्न करें कि 'बोल बन्दे ! तुझे खुशी चाहिए या नाखुशी ?' नाखुशी चुनने की बेवकूफी आप करेंगे नहीं, इसलिए खुशी चुनकर बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ६५ For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुश हो जाइए। सदाबहार खुश रहिए। रात को भी सोएँ, तब बड़ी मस्ती से मुस्कुराते हुए सोएँ। फिर देखें, कैसी सुख और सुकून भरी नींद आती है? जब आप ऑफिस से घर पहुंचे, तब घर में प्रवेश करने से पहले एक मिनट मुस्कुरा लीजिए वरना आप ऑफिस और काम की चिकचिक बेवजह घर वालों की थाली में परोसने लग जाएँगे। कोट-शर्ट बाद में उतारें पहले घर के बाहर रखे कूड़ेदान में अपने सारे दुःख, तनाव, अवसाद, चिड़चिड़ापन डाल दीजिए। आपके पर्स में तूंस-ठूस कर भरे हुए वे आलतू-फालतू के कागज-पत्र-पूर्जे इत्यादि भी फेंक डालिए, जो आपने पर्स को वजनी बनाने के लिए डाल रखे हैं। ये भी बोझ ही हैं। आप तो हर बोझ से मुक्त बनिये। बड़ी मुस्कुराहट के साथ घर में प्रवेश कीजिए, जहाँ आपकी पत्नी, आपके बच्चे और आपके माता-पिता सुबह से आपके लौटने का इंतजार कर रहे हैं। वे अपनी शुभकामनाएँ लिये हुए आपकी राह देख रहे हैं। जब आप मुस्कान के साथ घर में प्रवेश करते हैं तो वह घर, घर न रहकर जन्नत बन जाता है। यदि आप चिन्ता, खीझ, गुस्सा, तनाव और नकारात्मक सोच के साथ घर में प्रवेश करते हैं तो पत्नी यही सोचती है कि पति घर से बाहर ही रहें तो अच्छा हो। अपना मान बढ़ाना है तो अपनी मानसिकता को बेहतर बनाइये। आप जहाँ भी जाएँ, वहाँ आपका मान और मूल्य हो। जिस परिवार या समाज में आपका मूल्य नहीं है, वहाँ जाने से बचें। साथ ही स्वयं को भी टटोलें कि वहाँ आप स्वीकार्य क्यों नहीं हैं? यदि कहीं कमी है तो उसमें सकारात्मकता लाएँ। जीवन की सफलता का प्रथम एवं अन्तिम मंत्र सकारात्मक सोच ही है। अच्छे विचार लीजिए और अच्छे विचार दीजिए। अगर आपकी जेब में एक रुपया है और आपने वह एक रुपया सामने वाले को दिया और सामने वाले ने अपनी जेब का एक रुपया आपको दिया तो दोनों की जेबों में कितनेकितने रुपये बचे? जी हाँ, दोनों की जेबों में एक-एक रुपया ही रहेगा। जबकि अगर आप एक अच्छा विचार, प्रभावी चिन्तन और उन्नत जीवनदृष्टि ६६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरे व्यक्ति को देते हैं और दूसरे व्यक्ति से भी एक सार्थक विचार ग्रहण करते हैं तो आप दोनों के पास दो-दो अच्छे विचार हो जाते हैं। स्वयं का अच्छा चिन्तन तो आपके पास रहा ही है, किन्तु उसके साथ दूसरे की अच्छी जीवनदृष्टि भी आपके विचारों में शामिल हो गई। मैं, आप और जीवन की समझ रखने वाले सभी लोग, यदि जीवन में सर्वप्रथम कुछ अपनाएँ तो वह हो मात्र सकारात्मकता। अपने पति या पत्नी, बच्चों या फिर किसी के भी सामने अपनी इतनी बेहतर प्रस्तुति दें कि जो आपसे आखिरी रूप में भी सम्भव हो सकती है। मैं इससे ज्यादा अच्छा नहीं बोल सकता, मैं इससे ज्यादा मधुर नहीं बोल सकता, मैं इससे ज्यादा नहीं झेल सकता और इससे ज्यादा मेरी बेहतरीन प्रस्तुति नहीं हो सकती। आप हर अच्छाई की ऊँचाई को छुएँ, उसकी पराकाष्ठा तक पहुँचें। जीवन में सफलता, शान्ति और सुकून का पहला एवं आखिरी मन्त्र एक ही है और वह है सकारात्मकता और बस सकारात्मकता। एक ही मंत्र : 'पोजिटिवनेस'। अपने दिमाग के हर कोने-कोने में लिख लीजिए : सकारात्मक सोचूँगा, सकारात्मक नजरिया रखूगा, सकारात्मक ही व्यवहार करूँगा। काँटों को नहीं, फूलों को मूल्य दूंगा; आधी गिलास खाली को नहीं, आधी गिलास भरी हुई पर ही ध्यान दूंगा। प्रेम अपनाऊँगा, क्रोध से बचने की जागरूकता रमूंगा। वैर और उग्रता से बनूंगा, शान्ति और सौहार्द को अपनाकर जीवन को उत्सव बनाऊँगा। __ आपका यह संकल्प बेहतर जीवन की दिशा में उठाया गया सार्थक कदम होगा। सबके लिए अमृत प्रेम। बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ६७ For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ अपनी बात की शुरूआत एक ऐसे पौधे से करूँगा जिसके शुरू होने से लेकर पूर्णता प्राप्त करने का मैं साक्षी रहा हूँ। यह एक सहज संयोग ही रहा कि जिस दिन पौधे की कलम लगाई गई थी, उस दिन मैं भी उस पौधे के करीब था और जिस दिन उस कलम में से पहली डाली फूटकर आई तो मैं उसके उस अंकुर का भी द्रष्टा रहा। जिन दिनों उस डाली में से पत्ते और कांटे निकलकर आए, मैंने उनको भी निहारा। मैं पौधे के उन क्षणों का भी गवाह हूँ जब उस पर कली निकलकर आई और कोई गुलाब का फूल अपना सौन्दर्य और सुवास बिखेरने लगा। उस पौधे को देखकर जीवन की पहली किरण यह मिली कि हम सब लोगों का जीवन भी ऐसा ही है जैसे काँटों से भरे गुलाब के पौधे का होता है। ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे अपने जीवन में संघर्ष न करना पड़ता हो? धरती पर वह कौन है जिसे अपने जीवन में असफलता का सामना न करना पड़ा हो? भला जब किसी भी परिस्थिति का उदय होता है तो यह प्रकृति की व्यवस्था है कि उदीयमान परिस्थिति का विलय भी अवश्य होता है। प्रकृति परिवर्तनधर्मा है। जब एक बात तय है कि जो जन्मता है उसकी मृत्यु भी होती For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। जो फूल खिलता है, वह मुरझाता भी है। जो सूरज उगता है, वह अस्त भी होता है। जहाँ संयोग है वहाँ वियोग भी है। जहाँ सुख का कमल है वहाँ दुःख के कांटे भी छिपे होते हैं। जो व्यवस्था मनुष्य के हाथ में होती है वह चिंता करने जैसी नहीं होती, वह अंजाम देने के लिए होती है। सारी व्यवस्था प्रकृति के हाथ में है क्योंकि मनुष्य स्वयं प्रकृति की रचना है। तो फिर प्रकृति की व्यवस्थाओं के लिए व्यर्थ की चिंता, व्यर्थ के अवसाद को पालने का कोई अर्थ नहीं होता। जब हम कांटों से घिरे हुए गुलाब के फूल को देखते हैं तो लगता है कि हर इंसान भी ऐसे ही कांटों से घिरा हुआ है, भले ही कोई राजसिंहासन पर बैठकर राजमुकुट ही क्यों न धारण कर ले। लेकिन जब-जब भी हम मनुष्य के मन और मस्तिष्क की दशा देखते हैं तब-तब ऐसा लगता है कि हर मनुष्य के माथे पर काँटों का ताज रखा हुआ है। सबको अपने कंधे पर सलीब ढोना पड़ रहा है। अतीत में कभी जीसस के सिर पर काँटों का ताज और पीठ पर सलीब रखा गया था लेकिन वह बात तो एक शहादत की हुई। आज हममें से हर किसी इंसान ने अपने माथे पर काँटों का ऐसा ताज पहन रखा है कि जिसे आदमी उतारना भी चाहता है पर उसे उतारने का तरीका नहीं जानता। अगर इंसान को जीने की कला आ जाए तो ऐसा कौन-सा काँटों का ताज है जिसे इंसान उतारना चाहे और उतार न पाए। विडंबना यह है कि कुछ काँटों के ताज तो ऐसे होते हैं जिन्हें लोग पहना जाया करते हैं, पर कुछ काँटों के ताज ऐसे भी होते हैं जिन्हें इंसान खुद ही अपने हाथों से पहन लिया करता है। चिन्ता, ईर्ष्या, उत्तेजना, तनाव, अवसाद के काँटे ऐसे ही हैं जिन्हें आदमी खुद अपने हाथों से माथे पर पहनता है। ये काँटे हमें परेशान करते हैं। इसके बावजूद हम अपने आप को उन निमित्तों से, उन परिस्थितियों या अन्य उन पहलुओं से अपने आपको अलग करने का प्रयत्न नहीं करते जो कि बार-बार काँटे बनकर हमें बेधा करते हैं। मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ६९ For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब आप शाम को अपने घर पहुँचते हैं तो सबसे पहले अपने बदन पर पहने हुए कपड़े उताकर खूटी पर टाँग देते हैं और लुंगी-बनियान पहनकर अपने आपको हल्का महसूस करते हैं। हम ऐसे ही जब घर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि कुछ चीजें बिखरी हुई हैं। हम अपने बच्चों से कहते हैं कि सामान सजाओ, ठीक-ठिकाने पर रखो। इसी तरह हमको याद हो आती है कि हमारी जेब में भी कुछ फालतू के कागज या कचरा टाइप का पड़ा है। जब हम उस कागज-कचरे को तथा खाली पाउच या फाइल में रखे हुए कुछ पुराने व्यर्थ के बिल को निकालकर रद्दी की टोकरी में फेंक देते हैं तब हमें बड़ा हल्कापन महसूस होता है। मैं कहूँगा कि जब हम अपने घर पहुँचें तो घर के भीतर बाद में प्रवेश करें पहले घर के बाहर कचरा डालने का जो डिब्बा हमने रखा है, दो मिनिट के लिए उसके पास जाएँ। हम यह देख लें कि जेबों में कहाँ-कहाँ, कौन-सा रद्दी कागज पड़ा है? हम उसे निकालें और उन्हें वहीं फेंक दें। जब आप रद्दी कागज फैंकें तो मेहरबानी करके एक काम और करें। आपके पास कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिन्हें कि आपको रद्दी कागजों के साथ निकालकर फेंक देना चाहिए और वह है आपके दिमाग की जेब में भरी हुई कुछ-कुछ बातें, कुछ-कुछ चिड़िचिड़ापन, कुछ-कुछ उत्तेजना, कुछ-कुछ गुस्सा, कुछ-कुछ तनाव और चिंता जो आप अपनी दुकान से अपने साथ ले आए हैं। दिमाग की जेब में ऐसी ये जो कुछ-कुछ चीजें भरी रहती हैं, उन्हें निकालकर फेंक दें। क्योंकि वे भी रद्दी कागज की तरह हैं, व्यर्थ के पाउच हैं। सावधान ! व्यवसाय के तनाव कहीं आपके घर को तनावग्रस्त न बना दें। अपने दफ्तर, दुकान के तनाव आपके घर में न पहुँच जाए और उन तनावों का बोझा कहीं आपकी पत्नी को, आपके बच्चों को न झेलना पड़े। अमूमन ऐसा ही होता है कि आदमी अपनी दुकान का गुस्सा बीबी पर निकालता है, बीबी तब अपना गुस्सा बच्चों पर निकाला करती है। कुछ-कुछ व्यर्थ की चीजें हमारे दिमाग में भरी पड़ी हैं। इन 'कुछ-कुछ' चीजों को अपने माथे की जेब से निकालकर कचरा-पेटी में फेंक दें। जब घर में प्रवेश ७० आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करें तो लगना चाहिए कि घर में वह व्यक्ति पहुँचा है जिसकी प्रतीक्षा में घरवालों ने पूरे आठ-दस घंटे बिताए हैं । तुम जब घर पहुँचो तो तुम्हारी पत्नी को इतना सुकून मिल जाए कि उसे महसूस हो कि तुम घर पहुंचे हो। वहीं अगर तनाव, घुटन, चिंता, अवसाद जैसी बीमारियों को लेकर घर पहुंचे तो पत्नी के मन में भी अवसाद की छाया घर करने लगेगी। आपकी झुंझलाहट और चिड़चिड़ेपन के चलते आपकी पत्नी सोचेगी, 'अच्छा होता, मेरे पति और दो घंटे बाहर ही रहते।' आप कोई त्याग करना चाहते हैं, कोई व्रत और अनुष्ठान करना चाहते हैं, कोई पूजन और महापूजन करना चाहते हैं तो मैं कहूँगा पूजा अपने आप की कर लें। पहला, अनुष्ठान यह कर लें कि जो कचरा भीतर है उसे बाहर निकाल दें। संभव है, आप गुटका खाने के आदी हों और गुटका न छोड़ पाएँ । यह भी संभव है आप पान खाने के आदी हों और पान न छोड़ पाएँ । हो सकता है आप चाय पीने के शौकीन हों और चाय न छोड़ पाएँ, पर तनावों को पालने के आदी होने का तो कोई अर्थ ही नहीं है। चिंताओं को अपने दिमाग में धरे रखने का कोई औचित्य नहीं है। यह आपके जीवन की जरूरत कतई नहीं है। तनाव आपकी विफलता का कारण है। हम सिगरेट को छोड़ने की कोशिश बाद में करेंगे। पहले अपने दिमाग में जो व्यर्थ का कचरा भरा पड़ा है, चिड़चिड़ेपन का, गुस्से का, चिंता का, ईर्ष्या का, हम उसे त्यागने के लिए कृतसंकल्प हों। व्यक्ति अपने गुस्से और क्रोध को व्यक्त कर देता है तो उसकी दूषित ऊर्जा खर्च हो जाती है लेकिन जब वह अपने गुस्से का, अपने चिड़चिड़ेपन का, अपनी खीझ का इज़हार नहीं कर पाता तो भीतर ही भीतर घुटते रहने पर जिस तत्त्व का निर्माण होता है, उसी का नाम तनाव है। जो चीज व्यक्ति के लिए चिंता का कारण बनती है, अगर वह उपलब्ध हो जाए तो व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है और नहीं मिल पाए तो वही चीज व्यक्ति की चिंता का कारण बन जाता है। यही चिंता तनाव देती है। व्यक्ति सबके साथ मिल-जुलकर चल रहा है, किन्तु यदि वह अकेला पड़ मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ७१ For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाए तो खुद को भयभीत पाता है और इस भय के कारण व्यक्ति के दिमाग पर जो प्रतिक्रिया पैदा होती है, उसी के परिणामस्वरूप तनाव का जन्म होता है । बात खींचने पर बढ़ती है, रस्सी खींचने पर टूटती है । सिगरेट का कश लगाने पर वह छोटी होती है, ऐसे ही आदमी अपने दिमाग को जितना खींचेगा, जितने उसे रगड़ लगेंगे, आदमी का तनाव उतना ही बढ़ेगा। भला जब ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है तो हम अपनी बुद्धि को तनाव के कारण क्यों जलाएँ? मनुष्य का मस्तिष्क एक तरल पदार्थ के भीतर सुरक्षित रहता है जैसे पानी तालाब में रहता है । पर अगर पानी सूख जाए तो सरोवर की मिट्टी की कैसी दशा होती है? सूखे हुए तालाब की मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं, ऐसे ही तनाव, अवसाद, चिंता से घिर चुके मनुष्य का दिमाग भी तालाब की सूखी मिट्टी की तरह दरारों में बंट जाता है। तनाव विफलता का परिणाम होता है और विफलता तनावग्रस्त मानसिकता का परिणाम है । जैसे कोई आईना टूटने के बाद चेहरा देखने के काबिल नहीं रहता वैसे ही जो व्यक्ति तनाव से घिरा है, वह भी टूटे हुए आईने की तरह हो जाता है । लगातार तनाव से घिरे रहने के कारण उसके पास न तो प्रेम टिकता है, न शांति फटकती है, न उसे कोई सुकून मिलता है, न उसे खाने का आनंद आता है और न वह जीने का लुत्फ उठा पाता है। I वह अपने आप में कुछ नहीं कर पाता । उसे सिर्फ डॉक्टर और दवाखाना ही दिखाई देता है । जो व्यक्ति अपने जीवन में तनावों से बचने के गुर, बचने के तरीके आत्मसात् कर लेता है वह न्यूरो की हर बीमारी पर विजय प्राप्त कर लेता है । जब तक धरती पर रहने वाले लोग अपने जीवन के साथ तनाव को जोड़े हुए रखेंगे तब तक डॉक्टर की, सुबह की गई हर प्रार्थना सार्थक होती रहेगी क्योंकि मरीजों की फीस से ही उसका धंधा चलता है । तनाव छोड़ने जैसा है। जिनके पास तनाव है उनके पास शांति नहीं है । कोई भी पक्षी जो चाहे तोता, चिड़िया या कबूतर हो, वे ऐसी किसी डाल पर बैठना पसंद नहीं करते जिस डाल के नीचे आग लगी हो या जिस पेड़ की शाखाएँ आग से झुलस रही हों । I ७२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शांति वहीं रहती है, प्रेम वहीं टिकता है, मधुरता और विनम्रता की सुवास वहीं पनपती है, सफलता की मंज़िल वहीं मिलती है जहाँ तनावरहित आनंदमूलक स्थिति रहती है। कहते हैं, रगड़ खाकर दुनिया में सबसे पहले कोई चीज उत्तेजित होती है तो वह माचिस की तीली है। माचिस की तीली को ज्यों ही जरा-सी रगड़ लगी और वह आग से सुलग उठती है। हम देखें अपने-आप को। दुनिया में रहने वाला हर आदमी धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक अपने-आप में देख ले कि कहीं वह माचिस की तीली तो नहीं बन चुका है? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ है कि एक छोटी- सी रगड़ लगी और आग सुलग उठी? कहीं किसी का एक छोटा-सा शब्द कानों में पड़ा और हम उत्तेजित हो गए? किसी की एक छोटी-सी गाली हमें क्रोधित कर गई। संभव है, आप चल रहे थे और चलते-चलते ही किसी का पाँव आपके पाँव पर आ गया और आप शांतिनाथ से अशांतिनाथ हो गए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जैसे माचिस की तीली जरा-सी रगड़ पाकर सुलग उठती है, ऐसे ही हम कभी चिंता के कारण, कभी तनाव के कारण, कभी क्रोध के कारण, कभी बोरियत के कारण सुलग उठते हों। क्या कभी आपने माचिस की तीली पर ध्यान दिया है? उस माचिस की तीली के एक डंडी होती है, वैसे ही हम भी एक डंडी की तरह हैं। तीली के ऊपर एक गोल आकार रहता है वैसे ही हमारा यह माथा तीली की तरह गोलाकार होता है। माचिस की तीली के सिर तो होता है जैसे हमारे होता है। लेकिन हममें और तीली में फर्क मात्र इतना-सा ही है कि माचिस की तीली के सिर तो होता है पर दिमाग़ नहीं होता और हमारे सिर भी होता है और दिमाग़ भी। माचिस की तीली इसीलिए झट से सुलग उठती है क्योंकि उसके पास दिमाग़ नहीं, केवल सिर होता है। और हमारे पास तो मन भी है, बुद्धि भी है, मस्तिष्क भी है, सोचने और समझने की क्षमता भी है और विवेक और ज्ञान का उपयोग करने का सामर्थ्य भी है। अत: हम माचिस की तीली न बनें। अपने तनावों को छोड़ सकते हैं तो जरूर ही उनका त्याग कर दें। मैं आपको कुछ ऐसी मूलभूत बातें बता रहा हूँ कि जिन बातों को ध्यान में मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ७३ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखकर आप तनाव से बच सकते हैं और अगर तनाव है तो भी उसे त्यागने का मार्ग अपना सकते हैं। वे नुस्खे, जीवन की कला के ऐसे जीवित अमृतमंत्र हैं, जिनको अपनाने से हमें कभी तनाव नहीं होगा। तो पहली बात- अगर हम अपने जीवन में ध्यान रख सकते हैं तो मैं कहूँगा कि जीवन में चाहे जैसी परिस्थितियाँ आएँ, आप किसी भी परिस्थिति से विचलित मत होइए। उस विपरीत परिस्थिति का सामना कीजिए, उस समय अपनी बुद्धि का श्रेष्ठतम उपयोग कीजिए। आपके पास जितनी भी ईश्वरप्रदत्त, प्रकृतिप्रदत्त बुद्धि है उसका श्रेष्ठतापूवर्क उपयोग कीजिए। आप पाएंगे कि आप अपनी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ हो चुके हैं। माना कि आपके आसपास चार लुटेरे आ चुके हैं और आप अकेले हैं। अगर आप पहले ही क्षण यह सोच बैठे कि अब मैं क्या करूँगा तो तत्क्षण ही आपके भीतर तनाव पैदा हो जाएगा और आप कोई निर्णय करने में सक्षम न रहेंगे। लुटेरे आएँगे, आपको लूटेंगे और जाते समय मारकर भी चले जाएँगे। जब जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो उन्हें हम जीवन की सबसे बेहतरीन कसौटी समझें और उन क्षणों में ही अपनी बुद्धि का श्रेष्ठतम उपयोग करें। वे ही हमारी शिक्षा, हमारी समझ, हमारी शांति की कसौटी बनते हैं और तब हम उन विपरीत परिस्थितियों को पार कर लेने का सामर्थ्य भी अपने भीतर सँजो पाते हैं। अपनी पूरी चतुराई, पूरी बुद्धिमानी, पूरे माधुर्य का आप उपयोग कर डालें और इस तरह से आप विपरीत परिस्थितियों का सामना करें। आप पाएँगे, घटना घट गई पर किसी घटना ने आपको तनाव नहीं दिया। मुझे याद है अपने बचपन में पढ़ी हुई वह घटना कि जहाँ जंगल में रहने वाले पक्षियों को बहुत तेज प्यास लगती है और पक्षी भटकते-भटकते एक ऐसे घड़े के पास पहुँचते हैं जिसके तल में कुछ पानी है। यह घटना जितनी मुझे याद है, लगभग उतनी ही आपको भी याद होगी। घटना मुझे बार-बार प्रेरित करती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी बुद्धि तथा समझ का कैसे उपयोग किया जाता है? यह घटना बताती है कि उस घड़े के ७४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास एक कबूतर भी पहुँचा और उसने झाँका। पानी नीचे था, बहुत नीचे। उसने अपने आपको झुकाने की कोशिश की, पर पानी न पा सका और वह उड़ गया। पानी तो था पर वह पानी से लाभान्वित न हो सका। चिड़िया भी आई होगी, तोता-मैना भी आए होंगे, पर कोई पानी न पी सका। तभी एक कौआ आया। कौए ने देखा कि घड़े में पानी नीचे है। परिस्थिति विपरीत थी उसके सामने। इसका समाधान कैसे किया जाए? उसने इधर-उधर नजर घुमाई और देखा कि वहाँ कुछ कंकर पड़े हैं। उसने एक-एक कंकर चोंच से पकड़ कर उठाया और घड़े में डालना शुरू कर दिया। कंकर नीचे जाते गए और पानी ऊपर आता गया। पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ आराम से पानी पी सका। उसने पानी पिया, प्यास बुझाई और मुक्त आकाश में उड़ान भर गया। विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए, इसके लिए इस कहानी से कौए की चतुराई की प्रेरणा लो। इस कहानी को याद रखो विशेष रूप से तब- जब हकीकत में विपरीत परिस्थितियों से सामना हो तो आप उनका समाधान ढूँढ सकें। कहते हैं, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। साधक व्यक्ति के लिए तो खाली दिमाग अमृत का वरदान है, लेकिन आम इंसान के लिए खाली दिमाग शैतानियत करने की, कोई न कोई खुराफात करने की प्रेरणा जगाता रहता है। वह सोचता है कि ऐसा करके देखू, वैसा करके देखू । तो हम अपने आप को व्यस्त रखें। नहीं तो हाल ऐसा ही होगा जैसा उस फालतू व्यक्ति का हुआ था। उसके पास कोई काम न था। वह बेकार बैठा रहता था। बेकार था तो वह आलसी भी हो गया। वह हर काम कई घंटों में पूरे करता। नहाता तो दो घंटे लगाता, जब ब्रश करता तो घर के बाहर आकर चौकी पर बैठ जाता, लोग आते, उनसे बातें करता और दाँतों को रगड़ता रहता। __ जैसा कि कल मैंने मोती भाई पटेल की बात बताई। बड़ा गजब का आदमी था वह । उल्टे-सुल्टे दिमाग का प्रतीक। उसके दिमाग में आया कि साँड तो बहुत कद्दावर है, इसके सींग भी बहुत शानदार हैं। एक बार अपना मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ७५ For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिर तो इन सींगों के बीच घुसाकर देखू कि क्या होता है? मोतीभाई प्रतीक है। ऐसा फालतू आदमी, बेकार आदमी और कुछ नहीं तो साँड के सींग में ही माथा डालने की सोचेगा। आखिर एक दिन उसने सींगों के बीच अपना माथा घुसेड़ ही दिया और जैसे ही माथा घुसा, साँड चौंका और इधर-उधर भागने लगा और उलट-पुलट करना शुरू हो गया। बेचारे आदमी की दस-बीस हड्डी-पसली जरूर टूट गई होगी। गाँव वालों ने बमुश्किल उसको निकालकर बचाया। गाँव वालों ने कहा, 'अरे, कुछ तो सोचकर करते।' मोतीभाई ने कहा, 'आप लोग भी कैसी बेवकूफी की बात करते हैं। अरे, मैंने पूरे तीन महीनों तक सोचा और उसके बाद ही माथा डाला है। अब इससे ज्यादा कितना सोचूँ।' फालतू बैठे आदमी की सोच भी उसके जैसी फालतू ही होती है। इसीलिए कहता हूँ व्यस्त रहो। जीवन में हर समय व्यस्त। पर अस्तव्यस्त मत रहो। मैं एक बार किसी जेल में गया था क्योंकि वहाँ मुझे कैदियों को सम्बोधित करना था। जब मैं जेल के भीतर गया तो वहाँ मुझे दो पंक्तियों का एक अमृत वाक्य पढ़ने को मिला कि 'अगर तुम दुःखों से मुक्त रहना चाहते हो तो अपने आपको हर समय व्यस्त रखो।' मैंने वे पंक्तियाँ पढ़ी और मुझे मंत्र की तरह लगीं। जैसे कृष्ण जेलखाने में पैदा हुए थे लेकिन वहाँ पैदा होना ही उनके लिए और धरती के लिए मुक्ति का द्वार बन गया। ऐसे ही जब मैं जेल में गया तो वहाँ से यह अमृत सूत्र लेकर आ गया कि 'हरदम अपने को व्यस्त रखो।' मैं दो व्यक्तियों की बात करूँगा। मैं उन दोनों व्यक्तियों का साक्षी हूँ जिनकी पत्नी मर गई थी। एक व्यक्ति करीब पैंसठ वर्ष का और दूसरा करीब चालीस वर्ष का था। पैंसठ वर्ष के आदमी की पत्नी मर गई तो मैं देखता कि वह आदमी रात को किसी धर्मस्थान में जाकर सो जाता। इत्तफाक की बात कि एक दिन मुझे भी उस धर्मस्थान पर जाने का मौका मिला। वहाँ पाँचसात दिन तक रहने का अवसर भी मिला। मैं देखा करता कि वह आदमी रात भर तड़पता, हाथ-पाँव पटकता रहता और कहता, 'अरे तू मर गई पर मेरा ७६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीना दुस्वार कर गई।' मैं उसे देखा करता कि मरी तो उसकी पत्नी है, पर तनावग्रस्त वह हुआ है। वह दिन-रात फालतू रहता। नतीजन उसे रह-रहकर अपनी पत्नी की याद आती। वहीं मैंने देखा एक ऐसे व्यक्ति को जिसकी उम्र चालीस वर्ष की रही होगी। उसकी पत्नी भी मर गई। उसने स्वयं को, जितना व्यस्त वह पहले था, उससे दुगुना व्यस्त कर लिया। परिणामतः उसकी व्यस्तता ने पत्नी की याद से उत्पन्न तनाव से मुक्त कर दिया, उसे तनाव से बचा लिया। तुम, सुबह उठने से ले कर रात को सोने तक स्वयं को सतत व्यस्त रखो। सुबह-सुबह तेज रफ्तार से पच्चीस मिनिट के लिए घूमने चले जाओ, व्यायाम कर लो, योगासन कर लो, ध्यान कर लो आधा घंटा। दुकान चले जाओ, अखबार पढ़ लो, बच्चों के बीच बैठ जाओ, बच्चों से प्यार करने लग जाओ। पत्नी से मिलो, माँ-बाप की सेवा में चले जाओ, कुछ भी करो लेकिन खुद को काम में लगाए रखो। ऐसा करने से आपका दिमाग फालतू के विचारों में खर्च नहीं होगा। आप एक और मंत्र लीजिए कि आप जो कुछ भी करते हैं, जैसा भी करते हैं, उससे प्यार करना सीखिए। जो भी व्यवसाय करते हों, विद्याध्ययन करते हों या अन्य कुछ भी काम करते हों, उससे प्यार करना सीखो। बेमन से कोई काम मत करो। बोझिल मन से किया गया काम पाँव की बेड़ी बन जाता है जबकि उत्साह भाव से किया गया काम व्यक्ति के लिए मुक्ति का प्रथम द्वार हो जाता है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर काम अच्छा होता है। कभी किसी काम को करने में यह न सोचो कि यह काम छोटा और यह काम बड़ा। अगर तुम गरीब हो और धन नहीं लगा सकते तो बड़े व्यापार के बारे में मत सोचो। तुम फल की दुकान लगाकर बैठ जाओ और बड़े प्यार से उस धंधे को करो। तुम्हें मुनाफा होगा। फिर किसी अन्य व्यवसाय के बारे में विचार करो। अरे, दुनिया में कई लोग तो रद्दी इकट्ठी करके भी अपना गुजारा कर लेते हैं। मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ७७ For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • हर कार्य को पूरे सलीके और पूर्ण उत्साह से कीजिए कि अगर कहीं स्वर्ग के देवता भी उसे देख लें तो तारीफ कर उठें। सलीके से काम करो । बहुत काम खराब ढंग से करने के बजाय थोड़े से काम अच्छे ढंग से करना श्रेष्ठ है। अच्छे तरीके से, बहुत प्यार से, अदब से, मन से किसी भी काम को कीजिए। हां, अपने काम को इतनी परिपूर्णता के साथ कीजिए कि फिर किसी अन्य को उस काम को दोहराने की जरूरत ही न पड़े। अगर आप एक गृहिणी हैं, एक महिला हैं तो अपने घर में झाडू भी इतने ढंग से लगाइए कि फिर किसी और को दुबारा झाडू लगाने की जरूरत न पड़े। ऐसा लगे जैसे मंदिर में प्रभुभक्ति कर रहे हों या रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' लिख रहे हों या कोई उपन्यासकार अपने नूतन उपन्यास की रचना कर रहा हो । इतने सलीके से बुहारिए कि झाडू लगाना भी किसी कहानी को पढ़ने जैसा आनन्द दे जाए। आँगन इतना साफ हो जाए कि आपके घर आने वाला एक बार तारीफ़ कर ही दे और जब वह खुद के घर जाए तो अपनी पत्नी से कहे, 'सफाई किसे कहते हैं, यह तुम वहाँ जाकर सीखो । ' परिपूर्णता के साथ किया गया काम कभी छोटा या बड़ा नहीं होता । किस मन से आप काम करते हैं यह महत्त्वपूर्ण है। दुनिया का हर बड़े से बड़ा काम छोटा हो जाता है अगर आप उसे पूरे दिल से करें और छोटा काम भी बड़ा हो जाता है अगर उसे बोझिल, उदास मन से किया जाए। इसलिए अपने काम से प्यार करना सीखिए। अगर आप जिंदगी भर अपने आपको तनावमुक्त देखना चाहते हैं, खुश देखना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप अपने काम प्यार करें। तनाव एक बात और कहना चाहूँगा कि आप अपने आप को सदैव प्रसन्न रखें। प्रसन्नता सर्दी में सुबह की खिली धूप की तरह सुहावनी लगती है । से मुक्त रहने के लिए, तनाव से बचने के लिए यह प्रथम और अंतिम रामबाण औषधि है - हर हाल में मस्त रहना । अपने आपको इतना प्रसन्न रखिए कि अगर कोई गुस्सा करे तब भी आप मुस्कुराना मत भूलिए। गुस्सा उसे आ रहा है, उसकी मजबूरी पर हम गुस्सा क्यों करें? पापा ने डांटा, पापा आपकी सफलता आपके हाथ ७८ For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोचेंगे। उनको जरूर कोई परेशानी अथवा तनाव होगा। उनकी परेशानी हम अपने सिर क्यों लें? उनका तनाव उन्हें ही मुबारक ! पापा गुस्सा करें तो भी, और प्यार करें तो भी- आप तो बस मुस्कुराइए । भोजन कर रहे हैं तब भी मुस्कुराइए और भोजन करने के बाद हाथ धोते समय भी मुस्कुराना न भूलें । हो सकता है, प्रारम्भिक दौर में यह मुस्कान कृत्रिम हो, आरोपित हो पर यह आरोपित मुस्कान भी आपकी सहज मुस्कान को जागृत करने में सहयोगी बन सकती है। जब सुबह - सुबह जागें, तो आँखें खुलते ही चाय की बात मत सोचिए । ईश्वर को भी बाद में याद करना, माता-पिता को प्रणाम करने के लिए भी बाद में जाना, पत्नी का चेहरा भी बाद में देखिएगा, अगर कोई फोटो सामने लगा हुआ है तो उस पर भी बाद में नजर डालना, पहले जी भर कर डेढ़ मिनिट तक मुस्कुराते रहें । उठकर बैठें और तबियत से मुस्कुरा रहे हैं । इतनी तबियत से कि यह मुस्कान दिलो-दिमाग तक पहुँचे, भीतर तक उतरे, हृदय तक, हाथों तक, पेट, कमर, पाँवों तक वह मुस्कान फैल जाए। केवल डेढ़ मिनिट का प्रयोग करें। जब आप बिस्तर से उठेंगे तो आप महसूस करेंगे कि भीतर एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है । यह प्रसन्नता की ऊर्जा है, आनन्द की ऊर्जा है। आप अपने भीतर अलग तरह का उत्साह उमंग पाएँगे। जब आप माता-पिता को प्रणाम करने जाएँगे तो अनायास ही आपके भीतर ऐसी ही मुस्कान होगी जैसी कि सूरज के उगने पर फूल खिल उठता है, फूल मुस्कुरा उठता है। जैसे चाँद के निकलने पर कुमुदिनी खिल जाती है ऐसे ही आपके भीतर मुस्कान सतत बनी रहेगी। तब बच्चा आएगा या पत्नी सामने होगी तो भी वह सहज मुस्कान खिली रहेगी। भोजन करने से पहले मुस्कुराइए । कभी भोजन करते-करते लगे कि सब्जी खारी हो गई है तो भी एक बार यह सोच कर मुस्कुरा ही दीजिए कि जब उसे आपकी पत्नी खुद खाएगी तब उसे पता चलेगा कि आज कैसी सब्जी बनी है । किसी भी बहाने से ही सही, मगर आपके चेहरे पर मुस्कान हर हालत में रहनी चाहिए । मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ For Personal & Private Use Only ७९ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुकान जाओ कि बाजार जाओ, किसी झील पर टहलने के लिए जाओ या रात में सोने की तैयारी करो, तब भी मुस्कुराते रहिए । मुस्कुराने के लिए बहाना चाहे जो ढूँढ लीजिए। पर मुस्कान को कभी मरने मत दीजिए। चाहे जिएँ, चाहे मरें, पर मुस्कान हर हाल में रहे। कहते हैं एक लड़का हमेशा खुशमिजाज रहता। था भी विनोदी स्वभाव का। एक दिन उसके पापा की कमर में चनक पड़ गई, सो दर्द ज्यादा ही हो रहा था। पापा ने बेटे से कमर दबाने को कहा। पर लड़का इतना हल्का था कि उसके वज़न से पापा का कमर दर्द ठीक न हो पाया। लड़के ने अपनी मम्मी से कहा कि मम्मी तुम पापा की कमर दबा दो। इत्तफाक की बात कि मम्मी उस समय झाड़ लगा रही थी। सो वह पापा की कमर दबाने आ गयी। पापा ने कहा, पाँव से दबाओ, ताकि जोर पूरा लगेगा। __ मम्मी अपने पाँवों से पापा की कमर दबा रही थी। एक हाथ में झाड़ था। बेटे को खुराफ़ात सूझी। उसने कमरे की ओर से फोटो खींच लिया। दो महीने बाद जब पापा-मम्मी की 'मैरीज-एनवर्सरी' आई, तो बेटे ने उन्हें एक पैकेट गिफ्ट दिया और शर्त रखी कि आप इसे अकेले में खोलेंगे। मम्पी पापा दोनों कमरे में गए। पैकेट खोला, तो चौंक पड़े। उसमें एक लेमिनेटेड फोटो था, जिसे देखने पर लग रहा था मानो मम्मी पाँवों से पापा की पिटाई कर रही हो और हाथ में रखे झाड़ से हजामत। मम्मी-पापा को काटो तो खून नहीं। उन्हें बच्चे की शरारत पर गुस्सा भी आया और हँसी भी। मम्मी तो सीधे झाड़ उठा लायी बेटे की पिटाई करने को। वह जैसे ही बेटे के पास आई कि लड़के ने कहा, मम्मी, सावधान! मेरे पास फोटो की दूसरी कॉपी भी है। अगर पिटाई की, तो फोटो सार्वजनिक हो जाएगा। तभी पापा अन्दर से आए और कहने लगे, 'ऐसा 'अप्रेल फूल' जिन्दगी में पहली बार बना।' और यह कहते हुए उन्होंने बेटे को गोद में उठा लिया। सब हँस पड़े। उस घटना की घर में जब भी चर्चा होती है, तो सहज ___ आपकी सफलता आपके हाथ ८० For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही हँसी की होली छूट पड़ती है । जीवन भर तनाव से मुक्त रहने के लिए सौम्य मुस्कान से बढ़कर अन्य कोई मंत्र नहीं हो सकता, अन्य कोई अमृत-पथ नहीं हो सकता । ध्यान रहे, दाँत मत दिखाना किसी को । इतने जोर से भी मत हँसना कि तुम्हारी असभ्यता उजागर हो। केवल मुस्कान ही बनी रहे ! हँसना नहीं, मुस्कुराना है। लोग लॉफिंग क्लब चलाते हैं । अरे, इतनी जोर से मत हँसो कि हृदय पर दबाव पड़े या मस्तिष्क की नसें तन जाएँ। लोग हँसते हैं, चिल्ला-चिल्लाकर हँसते हैं और कहते हैं कि दिमाग का पूरा कचरा निकाल दो। 'अरे भइया, कचरा तो निकाल रहे हो, पर कहीं कुछ साइड इफेक्ट न हो जाए, इस बात का भी ध्यान रखना । मुस्कुराना सदाबहार फूल की तरह है, जिससे आप अपनी चिकित्सा खुद कर रहे होते हैं । इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। हां, कभीकभी हो भी सकता है जब पापा गुस्सा कर रहे हों और आप मुस्कुरा दें। तो ऐसा मार्ग क्यों न अपनाएँ जिससे निन्यानवें फायदे और एक नुकसान हों। आप चाहें तो उस नुकसान से भी बच सकते हैं। ध्यान रखें, पापा को गुस्सा आने पर आप उनके सामने मुँह करके मत मुस्कुराइए । मुस्कुराएँ तो जरूर, पर अपना मुँह थोड़ा घुमा लीजिए और तब बात कीजिए । यह औषधि स्वयं मनुष्य द्वारा ईजाद की हुई है। इसका एक प्रतिशत साइड इफेक्ट होता है और शायद उससे भी हम बच सकते हैं। प्यार से हर समय मुस्कुराते रहिए। ये नाचते मोर, गुटरगूं करते कबूतर, रंग बिखेरते इन्द्रधनुष, उमड़ती लहरें, खिलते फूल, टिमटिमाते तारे - हमें सौम्यता के, मुस्कान केही तो संदेश देते हैं । मधुर वाणी और मधुर मुस्कान - जीवन की सफलता के लिए इससे बढ़िया और कोई मन्त्र नहीं है। जरा आप मुझे बताइये कि कोई आपसे पूछे— 'कैसे हैं जनाब?' तो आपका क्या जवाब होगा? आप सहजता से कहेंगे, 'मजे में हूँ।' अपनी इस पंक्ति को हमेशा याद रखिए और अपने आपसे पूछते रहिए कि कैसे हो ? मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ For Personal & Private Use Only ८१ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीधा जवाब आये- 'मजे में हूँ।' तनाव-मुक्ति के लिए यह अच्छा सूत्र है'मैं मजे में हूँ।' बस, इस जवाब को सदा याद रखिए और मस्ती से, फकीरों की इस अलमस्ती से, मुस्कान और आनन्द से भरे रहिए। कोई गम का वातावरण भी बन जाए, आपकी किसी की मृत्यु भी हो जाए तो भी आंतरिक मुस्कान क्षीण न हो। हमारा अपना ही मित्र हो, प्रियजन हो पर आँसू भी गिरें तो भी मुस्कान के साथ। आँखें गीली हों पर हृदय की मुस्कान कम न हो। आप उसे अपनी मुस्कान की श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए। अपनी मुस्कान के चार फूल अर्पित कीजिए कि उसे मुक्ति मिल गई। आँसू ढुलकाने से उसकी आत्मा को भी अशांति पहुँचेगी, किन्तु मुस्कान के फूल चढ़ाने से उसकी आत्मा की भी सद्गति होगी। अगर आप रोएँगे तो संभव है, वह आत्मा पुनः देह में लौटने को आतुर हो जाए या किसी भी बहाने आपके आसपास ही मंडराए। अगर आप मुस्कुराहट के साथ उसे विदा करेंगे तो सबके लिए अच्छा है। 'ठीक है प्रभु, यह काया जो तुझसे मिलने में बाधक थी, वह विसर्जित हो गई।' 'मेरा मित्र तुझमें समा गया, तुझे प्रणाम है।' तुम मित्र को भी प्रणाम करो, दादा गुजर गए हों तो उन्हें भी प्रणाम करो और ईश्वर को भी प्रणाम करो। लेकिन मुस्कान हर हालत में बनी रहनी चाहिए। तो लोगों से मिलें तब भी मुस्कुराकर मिलें। छोटी-छोटी बातों को लेकर गुस्सा न खाएँ। छोटी-छोटी बातों और गलतियों को नज़र अंदाज करने की आदत डालें, वरना आप फिर-फिर खिन्न और क्रोधित हो उठेंगे। होहल्ला करने की आदत छोड़िए। शांति को मूल्य दीजिए । तौलिया जब फर्श पर है, तो सुर अर्श पर क्यों? हो-हल्ला करने से आपका चेहरा बड़ा भद्दा दिखाई देने लग जाएगा, जबकि उसे सुन्दर रखने के लिए आप न जाने कितनी तरह के क्रीम-पाउडर लगाते हैं। सदाबहार खुश रहना संसार का सबसे अच्छा क्रीम-पाउडर है। 'फील गुड' का आजकल बड़ा प्रचार है। फील गुड अर्थात् हर समय अच्छे मिजाज के मालिक बनो। तनाव घटाने के लिए कभी-कभी थोड़ा संगीत भी सुनिए, रसप्रधान संगीत सुनिए। जो बातें मैंने पहले कही हैं, वे तो तनाव पैदा ही न हो, ८२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके लिए हैं। पर पुरानी बीमारियाँ अगर रही हैं, तनाव अगर पहले से ही है तो उसको भी तो दुरुस्त करना पड़ेगा। आप थोड़ा संगीत सुना करें, कभीकभी। दिन भर रेडियो या टेप न चलाएँ बल्कि मधुर संगीत, जैसे बाँसुरी या अन्य कोई वाद्ययंत्र जो वातावरण में मधुरता घोल दे, सुनें। अगर खुद बजा सकते हों तो अच्छा है और न भी बजा सकते हों तब भी किसी अच्छे कलाकार की बाँसुरी के स्वर, कभी वीणा-सितार के स्वर आधा घंटे तक चलाइए और उसका आनंद लीजिए। तनाव घटाने के लिए एक काम और कर सकते हैं । वह यह कि यदि आप कभी शाम के समय जब आराम कुर्सी पर बैठे हैं तो एक कागज हाथ में ले लीजिए और चित्र बनाना शुरू कर दीजिए। हो सकता है, आपको चित्र बनाना नहीं आता हो। कोई बात नहीं, आड़ी-तिरछी रेखाएँ ही खींचिए। घोड़ा बनाने की कोशिश कीजिए। हो सकता है घोड़ा नहीं, घास बन जाए। घोड़ा न बने और उसकी जगह मुर्गा बन जाए। कोई बात नहीं, आप अपना काम जारी रखिए। बच्चा जब पहले-पहले कलम हाथ में लेता है तो आड़ीतिरछी चलाता है। जो वह भी करता है, उसे देखकर खुश भी होता है। उसकी कल्पना काम करती है। धीरे-धीरे हो सकता है कि वह पूरा चित्र ही बना डाले। कुछ दिनों के बाद आप भी पाएंगे कि आपने कोई सृजन किया है, कुछ निर्माण किया है। आपने जो कुछ भी निर्मित किया है, उससे आपको बहुत सुकून मिलेगा। सृजनात्मक कार्य का अपना आनन्द है। ऐसा सृजन जो धन कमाने के लिए नहीं होता पर रचनात्मक जरूर होता है। यह रचनात्मकता ही आपके तनाव को कम करेगी। तनाव को कम करना है, तनाव को हटाना है तो एक प्रयोग और कर सकते हैं । वह यह है कि दस-पंद्रह मिनिट के लिए आप लेट जाइए। अपने पाँव के अंगूठे पर अपना ध्यान लगाइए और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए अपने शरीर के एक-एक अंग पर धैर्यपूर्वक अपना ध्यान केन्द्रित कीजिए। जहाँजहाँ तनाव है, खिंचाव है, वहाँ-वहाँ शिथिलता, रिलैक्स होने का भाव करें। इतना रिलैक्सेशन कि आपका तनाव घट जाए। पन्द्रह मिनिट तक किया गया मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह प्रयोग हमको निश्चित ही तनाव से उबार देता है बशर्ते हम यह प्रयोग थोड़ा धैर्य और ईमानदारी से करें। अगर आपकी कमर में दर्द है तो तीन मिनिट का प्रयोग करें और अपना ध्यान उस ओर ले जाएं। उस भाग की मांसपेशियों को ढीला छोड़ें, शिथिल करें, सहज होने दें। अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा और ध्यान उस भाग पर केन्द्रित कर दें। अपने स्वयं के प्रयोग से अगर लाभ न हो तब फिर किसी चिकित्सक के पास जाइए और औषधि लीजिए। तीन मिनिट में यह रिलैक्सेशन, शिथिलीकरण और शवासन आपको भला-चंगा कर देगा। कभी-कभी कोशिश कीजिए कि आप प्रकृति के पास जा सकें। किसी खिले हुए फूल के पास जाइए। उसके सौन्दर्य और उसकी सुवास को महसूस कीजिए। प्यार से उसे सहलाइए। अगर कोई कबूतर गुटरगूं कर रहा है तो उसे उड़ाइए मत । उसके पास जाकर बैठ जाइए। उसकी गुटरगूं सुनिए। आपको बहुत मजा आएगा। कबूतर के जोड़े की गुटरगूं का आनन्द लीजिए। आप देखिए कि उसमें जीवन का आनंद किस प्रकार संचारित है। उनमें भी जीवन का क्या स्वरूप है? उनकी गुटर-गूं का अपने मन की गुटर-गूं से मिलान कीजिए। उसकी मनोदशा तथा समता का अनुभव होते ही आपका मन भी शांत होने लगेगा। आप कभी उड़ते हुए पंछियों को देखें, खिले हुए फूलों को देखें, उगते हुए सूरज को देखें, बादलों को सूरज से अठखेलियाँ करते हुए देखें, आसमान में टिमटिमाते हुए तारों को देखें, चाँद के शीतल प्रकाश में स्वयं को एकरूप कर दें। कुछ भी कर सकते हैं। आप यदि और किसी सरोवर के पास चले गए तो वहाँ उठती-गिरती लहरों को देखें और किलोलें करते हुए पक्षियों का कलरव सुनें। प्रकृति के सान्निध्य में जीने से व्यक्ति अपने सान्निध्य में आता है और वहीं उसका तनाव मिट जाता है। कभी किसी फूल के पास जाओ तो उसे तोड़ो मत, उसे प्यार से चूम लो। वह कली, वह फूल आपको ऐसी अन्तर्चिकित्सा दे देगी, ऐसा अन्तर्राकून देगी कि फूल की खिलावट आपके अन्तर्मन में बस जाएगी। आपका मन भी फूल की तरह खिल उठेगा। ८४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये छोटे-छोटे सूत्र, ये छोटे-छोटे मंत्र ज्योतिकणों के समान व्यक्ति को तनाव से बचा सकते हैं, उसे तनाव से मुक्त कर सकते हैं। बेहतर होगा कि आप यह कोशिश करें कि अपने आप को व्यस्त रख सकें। आप अपने कार्य से प्यार करना सीखें । ये बातें जीने जैसी हैं। यह प्रयोग हर हमेशा करें कि मुस्कुराते रहें। जैसी भी स्थिति या परिस्थिति हो, दिल से मुस्कुराना न भूलें। सुबह आँख खुली कि अंग-अंग मुस्कुरा उठे। कभी रात में भी नींद खुल जाए तो भी मुस्कुरा दें और पुनः सोने का प्रयास करें। अगर नींद न आए तो वे ही बातें याद करें जो आपको सुकून देती हैं, आपमें मिठास भरती हैं। हमारी भावदशा ऐसी हो जैसे खिला हुआ फूल। तनाव से बचना और मुक्त होना हमारे ही हाथ में है। हम चाहें और वह काम न हो यह कैसे संभव है? इस वक्त भी प्यार से मुस्कुराइए और हर हाल में मस्त रहिए ! जीवन को बहुत सहजता से जिएँ । सहजता तनाव-रहित जिन्दगी की धुरी है। सहज जिएँ, सौम्य रहें, व्यस्त और मस्त रहें। आज के लिए अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। आप सभी के अन्तर्मन में विराजित परमपिता परमेश्वर की दिव्य आभा को प्रणाम ! मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ ८५ For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया जब भी हम अपने में जीवन-तत्त्व को निहारते हैं, तब-तब प्रकृति और परमात्मा के प्रति अहोभाव और साधुवाद से भर उठते हैं। जब-जब किसी के जीवन में रोग और मृत्यु के क्षणों के साक्षी होते हैं, तब-तब संसार के स्वरूप का चिंतन हो आता है कि 'नानक दुखिया सब संसार!' जब हम दुःख और कष्टों को देखते हैं, तो हृदय में आत्मसापेक्ष होने की प्रेरणा जगती है। जब सबके जीवन-तत्त्व को निहारते हैं तो परमार्थ के भाव हृदय में उजागर होते हैं। द:ख, ईर्ष्या, निराशा और कष्ट- ये सब जीवन के नकारात्मक पहलू हैं। जीवन को जीवन की दृष्टि से जीने का अनुभवं ही जीवन में अंतर्दृष्टि को खोलने का आधार है। अगर हम दुःखों को देखने जाएँगे, तो धरती पर ऐसा कौन-सा प्राणी है जिसे अपने जीवन में दुःखों और कष्टों का सामना न करना पड़ा हो। अगर सुखों को निहारते जाएँ, तो ऐसा कौन-सा स्थान और घटक है जहाँ हम सुखी होकर सुख देखने जाएँ और हमें सुख न दिखाई दे। For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काँटों को निहारेंगे तो जीवन में कष्ट ही कष्ट दिखाई देंगे और काँटों के ऊपर खिलने वाले गुलाबों पर ध्यान देंगे तो जीवन में खिलावट ही खिलावट नजर आएगी। हमारा जीवन तो हमारे लिए किसी तानपुरे की तरह होता है, जिसके तारों को अगर कसना और साधना आ जाए तो तानपुरे के तार संगीत का सुकून देने लग जाते हैं और अगर तारों को कसना और साधना न आए तो तानपुरे के तार ही कौए की काँव-काँव बन जाया करते हैं। यह एक सीधा-सा सवाल है कि तीन और तीन कितने होते हैं? अगर केवल योग बैठाना चाहेंगे तो तीन और तीन छह होते हैं। अगर रचनात्मक दृष्टि का उपयोग करते हैं तो तीन और तीन तैंतीस होते हैं। तीन और तीन को आपस में उलट दिया जाए तो वे छियासठ हो जाते हैं। तीन और तीन दोनों को ही एक दूसरे के विपरीत कर दिया जाए तो छत्तीस का आँकड़ा हो जाता है। तीन से तीन को अगर गुणा कर दिया जाए तो नौ हो जाते हैं और तीन माइनस तीन कर दिया जाए तो शून्य रह जाता है। यह तीन और तीन का आँकड़ा व्यक्ति को इस बात का सुकून देता है कि तीन और तीन = छह तो सारी दुनिया के लिए होते हैं किन्तु हमारे जीने की बलिहारी तो तब है जब हम तीन और तीन को तैंतीस कर सकें। तारों का कई लोग उपयोग नहीं करते होंगे। इसी तरह लोग तुम्बे का उपयोग भी नहीं करते होंगे, लाठी का भी कई लोग उपयोग नहीं करते होंगे, पर अगर उनका एक संयोजन, एक रचनात्मक संयोजन कर दिया जाए तो वही तुम्बा, लाठी और तार जुड़ कर तानपुरा बन जाया करते हैं। मेरे लिए जीवन एक तानपुरे का संगीत है। जब हम अपनी साँसों के साक्षी होते हैं तब वह उतना ही सुकूनदायी होता है जितना कि किसी तानपुरे के संगीत को सुनना। जब हम अपने चित्त की अनुपश्यना करते हैं, सुदर्शनीय चित्त के साक्षी होते हैं, तो उसे देखना भी वैसा ही होता है जैसा कि इस सारे जगत् को देखना। जैसे संसार में पहाड़ हैं, नदियाँ हैं, नाले हैं, पंछी हैं, गुलांचे खाते हुए हिरन हैं, गुटरगूं करते कबूतर हैं, चहचहाट करती चिड़ियाएँ हैं, दहाड़ते हुए जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ८७ For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेर हैं, डंक मारने वाले बिच्छू हैं, जहर उगलते साँप हैं, उसी प्रकार हम लोगों के चित्तों के भी यही हाल चाल हैं । हमारे चित्त में भी ऐसा ही संसार बसा हुआ है। हमारा मन और चित्त भी ऐसे ही गुटरगूं करते हैं, डंक मारते हैं, उगलते हैं, गुलांचे भरते हैं, और दहाड़ मारते हैं । हम अपने-अपने मन को पहचानें । जहर मैं चाहता हूँ कि व्यक्ति अपने जीवन के प्रति जीवन का वास्तविक नजरिया लेकर आए ताकि जीवन को जीवन के रूप में देख कर जीवन के जीवनदायी परिणाम निकाल सके। अगर हम केवल मृत्यु और देह की क्षणभंगुरता को ही देखते रहे तो हम संसार से उदासीन हो जाएँगे और यदि हमने जीवन को जीवन की दृष्टि से देखा तो हम संसार में रह कर भी कमल की पंखुरियों की तरह पूरी खिलावट के साथ अपना जीवन जी सकेंगे । जीवन सौ साल का हो सकता है, पर मृत्यु तो क्षण भर में आ जाती है । वह एक ही क्षण में सारा काम तमाम करती है और चली जाती है। यदि यह कहा जाए कि जीवन क्षणभंगुर है तो मैं कहूँगा तुम इस शास्त्र को बदल डालो। मरे देखे, मृत्यु क्षणभंगुर है जो पल में आती है, काम तमाम कर देती है और चली जाती है, पर जीवन को पूरे सौ साल जीना है । मृत्यु से कहीं ज्यादा उम्र होती है व्यक्ति के जीवन की । परिवर्तन क्षणभंगुर होते हैं पर उनके बावजूद भी जीवन का क्षण विद्यमान रहता है । इसलिए यदि हम जीवन जी रहे हैं तो बहुत प्रसन्नता, मधुरता, और आनंद से जिएँ । रोतेझींखते, निराश, तनावग्रस्त जीवन जिया तो ऐसा जीना जीना नहीं हुआ। वह जीवन के नाम पर भी शरीर के बोझ को ढोना हुआ । - जिंदगी की आखिरी घड़ी तक, जिंदगी के आखिरी क्षण तक जब लगे कि मृत्यु पास आ ही गई है तो भी उस अंतिम क्षण तक आप जीवन का ऐसा परिणाम निकालते रहो जैसे कि तबले और तानपुरे में अंतिम क्षण तक संगीत निकालने का सामर्थ्य होता है । यही तो व्यक्ति की प्रज्ञा और बोधदृष्टि है कि उसने अंतिम क्षण को आपकी सफलता आपके हाथ ८८ For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान लिया क्योंकि मृत्यु तो आएगी ही लेकिन हम मृत्यु के आने से पहले अपने जीवन का महोत्सव मना चुके होंगे। हम अपने जीवन की दहलीज पर मृत्यु को दस्तक नहीं देने देंगे वरन् मृत्यु की बजाय मुक्ति को आमन्त्रित करेंगे। मृत्यु तो कल होगी किन्तु हम अपनी मुक्ति को आज साध लेंगे । बोझिल मन से यदि हम नीचे से ऊपर भी आएँगे तो लगेगा कि परेशानी में पड़े हैं। पर उत्साह - भाव के साथ कहीं भी नीचे से ऊपर जाना चाहेंगे तो बड़े से बड़ा पहाड़ भी हमें कठिन नहीं लगेगा मुझे याद है कि जब मैं हिमालय की यात्रा पर गया था तो मेरे साथ पचहत्तर वर्ष के बूढ़े मेरे पिता संत भी थे। मैं यह देखता ही रह गया कि वे पूरे मनोयोग से हिमालय और गंगोत्री तक पहुँच गए। वे ठेठ नीचे धरातल से पैदल चलना शुरू हुए और वहाँ तक पहुँचे जहाँ तक उन्हें पहाड़ पहाड़ न लगा। पहाड़ उस व्यक्ति को पहाड़ लगता है जो पहाड़ को पहले ही चरण में बोझ मान लेता है । जिस व्यक्ति को पहाड़ पर चढ़ना भी शिखर पर चढ़ने की उपलब्धियों को प्राप्त करने की तरह लगता है, उस व्यक्ति के लिए पहाड़ पहाड़ नहीं होता । मैंने सुना है कि जब एक छोटी बच्ची अपने छोटे भाई को अपने कन्धे पर उठाए हुए पहाड़ी रास्तों से चल रही थी तो वह हांफने लगी क्योंकि पहाड़ी रास्ता था और उसकी पीठ पर उसका छोटा भाई था । चलते-चलते वह आगे पहुँची तो उसे एक और राहगीर मिला। उसने सोचा, 'बेचारी छोटी बच्ची और ऊपर से इतना अधिक बोझ !' उसने कहा, 'बिटिया, थक गई होगी और फिर तुम्हारे कन्धों पर इतना भार भी है। उसने राहगीर को घूरा, घूरकर देखा और कहा - 'खबरदार, जो आपने इसको भार कहा । यह तुम्हारे लिए भार होगा किन्तु मेरे लिए तो यह मेरा भाई है।' यह जवाब देते हुए उसने अपने छोटे भाई का माथा चूमा, फिर से उसे अपने कन्धे पर बिठाया और द्रुत गति से आगे बढ़ गई। जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया For Personal & Private Use Only ८९ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम उत्साह से काम करें, चाहे किसी से रिश्ता रखें या चाहे साधना में बैठें, यदि हम उत्साह और उमंग के भाव के साथ उत्साह और उमंग की पहल करेंगे तो उसके परिणाम भी उत्साह और उमंग के ही होंगे। अगर बोझिल मन से, मरे हुए मन से, कुंठिन मन से, व्यग्र मन से यदि भोजन भी करेंगे तो भोजन भी बेस्वाद ही लगेगा और रसगुल्ला भी नीरस हो जाएगा, फूल को सूंघना भी हमें पत्थर सूंघने की तरह लगेगा। उत्साह-भाव के साथ ही जीवन को जीया जाए और उत्साह भाव के साथ ही अपने कर्मयोग को सम्पादित किया जाए । व्यक्ति जब साँझ को घर लौटता है तो थका-हारा हुआ आता है और पत्नी से कहता है, 'बहुत थक चुका हूँ।' तब यह समझ लीजिए कि यह बात वही व्यक्ति कहेगा जो अपने घर से ही बेमन होकर निकला था। वहीं दूसरा व्यक्ति दिन भर मेहनत करके जब अपने घर लौटता है और आते ही अपने बच्चों को प्यार करता है, पत्नी से मुस्कुरा कर बोलता है तो इतना करने मात्र से ही उसके दिन भर की थकावट दूर हो जाती है। यही तो है हमारे जीने की कला जिसमें हम जिस भाव से, जिस उत्साह से, जिस कार्य को करना चाहेंगे तो वह कार्य उतना ही परिणामदायी होगा। उत्साह-भाव से किया गया हर कार्य स्वर्ग का द्वार होता है। जबकि निराश तथा बोझिल मन से किया गया कार्य नरक की फिसलन बन जाता है । इसलिए मेरे प्रिय आत्मन्, अपनी जिंदगी में हम जिसे हर हालत में संजोकर रख सकते हैं, वह हमारा उत्साह ही है। आपको वह कहानी याद होगी जो यह बताती है कि एक व्यक्ति पेड़ की टहनी पर लटका हुआ था । पेड़ की टहनी पर शहद का छत्ता था । हम लोगों ने यह भी सुना है कि उस पेड़ की टहनी को चूहा काट रहा था और पेड़ के तने को हाथी तोड़ रहा था । जहाँ व्यक्ति लटका हुआ था, उसके नीचे कुआँ था, उसमें अजगर मुँह खोले हुए पड़ा था । यह कहानी हमारी अपनी ही कहानी है । आप अपनी जिंदगी को ऐसी ही समझें और यह मानकर चलें ९० आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि हमारी जिंदगी भी इसी तरह से उत्तेजनाओं और वैर-वैमनस्य से घिरी हुई है। अब आप ही सोंचे कि हमें कैसे जीना है? हम मानकर चलें कि जब हम घर जायेंगे तो हमारी पत्नी हम पर चिल्लाएगी। हम उस समय भी उतने ही शांत रहें जितने कि पहले थे। यह पहले से तैयारी रखें कि जहाँ हम जा रहे हैं वहाँ के लोग हमारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे, पर हम शांत रहेंगे। जिंदगी में हर आदमी की स्थिति उस पेड़ पर लटकते व्यक्ति की भांति संत्रासों से घिरी रहती है। मैं आपको जिंदगी की रचनात्मकता देना चाहता हूँ। मैं आपसे यही अनुरोध करूँगा कि बाधाएँ तो जिंदगी में यूं ही आती रहेंगी पर जिस व्यक्ति ने शहद का रस पाने के लिए अपनी दृष्टि को ऊपर उठाया है, अपनी आत्मा को आकाश की तरफ उठाया है तो वह उसको उठाए ही रखे। बाधाएँ यों ही आती रहेंगी, लोग यं ही गालियां निकालते रहेंगे, यूं ही कोई महावीर के कानों में कीले ठोकता रहेगा और जीसस को सलीब पर चढ़ाता रहेगा। कोई किसी को कांटों का ताज पहनाता रहेगा पर जिंदगी की रचनात्मकता तो यही है कि हमने जिस आत्मा को आकाश की तरफ उठा लिया है अब उसको गिरने नहीं देंगे और जिंदगी के माधुर्य का, आत्मा के माधुर्य का, अस्तित्व के माधुर्य का जब तक की अंतिम जिंदगी है, तब तक की अंतिम बूंद लेने की कोशिश करते रहेंगे। ___ अपनी निराशा को दूर फेंको। अनुत्साह को अपने से हटाओ। अपनी बोझिलताओं को दूर फेंको। जैसे कोई आदमी दिन भर खाना खाता है और उसे शौच नहीं लगती तो वह क्या करेगा? और दूध नहीं पीए तो कब्ज हो जाएगी। यदि दूध में इसबगोल नहीं डाले तो भी कब्ज हो जाएगी। मैं कहूँगा कि वह थोड़ा सा इसबगोल और लेले क्योंकि हमारे दिमाग को भी थोड़ी सी कब्ज हो गई है। एक कब्ज है तो सौ रोग हैं। ऐसे ही हमारे दिलोदिमाग में भी कब्ज है। हर प्राणी को कब्ज रहती है और कोई इसका अपवाद नहीं रहता है। सभी का दिमाग कब्ज वाला है। किसी को ज्यादा कब्ज है तो किसी जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ९१ For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को कम। जब कोई एक बात दिमाग में घुस जाती है तो वह निकलती ही नहीं है। घुसेगी तो वह घुसती ही रहेगी और उससे जुड़ती हुई और सौ बातें आ जाएंगी। जिस घर में चोर आ जाता है, उस घर में सौ चोरों के आने का रास्ता खुल जाता है। हम सब भली भाँति जानते हैं कि ये चोर कौन है? कौन हैं वे जो हमारे दिमाग को भूत-बंगला बना देते हैं। तब हम जाते हैं किसी न्यूरोफिजिशियन के पास और कहते हैं- 'साहब, शांति नहीं है दिमाग में । हर समय अशांति लगी रहती है। ऐसा लगता है जैसे डिप्रेशन हो गया है।' मैं कहता हूँ, देख लो क्या-क्या है दिमाग में? जो-जो है, उसे निकाल दें। जब हम किसी पहलू को लेकर चिंता करते है, किसी बिन्दु को लेकर मन में चिंता पलती है, तो ऐसी चिंता को बाहर निकाल दो। किस बात की चिंता? एक ही बात को लेकर घुटते रहना कोई अच्छी बात नहीं है। हम सोचते रहते हैं 'मैं किसी से मिला और वो आदमी बिछुड़ गया। हम मिले, बात-चीत की और वह चला गया। ठीक है, जैसे हम आईने के सामने गये, चेहरा देखा, हम हट गए तो आईना साफ का साफ। मगर हम बाद में सोचते रहते हैं, 'अरे मैंने उसको ऐसा कह दिया। मैंने उसके साथ ऐसा सलूक कर दिया। वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा? पर हम यह नहीं जानते कि हम जिसके बारे में सोचते हैं वह भी हमारे बारे में सोचता होगा। मैं जिससे मिलकर आया हूँ वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा, इन व्यर्थ की चिंताओं को फेंक दें। उसे याद कर कर घुटो मत। बीती बातों को याद करके दिमाग को बोझिल मत करो। जो हो गया सो हो गया। जो होना होता है, सो होता है। जो होता है अच्छे के लिए होता है, यह मानकर सुखी रहो। होना था सो हो गया। अब उससे हमें क्या मतलब? हमने यदि किसी आदमी को चिंतित देखा हो, तो यह मान लो कि वह निरर्थक बातों में उलझा हुआ है और बेकार की बातों को याद करता रहता है। एक कहावत भी है कि निन्यानवे का चक्कर जब साथ लग जाता है तो बाबाजी सुबह जगते हैं पाँच बजे, मगर उनका निन्यानवे का चक्कर शुरू हो जाता है तीन बजे । वह चक्कर रातों में नींद में भी जारी रहता है और ९२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसकी चिंता मनुष्य के स्वप्न के रूप में प्रतिबिंब बन कर उसका पीछा नहीं छोड़ती। वह उसके पीछे लगी रहती है। आप न बीते की सोचें और न ही भविष्य की सोचें, केवल वर्तमान के साक्षी बनें, वर्तमान के अनुपश्यी बनें। वर्तमान में जो जैसी स्थिति है, उसका सामना करें। जो कल देगा वह कल की व्यवस्था भी करेगा। हमने हमारी व्यवस्था जो कल के लिए संजो कर रखी है, उनका क्या होगा? जब ऊपर वाले के बहीखाते में हमारा कल का दिन लिखा हुआ ही नहीं है तब कल के लिए बनाई गई व्यवस्थाएँ भी उपयोगी नहीं बन पाएँगी। . मेरे जिगर में एक बात बहुत विश्वास से जमी है कि बच्चा जन्म बाद में लेता है लेकिन माँ का आँचल दूध से पहले ही भर जाता है। जब हमारे जन्म के साथ ही जिंदगी की व्यवस्थाएँ शुरू हो जाती हैं तब व्यक्ति जिंदगी की व्यवस्थाओं को लेकर चिंतित क्यों हो? सन्तुष्ट रहें! आज जो जैसी स्थिति मिली है, जितना धन मिला है, जिन लोगों के बीच रहने का प्रसंग मिला है, उतने अवसरों को देखते हुए उनसे उतने ही सन्तुष्ट रहें। वे अगर बेहतर बनाए जा सकते हों, तो जरूर बनाएँ। कम-से कम चिंता और असंतोष की आग में तो नहीं झुलसें। अगर कोई मुझसे पूछे कि जिंदगी में मन की शांति पाने का बीजमंत्र क्या है, तो मैं कहूँगा कि मन में रहने वाली संतुष्टि से ही शांति का जन्म होता है। शांति और संतुष्टि सदा निश्चिंतता से आती हैं। जब जिसे जहाँ होना होगा, वह स्वतः ही हो जाएगा। ___ आप लोगों ने एक पुरानी कहानी सुनी होगी। एक राजा था। संयोगवश राजा के हाथ की अंगुली कट गई। उसने अपने वजीर से कहा कि आज तो मेरे हाथ की अंगुली कट गई।' वजीर ने कहा, 'महाराज, चिंता मत करो। जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है।' राजा क्रोधित हो गया। उसने कहा, 'एक तो मेरी अंगुली कट गई और ऊपर से यह वजीर कहता है, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।' वजीर को कैदखाने में डाल दिया गया। जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ९३ For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहते हैं, कुछ समय पश्चात् राजा कहीं शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया। जंगल के आदिवासियों ने उसे घेर लिया। उन्हें बलि के लिए हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति की आवश्यकता थी और राजा में वे सब गुण मौजूद थे। आदिवासी राजा को पकड़ कर बलि के स्थान पर लेकर आए। राजा का गला उस बलिवेदी में फंसा दिया गया। राजा बहुत मिन्नत करता रहा। वह कहता रहा, 'अरे भई, मैं तो यहाँ का राजा हूँ।' पर आदिवासी कहाँ सुनने वाले थे? जैसे ही पुरोहित वध करने के लिए आया तो उसने कहा, 'ठहरो! देवी उसी व्यक्ति की बलि स्वीकार करती है जिसके सारे अंग अखंड हों, यह कहते हुए जब राजा के शरीर को टटोला गया तो उसकी एक अंगुली खंडित थी। पुरोहित ने कहा, 'छोड़ दो इसे।' चिंता मत पालो । निश्चिंतता को जीवन में किसी गुलाब के फूल की तरह विकसित हो लेने दो। जीवन के अंतिम क्षण तक अपने धैर्य को बरकरार रखो। प्रकृति हमारी जरूर मदद करेगी। जिंदगी में चाहे निन्यानवे द्वार भी क्यों न बंद हो जाएँ मगर जो धीरज रखता है, कुदरत उसके लिए कोई-नकोई एक द्वार जरूर खोल ही दिया करती है। .. कहते हैं, राजा छूट गया। उसने सबसे पहले अपने वजीर को साधुवाद दिया क्योंकि उसने ठीक ही कहा था कि 'जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है।' राजा राजसभा में पहुँचा। वजीर को स्वागत के साथ बुलवाया गया और उसे मुक्त कर दिया। राजा ने कहा, 'वजीर, तुम्हारे कारण ही मेरी जान बच गई। लेकिन मेरे मन में एक सवाल है। सवाल यह है कि मेरी अंगुली कट गई यह तो मेरे लिए अच्छा हुआ, पर मैंने तुम्हें कैदखाने में डाला, यह तुम्हारे लिए कैसे अच्छा हुआ? 'तुम यह कैसे कह पाओगे कि जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है।' वजीर ने कहा, 'जहाँपनाह ! जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, इस सिद्धान्त पर आज मेरी और भी अधिक दृढ़ आस्था हो गई हैं। क्योंकि यदि आप मुझे कैदखाने में नहीं डालते तो मैं ही बलि का बकरा बन चुका होता। मैं वजीर था। इसलिए शिकार में आप मुझे अपने साथ अवश्य ले जाते। एक अंगुली कटी होने के नाते आप छूट तो जाते ९४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और मैं हलाल हो जाता। जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है, यह मानकर आप निश्चित रहें और चिंता न पालें । जो होना है, वह तो होगा ही । मृत्यु और जन्म समानांतर चलते रहते हैं । इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। फिर हम अपनी मस्ती से क्यों वंचित रहें? जिसका जो होना है, वह होगा । 'राम-राम', बड़ा ही अच्छा शब्द है 'राम-राम ।' तोता जिस तरह इस शब्द को बोलता है उस तरह से हमें नहीं बोलना है । 'राम-राम' का अर्थ होता है ‘आराम-आराम' अर्थात् राम में आराम करो। राम में रमण करो । अपने में निश्चिंत रहो । जो अपने में रमता है, उसका नाम राम है। बाकी तो सारा नाम और राम आजकल राजनीति का दाँवपेच बन गया है । निश्चिंतता! न अतीत की और न भविष्य की चिंता । जो है, उसके वर्तमानसापेक्ष बनें। आप वर्तमान जीवन के साथ अपने आप को जोड़ें। वर्तमान में जीना, वर्तमान को जीना, वर्तमान के होकर जीना - अपने आप में सत्य को ही जीना है, प्राप्त जीवन को ही जीना है । अतीत हमेशा चिंता को बढ़ावा देता है और भविष्य सपनों का जाल बुनता है। शांति के लिए तो एक ही मंत्र अपना लें : 'बीत गई सो बात गई ।' लोग अतीत से ऐसे चिपके हैं कि हजारों वर्ष पूर्व हो चुकी किसी माँ की तो दिन-रात पूजा करते रहेंगे और सामने खड़ी माँ को दुत्कारते रहेंगे । अतीत में जन्म चुके कृष्ण की प्रार्थना करते रहेंगे और घर-घर में जन्म ले रहे कृष्ण के बालरूप को अनदेखा करते रहेंगे। हम प्रेक्टिकल हों, सगतिक हों । केवल हो चुके का आलाप न करते फिरें, वर्तमान के आध्यात्मिक सौन्दर्य का भी रसपान करें । वर्तमान-चेता व्यक्ति जहाँ चिंता और तनावमुक्त रहेगा, वहीं प्रगति नित्य - नये द्वार भी खोल सकेगा । ध्यान रखिए वर्तमान ही गति - प्रगति है । हम वर्तमान मे जन्में हैं, वर्तमान का ही सामना करते हैं, और वर्तमान में ही मर जाएँगे। वर्तमान को मूल्य न दे पाने के कारण ही लोग चिन्ता और तनाव में पड़कर बेशुमार नशा - पता करते रहते हैं । मेरे देखे, आज के श्रम से, वर्तमान के नजरिये से न केवल जीवन का वर्तमान बनाया जा सकता है, जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया वरन् ९५ For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्य को भी संवारा और निखारा जा सकता है। __ अच्छा होगा, हम अपनी चिंता को, अपने तनाव को जो भी हमारे दिमाग के भीतर हमको बोझ महसूस होता है और जिसके चलते हमारे भीतर शांति नहीं है, हम उसको छोड़ दें। हम अपनी पत्नी को नहीं छोड़ सकते, अपने बच्चों को नहीं छोड़ सकते, हम संन्यास नहीं ले सकते, पर यह संन्यास तो लिया ही जा सकता है कि छोड़ दें अपने तनाव, गुस्से और चिंता को। जो कचरा हमारे दिमाग में कब्ज की तरह हममें भरा हुआ है उसे बाहर निकाल दें। हम अपने पास सदा ऐसा सिक्का रखें जिस पर हम चार्ली चैप्लिन का चेहरा बना लें। जैसे ही वह सिक्का हाथ में आए, चार्ली चैप्लिन का मुस्कुराता हुआ चेहरा हमें दिखाई पड़े और हम भी मुस्कुराने लगे। इतना ही नहीं, सिक्के की दूसरी तरफ हम अपना स्वयं का चेहरा भी चार्ली चैप्लिन की तरह बना लें ताकि हम उन्हें देखते रहें और सदा प्रसन्न रहें। इसलिए अपने पास आप ऐसा सिक्का जरूर रखिए जिसके दोनों ओर खुशी ही खुशी खुदी हुई हो। कल का दिन किसने देखा है, आज का दिन हम खोएँ क्यों? जिन घड़ियों में हँस सकते हैं, उन घड़ियों में रोएँ क्यों? जीवन का अर्थ समझिए । जीवन को उसके अर्थ प्रदान कीजिए। रोरोकर जीवन को जीना कोई जीना है ! जीवन चाहे चार दिन का हो या चालीस वर्ष का, जब तक जिएँ प्रत्येक क्षण को आनन्द-भाव से जिएँ। आनन्द आत्मा का मौलिक स्वभाव है। अपने स्वभाव को उपलब्ध कीजिए। हम किसी के क्रोध का सामना करते हुए भी मस्त रहें और प्रेम में भी। यदि कोई हम पर चीख भी उठे तब भी हम तो अपनी मस्ती में ही मस्त रहेंगे। कोई गुस्सा करे तब भी रोटी खाना न छोड़ें। हमें यदि कभी भी गुस्सा आ जाए तो भी ऐसा न करना कि किसी अलग कमरे में जाकर बैठ गये जैसे ९६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि पहले रानियाँ कोपभवन में जाकर बैठ जाया करती थीं। तनाव नहीं, गुस्सा नहीं, चिंता नहीं, हर हाल में मस्त रहें। बहुत उत्साह रखें जिंदगी में। जीवन के प्रत्येक क्षण को उत्सव बनाएँ। यदि साधना में बैठ रहे हैं तो साधना के प्रति उत्साह रखें। कर्मयोग कर रहे हैं तो कर्मयोग के प्रति उत्साह रखें। यदि भक्तियोग में बैठ रहे हैं तो भक्ति में अपना उत्साह रखें। जितने उत्साह से हम जिस कार्य को करेंगे वह कार्य उतना ही पूर्ण होगा। जिस कार्य को जितना बोझिल और उदास मन से करेंगे वह कार्य उतना ही अपूर्ण और अधूरा होगा। ज़िंदगी किसी तानपुरे की तरह है जिसे बजाने की, जीने की कला आनी चाहिये। इस मिट्टी की नश्वर काया में भी संगीत को.पैदा करने का शिल्प आना ही चाहिए। जैसे पेट का कब्ज अच्छी बात नहीं है वैसे ही दिलोदिमाग में भी कब्ज नहीं रहनी चाहिए। कब्ज कभी भी अच्छी चीजों की नहीं होती। हर व्यक्ति प्रयत्न करे अपने मन के कब्ज को दूर करने के लिए। हर व्यक्ति कब्ज से मुक्त हो । भीतर के स्वास्थ्य का यही पहला लक्षण है- खूब प्रसन्न रहिए, सदा आनन्दित रहिए। सबको अमृत प्रेम। जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ९७ For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी जीवन की सफलता- सफलता का बुनियादी लक्ष्य है, पर जीवन की सार्थकता- सफलता की कसौटी है। जीवन सफल भी हो और सार्थक भी! सफलता को जब तक सार्थकता की चेतना नहीं दी जाएगी, तब तक सफलता खुदगर्ज़ हो सकती है। जीवन की सार्थकता- एक ऐसी पहल है जो सफलता को स्वार्थ-त्याग और निष्काम कर्मयोग की प्रेरणा देती है। - सफलता को सार्थकता देने वाली जो बातें हैं, उनमें एक है सहानुभूति । सहानुभूति ही वह सद्भावना है जो तुच्छ से तुच्छ को भी प्रेम और सम्मान का पात्र बनाती है। प्रेम देकर प्रेम पाने की और सम्मान देकर सम्मान पाने की कला का नाम ही है सहानुभूति । पाने की आकांक्षा से दी गई सहानुभूति स्वार्थ है, वहीं किसी सरोवर की तरह प्यासे को दी गई सहानुभूति, सहानुभूति की महानता है। सेवा, सम्मान और सहानुभूति- आध्यात्मिक जीवन की सफलता और सार्थकता के तीन चरण हैं। सच तो यह है कि सहानुभति में सेवा भी निहित है और सम्मान भी। For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहानुभूति तो हर धर्म का प्राण है, हर मानव की आवश्यकता है, हर प्राणी की अपेक्षा है । सहानुभूति संसार का वह सौंदर्य है, जिसने सदैव एकदूसरे के सुख-दुःख में सहभागी होने की प्रेरणा प्रदान की है । यह वह शक्ति है, जिसने सदैव प्राणी से प्राणी को आपस में जोड़कर रहने की कला प्रदान की है। जैसे किसी रोगी आदमी को च्यवनप्रास खाने को दिया जाए और वह अपने शरीर में किसी नई प्राणचेतना का अनुभव करने लगे, ऐसे ही किसी भी व्यक्ति को अगर किसी भी व्यक्ति की सहानुभूति मिल जाए, तो उसके जीवन में नया माधुर्य, नया सुकून और नया आनन्द उपलब्ध हो जाता है। सेवा से बढ़कर कोई सुख नहीं होता, प्रेम से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं होती, और सहानुभूति से बढ़कर कोई सौंदर्य नहीं होता है। जो मनुष्य अपने परिजनों के प्रति अनुराग रखते हुए उन्हें सहानुभूति प्रदान करता है, वह सहानुभूति 'सहयोग' कहलाती है। दूसरों के प्रति सहयोग की भावना ही सहानुभूति कहलाती है। जब व्यक्ति संसार के किसी भी प्राणी के दुःख-दर्द में सहभागी होने के लिए अपना प्रेम, करुणा और सहानुभूति समर्पित करता है तो व्यक्ति की वह अवस्था सहानुभूति कहलाती है । जब मैं किसी भी व्यक्ति के दुःख-दर्द को सुनता हूँ या किसी भी असहाय और बेसहारा आदमी को देखता हूँ, तो मुझे ऐसा लगता है कि दु:खी वह नहीं है बल्कि उसके ग़म और दुःख की धारा मेरे भीतर साकार होने लगी है । तब मेरा यह प्रयास शुरू होता है कि किस तरह से मैं उस व्यक्ति की पीड़ा को दूर कर दूँ, ठीक वैसे ही जैसे कि मैं अपनी पीड़ा को दूर करता हूँ । किसी भी व्यक्ति की पीड़ा को देखकर उसकी पीड़ा को अपने भीतर अनुभव करना ही सहानुभूति का उच्च स्तर है । एक मनुष्य मनुष्य होकर मनुष्य के काम आए, इससे बढ़कर मनुष्य का धर्म और क्या होगा? मनुष्य तो स्वयं ही एक मंदिर है और यह सारी धरती किसी पवित्र तीर्थभूमि के समान है। स्वयं को बुराइयों से दूर रखना और नेक रास्तों पर अपने कदम आरूढ़ करना ही स्वयं को मंदिर मानने के समान है। धरती पर रहने वाले हर छोटे-से-छोटे जीव के प्रति अपना प्रेम और अपनी सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी ९९ For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहानुभूति रखना, ये किसी पवित्र तीर्थ-यात्रा के समान है। अपने लिए तो कोई भी जी सकता है लेकिन जो औरों की भलाई के लिए अपने स्वार्थों का त्याग कर दे, उसी का जीना जीना कहलाता है। केवल अपनी ही भलाई के लिए जीना तो स्वार्थ मात्र है। औरों की भलाई के लिए अपने स्वार्थों का त्याग कर देना जीवन का परमार्थ है। परमार्थ से बढ़कर जीवन का और कोई पुण्यपथ नहीं होता। स्वार्थ स्वयं ही पाप है जब कि परमार्थ स्वयं ही पुण्य है। जब मनुष्य के द्वारा अनायास ही परमार्थ साधा जा सकता है तो फिर हर व्यक्ति अपने आप में पुण्यात्मा क्यों न बने? सबके प्रति सहानुभूति रखना, यही जीवन का सबसे बड़ा पुण्य है। सच्चा पुण्यात्मा वही है, जो दुनिया के किसी भी प्राणी के प्रति वैर भाव नहीं रखता। अपने हर पल में वह यही सद्भावना रखता है कि अगर मेरे द्वारा किसी का भला हो सकता हो तो मुझे वह अवश्य ही करना चाहिए। अगर चन्द्रप्रभ के शरीर के रक्त की एक भी बूंद किसी प्राणी के काम आ सकती है, तो शायद इस मरणधर्मा शरीर का इससे बेहतरीन उपयोग और क्या हो सकता है? अगर कभी चन्द्रप्रभ की काया गिर जाए तो वह दुनिया के हर समाज को यही कहना चाहेगा कि उसकी काया की अंत्येष्टि करने से पहले यदि उसके नेत्रों के द्वारा किसी अंधे आदमी को ज्योति मिल सकती हो तो उसके नेत्रों को निकाल कर अंधे आदमी को अवश्य ही प्रदान कर दी जाए। अगर इंसान इंसान होकर इंसान के काम न आया तो मैं पूछना चाहूँगा कि किस ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारी पूजा और तुम्हारी अर्चना की? दुनिया के किसी भी देवता या भगवान को आवश्यकता नहीं है कि तुम उसके नाम पर चार दीप जलाओ। हम दीपक जला कर क्या भगवान के घर को रोशन करना चाहते हैं? अरे, जिससे तीन लोक प्रकाशित है, उसके नाम पर चार दीप जला दिए या चार पेड़े चढ़ा दिए तो क्या फर्क पड़ता है! वे दीप जो हम परमात्मा के नाम पर जलाया करते हैं, वे दीप किसी गरीब व्यक्ति की झोंपड़ी में जाकर उसके अंधकार को मिटाने के लिए जलाएँ। ऐसा करना ही ईश्वर को दीप-दान करने के समान होगा। अगर हम १०० ___आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धार्मिक समाज में बैठकर लड्डू - पेड़े बाँटें और प्रभावना के नाम पर पाँच हजार लोगों को एक-एक रुपये का सिक्का दें, तो उसमें किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जब भी हमारी इच्छा हो जाए कि यदि हमें भक्ति करनी है संघ की, समाज की और मानवता की तो अपने उन पाँच हजार रुपयों को ले जाकर किसी भी अनाथालय में पांच दिन का भोजन समर्पित कर देना ही सही धर्म की सच्ची भक्ति और प्रभावना कहलाएगी। मैं अपना जन्म-दिन ऐसे ही मनाता हूँ। मेरे जीवन में वर्ष का जब भी कोई विशेष दिन आता है, तो मैं कोई समारोह नहीं करवाता। मैं सुबह उठकर ईश्वर की इबादत करता हूँ और उस ईश्वर को जिसे मैं उस मंदिर या मस्जिद में निहारा करता हूँ, जो दीन-दुखियों की दर्दभरी आहों में जीवित मंदिरों के रूप में चारों ओर व्याप्त है। अनाथालय में, किसी विद्यालय में या किसी अस्पताल में जहाँ पर भी सेवा की आवश्यकता होती है, वहाँ जाकर मैं अनाथ और गरीब लोगों के बीच अपनी दिनचर्या व्यतीत करता हूँ । उनकी सेवा में, मुझसे जितना भी हो सकता है, उतना समर्पित करके मैं अपना जन्म-दिन मनाया करता हूँ। यह मुझे भली भाँति बोध है कि तुम संत बाद में हो उससे पहले तुम एक इंसान हो, और जब भी मेरा किसी के प्रति कोई भी व्यवहार होता है, तो मुझे सदा इस बात का कर्त्तव्यबोध रहता है कि मुझे एक संत होकर किसी के साथ व्यवहार करने से पहले इंसान होकर उसके साथ व्यवहार करना चाहिए। जिस दिन हममें से किसी को भी इस बात का बोध हो जाएगा कि इंसान को इंसान की तरह से जीना चाहिए और इंसान को इंसान के काम आना चाहिए, उस दिन हमारे भीतर कभी ईगो या अहंकार पैदा नहीं होगा, किसी के प्रति नफरत पैदा नहीं होगी और हम किसी भी तरह से जातिवाद के व्यूह में नही घिरेंगे। तब हमारे लिए मूल्य होगा केवल मानवता का, मानवीय भावनाओं का । सहानुभूति को वह व्यक्ति नहीं जी सकता जो अपने जीवन में अहंकार रखता है या किसी के प्रति नफरत रखता है। नफरत और अहंकार सहानूभूति के दुश्मन हैं। दुनिया में किसका अहंकार रहा है? बड़े-से-बड़े सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी For Personal & Private Use Only १०१ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घमंडी आदमी को नीचे झुकाने के लिए हवा के झोंके के साथ उड़ता हुआ तिनका ही बहुत होता है। यदि वह एक बार भी आँख में गिर जाए तो आदमी कि सारी अकड़ धरी रह जाती है। जब हम किसी से नफरत करते हैं तो मैं पूछना चाहूँगा कि उसको हम जिस दशा में नफरत करते हैं अगर वही दशा हमारी होती तो हम क्या करते? जो भाव हमारे भीतर आएँगे, वे ही भाव उसके भीतर भी आएँगे। हमारी दहलीज पर कोई भिखारी भीख माँगने चला आये तो कृपा करके उसको दुतकारें नहीं। कोई भी भिखारी किसी से मांगने के लिए नहीं आता। वह तो जीवन की यह नसीहत देने के लिए आता है कि 'हे बन्दो, मैंने कभी किसी को कुछ भी नहीं दिया जिसका परिणाम यह निकला कि मैं भिखारी बना।' अगर हम भी किसी को नहीं देंगे तो हमारी भी वही हालत होगी जो आज उस भिखारी की हुई है। जिस व्यक्ति को हम अपने द्वार से दुत्कार रहे हैं, क्या पता कि वह कोई महावीर हो। जब चंदनबाला के द्वार पर महावीर पहुँचे थे तो उनको वह यदि यह समझ लेती कि वह नंग-धडंग फकीर आदमी कोई भिखारी होगा तो शायद चंदनबाला भगवान महावीर को उनका दिव्य अभिग्रह पूर्ण करवा पाने में समर्थ न हो पाती। क्या पता चलता है कि जिसको आज हम दीन-हीन समझते हैं वह कभी राम, कृष्ण, रहीम रहा हो। भगवान कब किस गरीब का रूप धारण करके किसके द्वार पर पहुँचते हैं उसका पता नहीं चलता। यह न समझें कि भगवान कभी हमारे द्वार पर शिव के रूप में आएंगे अथवा राम या रहीम के रूप में आएँगे। मैं दुनिया के सभी धर्मात्माओं और महात्माओं से कहूँगा कि वे ईमानदारी के साथ मंच पर खड़े होकर तथा मानवता की कसम खाकर यह कह दे कि उनके द्वार पर कभी राम आए, कभी महावीर या बुद्ध आए। लेकिन मैं यह भली भाँति जानता हूँ कि हर आदमी को कसौटी पर कसने के लिए जिंदगी में एक बार भगवान जरूर आया करते हैं। वे राम के रूप में न आकर किसी गरीब-गुरबे के रूप में आते हैं। हो सकता है कि जिस कुत्ते की पीठ पर हमने लाठी मारी है, वह कुत्ता कुत्ता न हो कर राम के रूप में भेजा गया कोई देवदूत हो। १०२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमने किसी को दो टुकड़े रोटी के डाल दिये तो कौन-सा बड़ा अहसान कर डाला? वे तो भगवान आए थे हमारे द्वार पर जिनकी मेहरबानी से हम सब लोगों को रोटी खाने को मिलती है। हमारी सारी प्रार्थनाएँ धरी रह जाती हैं अगर उसकी कृपा न हो तो हमें पानी भी नहीं मिल सकता। जिसकी कृपा से आदमी को अन्न और जल मिलता रहा है, उसे हम अपने द्वार आने पर खाली हाथ निकाल दें, तो यह हमारा मनुष्यत्व न होगा। हम हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, वैष्णव चाहे जो भी बन जाएँ, कोई दिक्कत नहीं पर उनसे भी पहले हम मनुष्य बन जाएँ। हम अपनी जिंदगी में कोई महान् संत न भी बन पाए, तो कोई बात नहीं लेकिन यह सजगता जरूर रखें कि मैं पूरा एक मनुष्य तो बन जाऊँ। शायद एक पूर्ण मनुष्य हिन्दू, बौद्ध, जैन हो ही जाया करता है। मैं अभिनन्दन करना चाहूँगा रेडक्रॉस, रोटरी क्लब, महावीर इंटरनेशनल जैसी सेवा-संस्थाओं का, संगठनों और समूहों का जिन्होंने मनुष्य के दुःखदर्द को कम करने के लिए इतना बड़ा संगठन तैयार किया है और मनुष्य को एक मंदिर मानते हुए नर की सेवा में नारायण की सेवा स्वीकार की, जन की सेवा में 'जिन' सेवा अंगीकार की और पुरुष की सेवा में परमात्मा की सेवा कबूल की। स्मरण आ रहा है मदर टेरेसा का जिसने नंगों को केवल कपडे ही नहीं दिए, भूखों को केवल भोजन ही नहीं दिया वरन् मानवता जब-जब भी रुग्ण हुई तो उसकी दस्तें और उल्टियाँ भी साफ की। उस सन्नारी की सुबह की प्रार्थना ही यही होती थी कि 'हे भगवान, हे ईश्वर, तुम इस पीड़ित मानवता के दु:खदर्द कम करो।' मैं नारी-समाज का आह्वान करना चाहूँगा कि आप टेरेसा को अपना आदर्श बनाएँ और हर समाज में टेरेसा के स्वरूप को दोहराएँ। जिस तरह से इस दुनिया की भलाई के लिए मदर टेरेसा पैदा हुई उसी तरह से आज की तारीख में भी मदर टेरेसाओं की ज्यादा जरूरत है। मंदिर में जाकर पूजा जरूर करें लेकिन जब कोई व्यक्ति पूजा करके मंदिर से बाहर निकले तो यदि उसने मंदिर में एक घण्टा लगाया है तो वह दो घण्टे मानवता की सेवा में लगाए। मंदिर से सीधे घर जाने की बजाय पहले किसी सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १०३ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवाकेन्द्र में जाकर अपने जीवित ईश्वर की इबादत करे। भगवान कहाँ रहते हैं, यदि आपको इसका पता जानना हो, तो मेरी बात को धैर्य से समझ लें। निश्चय ही, मंदिर भगवान का पूजा स्थल है, पर उनका निवास अनाश्रित, बेसहारा लोगों और प्राणियों के पास है। मंदिर तो भगवान् का रजिस्टर्ड एड्रेस है पर अनाथालय, गौशाला, और इसी तरह के ठिकाने भगवान् के प्रायवेट एड्रेस हैं। मंदिरों में तो भगवान् कभी-कभी साकार होते हैं, पर अंधों-बहरों-गूगों, अनाश्रितों और गौशालाओं में तो उन्हें खड़ा ही रहना पड़ता है, ताकि उन बेसहारों को सहारा दिया जा सके। बेसहारों का सहारा बनना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है। हम किसी मंदिर में जाकर दो-पांच लाख का चंदा बोल पाएँ कि न बोल पाएँ, कोई चढ़ावा बोल पाएँ कि न बोल पाएँ पर अगर रास्ते से गुजर रहे हैं और कोई घायल पंछी मिल गया तो, उस घायल पंछी को, उस घायल कबूतर को दो बूंद पानी भी दे दिया, तो ऐसा करना किसी अस्पताल बनाने का पुण्य अर्जित करने के समान होगा। उस घायल पंछी को हमारे लाखोंकरोड़ों के दान की आवश्यकता नहीं है। जब मदर टेरेसा को हिन्दुस्तान से निकाले जाने का उपक्रम चल रहा था तब कलकत्ता शहर में भयंकर हैज़ा फैला हुआ था। दूसरी ओर मदर टेरेसा के विरुद्ध यह आवाज उठ रही थी कि वह लोगों को ईसाई बना देगी। काली माँ के बड़े मंदिर के पुजारी द्वारा यह आन्दोलन चलाया जा रहा था। वक्त ऐसा आया कि वह पुजारी हैज़े से ग्रस्त हो गया। संक्रामक रोग सर्वत्र फैल गया। मंदिर के लोगों ने उस महंत को निकाल कर चौराहे पर पटक दिया। उसके मुँह से वमन हो रहा था और उसे दस्तें भी लग रही थीं। कोई उसे संभालने वाला नहीं था। तभी वहाँ से मदर टेरेसा की नर्स गुजर रही थी। उसने उसे एम्बुलेंस में रखा और मदर टेरेसा के सामने लाकर उसे लेटा दिया गया। मदर टेरेसा ने उसके घावों को धोया, उसकी उल्टियों को पोंछा और ईश्वर के सामने घुटने टेक कर उसको स्वास्थ्य-लाभ देने की प्रार्थना की। वह जानती थी कि निःस्वार्थ भाव से मानवता के नाम पर की गई प्रार्थना में १०४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कितनी दिव्य शक्ति होती है। उस समय कलकत्ता का एक एस.पी. जिसने कि यह संकल्प लिया था कि मैं मदर टेरेसा को हिन्दुस्तान से बाहर निकाल कर ही रहूँगा, वहाँ से गुजरा। जब उसने मदर टेरेसा को महंत की इस तरह से सेवा करते हुए देखा, तो वह भीड़ के सामने आकर कहने लगा कि निश्चित ही कलकत्ता का एस.पी. मदर टेरेसा को इस देश से निकालने वाला पहला आदमी होगा, लेकिन यह तभी होगा जब हममें से कोई नई मदर टेरेसा पैदा हो जाएगी। निश्चय ही वह दिन भारत के इतिहास का स्वर्णिम सूर्योदय कहलाएगा। मदर टेरेसा का जीवन मानवता की सेवा की सर्वोच्च मिसाल है। यदि कोई मुझसे यह पूछे कि मैं अपनी जिदंगी में अगर संत न बनता तो क्या बनना पसंद करता? मैं कहूँगा कि मैं अपने जीवन में मदर टेरेसा बनना पसंद करता। और आज भी, मैंने एक गौरवपूर्ण परम्परा का संन्यासीजीवन स्वीकार कर लिया है इसलिए उसकी मर्यादा का निर्वाह करना मेरा कर्तव्य बनता है। इसके बावजूद कोई हमसे पूछे तो हम सच्चा धर्म मनुष्यता को ही मानते हैं। हमारे पास अगर दो पैसों की भी सहूलियत है तो हम उसको इंसानियत के नाम पर खर्च करते हैं। हम यही पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि हमारे द्वार पर आया हुआ कोई भी याचक खाली हाथ न चला जाए। हम अपने आप में यदि थोड़े से भी धनी-मानी हैं तो सदैव अपना हाथ खुला रखें । देने वाले बनें, चाहे लेने वाला उसका दुरुपयोग ही कर बैठे। अरे, गृहस्थ तो देने मात्र से ही धन्य होता है। उसमें फिर पात्र और अपात्र का विचार ही क्या करना! जिनको नहीं देना होता है वे ही यह सोचते हैं कि मांगने वाला व्यक्ति कुपात्र है कि सुपात्र । अरे, देने वाला तो देने मात्र से ही धन्य हो जाता है। मैं समझता हूँ कि आज ऐसे दानी लोगों की ज्यादा जरूरत है। मानवता बहुत दुःखी है। यहाँ अगर हम हजार आँखों में झाँक कर देखते हैं तो सुख सौ आँखों में ही दिखाई देता है और दुःख नौ सौ आँखों में । अगर तुम सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १०५ For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी के दु:खों को दूर कर सको, किसी के गम को हल्का कर सको, किसी भी भूखे, बेसहारे आदमी के जीवन का संबल बन सको, तो सचमुच बहुत बड़े पुण्यात्मा बन सकोगे। __ भगवान के घर में उन्ही की पूजा पहुँच पाती है, जो प्राणिमात्र में उसी की मूरत देखा करते हैं। हम शिक्षा और चिकित्सा के मार्ग को स्वीकार करें। हर समाज, हर संगठन, हर संघ अपने संघ के विकास के लिए शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था करे। मैं चाहूँगा कि मेरी यह बात दुनिया की हर कौम, हर परम्परा, हर समाज में पहुँचे कि हर कौम का अपना विद्यालय होना चाहिए, हर कौम का अपना अस्पताल होना चाहिए और हर कौम के आदमी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहायता केन्द्र होना चाहिए। ___ हम चाहे जिस कौम के क्यों न हों, हम भले ही दूसरी कौम के आदमी को सहायता न दे पाएँ, परन्तु कम-से-कम अपनी कौम के आदमी को तो सहायता दे ही सकते हैं। अगर हर कौम का आदमी अपनी कौम के आदमी को आत्मनिर्भर बनाने के लिये प्रयत्नशील हो जाता है तो हर कौम सुखी-समृद्ध होगी, सारा संसार सुखी और समृद्ध होगा। मैंने सुना है सिंधी आदमी कभी भी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता और न ही वह भीख ही मांगता है। दुनिया की हर कौम इस बात से प्रेरणा क्यों नहीं लेती कि जब हम अपने आप ही आत्मनिर्भर हो सकते हैं तो किसी के आगे हाथ क्यों फैलाएँ? हम अपने समाज में विद्यालय बनाएँ। यदि हमें ऐसा लगता है कि हमारी कौम, हमारे समाज में विद्यालय नहीं है तो हम केवल सरकारी मिश्नरी के आधार पर बच्चों को पढ़ाएँ इसकी बजाय जिस धर्मपरम्परा के संस्कार हम देना चाहते हैं, उन संस्कारों को आगे बढ़ाने के लिए अपनेअपने समाज और अपनी-अपनी कौम में विद्यालय जरूर बनाये। चाहे हम आज बनाएँ, चाहे दस साल के बाद बनाएँ, लेकिन अवश्य बनाएँ। हम यह उद्देश्य लेकर चलें कि हम अपने समाज का एक विद्यालय अवश्य बनाएँगे। अगर हमारे समाज का कोई भी छात्र ऊँचे स्तर की पढ़ाई करना चाहता है १०६ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और उसे छात्रवृत्ति की जरूरत है तो उसकी व्यवस्था पूर्ण करें। हमारे यहाँ वर्षभर चढ़ावा होता है तो मैं कहूँगा कि उस चढ़ावे की रकम को उसमें खर्च कर दें। अगर सौ बेहतर इंसानों का निर्माण हो जाए तो यह हमारी ओर से सौ मंदिरों के निर्माण का कार्य होगा। अगर हम कर सकें तो अपने समाज में एक अस्पताल जरूर बनाएँ। जहाँ हमारे समाज का कोई भी व्यक्ति यदि दो लाख का खर्च करवा कर 'हार्ट सर्जरी' का ऑपरेशन नहीं करवा सकता, समाज तब उसका सहायक बने, समाज तब उसका तीर्थ बने और उसको सहायता प्रदान करे। जैसे तीर्थ भवसागर में डूबे हुए आदमी को पार किया करता है, ऐसे ही हममें से कोई भी व्यक्ति किसी दीन-दुःखी व्यक्ति के दुःखों को दूर करने का काम करेगा तो ऐसा करना तीर्थ की अर्चना ही होगी। भगवान श्री महावीर ने तो साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका- इन चारों को भी तीर्थ की संज्ञा दी है। किसी श्रावक की सेवा करना, किसी श्राविका की सेवा करना, ये भी तीर्थ की सेवा ही है। जब उनसे पूछा गया, 'भंते, एक व्यक्ति तो वह है जो कि रात-दिन आपके नाम की माला फेरा करता है और दूसरा व्यक्ति वह है जो कि उतने समय को दीन-दु:खी और म्लान की सेवा में व्यय करता है तो आप यह बताएँ कि आपको इन दोनों में से ज्यादा प्रिय कौन हैं?' भगवान् ने कहा, 'मुझे वह व्यक्ति ज्यादा प्रिय है जो दीन-दुःखी और म्लान लोगों की सेवा करता है। भगवान् को भी वह व्यक्ति प्रिय है तो मैं आप सभी महानुभावों से अपने हृदय की पीड़ा के साथ कहूँगा कि हम सब लोग भी मनुष्य हैं तो मनुष्य की तरह जिएँ। मनुष्य होकर मनुष्य के काम आने का प्रयास करें। क्या करेगा प्यार वो ईमान को, क्या करेगा प्यार वो भगवान को। जन्म लेकर गोद में इंसान की, कर न पाया प्यार जो इंसान को॥ सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १०७ For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह व्यक्ति ईमान और भगवान को क्या प्यार कर पाएगा जो आदमी इंसान होकर इंसान को प्यार न कर पाया। हमारे अपने समाज में कोई व्यक्ति अगर अपाहिज है, कोई व्यक्ति अगर अपने आप कमा कर नहीं खा सकता तो समाज उसको सहयोग दे और उसे अपने पाँवों पर खड़ा करे। हम उसे सिलाई की मशीन दिलवा दें, सब्जी का ठेला या जूस की दुकान खुलवा दें अथवा यदि वह पापड़-बड़ी बना सके तो उसे वैसी व्यवस्था दे दें। और कुछ भी नहीं तो वह मसाला पीस कर भी जीवनयापन कर ले। कम-से-कम यह सेवा-व्यवस्था तो हम दे ही सकते हैं। यह मत समझो कि कोई व्यक्ति तुमसे माँगने के लिए आएगा। समाज के अध्यक्ष का काम यह होता है कि वह अपने समाज के हर व्यक्ति का ध्यान रखे। किसी भी समाज के अध्यक्ष, मंत्री का दायित्व शायद समाज की सम्पत्ति की रक्षा-व्यवस्था करना भर रहता होगा पर मैं यह भी कहना चाहूँगा कि समाज के हर गरीब-गुरबे को ऊँचा उठाना समाज के प्रमुख व्यक्ति का दायित्व होता है। कौन निभाता है आजकल यह दायित्व? बहुत दुकानदारी हो गई है। लीडरशिप बहुत फैल चुकी है। लोग पुण्यपथ को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। आप यह न समझें कि ऐसा करके आप मुझ पर एहसान कर रहे हैं। मैं चाहूँगा कि महिलाएँ अगर खाना बनाती हैं तो खाना बनाने से पहले इतना विवेक जरूर रखें कि अगर आप बीस रोटियाँ बना रही हैं तो चार रोटियाँ आप मेरे लिए बनाएंगे। आप चाहते हैं कि आपके द्वार पर आपके जीवन का कोई शिक्षक, कोई गुरु, कोई संत आए तो आप वे रोटियाँ बना कर अतिरिक्त रख दें। जब आप खाना खा चुके हों तब खाना खाने के बाद आप उन चार रोटियों को लेकर घर के बाहर आएं और कोई भी जीवजन्त, गाय, कुत्ता, सांड, बैल, कोई भी मिल जाए तो आप उसको यह समझकर खिला दें कि मैंने अपने गुरु को अर्घ्य प्रदान किया है। आप रोजाना वे चार रोटियाँ मेरे लिए निकालें। चार रोटियों को निकाले बिना आप भोजन स्वीकार न करें। भले ही कितनी ही जल्दी क्यों न हो, कितनी ही भूख क्यों न हो पर जब तक वे चार रोटी एक्स्ट्रा न सिक जाएँ, आप अपने पति को, अपने बच्चों को और १०८ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप स्वयं को भी भोजन प्रदान न करें। जब हम अपने लिए एक बोरी गेहूँ की व्यवस्था कर सकते हैं, तो क्या हम किसी दुःखी जीवजन्तु के लिए चार रोटी की व्यवस्था नहीं कर सकते? __ मैं अनुरोध करना चाहूँगा हर किसी व्यक्ति से जो धर्म में दो पैसा खर्च करने की भावना रखते हैं। मैं हर किसी से कहूँगा कि रोजाना वह दस रुपये निकाले- केवल दस रूपये! हर सुबह आप जब धन्धा करने जैसे ही निकलें, उससे पहले जो गुल्लकपेटी है उसमें दस रुपये डाल दें। मैं केवल दस रुपये मांग रहा हूँ। कोई लम्बी-चौड़ी माया नहीं मांग रहा हूँ। मेरी समझ से जो लोग गुटका खाते हैं, सिगरेट पीते हैं, उनके लिए तो खाया और थूका, इससे ज्यादा उनके लिए होना ही क्या है? हर कोई व्यक्ति केवल दस रुपये अपनी ओर से निकाले, और गुल्लक में डाले। उसने मानो एक महीने में तीन सौ रुपये अपनी ओर से धर्मार्थ निकाल दिये हैं। आप वे तीन सौ रुपये लेकर हर महीने किसी अनाथालय में चले जाइए, किसी विद्यालय में चले जाइए, जहाँ आपका दिल चाहे वहाँ पर जाइए। आप ऐसे जरूरतमंद व्यक्ति को ढूँढ लें जिसे धन की आवश्यकता है। उसको जिस चीज की आवश्यकता है, वह उसे लाकर दे दें। दस रुपये मुझे नहीं देने हैं, किसी समाज और ट्रस्ट को भी नहीं देने हैं। आप स्वयं अपने धन के ट्रस्टी बनें । दस रुपये निकाल कर अपनी ओर से उन्हें मानवता के लिए समर्पित कर दें। मैं जानना चाहूँगा कि आप में से कितने महानुभाव ऐसे हैं जो कि हकीकत में मानवता की सेवा के लिए दस रुपये और चार रोटी का दान कर सकते हैं । मैं चाहूँगा कि जितने लोग जिनमें मानवता की आत्मा है वे हाथ खड़ा कर संकल्प लें और इस तरह से मानवता के लिए अपने दस रुपये और चार रोटियाँ निकालें । मैं चाहुँगा कि सारे लोग हाथ खड़ा करें और मन में यह संकल्प लें कि हम हर हालत में चार रोटी और दस रूपया रोज निकालेंगे। मैं समझता हूँ कि आप लोगों ने अगर ऐसा किया तो सचमुच मनुष्य पर मानवता का जो ऋण चढ़ता है, आप उससे उऋण हो जायेंगे। तब हर दिन आपके मन में सुकून होगा कि मैंने भी सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १०९ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंसानियत के लिए कुछ न कुछ जरूर किया है। आप आज इंसानियत के लिए दस रुपये निकालें। हो सकता है कि कल सौ रुपये निकालें, हजार भी निकालें। हो सकता है कि कल आप कोई अस्पताल, विद्यालय या कोई सहायता-केन्द्र भी बना सकते हैं। कुछ कहा नहीं जा सकता कि आप क्या कर बैठे? भगवान् के घर से आपके भंडार कैसे भर दिये जायें। आप अपने छोटे-छोटे स्वार्थों का त्याग करके भी इंसानियत पर उपकार कर सकते हैं। छोटे-छोटे त्याग करके ! बहुत बड़ा त्याग तो हर किसी से हो भी नहीं सकता पर छोटे-छोटे त्याग तो हम कर ही सकते हैं। मैंने देखा कि कुछ दिन पहले, जब मैं किसी रास्ते से गुजर रहा था, तभी मेरी नजर एक चौराहे पर पड़ी। मैने देखा कि एक अंधा आदमी किसी की प्रतीक्षा कर रहा है और सोच रहा है कि कोई व्यक्ति आए और उसे इस रास्ते से उस रास्ते तक पहुँचा दे। तभी एक विकलांग व्यक्ति उधर से गुजरा और उसने देखा कि अंधा आदमी इसी इंतजारी में है कि कोई उसे इधर से उधर पहुँचा दे। अपाहिज व्यक्ति उसका हाथ पकड़कर उसे इस पार से उस पार पहुंचा रहा था। दूर से चलता हुआ मैं यह दृश्य देख रहा था। मेरी आँखें भर आईं। मुझे लगा कि कोई पीड़ित ही जान सकता है किसी दूसरे पीड़ित की पीड़ा को। ___मैं कहना चाहूँगा एक बहुत प्यारी कहानी। वह कहानी है एक पोस्टमैन की। एक डाकिया किसी मोहल्ले में एक घर के बाहर दस्तक देता है। वह आवाज लगाता है, 'गुड़िया, तुम्हारे नाम की चिट्ठी आई है।' भीतर से आवाज आती है, 'आई डाकिया साहब, आई। आप दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये मैं ले लूंगी।' डाकिए ने सोचा क्या फर्क पड़ता है यदि आधे मिनट मैं उसकी इंतजार ही कर लेता हूँ। वह फिर भी खड़ा रहा। दो मिनट बीत गए, तीन मिनट बीत गए। उसने फिर से आवाज लगाई, 'अरी ओ गुड़िया, तुम्हारे नाम की चिट्ठी आई है।' गुड़िया ने कहा कि क्या आप अभी तक खड़े हैं? मै आ ही रही हूँ पोस्टमैन साहब, बस मैं आ ही रही हूँ, 'अंकल।' दो मिनट बीत गए। पोस्टमैन को लगा कि मैं अगर एक-एक घर पर इतना समय बिता दूंगा तो बाकी की डाक कब बाँट पाऊँगा?' और यह भी ११० __ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखो तो सही कि पाँच मिनट हो गये और मैं लगातार उसकी प्रतीक्षा किए जा रहा हूँ। और उसने अभी तक गेट नहीं खोला है।' वह अपने मन में उत्तेजित भी हो उठा, उसे कुछ गुस्सा भी आया लेकिन जब दरवाजा खुला, तो पोस्टमैन यह देखकर अवाक रह गया कि उस गुड़िया के दोनों पैर नहीं थे। उसे स्वयं पर गुस्सा आ गया कि मैं इस अपाहिज बच्ची पर गुस्सा क्यों हो रहा था? अब जब भी डाक आती तो पोस्टमैन घर के बाहर खड़ा रहता। गुड़िया को आवाज देता और उसे कहता कि 'बिटिया, तुम भले ही दस मिनट में आओ। मुझे पता है कि तुम्हें वक्त लगेगा लेकिन मैं तुम्हें तुम्हारे हाथ में खत दिए बिना नहीं जाऊँगा।' सप्ताह दर सप्ताह गुड़िया के पास चिट्ठी आ जाया करती थी। डाकिया उसे देता। गुड़िया को देखकर मुस्कराता और अपने हाथों से गुड़िया का माथा सहलाता और चला जाता। गर्मी का मौसम आया। गुड़िया ने देखा कि उस पोस्टमैन के पाँव पूरी तरह से नग्न हैं। उसके पाँव जल रहे होंगे। क्या कोई ऐसा प्रबन्ध हो सकता है जिससे मैं इस पोस्टमैन को जूते पहना सकूँ। गुड़िया ने सोचा कि अगर मैं पोस्टमैन से पूछू कि मैं तुम्हें जूते दूँ तो तुम उन्हें लोगे या न लोगे। शायद वह इन्कार भी कर दे। लेकिन मुझे इतना जरूर करना चाहिये जिससे इस पोस्टमैन के नंगे पाँव को जूते मिल जाएँ। एक दिन उसने संकल्प लिया कि वह इस पोस्टमैन को जरूर जूते पहनाएगी। पोस्टमैन जब आया, तो उसने डाक दी और चला गया। उसके जाने के बाद गुड़िया धीरे से सीढ़ियों से उतरते हुए जमीन पर आई। स्केल से उसने मिट्टी पर बने हुए पोस्टमैन के पाँव की आकृति को नापा और एक कागज पर वह नाप उकेर लिया। उसने अपनी एक सहेली को बुलाकर कहा कि मुझे इस नाप के जूते चाहिए। सहेली ने उस नाप के जूते लाकर उसे दे दिए। कुछ दिनों के बाद दीवाली का त्यौहार आया। पोस्टमैन घर-घर में अपना इनाम लेने के लिए पहुँचा। जब वह उस गुड़िया के द्वार पर आया तो उसके पाँव ठिठक गए। 'अरे, मैं किस आधार पर इस गुड़िया से इनाम माँD। पर कोई बात नहीं, गुड़िया से मिलता तो जाऊँ।' उसने यह सोचते हुए गुड़िया का दरवाजा सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी १११ For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खटखटाया। गुड़िया उसके इंतजार में बैठी थी। गुड़िया ने कहा, 'पोस्टमैन साहब, मैंने भी आपके लिए एक उपहार तैयार किया है। आप उसे लेने से मना तो नहीं करेंगे?' यह सुन पोस्टमैन की आँखें भीग आईं। पोस्टमैन ने कहा, 'गुड़िया, तुम मुझे प्यार से जो भी दोगी, मैं उसे बड़े आदर से स्वीकार करूँगा।' गुड़िया घर के भीतर गई और जूतों का पैकिट अपने हाथों में लेकर आई। उसने वह पैकिट पोस्टमैन को दे दिया। पोस्टमैन ने कहा, 'बेटी इतना बड़ा उपहार!' 'पोस्टमैन साहब, आप मुझे इन्कार मत कीजिएगा। मैं बड़ी भावना से इसको लाई हूँ। आप अपने घर जाकर इसको खोलिएगा। यहाँ मत खोलिएगा।' पोस्टमैन उसे लेकर सीधा घर चला आया। घर आकर जैसे ही डिब्बा खोला तो उसका दिल आँसुओं से भर उठा। उसने मन ही मन कहा कि गुड़िया, तुम कितनी महान् हो । एक अपाहिज कन्या ने मेरे नंगे पांवों को जूते दिए। वह वहाँ से सीधा पोस्ट ऑफिस पहुँचा। पोस्टऑफिस जाकर उसने अपना इस्तीफा (त्याग-पत्र) दे दिया। उसने सोचा कि आज के बाद वह कभी भी उस गली में डाक बाँटने नहीं जा पाएगा। पोस्टमास्टर ने पूछा, 'क्यों भाई, क्या हुआ?' उसने सारी कहानी सुनाते हुए कहा, 'अरे, उस अपाहिज गुड़िया ने तो मेरे नंगे पाँवों को जूते दे दिए, पर मैं उस अपाहिज कन्या को पाँव कैसे दे पाऊँगा?' आज के बाद न तो मैं ये जूते पहन पाऊँगा और न उस गुड़िया के पाँव देख पाऊँगा।' मनुष्य भले ही कमजोर क्यों न हो, उसके पास कमियाँ क्यों न हो, वह अपाहिज ही क्यों न हो, लेकिन फिर भी हम दूसरों को अपनी सहानुभूति तो दे ही सकते हैं, दूसरों के लिए मददगार बन सकते हैं। हम अपनी करुणा, आत्मीयता और प्रेम से किसी के जीवन को धन्य कर सकते हैं। हमारी सहसानुभूति की जरूरत महान् लोगों को नहीं बल्कि तुच्छ लोगों को है। हमारी सहानुभूति की ज्यादा आवश्यकता शायद साधुओं को नहीं, असाधुओं को है। पुण्यात्माओं को सहानुभूति की आवश्यकता नहीं होती, जबकि पापियों को असली सहानुभूति की आवश्यकता होती है जिनसे कि हम नफरत करते हैं। अगर भरे पेट को लड्डू खिलाया तो क्या खिलाया? लेकिन कोढ़ीखाने में ११२ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाकर हमने किसी के घाव धो दिए तो सचमुच धर्म का महापूजन और अनुष्ठान होगा। आप अपने जन्मदिन के अवसर पर किसी गरीब की झुग्गीझोंपड़ी में चले गए और वहाँ रहने वाले किसी गरीब बच्चे को जिसको कोई नहलाने वाला नहीं, जिसके कोई बाल संवारने वाला नहीं, जिसके फटे चिथड़ों की जगह नए कपड़े पहनाने वाला नहीं, हम वहाँ अपने साथ एक बाल्टी पानी साथ ले जाएँ और उस बालक को अपने हाथों से नहलाएँ । उसको नये कपड़े पहनायें और किसी स्कूल में ले जाकर उसे दाखिला दिला दें। ऐसा करना किसी महारुद्राभिषेक का पुण्य अर्जित करना होगा, महामस्तकाभिषेक को सम्पन्न करना होगा। मनुष्य मनुष्य के काम आये, इसी में मनुष्य की महानता है । जिसके पास भी मानवता की आत्मा है, वह दीन-दुःखी, रोगी रुग्ण और गरीब का सहयोग जरूर करे। हमने दो रोटी न खाई, पर किसी भूखे को खिला दी तो सचमुच बहुत बड़ा पुण्य होगा। हमारा उपवास भी हो जाएगा और हम स्वस्थ भी रहेंगे। महाभारत की घटना बताती है कि एक गरीब ब्राह्मण तीन दिन से भूखा था। जैसे-तैसे उसने अपने लिए चार रोटी का प्रबन्ध किया और उसके परिजन खाना खाने बैठे । ब्राह्मण और ब्राह्मणी तथा उनके दो बच्चों की थाली में एक-एक रोटी रख दी गई। जैसे ही खाना शुरू होने लगा कि एक अन्य गरीब ब्राह्मण उसके द्वार पर पहुँचा। वह कहने लगा, मैं बहुत दूर से आया हूँ । मुझे बहुत जोर की भूख लगी है । रास्ते में मैं कुछ भी न पा सका। क्या आपके यहाँ मेरे लिए भोजन की व्यवस्था हो सकती है? तभी ब्राह्मण ने अपनी थाली को अतिथि ब्राह्मण के आगे रखते हुए कहा, 'महानुभाव, आप पधारें और भोजन ग्रहण करें।' जैसे ही उसने एक रोटी खाई, वह कहने लगा, 'अभी भी मेरी भूख मिटी नहीं है । मुझे एक रोटी और चाहिए ।' ब्राह्मणी की थाली में जो रोटी थी वह रोटी भी अतिथि ब्राह्मण की थाली में रख दी गई। उसने कहा, 'मेरी भूख अभी भी नहीं मिटी है ।' तीसरी रोटी भी उसकी थाली में डाल दी गई, पर उसकी भूख मिट ही नहीं रही थी । उसका पेट खाली ही सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी ११३ For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहा। चौथी रोटी भी उसकी थाली में रख दी गई। उसने चारों रोटियाँ खाई और वह प्रणाम कर चल दिया। ब्राह्मण, उसकी पत्नी और उसके दोनों बच्चे भूखे ही रह गये पर वे शांत रहे। उन्होंने एक-एक गिलास पानी पिया और सो गये। राम जाने, राम किस रूप में आया करते हैं और किस-किस के द्वार पर? वे चारों ही लोग सो गए। रात को एक गिलहरी भोजन की तलाश में उस कुटिया की तरफ बढ़ी, तो रोटियाँ बनाते समय जो आटा गिरा था, उस आटे के कण वहीं झोपड़ी में इधर-उधर बिखरे पड़े थे। गिलहरी जैसे ही उनके ऊपर से गुजरी, वे कण गिलहरी की छाती पर चिपक गये और यह देखकर उसे ताज्जुब हुआ कि आटे के वे सभी कण स्वर्ण के कण बन चुके थे। केवल अपने लिए जिए, तो क्या जिए! जीवन की सफलता और सार्थकता इसी में है कि हम औरों के भी काम आएँ। तुम्हें जो अपने प्रारब्ध और पुरुषार्थ से मिल रहा है, उसका एक हिस्सा दूसरों के लिए भी समर्पित होना चाहिए। जिनसे कण का सहयोग हो सकता है, वे कण का करें, जिनसे 'मण' का सहयोग हो सकता है, वे मण का करें। पर कुछ-न-कुछ करते अवश्य रहें। ध्यान रखो, भाग्य की रेखा आगे भले ही खींची जाती हो, पर उसकी झोली पीछे से भरी जाती है। पीछे से उसी के घर झोली भरी जाती है, जो आगे से सरोवर की तरह प्यास बुझाए, तरुवर की तरह छाया दे। ईश्वर से केवल एक ही प्रार्थना हो कि हे प्रभु! तुम मुझे केवल खिलता हुआ फूल ही मत बनाना, जो किसी एक हाथ की शोभा बने । तू तो मुझे वह सुगंध बनाना जो जिधर से भी गुजरे, लोगों के दिलों को सुख-सुकून देती चले। मेरे मित्र! स्वार्थ से तुम जितना ऊपर उठोगे, जीवन में जीवन की सार्थकता के फूल उतने ही खिलेंगे, महकेंगे, आनंदित करेंगे। 'खुशियाँ लो, खुशियाँ बाँटो'– वर्तमान की हर किसी को यही प्रेरणा है, प्रार्थना है, शुभकामना है। ११४ आपकी सफलता आपके हाथ For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबके लिए अमृत प्रेम । आइये, हम नये उत्साह, नई उमंग और नई ऊर्जा के साथ सार्थक लक्ष्य की ओर कदम उठाएँ। बेहतर लक्ष्य बनाएँ, बेहतर नजरिया अपनाएँ, आत्मविश्वास जगाएँ, कड़ी मेहनत करें। अपने जीवन को भी खुशबु प्रदान करें और अपनी ओर से अपने परिजनों तथा अपनी इस पूरी धरती को भी खुशबु का आनंद दें। सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी ११५ For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SANA Part लक्ष्य बनाएं बाता तीवन की, जीने की लागत से भी कम मूल्य पर याष्ठ साहित्य ऐसे जिएँ : श्री चन्द्रप्रभ जीने की शैली और कला को उजागर करती विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक। स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन की राह दिखाने वाली प्रकाश-किरण। पुस्तक महल से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 122, मूल्य 20/ लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ : श्री चन्द्रप्रभ पुरुषार्थ जीवन में वही जीतेंगे जिनके भीतर जीतने का पूरा विश्वास है। सफलता के शिखर तक पहुँचाने वाली प्यारी पुस्तक। पुस्तक महल से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 104, मूल्य 20/बातें जीवन की, जीने की : श्री चन्द्रप्रभ युवा-पीढ़ी की समसामयिक समस्याओं पर अत्यंत तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन। एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 90, मूल्य 15/बेहतर जीवन के बेहतर समाधान : श्री चन्द्रप्रभ जीवन की व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान देती एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 130, मूल्य 15/वाह ज़िंदगी ! : श्री चन्द्रप्रभ सुखी और सफल जीवन जीने का रास्ता । जन-जन में लोकप्रिय एक चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 120, मूल्य 20/क्या स्वाद है ज़िंदगी का : श्री ललितप्रभ जीवन के विभिन्न सार्थक और सकारात्मक पहलुओं को आत्मसात कराने वाली लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ 146,मूल्य 20/जागो मेरे पार्थ : श्री चन्द्रप्रभ गीता की समय-सापेक्ष जीवन्त विवेचना। भारतीय जीवन-दृष्टि को उजागर करता प्रसिद्ध ग्रन्थ। फुल सर्कल,दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 230, मूल्य 40/ बेहतर जीवन के बेहतर समाधान musaहात वाह! ज़िन्दगी क्या स्वाद है जिंदगी का जाourn मेर पार्था For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाबाद समय की चेतना श्रीपा पंछीलौटे नीड़ में धर्म में प्रवेश : श्री चन्द्रप्रभ नित्य नये पंथों और उपासना-पद्धतियों के बीच धर्म के स्वच्छ मौलिक स्वरूप का निर्देशन। नई पीढ़ी के लोग अवश्य पढ़ें। पृष्ठ : 96, मूल्य 15/जागे सो महावीर : श्री चन्द्रप्रभ भगवान महावीर के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन । अन्तर्मन में अध्यात्म की रोशनी पहुँचाता प्रकाश-स्तम्भ। ज्ञानवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए महावीर पर नई दृष्टि। पृष्ठ 252, मूल्य 30/समय की चेतना : श्री चन्द्रप्रभ समय का हर दृष्टि से मूल्यांकन करते हुए समयबद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली पुस्तक। जीवन-प्रबंधन एवं आत्म-विकास में उपयोगी। पृष्ठ : 128, मूल्य 15/पंछी लौटे नीड़ में : श्री चन्द्रप्रभ अन्तर-साधना एवं व्यक्तित्व-विकास के सूत्रों पर मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन। आध्यात्मिक शांति प्रदान करने वाली पुस्तक। पृष्ठ : 168, मूल्य 30/सहज मिले अविनाशी : श्री चन्द्रप्रभ योग के कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों के प्रसंग में दिए गए बेहतरीन एवं अनमोल प्रवचन। पृष्ठ : 100, मूल्य 15/आपकी सफलता आपके हाथ : श्री चन्द्रप्रभ सफलता हर किसी को चाहिए, पर उसे पाएँ कैसे, पढ़िये इस प्यारी पुस्तक को। पृष्ठ 110, मूल्य 20/उड़िए पंख पसार : श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म की सहज-सर्वोच्च स्थिति तक पहुँचाने वाला एक अभिनव ग्रन्थ । पृष्ठ : 200, मूल्य 30/ध्यानयोग : विधि और वचन : ललितप्रभ सागर ध्यान योग की वास्तविक समझ पाने के लिए विशेष उपयोगी। साथ ही ध्यान-योग की विस्तृत विधि । पुस्तक महल दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 148, मूल्य 30/ रान सिल आपके उड़िये पंख पसार श्री चन्द्रप्रभ ध्यानयाग वि और वचन For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावन्द्र परी महारसा नाम + HN . काहालिग सत्य की ओर प्रेरणा सो परम महारस चाखै : श्री चन्द्रप्रभ आनन्दघन के अध्यात्म-रसिक पदों पर बेहतरीन प्रवचन। पढ़िये, अंधेरे से प्रकाश में ले जाती इस पुस्तक को। पृष्ठ 134,मूल्य 25/श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ : श्री ललितप्रभ श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियों का प्यारा संकलन । पुस्तक जो संपूर्ण देश में पढ़ी जा रही है। पृष्ठ 102, मूल्य 20/सत्य की ओर : श्री ललितप्रभ सागर सर्वधर्म के अमृत संदेशों को उजागर करते हुए नैतिक मूल्यों से रू-ब-रू करवाती श्रेष्ठ पुस्तक । सबके लिए प्रेरक और पठनीय पृष्ठ 100, मूल्य 15/प्रेरणा : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर आध्यात्मिक संतों के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंग। सहज में पाइए धर्म-अध्यात्म की दृष्टि । पृष्ठ 100, मूल्य 15/समय की चेतना : श्री चन्द्रप्रभ समय का हर दृष्टि से मूल्यांकन करते हुए समयबद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली पुस्तक। पृष्ठ : 110, मूल्य 15/ऐसी हो जीने की शैली : श्री चन्द्रप्रभ जीवन और धर्म-पथ को परिभाषित करते हुए जीने की साफ-स्वच्छ राह दिखाती अनूठी पुस्तक। पृष्ठ 160, मूल्य 30/मैं कौन हूँ : श्री चन्द्रप्रभ वे प्रवचन जो हमें दिखाते हैं अध्यात्म और आत्म-रूपांतरण का रास्ता। पृष्ठ 100, मूल्य 15/कैसे पाएँ मन की शांति : श्री चन्द्रप्रभ चिंता, तनाव और क्रोध के अंधेरे से बाहर लाकर जीवन में शांति, विश्वास और आनंद का प्रकाश देने वाली बेहतरीन जीवन-दृष्टि। पृष्ठ 116, मूल्य 15/ MICO ऐसी हो जी लेकी कैसे पाएँ मन की For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MEDITATION AND ENLIGHTENMENT ... संबोधि साधना का रहस्य अप्प दीपो भव ध्यान साधना और सिद्धि जीवन का आनंद श्री चन्द्रप्रभ श्री चन्द्रभ रूपांतरण मन की उलझन क्या स्वाद है जिंदगी का Meditation And Enlightement: Shree Chadraprabh A guide to acquiring mental peace and spiritual growth. Page 110, Price 40/→ संबोधि - साधना का रहस्य : श्री चन्द्रप्रभ जीवन को अधिक सुंदर, स्वस्थ और ऊर्जावान बनाने का बेहतरीन मार्गदर्शन । पृष्ठ 100, मूल्य 20/ अप्प दीपो भव : श्री चन्द्रप्रभ जीवन, जगत और अध्यात्म के विभिन्न आयामों को उजागर करती पुस्तक । श्रेष्ठ सूक्त वचन पृष्ठ 136, मूल्य 20/ ध्यान : साधना और सिद्धि : श्री चन्द्रप्रभ साधकों को सम्बोधित प्रवचन एवं ध्यानयोग-साधना के अभ्यासक्रम का संचयन । पृष्ठ 150, मूल्य 30/ पल-पल लीजिए जीवन का आनंद : श्री चन्द्रप्रभ जीवन के आध्यात्मिक आनंद से मुखातिब कराने वाली प्यारी पुस्तक । पृष्ठ 104, मूल्य 20/ रूपान्तरण : श्री चन्द्रप्रभ जीवन के वास्तविक रूपांतरण के लिए सुझाए गए महत्वपूर्ण पहलुओं का मानक संकलन । पृष्ठ 144, मूल्य 20/ कैसे सुलझाएं मन की उलझन : श्री ललितप्रभ सागर चिंता, क्रोध और तनाव जैसी समस्याओं से छुटकारा दिलाने वाली एक सर्वश्रेष्ठ पुस्तक । पृष्ठ 140, मूल्य 20/ क्या स्वाद है ज़िंदगी का : श्री ललितप्रभ सागर जीवन के विभिन्न सार्थक और सकारात्मक पहलुओं को आत्मसात कराने वाली लोकप्रिय पुस्तक । पृष्ठ 140, मूल्य 20/ For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6.10 NOON बसा करें कामयाबी सकारा Greifall महान जैन स्तोत्र कैसे जिए--- मधुर जीवन क्या करें कामयाबी के लिए : श्री चन्द्रप्रभ कामयाबी के लिए हर रोज नई प्रेरणा देने वाली एक सुप्रसिद्ध पुस्तक । पृष्ठ 100, मूल्य 15/ सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये : श्री चन्द्रप्रभ स्वस्थ सोच और सफल जीवन का द्वार खोलती लोकप्रिय पुस्तक । पृष्ठ 120, मूल्य 15/ फिर महावीर चाहिए : श्री चन्द्रप्रभ महावीर अतीत की नहीं वर्तमान की आवश्यकता है । फिर से समझिए महावीर को । पृष्ठ 96, मूल्य 15/ महान जैन स्तोत्र : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महान चमत्कारी धार्मिक स्तोत्रों का अनुपम ख़ज़ाना। पृष्ठ 125, मूल्य 20/ कैसे जिएँ मधुर जीवन : श्री चन्द्रप्रभ सुमधुर और सुव्यवस्थित जीवन जीने की कला सिखाने वाली बेहतरीन पुस्तक । पृष्ठ 120, मूल्य 15/ - विशेष • अपने घर में अपना पुस्तकालय बनाने के लिए फाउंडेशन ने एक अभिनव योजना बनाई है। इसके अंतर्गत आपको सिर्फ एक बार ही फाउंडेशन को पन्द्रह सौ रुपए देने होंगे, जिसके बदले में फाउंडेशन अपने यहाँ से प्रकाशित होने वाले प्रत्येक साहित्य को आपके पास आपके घर तक पहुंचाएगा और वह भी आजीवन । इस योजना के सदस्य बनते ही आपको फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित संपूर्ण 'उपलब्ध साहित्य' निःशुल्क प्राप्त होगा । ध्यान रहे, साहित्य वही भेजा जा सकेगा जो उस समय स्टॉक में उपलब्ध होगा । रजिस्ट्री चार्ज एक पुस्तक पर 20 रुपये, न्यूनतम दो सौ रुपये का साहित्य मंगाने पर डाक व्यय संस्था द्वारा देय । धनराशि Sri Jit - yasha Shree Foundation के नाम ड्राफ्ट बनाकर जयपुर के पते पर भेजें । वी.पी. पी. से साहित्य भेजना शक्य नहीं होगा। आज ही अपना ऑर्डर निम्न पते पर भेजें श्री जितयशा फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड़, जयपुर 302001 फोन : 2364737 — For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 केवल सांसों के चलने से जीवन नहीं चला करता / जीवन के लिए शान्ति, शक्ति और सफलता की मनोदशाभी जरूरी है। * लगातार टिक्...टि करती घड़ी हमें इस बात के लिए आगाह कर रही है कि जीवन का कांटा कहीं अटकने केलिए नहीं, सफलता के रास्ते पर मनोयोगपूर्वक निरन्तर श्रम और संघर्ष करने के लिए है। 0 जीवन मैं बाधाओं की चाहे सड़क पार करनी हो या रेठ की पटरी, धैर्य और साहस का दामन कभी मत छोड़िए। सफलता के सात कदम 0 समझदारी की दहलीज पर क़दम रखते ही दिल में लक्ष्य का चिरावा जला लिया जाए तो इससे आप अपनी सात पीढ़ी के लिए रोशनी के दस-दस द्वार खोल सकते हैं। 0 हर बचपन का बुढ़ापा होता है और हर कार्य की मंजिल / अपने उत्साह और उमंग को सदा अपनी आँखों मैं बसाकर रखिए ताकि बुढ़ापाऔर मंजिलसदा तरोताजा रहें। 0 अपने मनोबल को पंगु होने से बचाइये। आप शरीर से अपंग होकर भी अष्टावक्र की तरह सम्पूर्णताका सामर्थ्य अर्जित कर लेंगे। 0 जीवन में प्रसन्नता का पेड़ लगाइये। उसकी डाठ पर चहचहाने के लिए रंग-बिरंगी चिड़ियाँ और मिठास बढ़ाने के लिए खूबसूरत फल अपने आपआ जाएंगे। For Personal & Private Use Only