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________________ बना सकता है, यही मनुष्य की अपने आप पर विजय है । मनुष्य शरीर की दृष्टि से कोई ख़ास अहमियत नहीं रखता। वह न तो किसी गौरय्या की तरह आसमान में उड़ सकता है और न ही किसी मगरमच्छ की तरह जल में तैर सकता है। वह न तो तितली की तरह फूलों पर मंडरा सकता है और न ही वह किसी बन्दर की तरह पेड़ों पर उछल-कूद कर सकता है। मनुष्य के नाखून किसी हिंसक जानवर जैसे तीखे नहीं हैं और न ही उसके पास बाज़ जैसी दृष्टि और चीते जैसा फुर्तीलापन ही है। उसके पास किसी मोर के समान सौन्दर्य भी नहीं है । शरीर की दृष्टि से तो वह इतना कमजोर है कि एक मच्छर या छोटा-सा बिच्छू भी उसे विचलित कर सकता है। शारीरिक दुर्बलता तथा कमियों के बावजूद उसके पास एक ऐसी अद्वितीय शक्ति है, जिसके बल पर उसने उन सबको अपने मातहत कर रखा है । यह शक्ति है मन की शक्ति, सोचने-समझने की शक्ति । मन ही मनुष्य का शिव है और यही मनुष्य की शक्ति । यह मनुष्य की मानसिक सोच का ही परिणाम है कि वह किसी 'सुपरसॉनिक' जेट विमान में उड़ सकता है तो किसी पनडुब्बी द्वारा जल की अतल गहराइयों को भी माप सकता है। वह चाहे तो कृत्रिम रोशनी से रात को भी दिन में तब्दील कर सकता है। आज दुनिया बहुत सिमट चुकी है। दुनिया को एक दूसरे के इतने करीब लाने का श्रेय मनुष्य की सोच को ही है। संसार के हर इन्सान के लिए चाहे वह सोया हो, जागृत हो, स्वप्न में हो, स्मृति, विकल्प या फिर किसी कल्पना में हो- उसकी परछाईं उसका साथ छोड़ सकती है, पर उसकी सोच उसका साथ नहीं छोड़ेगी । सम्भव है कि तुम अपने माँ-बाप को छोड़ कर अलग घर बसा लो, अपने पति या पत्नी से तलाक ले लो या तुम्हारा परिवार तुम्हें छोड़ दे, पर तुम्हारी सोच तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगी। जो सोच व्यक्ति के साथ हर लम्हा रहती है, आखिर व्यक्ति उस पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा है? मैं धर्म की वह बात नहीं कहूँगा जो आपको मात्र किसी मन्दिर तक पहुँचा दे, बल्कि मैं धर्म की वह बात कहूँगा जो आप की सोच और विचारधारा बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003883
Book TitleAapki Safalta Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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