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________________ ‘भोजन कर रहा हूँ।' अर्जुन चकित होकर कहने लगा- 'इतने अन्धकार में जहाँ हाथ को हाथ नहीं दिख रहा है, क्या तुम भोजन कर रहे हो? क्या तुम्हारा कौर मुख की बजाय नाक में नहीं जा रहा है?' भीम ने कहा-'नहीं भैय्या, मेरा कौर सीधा मुख में ही जा रहा है।' इसका कारण भीम को खाने का लगातार अभ्यास ही रहा होगा। अर्जुन को सफलता का सूत्र हाथ लग गया था। वह आधी रात को ही तीर लेकर निशाना साधने निकल पड़ा। घोर अन्धकार होने पर भी उसके लगातार प्रयास के कारण तीर निशाने पर लगने लगे । गुरु द्रोणाचार्य उसकी दक्षता को देख कर पूछने लगे- 'इतने अंधकार में भी लक्ष्य- संधान! तुम्हारे इस कौशल का रहस्य क्या है?' अर्जुन ने कहा- 'गुरुवर, लगातार अभ्यास ही मेरी कुशलता का रहस्य है।' इस रहस्य को मंत्र मानकर आप भी इसे आत्मसात् कीजिए। अगर आप कुछ स्वीकार कर सकते हैं तो मैं कहूँगा कि आप मेरे शब्दों को चुनौती मानकर स्वीकार कर लें। आप अपने अंदर एक ऐसा विश्वास, संकल्प और मनोबल पैदा कर लें कि मेरे शब्द आपको चुनौती लग सकें । चुनौती को स्वीकार करना तो आना ही चाहिए। आज सुबह ही वीरेन्द्र नाम के एक सज्जन मुझे बता रहे थे कि बचपन में उन्हें किसी ने कहा था कि यह तो बनिये का बेटा है, भला यह बॉक्सिंग करना क्या जाने? उस व्यक्ति ने उन शब्दों को चुनौती मानकर स्वीकार कर लिया और आज वह व्यक्ति राज्यस्तरीय बॉक्सिंग चैम्पियन है। चैंपियन बनना है तो चुनौती को स्वीकार करना सीखो। अपने भीतर जज्बा पैदा करो। एक प्रेरक घटना कालिदास से जुड़ी है। कालिदास संस्कृत साहित्य के आधारस्तंभों में से एक हैं, लेकिन शुरू से ही वे प्रतिभावान न थे। तब वे एक साधारण गड़रिये थे। कालिदास के श्वसुर ने यह मन में निश्चय कर रखा था कि मैं अपनी बेटी की शादी किसी महामूर्ख से करूँगा ताकि मेरी बेटी को अपने ज्ञान पर जो घमण्ड है, वह टूट सके। ४८ आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003883
Book TitleAapki Safalta Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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