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________________ 'और कितना सोचता, तीन महीने तक सोचते-सोचते ही तो अपना सिर सींगों में डाला था।' हमने तीन महीने तक अपना सिर सींगों के बीच डालने के लिए तो सोचा; पर अपने सिर में उग आए व्यर्थ के विचारों को सींगों से हटाने के लिए कभी नहीं सोचा। ध्यान रखें, जीवन में सार्थक सोच भी उठती है और निरर्थक सोच भी। त्याग करना है तो हम अपने निरर्थक विचारों का त्याग करें। हम लोग एक ऐसा व्रत लें, ऐसा तप-अनुष्ठान करें कि उसमें हम अपने फालतू विचारों का त्याग कर सकें। दुनिया में दो तरह के विचार होते हैं- एक है पालतू और दूसरे हैं फालतू। पालतू विचार काम के हैं, पर फालतू विचार नकामे होते हैं। यदि आपके दिमाग़ में ऐसा कोई फालतू विचार आ चुका है तो तत्काल सावधान हो जाइए और ठान लीजिए कि-'नहीं, मुझे ऐसा नहीं सोचना है। ऐसा सोचना मेरे लिए पाप है।' आप सोच की दिशा को बदल दीजिए। यदि आपको किसी पर क्रोध आ भी जाए, और नालायक का 'ना' निकले तो उसके पहले ही उसे निगल जाएँ। सावधान हो जाएँ कि नहीं, मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए। शुरूआत में तो आपको निगलना पड़ेगा लेकिन कुछ दिनों बाद आप देखेंगे कि आपके दिमाग में कोई गाली ही नहीं उठती। बिल्कुल शांति है। दुनिया का कोई भी सन्त, कोई भी पंथ और कोई भी ग्रंथ किसी को नहीं बदल सकता। मनुष्य जब भी बदला है, अपनी सोच और समझ के चलते ही बदला है। यदि मनुष्य स्वयं को बदलने के लिए संकल्पशील नहीं है तो दुनिया की कोई ताक़त उसे नहीं बदल सकती। संत और ग्रंथ तो रास्ता देते हैं, उसे अपनी सोच में उतारने का रास्ता देना आपके हाथ में हैं। व्यक्ति मरघट पर जाकर सैकड़ों लोगों की अंत्येष्टि कर आता है, पर मरघटिया वैराग्य को जीकर क्या कोई व्यक्ति जरा भी बदला है? अपने दादा, नाना, मित्रों और पड़ोसियों की मृत्यु देखने पर भी स्वयं की मृत्यु का बोध किसी को भी नहीं होता। मरघटिया वैराग्य तो विचारों को क्षणिक उद्वेलित करता है और फिर वही दुनियादारी शुरू हो जाती है। विचार नहीं बदलते, बेहतर सोचिये बेहतर जीवन के लिए ५९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003883
Book TitleAapki Safalta Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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