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________________ काँटों को निहारेंगे तो जीवन में कष्ट ही कष्ट दिखाई देंगे और काँटों के ऊपर खिलने वाले गुलाबों पर ध्यान देंगे तो जीवन में खिलावट ही खिलावट नजर आएगी। हमारा जीवन तो हमारे लिए किसी तानपुरे की तरह होता है, जिसके तारों को अगर कसना और साधना आ जाए तो तानपुरे के तार संगीत का सुकून देने लग जाते हैं और अगर तारों को कसना और साधना न आए तो तानपुरे के तार ही कौए की काँव-काँव बन जाया करते हैं। यह एक सीधा-सा सवाल है कि तीन और तीन कितने होते हैं? अगर केवल योग बैठाना चाहेंगे तो तीन और तीन छह होते हैं। अगर रचनात्मक दृष्टि का उपयोग करते हैं तो तीन और तीन तैंतीस होते हैं। तीन और तीन को आपस में उलट दिया जाए तो वे छियासठ हो जाते हैं। तीन और तीन दोनों को ही एक दूसरे के विपरीत कर दिया जाए तो छत्तीस का आँकड़ा हो जाता है। तीन से तीन को अगर गुणा कर दिया जाए तो नौ हो जाते हैं और तीन माइनस तीन कर दिया जाए तो शून्य रह जाता है। यह तीन और तीन का आँकड़ा व्यक्ति को इस बात का सुकून देता है कि तीन और तीन = छह तो सारी दुनिया के लिए होते हैं किन्तु हमारे जीने की बलिहारी तो तब है जब हम तीन और तीन को तैंतीस कर सकें। तारों का कई लोग उपयोग नहीं करते होंगे। इसी तरह लोग तुम्बे का उपयोग भी नहीं करते होंगे, लाठी का भी कई लोग उपयोग नहीं करते होंगे, पर अगर उनका एक संयोजन, एक रचनात्मक संयोजन कर दिया जाए तो वही तुम्बा, लाठी और तार जुड़ कर तानपुरा बन जाया करते हैं। मेरे लिए जीवन एक तानपुरे का संगीत है। जब हम अपनी साँसों के साक्षी होते हैं तब वह उतना ही सुकूनदायी होता है जितना कि किसी तानपुरे के संगीत को सुनना। जब हम अपने चित्त की अनुपश्यना करते हैं, सुदर्शनीय चित्त के साक्षी होते हैं, तो उसे देखना भी वैसा ही होता है जैसा कि इस सारे जगत् को देखना। जैसे संसार में पहाड़ हैं, नदियाँ हैं, नाले हैं, पंछी हैं, गुलांचे खाते हुए हिरन हैं, गुटरगूं करते कबूतर हैं, चहचहाट करती चिड़ियाएँ हैं, दहाड़ते हुए जीवन में अपनाएँ निश्चितता का नज़रिया ८७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003883
Book TitleAapki Safalta Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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