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हमने किसी को दो टुकड़े रोटी के डाल दिये तो कौन-सा बड़ा अहसान कर डाला? वे तो भगवान आए थे हमारे द्वार पर जिनकी मेहरबानी से हम सब लोगों को रोटी खाने को मिलती है। हमारी सारी प्रार्थनाएँ धरी रह जाती हैं अगर उसकी कृपा न हो तो हमें पानी भी नहीं मिल सकता। जिसकी कृपा से आदमी को अन्न और जल मिलता रहा है, उसे हम अपने द्वार आने पर खाली हाथ निकाल दें, तो यह हमारा मनुष्यत्व न होगा।
हम हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, वैष्णव चाहे जो भी बन जाएँ, कोई दिक्कत नहीं पर उनसे भी पहले हम मनुष्य बन जाएँ। हम अपनी जिंदगी में कोई महान् संत न भी बन पाए, तो कोई बात नहीं लेकिन यह सजगता जरूर रखें कि मैं पूरा एक मनुष्य तो बन जाऊँ। शायद एक पूर्ण मनुष्य हिन्दू, बौद्ध, जैन हो ही जाया करता है। मैं अभिनन्दन करना चाहूँगा रेडक्रॉस, रोटरी क्लब, महावीर इंटरनेशनल जैसी सेवा-संस्थाओं का, संगठनों
और समूहों का जिन्होंने मनुष्य के दुःखदर्द को कम करने के लिए इतना बड़ा संगठन तैयार किया है और मनुष्य को एक मंदिर मानते हुए नर की सेवा में नारायण की सेवा स्वीकार की, जन की सेवा में 'जिन' सेवा अंगीकार की और पुरुष की सेवा में परमात्मा की सेवा कबूल की।
स्मरण आ रहा है मदर टेरेसा का जिसने नंगों को केवल कपडे ही नहीं दिए, भूखों को केवल भोजन ही नहीं दिया वरन् मानवता जब-जब भी रुग्ण हुई तो उसकी दस्तें और उल्टियाँ भी साफ की। उस सन्नारी की सुबह की प्रार्थना ही यही होती थी कि 'हे भगवान, हे ईश्वर, तुम इस पीड़ित मानवता के दु:खदर्द कम करो।' मैं नारी-समाज का आह्वान करना चाहूँगा कि आप टेरेसा को अपना आदर्श बनाएँ और हर समाज में टेरेसा के स्वरूप को दोहराएँ। जिस तरह से इस दुनिया की भलाई के लिए मदर टेरेसा पैदा हुई उसी तरह से आज की तारीख में भी मदर टेरेसाओं की ज्यादा जरूरत है। मंदिर में जाकर पूजा जरूर करें लेकिन जब कोई व्यक्ति पूजा करके मंदिर से बाहर निकले तो यदि उसने मंदिर में एक घण्टा लगाया है तो वह दो घण्टे मानवता की सेवा में लगाए। मंदिर से सीधे घर जाने की बजाय पहले किसी सफलता के हाथों में दीजिए सहानुभूति की रोशनी
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