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को कम। जब कोई एक बात दिमाग में घुस जाती है तो वह निकलती ही नहीं है। घुसेगी तो वह घुसती ही रहेगी और उससे जुड़ती हुई और सौ बातें आ जाएंगी। जिस घर में चोर आ जाता है, उस घर में सौ चोरों के आने का रास्ता खुल जाता है। हम सब भली भाँति जानते हैं कि ये चोर कौन है? कौन हैं वे जो हमारे दिमाग को भूत-बंगला बना देते हैं। तब हम जाते हैं किसी न्यूरोफिजिशियन के पास और कहते हैं- 'साहब, शांति नहीं है दिमाग में । हर समय अशांति लगी रहती है। ऐसा लगता है जैसे डिप्रेशन हो गया है।' मैं कहता हूँ, देख लो क्या-क्या है दिमाग में? जो-जो है, उसे निकाल दें।
जब हम किसी पहलू को लेकर चिंता करते है, किसी बिन्दु को लेकर मन में चिंता पलती है, तो ऐसी चिंता को बाहर निकाल दो। किस बात की चिंता? एक ही बात को लेकर घुटते रहना कोई अच्छी बात नहीं है। हम सोचते रहते हैं 'मैं किसी से मिला और वो आदमी बिछुड़ गया। हम मिले, बात-चीत की और वह चला गया। ठीक है, जैसे हम आईने के सामने गये, चेहरा देखा, हम हट गए तो आईना साफ का साफ। मगर हम बाद में सोचते रहते हैं, 'अरे मैंने उसको ऐसा कह दिया। मैंने उसके साथ ऐसा सलूक कर दिया। वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा? पर हम यह नहीं जानते कि हम जिसके बारे में सोचते हैं वह भी हमारे बारे में सोचता होगा। मैं जिससे मिलकर आया हूँ वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा, इन व्यर्थ की चिंताओं को फेंक दें। उसे याद कर कर घुटो मत। बीती बातों को याद करके दिमाग को बोझिल मत करो। जो हो गया सो हो गया। जो होना होता है, सो होता है। जो होता है अच्छे के लिए होता है, यह मानकर सुखी रहो। होना था सो हो गया। अब उससे हमें क्या मतलब?
हमने यदि किसी आदमी को चिंतित देखा हो, तो यह मान लो कि वह निरर्थक बातों में उलझा हुआ है और बेकार की बातों को याद करता रहता है। एक कहावत भी है कि निन्यानवे का चक्कर जब साथ लग जाता है तो बाबाजी सुबह जगते हैं पाँच बजे, मगर उनका निन्यानवे का चक्कर शुरू हो जाता है तीन बजे । वह चक्कर रातों में नींद में भी जारी रहता है और ९२
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