Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 115
________________ रहा। चौथी रोटी भी उसकी थाली में रख दी गई। उसने चारों रोटियाँ खाई और वह प्रणाम कर चल दिया। ब्राह्मण, उसकी पत्नी और उसके दोनों बच्चे भूखे ही रह गये पर वे शांत रहे। उन्होंने एक-एक गिलास पानी पिया और सो गये। राम जाने, राम किस रूप में आया करते हैं और किस-किस के द्वार पर? वे चारों ही लोग सो गए। रात को एक गिलहरी भोजन की तलाश में उस कुटिया की तरफ बढ़ी, तो रोटियाँ बनाते समय जो आटा गिरा था, उस आटे के कण वहीं झोपड़ी में इधर-उधर बिखरे पड़े थे। गिलहरी जैसे ही उनके ऊपर से गुजरी, वे कण गिलहरी की छाती पर चिपक गये और यह देखकर उसे ताज्जुब हुआ कि आटे के वे सभी कण स्वर्ण के कण बन चुके थे। केवल अपने लिए जिए, तो क्या जिए! जीवन की सफलता और सार्थकता इसी में है कि हम औरों के भी काम आएँ। तुम्हें जो अपने प्रारब्ध और पुरुषार्थ से मिल रहा है, उसका एक हिस्सा दूसरों के लिए भी समर्पित होना चाहिए। जिनसे कण का सहयोग हो सकता है, वे कण का करें, जिनसे 'मण' का सहयोग हो सकता है, वे मण का करें। पर कुछ-न-कुछ करते अवश्य रहें। ध्यान रखो, भाग्य की रेखा आगे भले ही खींची जाती हो, पर उसकी झोली पीछे से भरी जाती है। पीछे से उसी के घर झोली भरी जाती है, जो आगे से सरोवर की तरह प्यास बुझाए, तरुवर की तरह छाया दे। ईश्वर से केवल एक ही प्रार्थना हो कि हे प्रभु! तुम मुझे केवल खिलता हुआ फूल ही मत बनाना, जो किसी एक हाथ की शोभा बने । तू तो मुझे वह सुगंध बनाना जो जिधर से भी गुजरे, लोगों के दिलों को सुख-सुकून देती चले। मेरे मित्र! स्वार्थ से तुम जितना ऊपर उठोगे, जीवन में जीवन की सार्थकता के फूल उतने ही खिलेंगे, महकेंगे, आनंदित करेंगे। 'खुशियाँ लो, खुशियाँ बाँटो'– वर्तमान की हर किसी को यही प्रेरणा है, प्रार्थना है, शुभकामना है। ११४ आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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