Book Title: Aapki Safalta Aapke Hath
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 111
________________ इंसानियत के लिए कुछ न कुछ जरूर किया है। आप आज इंसानियत के लिए दस रुपये निकालें। हो सकता है कि कल सौ रुपये निकालें, हजार भी निकालें। हो सकता है कि कल आप कोई अस्पताल, विद्यालय या कोई सहायता-केन्द्र भी बना सकते हैं। कुछ कहा नहीं जा सकता कि आप क्या कर बैठे? भगवान् के घर से आपके भंडार कैसे भर दिये जायें। आप अपने छोटे-छोटे स्वार्थों का त्याग करके भी इंसानियत पर उपकार कर सकते हैं। छोटे-छोटे त्याग करके ! बहुत बड़ा त्याग तो हर किसी से हो भी नहीं सकता पर छोटे-छोटे त्याग तो हम कर ही सकते हैं। मैंने देखा कि कुछ दिन पहले, जब मैं किसी रास्ते से गुजर रहा था, तभी मेरी नजर एक चौराहे पर पड़ी। मैने देखा कि एक अंधा आदमी किसी की प्रतीक्षा कर रहा है और सोच रहा है कि कोई व्यक्ति आए और उसे इस रास्ते से उस रास्ते तक पहुँचा दे। तभी एक विकलांग व्यक्ति उधर से गुजरा और उसने देखा कि अंधा आदमी इसी इंतजारी में है कि कोई उसे इधर से उधर पहुँचा दे। अपाहिज व्यक्ति उसका हाथ पकड़कर उसे इस पार से उस पार पहुंचा रहा था। दूर से चलता हुआ मैं यह दृश्य देख रहा था। मेरी आँखें भर आईं। मुझे लगा कि कोई पीड़ित ही जान सकता है किसी दूसरे पीड़ित की पीड़ा को। ___मैं कहना चाहूँगा एक बहुत प्यारी कहानी। वह कहानी है एक पोस्टमैन की। एक डाकिया किसी मोहल्ले में एक घर के बाहर दस्तक देता है। वह आवाज लगाता है, 'गुड़िया, तुम्हारे नाम की चिट्ठी आई है।' भीतर से आवाज आती है, 'आई डाकिया साहब, आई। आप दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये मैं ले लूंगी।' डाकिए ने सोचा क्या फर्क पड़ता है यदि आधे मिनट मैं उसकी इंतजार ही कर लेता हूँ। वह फिर भी खड़ा रहा। दो मिनट बीत गए, तीन मिनट बीत गए। उसने फिर से आवाज लगाई, 'अरी ओ गुड़िया, तुम्हारे नाम की चिट्ठी आई है।' गुड़िया ने कहा कि क्या आप अभी तक खड़े हैं? मै आ ही रही हूँ पोस्टमैन साहब, बस मैं आ ही रही हूँ, 'अंकल।' दो मिनट बीत गए। पोस्टमैन को लगा कि मैं अगर एक-एक घर पर इतना समय बिता दूंगा तो बाकी की डाक कब बाँट पाऊँगा?' और यह भी ११० __ आपकी सफलता आपके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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